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प्रशांत गड़े को बचपन से ही अपनी ज़िंदगी के मकसद की तलाश थी। उन्हें लगता था कि जब हमें खाली हाथ ही जाना है तो हम ज़िंदगी में इतना संघर्ष क्यों कर रहे हैं? फिर उनका स्कूल पूरा हुआ और वह पहुँच गए इंजीनियरिंग कॉलेज। वह बताते हैं कि उन्होंने इंजीनियरिंग के बारे में लोगों से सुनकर और 3-इडियट्स फिल्म देखकर जो धारणा बनाई थी, वह पहले साल में ही टूट गई।
उनका सवाल एक बार फिर ज्यों का त्यों रहा कि आखिर उनकी ज़िंदगी का मकसद क्या है?
मध्य-प्रदेश के खांडवा के रहने वाले प्रशांत ग्रैजुएशन के तीसरे साल में थे जब उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ने का फैसला किया। "मैंने सोचा था कि इंजीनियरिंग कॉलेज में कुछ आविष्कार होगा, हम कुछ बनाएंगे। लेकिन वहां ना इनोवेशन था और न ही वैसी बातें। उन की कहानी सिर्फ 40 नंबरों पर ही अटकी हुई थी। मैं किताबों में जो पढ़ रहा था उसे प्रैक्टिकल में करना चाहता था। पर अपने प्रोफ़ेसर्स को जब कुछ पूछता तो वे मुझसे पहले मेरे नंबर पूछते," उन्होंने द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहा।
प्रशांत को लगने लगा था कि वह किसी गलत जगह पर हैं। आज हम स्कूल, कॉलेज और शिक्षा के बीच के अंतर को ही नहीं समझ पा रहे हैं। सिर्फ स्कूल या कॉलेज जाने से इंसान शिक्षित नहीं हो जाता है। शिक्षा का दायरा आपकी कक्षा की चारदीवारों से कहीं बढ़कर है और प्रशांत उस दायरे को मापना चाहते थे।
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उनकी सोच शिक्षा को सार्थक, अर्थपूर्ण बनाने की थी और इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इस फैसले के लिए उन्हें अपने घरवालों से काफी कुछ सुनना पड़ा। सबको लगता था कि वह अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रहे हैं। प्रशांत अपने बड़े भाई के पास पुणे चले गए। यहाँ पर रहकर उन्होंने एक लैब में पार्ट टाइम नौकरी कर ली।
यहाँ पर उन्हें रोबोटिक्स के कोर्स के बारे में पता चला और उन्होंने इसके लिए खुद को रजिस्टर करा लिया। FAB ट्रेनिंग का यह कोर्स 6 महीने का था और यह MIT के सेंटर फॉर बिट्स एंड एटम्स के अंतर्गत कराया जा रहा था। प्रशांत आगे बताते हैं कि उन्हें इस कोर्स में पास होने के लिए एक प्रोजेक्ट करना था।
"मैं अपने प्रोजेक्ट के लिए कोई आइडिया ढूंढ ही रहा था और मुझे निकोलस हचेट के बारे में पता चला। उन्होंने अपना एक हाथ एक्सीडेंट में खो दिया था और फिर खुद अपने लिए एक बायोनिको हाथ बनाया। मुझे उनके काम से बहुत प्रेरणा मिली और मैंने भी ऐसा ही कुछ करने की ठानी," उन्होंने बताया।
प्रशांत अपने प्रोटोटाइप पर काम ही कर रहे थे कि एक और घटना उनके साथ घटी और इस घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।
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वह बताते हैं कि उन्होंने एक 7 साल की बच्ची को देखा, जिसके दोनों हाथ नहीं थे। उन्हें उसे देखते ही लगा कि उन्हें कुछ करना चाहिए और वह पहुँच गए एक कंपनी के पास, जो प्रोस्थेटिक आर्म (कृत्रिम हाथ) बनाती है। उन्होंने उनसे दो प्रोस्थेटिक हाथों की कीमत पूछी और उन्हें जवाब मिला- 24 लाख रुपये।
"कीमत सुनकर मैं एकदम चौंक गया। काफी देर तक मैं इस चीज़ से निकल ही नहीं पाया कि प्रोस्थेटिक अंगों की कीमत इतनी ज्यादा है हमारे देश में। बाहर के देशों में भी लगभग इतनी ही कीमत थी। ऐसे तो बस चंद अमीर लोग ही इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।"
प्रशांत को इस बात ने इतना बेचैन कर दिया कि उन्होंने इस बारे में और पढ़ना शुरू किया। उन्हें पता चला कि हर साल लगभग 40 हज़ार लोग अपने हाथ किसी न किसी दुर्घटना में खोते हैं। उनमें 85% ऐसे लोग हैं जो अपनी ज़िंदगी बिना हाथ के ही गुज़ारते हैं क्योंकि उनके पास प्रोस्थेटिक हाथ लगाने के साधन नहीं हैं। उस समय उन्हें समझ में आया कि जिस प्रोजेक्ट पर वह काम कर रहे हैं यदि वह सफल होता है, तो वह बहुत से लोगों की ज़िंदगी बदल सकते हैं।
इन लोगों के लिए कुछ करने की बात को सोचकर ही उनके दिल को एक सुकून मिला और उस दिन, उन्हें लगा कि उन्हें उनकी ज़िंदगी का मकसद मिल गया है।
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उन्होंने अपने प्रोटोटाइप की डिजाइनिंग पर दिन-रात मेहनत की और एक कम लागत वाला प्रोस्थेटिक हाथ बनाया, जिसे उन्होंने 'इनाली आर्म' नाम दिया। "इनाली मेरी गर्लफ्रेंड का नाम है और एक वही है जो हर अच्छे-बुरे वक़्त में मेरी ताकत बनकर खड़ी रही। इसलिए मैंने अपने पहले इनोवेशन का नाम उसके नाम पर रखा," उन्होंने बताया।
इसे बनाते वक़्त उनका उद्देश्य स्पष्ट था कि उनका यह इनोवेशन उस तबके के लिए है जो मुश्किल से दो वक़्त की रोटी जुटा पाता है। उन्होंने डिज़ाइन तो बना लिया, लेकिन इसे हक़ीकत बनाने के लिए और लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्हें फंड्स की ज़रूरत थी।
"ऐसे में, मैंने एक वेबसाइट पर क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया। मुझे वहां किसी से कोई खास फंड तो नहीं मिला, लेकिन जयपुर के एक संगठन को मेरा आइडिया अच्छा लगा। उन्होंने मुझे ग्रांट दी और ऐसे 7 हाथ बनाने का काम सौंपा," प्रशांत ने बताया।
यह मौका उनके लिए बहुत अच्छा था लेकिन उन्हें अपने प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए जयपुर में रहना था और इसके लिए उनके माता-पिता बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। प्रशांत ने अपने ग्रांट के चेक की एक तस्वीर क्लिक की और अपने पापा को भेजी। उन्होंने लिखा कि वह फिर से अपनी पढ़ाई छोड़ रहे हैं लेकिन इस बार उन्हें पता है कि वह क्या करने जा रहे हैं?
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जयपुर पहुंचकर उन्होंने अपने प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। वह वक़्त बहुत मुश्किल था और उनके लिए आर या पार की लड़ाई थी। पर कहते हैं न कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती और प्रोजेक्ट पर काम करते-करते प्रशांत को भी अपनी राह मिल गई।
"मैं लगातार फंड्स के लिए ट्राई कर रहा था और मेरे प्रोजेक्ट के बारे में जानकर साल 2016 में अमेरिका के एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने मुझे अमेरिका बुलाया। उन्होंने मेरा पूरा खर्च उठाया और वहां मैंने एक इवेंट में अपने इनोवेशन और अपने उद्देश्य के बारे में बात की। वापस आते समय उन्होंने मुझे यह प्रोस्थेटिक हाथ बनाने के लिए 10 मशीनें गिफ्ट की," उन्होंने बताया।
साल 2016 में अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने 'इनाली फाउंडेशन' की नींव रखी। इसके ज़रिए उन्होंने ज़रूरतमंद लोगों को प्रोस्थेटिक हाथ बिना किसी पैसे के लगाना शुरू किया। वह बताते हैं कि उन्होंने अब तक लगभग 2000 लोगों को यह हाथ मुफ्त में लगाया है।
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साथ ही, उनका यह प्रोस्थेटिक आर्म, देश में अब तक का सबसे सस्ता कृत्रिम हाथ है जिसकी कीमत 50 हज़ार रुपये है। इसलिए बहुत से लोग उनसे पैसे देकर भी यह हाथ खरीदते हैं।
"जब भी मैं यह हाथ किसी को लगाता हूँ तो मुझे एक अलग ही सुकून मिलता है। मुझे अभी भी याद है, एक औरत को हमने हाथ लगाया था और वह अपने हाथ की तरफ देखकर रोने लगी। मुझे लगा कि कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया। पर जब उनसे वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि अब वह अपनी बेटी के बाल बना पाएंगी," उन्होंने बताया।
अब उनका उद्देश्य गाँव-गाँव घूमकर ऐसे ज़रूरतमंद लोगों की मदद करना है। वह कहते हैं कि एक बार उन्होंने ट्रेन में एक बच्चे को देखा जिसका हाथ नहीं था। उन्होंने उसके पिता से कहा कि वे उनके पास जयपुर आकर हाथ लगवा सकते हैं, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उनका कहना था कि अगर वे जयपुर जाएंगे तो उस दिन उनके घर का चूल्हा कैसे चलेगा?
इस बात ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने ठाना कि अब जो लोग उन तक नहीं आ सकते, वह उन तक पहुंचेंगे।
वह आगे कहते हैं कि उन्हें इस सफर में समझ में आया है कि किसी भी टेक्नोलॉजी और इनोवेशन का तब तक कोई मतलब नहीं, जब तक वह ज़रुरतमंदों तक न पहुंचे। इसके लिए उन्होंने 'इनाली असिसटिव टेक' की शुरुआत भी की है ताकि वह और भी कम लागत वाले एडवांस्ड प्रोस्थेटिक अंग बना सकें।
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वह अंत में बस इतना कहते हैं, "अगर आपको मेरे उद्देश्य के बारे में पता है तो आप हाथ से दिव्यांग लोगों को अनदेखा न करें। उनकी मदद करने की कोशिश करें और ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो उन्हें मुझसे जोड़ने की कोशिश करें। मैं उनकी मदद करूँगा।"
अपने इस अभियान को सफल बनाने के लिए उन्हें हम सबके साथ की ज़रूरत है और इसलिए एक बार फिर उन्होंने क्राउड फंडिंग शुरू की है। यदि उनकी कहानी ने आपका दिल को छुआ है तो उनकी मदद ज़रूर करें।
प्रशांत से संपर्क करने के लिए आप 07875078907 पर कॉल कर सकते हैं और उन्हें आर्थिक तौर से मदद करने के लिए आप यहाँ क्लिक करें!
संपादन - अर्चना गुप्ता