भारत के स्टार्टअप सेक्टर में एक और आविष्कार हुआ है। इस बार एक अनोखी किट बनाई गई है जो किसी भी साइकिल को मोटराइज्ड और बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) में बदल सकती है। दिल्ली के गुरसौरभ सिंह द्वारा डिज़ाइन की गई इस किट को किसी भी साइकिल पर लगाकर केवल 20 मिनट में इलेक्ट्रिक व्हीकल में बदला जा सकता है।
आज आठ करोड़ भारतीय कहीं भी आने-जाने के लिए साइकिल और रिक्शा का इस्तेमाल करते हैं। गुरसौरभ का DVECK (ध्रुव विद्युत इलेक्ट्रिक कन्वर्जन किट) ऐसे लोगों के लिए बेहद काम का है। इस किट को बनाने की प्रेरणा उन्हें रेट्रोफिटिंग के आईडिया से मिली, जिसमें वाहनों के मोटर में कुछ बदलाव करके इलेक्ट्रिक में बदला जा सकता है। DVECK को बिना किसी भी तरह की कटिंग, मोल्डिंग या फैब्रिकेशन के अच्छी तरह फिट किया जा सकता है।
गुरसौरभ हरियाणा के हिसार के रहने वाले हैं। अपने गांव में आने-जाने की समस्या को देखते हुए उन्होंने यह किट डिज़ाइन किया।
इस इलेक्ट्रिक वाहन किट के क्या फ़ायदे हैं?
वह कहते हैं, “मेरे गाँव में बच्चों ने दूरी की वजह से स्कूल जाने से मना कर दिया। जब महामारी फैली, तो मैंने महसूस किया कि पैदल चलने से आपकी दुनिया 4-5 किमी तक सीमित हो जाती है।”
गुरसौरभ का मानना है कि उनके इस किट से लोगों के आने-जाने की समस्या का समाधान तो निकलेगा ही, इसके अलावा स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि क्षेत्रों में भी बदलाव लाया जा सकता है।
वह बताते हैं कि उनके गाँव के हर घर में सोलर पैनल लगा हुआ है। वह कहते हैं, “शहर की तुलना में आज ग्रामीण भारत सस्टेनेब्लिटी के बारे में ज़्यादा जानता है। कई लोग शायद ईवी को एक स्टेटमेंट की तरह खरीद सकते हैं, लेकिन गाँव के लोग इसका सबसे अच्छा उपयोग करना जानते हैं।”
गुरसौरभ बताते हैं कि आज भी उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन सबसे ज़्यादा चलते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह उनकी ज़्यादातर समस्याओं का समाधान करता है; जैसे स्पीड बहुत ज़्यादा नहीं है, पेट्रोल या सलाना सर्विसिंग का खर्च नहीं उठाना पड़ता और महिलाएं और बच्चे आसानी से वाहन चला सकते हैं।
उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में डिग्री ली है। उन्होंने रेट्रो-फिटिंग की पढ़ाई भी की है। ध्रुव विद्युत की स्थापना से पहले, उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग में काम किया और फिल्म मेकिंग में भी हाथ आज़माया है।
महामारी के दौरान, मोबिलिटी की समस्या को महसूस करके उन्होंने किट पर काम करना शुरू किया। वह कहते हैं, “अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने से, मुझे इस काम को पूरा करने में मदद मिली। DVECK को डिज़ाइन करना एक कला है।”
यह किट साइकिल या रिक्शा को 25 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार, 170 किलोग्राम वज़न क्षमता और 40 किलोमीटर प्रति चार्ज की रेंज देकर उसको और उपयोगी बनाता है। DVECK फायरप्रूफ और वाटरप्रूफ है और इसमें एक चार्जिंग पोर्ट भी है जो 20 मिनट की पैडलिंग के साथ फोन की बैटरी को भी 50 प्रतिशत तक चार्ज कर सकता है।
काफ़ी लोकप्रिय है गुरसौरभ की इलेक्ट्रिक वाहन किट
इस किट के बारे में लोगों को सबसे पहले तब पता चला जब इस साल फरवरी में आनंद महिंद्रा ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया। इस वीडियो में गुरसौरभ अपनी किट के बारे में बताते हुए दिख रहे थे।
तब से कई लोग इस किट के बाज़ार में आने का इंतज़ार कर रहे हैं।
गुरसौरभ कहते हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारा वीडियो वायरल होगा। हमने इसे क्लाइंट के साथ शेयर करने के लिए अपने पोर्टफोलियो में ऐड करने के लिए बनाया था, लेकिन लोगों की प्रतिक्रिया काफ़ी ज़्यादा पॉज़िटिव रही है।”
उनके वीडियो को यूट्यूब पर दो लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है।
अनोखा है यह आविष्कार
गुरसौरभ का आविष्कार अनोखा है क्योंकि इससे भारत की जनता की ईवी क्षेत्र तक पहुंच आसान बनेगी। भारत में लगभग 58 प्रतिशत लोग साइकिल और रिक्शा से चलते हैं। गुरसौरभ की किट देश में सभी वर्गों के लोगों के लिए ट्रांस्पोर्ट को सस्टेनेबल और आसान बना सकती है।
ईवी को लंबे समय से अमीरों के डोमेन के रूप में देखा जाता है, DVECK इसे आम आदमी तक पहुंचाता है।
गुरसौरभ कहते हैं, “मैं इस किट से 8 करोड़ भारतीयों के चेहरे पर मुस्कान लाने की उम्मीद करता हूं।”
उन्हें उम्मीद है कि लोग वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पेट्रोल/डीज़ल वाहनों की जगह DVECK से चलने वाली साइकिल का इस्तेमाल करेंगे।
2021 की एक स्टडी के अनुसार, दिल्ली में पेट्रोल और डीज़ल गाड़ियों से होने वाला उत्सर्जन वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है।
हालांकि किट अभी तक जनता के लिए उपलब्ध नहीं है, गुरसौरभ इसे जल्द ही बाज़ार में लाने के लिए काम कर रहे हैं।
गुरसौरभ को उम्मीद है कि यह किट देश के हर कोने तक पहुंचेगी। वह कहते हैं कि अगर कोई और कम समय में इस लक्ष्य को पूरा कर सकता है तो वह अपने पेटेंट को शेयर करने के लिए तैयार हैं।
क़ीमत के बारे में बात करते हुए गुरसौरभ कहते हैं, “हालांकि इसका दाम अभी पांच अंकों में है, हम इसे चार अंकों तक लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।”
मूल लेख – प्रियाली ढींगरा
संपादन – भावना श्रीवास्तव
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