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नौवीं पास किसान का इनोवेशन, 10 रुपये के इको-फ्रेंडली गोबर के गमले में लगायें पौधे!

र्यावरण दिवस हो या फिर पृथ्वी दिवस, सोशल मीडिया पर अक्सर #SayNotoPlastic वायरल होने लगता है। लेकिन यह लिखना जितना आसान है अपने जीवन में उतारना उतना ही मुश्किल। और इस मुश्किल की वजह यह है कि लोगों को प्लास्टिक न इस्तेमाल करने की हिदायत तो सब जगह से मिल जाती है, पर प्लास्टिक की जगह ऐसा क्या इस्तेमाल करें जो उनके बजट में हो, यह विकल्प बहुत ही कम मिलता है।

बाज़ार से सब्जियां लाने के लिए पॉलिथीन की जगह आप सूती कपड़े के छोटे-छोटे पाउच बैग बनाकर इस्तेमाल कर सकते हैं, जिन्हें एक बड़े सूती-कपड़े के थैले में रखकर घर लाया जा सकता है और इस बैग और पाउच को घर पर ही सिला जा सकता है।

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बाकी पारम्परिक प्लास्टिक बैग की जगह आप बायोकम्पोस्टेबल प्लास्टिक बैग इस्तेमाल कर सकते हैं। इन प्लास्टिक बैग्स को इस्तेमाल के बाद आपको कचरे में डालने की ज़रूरत नहीं है बल्कि ये बैग खुद-ब-खुद गल जाते हैं और पर्यावरण के लिए हानिकारक भी नहीं है।

इसी तरह और भी कामों के लिए हमें प्लास्टिक के उत्पादों के इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल विकल्प तलाशने होंगें। ताकि थोड़ा-थोड़ा करके ही सही मगर हम प्लास्टिक-फ्री सोसाइटी बना पाएं।

 

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नर्सरी में पौधों को रखने के लिए ज़्यादातर पॉलिथीन का इस्तेमाल किया जाता है। पर पॉलिथीन में रखकर जब हम किसी पौधे को लगाते हैं और जब उस पौधे की जड़ें फैलने लगती हैं तो वे पॉलिथीन भले ही फट जाती है, पर इसके कण मिट्टी में रह जाते हैं। इसका असर कहीं न कहीं पेड़-पौधों के विकास और मिट्टी की गुणवत्ता पर पड़ता है। इसलिए आजकल लोगों ने कोकोपीट के लिए भी इको-फ्रेंडली तरीके ढूँढना शुरू कर दिया है। बहुत-सी जगह नारियल के खोल में पौधे लगाने पर जोर है।

 

इसी क्रम में अब ‘गोबर से बना गमला’ भी शामिल हो गया है। जी हाँ, गुजरात के एक साधारण से किसान द्वारा बनाया गया यह गोबर का गमला न सिर्फ़ पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि इसे आप खुद घर पर भी बना सकते हैं।

गोपाल सिंह सुरतिया

 

गुजरात के छोटा उदयपुर जिले में कथौली गाँव के रहने वाले 65 वर्षीय किसान गोपाल सिंह सूरतिया एक ग्रासरुट इनोवेटर भी हैं। उन्हें उनके इनोवेशन के लिए ज्ञान फाउंडेशन और नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा सम्मानित भी किया जा चूका है।

नौवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले गोपाल सिंह बताते हैं कि वे भले ही ज़्यादा पढ़ नहीं पाए, लेकिन उन में सीखने की और कुछ नया करने की चाह कभी भी खत्म नहीं हुई। खेती में भी वे कुछ न कुछ नया एक्सपेरिमेंट करते रहते। खेती की उपज बढ़ाने के लिए कभी कोई देसी नुस्खा इजाद करते तो कभी खेती के काम आसान करने के लिए किसी जुगाड़ मशीन पर काम करते।

किसानों को हर दिन खेती के काम में किसी न किसी समस्या का सामना करना ही पड़ता है। जानकरी और ज्ञान के अभाव में अक्सर इन समस्याओं का हल भी ग़रीब किसानों को खुद ही ढूँढना पड़ता है। और कहते हैं न कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, तो अपनी हर रोज़ की ज़रूरत के हिसाब से गोपाल सिंह ने भी इनोवेशन किये। और उनके ये इनोवेशन आज न सिर्फ़ किसानों के काम को आसान कर रहे हैं, बल्कि कई जगहों पर उनकी आमदनी बढ़ाने में भी सहायक हैं।

 

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गोपाल भाई बताते हैं कि उनका सबसे पहला आविष्कार एक ‘हैंड ड्रिवेन स्प्रेयर’ मशीन थी। इस मशीन को बनाने के पीछे का उद्देश्य मज़दूरों की कमी होते हुए भी खेती का काम समय पर किया जाना था। साथ ही, काफी अधिक वजन वाले परंपरागत स्प्रेयर को पीठ पर उठाना भी आसान नहीं था, इसलिए गोपाल सिंह ने इस इनोवेशन पर काम किया।

 

उन्होंने इस मशीन को पुरानी साइकिल का इस्तेमाल कर के बनाया है और इसे हाथ से चलाया जा सकता है। साथ ही, बैरल, नोज़ेल और स्प्रे बूम को इस तरह से एडजस्ट किया गया है कि पेस्टिसाइड स्प्रे को ज़रूरत के हिसाब से कम-ज़्यादा किया जा सके। इस मशीन की कीमत लगभग 4, 000 रूपये है। इसके अलावा इस मशीन को रिपेयर करना और इसका रख-रखाव बहुत ही आसान है। इस मशीन से एक एकड़ फसल को स्प्रे करने में सिर्फ़ 5-6 घंटे लगते हैं।

हैंड ड्रिवेन स्प्रेयर

उनकी यह मशीन शोधयात्रा के दौरान ज्ञान फाउंडेशन और सृष्टि संगठन की नज़र में आयी। ज्ञान फाउंडेशन की मदद से ही गोपाल सिंह और उनके इस इनोवेशन को राष्ट्रीय तौर पर पहचान मिली। और उन्हें साल 2005 में नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

 

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अपने ‘गोबर के गमले’ के बारे में आगे बात करते हुए उन्होंने बताया कि इस तरह का इको-फ्रेंडली गमला बनाने की प्रेरणा उन्हें एक त्यौहार से मिली।

“गुजरात में लड़कियाँ गौरी व्रत करती हैं। इस व्रत की विधि के लिए वो किसी बाँस की टोकरी या फिर मिट्टी के घड़े में ‘जौ’ उगाती हैं। उन्हें देखकर ही मेरे मन में ख्याल आया कि अगर इस तरह मिट्टी के घड़े या फिर टोकरी की जगह अगर ऐसा कुछ बनाया जाये जो कि मिट्टी में लगाने पर पौधों और मिट्टी के लिए उर्वरक का ही काम करे।”

गौरी व्रत में लड़कियों द्वारा बनाया जाने वाला जवेरा

 

साथ ही, नर्सरी या फिर घरों में सैपलिंग लगाने के लिए किसी पॉलिथीन की ज़रूरत नहीं होगी। इस सोच पर काम करते हुए गोपाल सिंह ने पहले पूरा शोध कर के यह जाना कि ऐसा कौन सा उत्पाद है जो कि पूर्णतः पर्यावरण के अनुकूल है। साथ ही, जो आसानी से कम से कम लागत पर मिल भी जाये। इसके लिए उन्होंने घरेलू उत्पादों से शुरुआत की और उनकी तलाश ‘गोबर’ पर आकर खत्म हुई।

 

कैसे बनायें ‘गोबर का गमला’ :

गोबर का गमला

 

 

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गोपाल सिंह बताते हैं कि वे एक छोटा गमला 5 रुपये का बेचते हैं और बड़ा गमला 10 रुपये का। इतना ही नहीं वे और भी किसानों और ग्रामीण महिलाओं को इस तरह से गमला बनाने की ट्रेनिंग दे चुके हैं ताकि वे लोग भी खेती के साथ-साथ इस तरह की चीज़ें बनाकर अपनी आय में थोड़ी वृद्धि कर सकें।

अलग-अलग आकार के गोबर के गमले

“हमारे पास राजकोट, अहमदाबाद जैसे शहरों की नर्सरी से गमलों की मांग आती है। कई नर्सरी और अन्य लोग भी ये गोबर से बने गमलों में ही पेड़ लगाना सही समझते हैं क्योंकि पॉलिथीन वैसे ही पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है।”

पर इन गमलों को ज़्यादा स्तर पर और कम समय में बनाने के लिए भी किसी जुगाड़ की ज़रूरत थी।

“अगर हर एक काम हम खुद ही करते तो बहुत वक़्त चला जाता, इसलिए मैंने सोचा कि अगर ज़्यादा संख्या में गमले बनाने हैं तो हमें मशीन का सहारा तो लेना ही पड़ेगा।”

उनके इस इनोवेशन के लिए एक और इनोवेटर परेश पांचाल ने उनका साथ दिया। ज़मीन से जुड़े इन दोनों इनोवेटर्स ने ‘गोबर के गमले’ बनाने के लिए एक मशीन बनाई।

 

इस मशीन से आप एक घंटे में 100 गमले बना सकते हैं। इस मशीन को आप हाथ से चला सकते हैं। इसमें 3 अलग-अलग आकार के गमले बनाने के लिए स्टील की डाई है।

गमले बनाने की मशीन

गोपाल सिंह और परेश पांचाल द्वारा बनाई गयी यह मशीन इतनी सफल हुई कि गुजरात की ही एक कंपनी ने इस मशीन के उत्पादन के लिए उनसे कॉन्ट्रैक्ट किया है।

इस बात में कोई शक नहीं कि पर्यावरण और ज़मीन से जुड़ी परेशानियों के जो हल ये आम किसान दे सकते हैं, वे शहरों में एसी, कूलर में बैठने वाले लोग नहीं दे सकते और गोपाल सिंह जैसे लोग किसी सरकारी योजना या फिर किसी बड़े एक्सपर्ट का इन्तजार नहीं करते, बल्कि वे तो अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपना जुगाड़ बना लेते हैं।

 

यदि आपको यह इनोवेशन प्रेरणात्मक लगा और यदि आप इसकी ट्रेनिंग लेना चाहते हैं या फिर अपने आस-पास के किसानों या महिलाओं को यह ट्रेनिंग दिलवाना चाहते हैं, तो गोपाल सिंह जी से संपर्क करने के लिए 9904480545 या फिर 8347727372 पर फोन कर सकते हैं!

 

संपादन – मानबी कटोच 


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