अब ब्रेन डिसऑर्डर डिटेक्ट करना होगा आसान, 28 वर्षीय भारतीय वैज्ञानिक का सस्ता आविष्कार

Low Cost 3D Printing

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास के साइंटिस्ट और ISMO बायो-फोटोनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक, इकराम खान ने कम लागत वाली 3डी प्रिंटिंग प्रणाली विकसित की है, जिससे छोटा ब्रेन ऑर्गेनाइड बनाया जा सकेगा।

3 डी प्रिंटिंग तकनीक से स्वास्थ्य सेवा उद्योग को काफी मदद मिल रही है। चाहे हाथों की टूटी हड्डी का स्कैन कर कास्ट बनाना हो या नए टिशू और ऑर्गन प्रिंट करना हो, 3 डी प्रिंटिंग से इलाज काफी आसान हुआ है। टेक्नोलॉजी और खोज के इस दौर में, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी, मद्रास के एक वैज्ञानिक इकराम खान ने 3 डी प्रिटिंग तकनीक का शानदार उपयोग किया है। मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर इकराम खान ने एक कम लागत वाली 3 डी-प्रिंटेड प्रणाली (low cost invention) विकसित की है, जिससे मस्तिष्क के टिशू या ब्रेन ऑर्गेनाइड विकसित की जा सकती है।

Low Cost invention by Ikram

ब्रेन ऑर्गेनाइड पेट्री डिश (Petri dishes) या इनक्यूबेटेड स्थितियों में विकसित किया जाना वाला बायोलॉजिकल सिस्टम है। ये मॉडल मस्तिष्क टिशू के विकास और न्यूरोलिजकल डिसऑर्डर से संबंधित अध्ययन करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इसके अलावा, इससे यह समझा जा सकता है कि यदि किसी के ब्रेन में इस तरह का डिसऑर्डर होता है, तो उसका उपचार कैसे किया जाए और उसे कौन स दवा दी जाए।

इकराम कहते हैं, “3 डी प्रिंटर और डेंटल सर्जरी के लिए उपयोग किए जाने वाले बायोकंपैटिबल रेजिन के साथ हम हथेली के आकार की प्रणाली बनाने में सक्षम थे जिसका उपयोग छोटे आकार के ब्रेन को विकसित करने के लिए किया जा सकता है। इस प्रणाली को बनाने में सिर्फ $5 यानी 375 रुपये प्रति यूनिट का खर्च आता है, जो KFC में मिलने वाले चिकन बकट से भी सस्ता है।”

इकराम का कहना है कि इन दिनों इस्तेमाल हो रहे पारंपरिक सिस्टम महंगे हैं और इसके लिए भौतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। इससे रिसर्च प्रक्रिया प्रभावित हो सकती हैं।

द बेटर इंडिया के साथ बातचीत में, इकराम खान ने विस्तार से बताया कि उनके मन में कम लागत वाली तकनीक के नवाचार का विचार कैसे आया और वह इस ओर कैसे बढ़े।

प्रोजेक्ट से प्रोटोटाइप

इकराम इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स कर रहे थे। 2019 में, जब वह अपनी पढ़ाई के अंतिम वर्ष में थे, तो वह न्यूरल ब्रेन इमेजिंग तकनीक से संबंधित प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। यह वह समय था, जब उन्होंने जाना कि बिना पैसे खर्च किए ऑर्गेनाइड विकसित करने का कोई आसान तरीका नहीं है।

28 वर्षीय इकराम कहते हैं, “वर्तमान में उपयोग की जाने वाली विधियों में इनक्यूबेशन सिस्टम की आवश्यकता होती ,है जो 10×10 फीट के कमरे में रखी जाती हैं। ऑर्गेनाइड विकसित करने के दौरान, टिशू को अमीनो एसिड, लवण और ग्लूकोज जैसे पोषण प्रदान करना महत्वपूर्ण है। साथ ही, नियमित रूप से डाइग्नोसिस भी जरुरी है। यह प्रयोग एक बंद कमरे में किया जाता है, इसलिए शोधकर्ताओं को भौतिक रूप से हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। इससे बढ़ते हुए सेल संक्रमित हो सकते हैं।”

मेडिकल रिसर्च में ऑर्गेनाइड विकसित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समझने में मदद करता है कि कोई विकार कैसे विकसित होता है, ताकि शुरुआत में ही इसका इलाज किया जा सके या रोका जा सके। इसलिए, इकराम ने एक ऐसी प्रणाली पर काम करना शुरू किया, जिसमें मानवीय हस्तक्षेप की जरुरत नहीं होगी। उन्होंने मुख्य रूप से सेरेब्रल ऑर्गेनाइड विकसित करने के लिए एक उपकरण विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया।

इकराम ने बताया कि उन्होंने 2 महीने अमेरिका में काम किया है। वह कहते हैं, “मैंने एमआईटी को एक शोध प्रस्ताव प्रस्तुत किया, क्योंकि उनके पास सबसे अच्छी बॉयोमेडिकल इंजीनियरिंग प्रयोगशाला और सुविधाएं हैं। जुलाई 2019 में, उन्होंने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और मुझे तीन स्कॉलर और एक प्रोफेसर के साथ अपना शोध जारी रखने की अनुमति दी गई।”

Low Cost invention

टीम ने डेंटल सर्जरी के लिए उपयोग किए जाने वाले 3 डी प्रिंटर और बॉयोकंपैटिबल रेजिन का उपयोग करते हुए एक हथेली के आकार का उपकरण, माइक्रोफ्लुइडिक बायोरिएक्टर विकसित किया। यह बिजली से चलता है। हालांकि, रीयल टाइम इमेजिंग और पोषक तत्वों के ऑटोमेटिक पंपिंग के साथ, इस प्रणाली को किसी भी भौतिक हस्तक्षेप की जरुरत नहीं है।

Low Cost invention

इकराम कहते हैं, “रीयल टाइम इमेजिंग कैमरे, सेल और टिशू की वृद्धि को समझने के लिए जीवन के लिये आवश्यक अंग की निगरानी करते हैं। विकसित हो रहे प्लेटफॉर्म में ट्यूब लगी हुई होती है, जो तरल पदार्थों की आपूर्ति करने के लिए मानव नसों की तरह काम करते हैं।”

एक बेहतर प्रणाली

सितंबर 2019 तक, अंतिम प्रोटोटाइप डिजाइन किया गया और फिर शोधकर्ताओं ने इसकी प्रभावशीलता जांचने के लिए प्रयोगशाला स्तर के टेस्ट शुरू किए। तुलनात्मक उद्देश्यों के लिए, उन्होंने इनक्युबेटड स्थितियों में मस्तिष्क के टिशू को विकसित किया। इसे माइक्रोफ्लुइडिक बायोरिएक्टर का उपयोग कर विकसित किया गया।

इकराम कहते हैं, “एक सप्ताह के भीतर, इनक्युबेशन में सेल संक्रमित होने लगे, जबकि अन्य नमूने बढ़ते रहे। इसने रीयल टाइम की उच्च-गुणवत्ता वाली छवियां भी प्रदान की जो सेल विकास का अध्ययन करने में मदद करता है। ”

रिसर्च के बाद इकराम जब भारत लौटे तो औद्योगिक स्तर पर इस प्रणाली का निर्माण करने और कई क्षेत्रों में रिसर्च से मदद करने की योजना बनाई। सितंबर 2020 में, उन्होंने ISM-Bio-Photonics Pvt Ltd, एक IIT-M इन्क्यूबेट कंपनी लॉन्च की।

इकराम कहते हैं, “स्टार्टअप के माध्यम से, मैं इन उपकरणों को बड़े पैमाने पर विकसित करने और शैक्षिक संस्थानों के साथ सहयोग करने की योजना बना रहा हूँ ताकि इन उपकरणों का उपयोग करके रिसर्च किया जा सके।”

द बेटर इंडिया इकराम खान के शोध कार्य की सराहना करता है और साथ ही उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

मूल लेख- रौशनी मुथुकुमार

संपादन- जी एन झा

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