Powered by

Home अनमोल इंडियंस इलाज से लेकर शिक्षा तक, 75 दिव्यांग बच्चों के पिता बनकर उनका ख्याल रखते हैं अनिल

इलाज से लेकर शिक्षा तक, 75 दिव्यांग बच्चों के पिता बनकर उनका ख्याल रखते हैं अनिल

एक गरीब माँ को अपने दिव्यांग बच्चे के साथ देखकर, आगरा के अनिल जोसेफ को ऐसे और बच्चों की मदद करने का ख्याल आया। उन्होंने ऐसे गरीब और बेसहारा दिव्यांग बच्चों के लिए एक एनजीओ शुरू करके एक शेल्टर होम बनाया, जो आज 75 विशेष बच्चों का घर बन चुका है।

New Update
aashray

आज दिव्यांग बच्चों के लिए आश्रय नाम की संस्था चला रहे आगरा के अनिल जोसेफ को बहुत छोटी सी उम्र से ही पता था कि उन्हें सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी जीना है। अपनी इसी सोच के साथ उन्होंने साल 2002 में स्पेशल एजुकेशन में डिप्लोमा किया, जिसके बाद वह 'देवा इंटरनेशनल सोसाइटी' नाम की एनजीओ के साथ एक विशेष शिक्षक के रूप में काम करने लगे। 

लेकिन उनके जीवन में बड़ा मोड़ तब आया, जब एक बार आगरा के एक निजी क्लिनिक के दौरे पर उन्होंने एक दिव्यांग बच्चे को एक गरीब महिला के साथ। द बेटर इंडिया से बात करते हुए अनिल बताते हैं कि उस महिला के परिवार वाले उनके बच्चे की इस हालत के लिए माँ को ही दोष देते हैं। यहां तक कि उनके पति भी उन्हें छोड़ने की धमकी देते रहते हैं। अनिल ने सोचा कि इन सब में इस मासूम बच्चे की क्या गलती है?

अनिल ने उस बच्चे को आश्रय देने का फैसला किया और किराये पर एक कमरा लेकर काम शुरू किया। समय के साथ उनके इस प्रयास की कहानी दूसरे लोगों तक पहुंची और एक के बाद एक ऐसे कई दिव्यांग बच्चे उनके साथ रहने आने लगे।

आख़िरकार, साल 2005 में अनिल ने इस काम को आगे बढ़ाने के लिए एक संस्था बनाई। उन्होंने दिव्यांग बच्चों की मानसिक और शारीरिक हालत पर काम करना शुरू किया। अपने इस घर का नाम उन्होंने 'आश्रय' रखा। आज उनके इस आश्रय में 75 दिव्यांग बच्चे रहते हैं। 

shelter home for disabled kids

जिन्हें अपनों ने ठुकराया ऐसे बच्चों को अनिल ने दिया आश्रय

इस आश्रय में आगरा और गाज़ियाबाद के ग्रामीण इलाकों से कई बच्चे आते हैं। कई बच्चे तो ऐसे हैं, जिन्हें उनकी दिव्यांगता के कारण परिवार वालों ने छोड़ दिया था। लेकिन यहाँ अनिल इन सभी की हालत में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।

बच्चों का IQ बढ़ाने और उन्हें अलग-अलग तरह की वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए भी अनिल ने ढेरों प्रयास किए हैं। आश्रय में आज 18 स्टाफ के साथ, सात विशेष शिक्षक, ड्राइवर, एक सहायक और एक कुक भी काम करते हैं। इसके साथ ही उनके पास डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट और मनोवैज्ञानिक भी नियमित रूप से आते रहते हैं।  

अनिल अपने परिवार से ज्यादा, अपनी इस संस्था के बच्चों की चिंता करते हैं। उनका कहना है कि जब तक मुमकिन होगा वह इनको सहारा देने और इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करते रहेंगे। आप अनिल के इस प्रयास में उनकी मदद करने के लिए,  उन्हें 9058596091 पर सम्पर्क कर सकते हैं।  

संपादन- अर्चना दुबे

यह भी पढ़ें- बायोटॉयलेट से बोरवेल तक, वारली आदिवासियों के जीवन को बदल रहीं यह मुंबईकर, जानिए कैसे?