साल 2018 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट, ‘द कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स‘ (CWMI) के मुताबिक, वर्तमान में भारत इतिहास के सबसे बड़े जल-संकट से जूझ रहा है। लगभग 60 करोड़ भारतीय आज पानी न होने की समस्या से ग्रस्त हैं, 75% घरों में पीने के लिए पानी नहीं है और 84% ग्रामीण घरों में आज भी वॉटर पाइपलाइन नहीं है।
ये सभी आंकड़े जब किसी सोशल मीडिया या फिर अख़बारों में हम पढ़ते हैं तो पल भर के लिए हमारी रूह काँप जाती है। क्योंकि हम में से कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि हम एक दिन भी पानी के बिना गुजार सकते हैं। इस परिस्थिति के लिए हम सिर्फ सरकार या प्रशासन को दोष नहीं दे सकते हैं, क्योंकि हमें इस स्थिति में लाने वाले हम खुद हैं।
घरेलू कामों में हम न जाने कितना पानी यूँ ही बर्बाद कर देते हैं। फिर बहुत बार लीक हो रहे नलों को सही कराने की तरफ भी हमारा ध्यान नहीं जाता है। जहाँ एक तरफ हम अपने घरों के नल ठीक कराने में आलस करते हैं तो वहीं कोलकाता के दो शख्स, शहरभर के लीक नलों को ठीक करने के लिए जुटे हुए हैं।
बिजनेस डवलपमेंट कंसलटेंट के तौर पर काम करने वाले 28 वर्षीय अजय मित्तल और उनके एक और साथी, 36 वर्षीय विनय जाजू ने पिछले तीन महीनों में कोलकाता के 350 लीक नलों को ठीक करवाया है।
अपनी इस पहल के बारे में द बेटर इंडिया से बात करते हुए अजय ने बताया,
“घरों के नल तो लोग खुद ही ठीक करवा सकते हैं, पर गली-मोहल्लों, सड़कों और खासकर छोटी-छोटी बस्तियों में जो नल होते हैं, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। इसलिए सबसे पहले हम एरिया में पता लगा लेते हैं कि वहां कितने नलों को रिपेयरिंग की ज़रुरत है और फिर वीकेंड पर अपने साथ एक प्लम्बर को लेकर वहां पहुँच जाते हैं। इस तरह से हमने कोलकाता के एक हिस्से को कवर कर लिया है और अभी भी हमारी यह पहल जारी है।”
अजय और विनय के इस काम में आम नागरिक भी उनसे जुड़ रहे हैं। अजय बताते हैं कि पहले उन्हें खुद जाकर लीक हो रहे नलों का पता लगाना पड़ता था, पर अब खुद लोग उन्हें फ़ोन करके बताते हैं कि इस कॉलोनी या बस्ती में नलों को मरम्मत की ज़रुरत है।
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उनके इस अभियान को ‘फिक्स फॉर लाइफ‘ नाम भी लोगों ने ही दिया है। पर आखिर कैसे हुई उनके इस अभियान की शुरुआत?
इस बारे में अजय बताते हैं,
“हमारे सर्किल में एक विजय अग्रवाल जी हैं, वे एक दिन अपने बच्चों स्कूल छोड़ने गए थे। उन्होंने रास्ते में एक कम्युनिटी नल को टपकते हुए देखा और उनको ख्याल आया कि इस तरह से न जाने कितना पानी बर्बाद जाता होगा। विजय जी ने इस बारे में हमसे बात की और फिर हमने इस बारे में और गहराई से रिसर्च की।”
जब अजय ने इस बारे में और अधिक जानना चाहा तो उन्हें पता चला कि कोलकाता नगर निगम द्वारा सप्लाई किये जाने वाला लगभग 30% पानी सिर्फ लीक हो रहे नलों की वजह से बर्बाद जाता है। उन्हें समस्या की जड़ और समस्या का समाधान, दोनों ही समझ में आ गया और फिर शुरू हुई, शहर के हर एक लीक नल को ठीक करने की कवायद, जिसमें वे अब तक पूरी तरह से कामयाब रहे हैं- नलों को ठीक करने में भी और लोगों में जागरूकता फैलाने में भी।
“अब तक का यह सफर बहुत ही शानदार है क्योंकि इस दौरान हमने ऐसे कई वाकया देखे, जिनसे पता चलता है जागरूकता अमीरी या गरीबी से नहीं होती। कई बस्तियों में हमने देखा कि लोगों ने लीक्ड नलों से पानी की बर्बादी रोकने के लिए अपने ही जुगाड़ किये हुए हैं जैसे किसी ने कपड़ा आदि बाँध रखा था तो एक जगह नल के मुंह पर आलू लगा रखा था ताकि पानी न बहे,” अजय ने हँसते हुए कहा।
इसके अलावा, एक बार बाउबाज़ार इलाके के एडिशनल पुलिस इंचार्ज ने हमें बाउबाज़ार के नल ठीक करने के लिए कहा। उन्होंने खुद प्लम्बर की फीस दी और साथ ही, मरम्मत का सामान भी। उन्होंने हमारे साथ जगह-जगह जाकर लोगों को समझाया भी।
हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं है जब अजय इस तरह के मुद्दे पर काम कर रहे हैं। बल्कि वे तो पिछले दो सालों से शहर में पर्यावरण-संरक्षण पर भी काम करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि दो साल पहले उन्होंने एक रिपोर्ट पढ़ी थी, जो कि शहर की एयर क्वालिटी पर थी।
“मुझे पता चला कि कोलकाता के लोगों को ज़्यादातर साँस से संबंधित तकलीफ है। इसका मुख्य कारण है हवा। इसलिए मैंने सबसे पहले अपने आस-पास एयर क्वालिटी पर बात करना शुरू की।”
साल 2017 में उन्होंने ‘कोलकाता क्लीन एयर‘ नाम से अपना अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत उन्होंने उन मुद्दों पर काम किया जो कि वायु प्रदूषण का मुख्य कारण थे जैसे कि बहुत पुराने वाहन, डंपयार्ड और लोगों द्वारा कचरे के ढेर को जलाना आदि। अजय और उनके साथियों ने सबसे पहले उन वाहनों को रिपोर्ट करना शुरू किया, जो कि बहुत ही पुराने थे और उनसे काफी धुंआ निकलता था।
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उनकी इस सोच से पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी सजग हुआ और उन्होंने शहर में प्रदूषण मॉनिटर करने के लिए अलग-अलग जगह मॉनिटर लगाए। इसके अलावा, इससे आम लोग भी सजग हुए और फिर अगर किसी को भी सड़क पर ऐसा कोई वाहन दिखता जिससे कि बहुत धुंआ निकल रहा है तो लोग तुरंत उसकी फोटो खींच कर रिपोर्ट करते।
अजय बताते हैं कि देखते ही देखते उनकी इस पहल से लगभग 500 एक्टिव मेंबर जुड़ गए और यहीं से शुरुआत हुई ‘एक्टिव सिटीजन्स टूगेदर फॉर सस्टेनेबिलिटी’ (ACTS) की। इस संगठन को उन्होंने रजिस्टर करवाया और अब उनकी जो भी पहल होती है वह ACTS के बैनर तले होती है।
“हमने प्रदूषण कंट्रोल के लिए अलग-अलग सोसाइटी में जाकर कचरा-प्रबंधन पर वर्कशॉप दी। स्कूल-कॉलेज में सेमिनार किए। नगर निगम के कर्मचारियों को पत्तियां या फिर अन्य किसी भी कचरे को जलाने से मना किया। इस तरह की जो भी एक्टिविटी उस वक़्त हम कर रहे थे, उसमें हम सब साथी सदस्य ही अपनी निजी फंडिंग दे रहे थे। पर फिर जब यह अभियान बढ़ने लगा और हमें लगा कि अब हम बड़े स्केल पर गतिविधि कर सकते हैं तो हमें अपना संगठन बना लिया। इससे किसी भी बड़े अभियान के लिए कम से कम हम फण्ड इकट्ठा कर पाएंगे,” अजय ने बताया।
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हर सप्ताह ACTS के सदस्य मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए किसी न किसी प्रोजेक्ट पर काम करते हैं। फ़िलहाल, वे क्लीन एयर, सेव वाटर और ग्रीन सोसाइटी की दिशा में काम कर रहे हैं। कोलकाता का यह ग्रुप वाक़ई एक अच्छा उदहारण है कि अगर सामुदायिक सहभागिता हो तो बदलाव होना निश्चित है।
लोगों के लिए अपना सन्देश देते हुए अजय कहते हैं,
“आज हमारे सामने सिर्फ क्राइसिस है और जहां हम खड़े हैं वहां हम किसी और को इस क्राइसिस के लिए दोष नहीं दे सकते। हमें खुद आगे बढ़कर, सरकार और प्रशासन के साथ काम करना होगा। तभी स्थिति हमारे हाथ में होगी। मैं कोलकाता में रहने वाले अपने सभी युवा साथियों से अपील करूंगा कि वे हमारे फेसबुक पेज के ज़रिये हमसे जुड़ें, हमें अलग-अलग मुद्दों पर सुझाव दें। हम यक़ीनन बदलाव ला सकते हैं।”
आप अजय मित्तल और उनके साथियों द्वारा चलाये जा रहे अभियान के बारे में जानने के लिए या फिर उनसे जुड़ने के लिए उनके फेसबुक पेज पर संपर्क कर सकते हैं!
संपादन: भगवती लाल तेली