पुरानी जींस भेजिए और ये नए बैग खरीदिये, जिससे बचेगा पर्यावरण और होगी ज़रूरतमंदों की मदद!

शुरूआती एक साल में ही 'द्विज' ने लगभग 2, 500 पुरानी जीन्स और डेनिम इंडस्ट्री से बचने वाले लगभग 500 मीटर डेनिम को अपसाइकिल करके नए प्रोडक्ट्स बनाये हैं।

म सबकी अलमारी में कुछ ऐसे कपड़े होते हैं, जो चाहे कितने भी पुराने हो जाएँ पर हम उन्हें छोड़ना नहीं चाहते हैं। एकदम घिस जाने पर भी हमारा मोह इनके प्रति कम नहीं होता और इन कपड़ों में सबसे ज़्यादा कॉमन है जीन्स!

शायद बहुत ही कम लोगों को पता हो कि कॉटन कॉरडरॉय से बनी जीन्स, जिसे हम ‘डेनिम’ कहते हैं, लगभग 146 सालों से अस्तित्व में है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी से लेकर ख़ास मौकों पर पहनी जाने वाली जीन्स फैशन और स्टाइल को परिभाषित करती है।

शायद ही कोई होगा जो अपनी किसी भी जीन्स को एक ही बारे में रद्दी में डाल दे या फिर कहते हैं न रिटायर कर दे। क्योंकि जैसे-जैसे जीन्स पुरानी होती जाती है, बहुत से लोग उसे शॉर्ट्स या कैपरी में तब्दील कर लेते हैं। पर फिर भी, एक वक़्त के बाद तो इन्हें वेस्ट में जाना ही होता है।

लेकिन मुंबई में रहने वाली एक उद्यमी महिला यह सुनिश्चित कर रही है कि इन पुरानी, फटी-उधड़ी जीन्स को भी एक नया रूप देकर, फिर से ज़िंदगी दी जा सके।

सौम्या अन्नपूर्णा (साभार)

‘द्विज,’ एक ऐसा स्टार्टअप है जहाँ पुरानी-वेस्ट डेनिम को फिर से इस्तेमाल कर अलग-अलग प्रोडक्ट्स बनाये जाते हैं। इससे वेस्ट तो कम होता ही है, साथ ही आप अपनी पुरानी जीन्स से एक नया फैशन स्टेटमेंट बना सकते हैं। ‘द्विज’ की फाउंडर सौम्या अन्नपूर्णा कल्लूरी कहती हैं कि हममे से कोई भी जीन्स को तब तक रिटायर नहीं करता, जब तक की यह बिल्कुल ही घिस न जाये या फिर हम किसी ट्रेंड से बोर न हो जाएँ। जीन्स की मजबूती उसका बहुत ही महत्वपूर्ण गुण है।

इसलिए ‘द्विज’ के माध्यम से सौम्या पुरानी जीन्स से अलग-अलग दैनिक ज़रूरतों के प्रोडक्ट्स बना रही हैं। ‘द्विज’ का मतलब ही होता है ‘दूसरी ज़िंदगी’!

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शुरूआती एक साल में ही द्विज ने लगभग 2, 500 पुरानी जीन्स और डेनिम इंडस्ट्री से बचने वाले लगभग 500 मीटर डेनिम को अपसाइकिल करके नए प्रोडक्ट्स बनाये हैं।

साभार: द्विज प्रोडक्ट्स फेसबुक

“जीन्स की सिर्फ एक जोड़ी बनाने में जितनी कपास का इस्तेमाल होता है, उस कपास को उगाने के लिए लगभग 946 लीटर पानी इस्तेमाल होता है। और फिर जीन्स को टेक्सचर देने के लिए अलग से 42 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। तो जब भी हम कोई जीन्स कचरे में डालते हैं तो हम न सिर्फ हानिकारक लैंडफिल को बढ़ाते हैं, बल्कि इतने सारे पानी को भी बर्बाद करते हैं,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए सौम्या ने कहा।

इसके साथ ही सौम्य यह भी बताती हैं कि जहाँ एक तरफ लोग प्लास्टिक प्रदुषण को लेकर आज सजग हो रहे हैं वहीं उन्हें यह भी समझने की ज़रूरत है कि पर्यावरण के हनन के लिए सिर्फ़ प्लास्टिक और केमिकल वेस्ट ही नहीं, बल्कि टेक्सटाइल (कपड़ा) इंडस्ट्री भी बराबर की भागीदार है।

हम कभी भी कपड़े खरीदते समय या फिर पुराने कपड़े कचरे में डालते समय, यह बिल्कुल भी नहीं सोचते कि ये कपड़े भी आखिर में लैंडफिल में ही जाते हैं और पर्यावरण के लिए उतने ही हानिकारक हैं जितनी कि प्लास्टिक।

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इस तरह के कई फैक्ट्स ने सौम्या को अपनी मैकेनिकल इंजिनियर की जॉब छोड़कर साल 2018 में यह सोशल एंटरप्राइज शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

साभार: द्विज प्रोडक्ट्स फेसबुक

अपना कुछ व्यवसाय शुरू करने का ख़्वाब हमेशा से सौम्या की आँखों में रहा। पर अपने करियर के शुरूआती सालों में उन्होंने अपने इस सपने को किनारे करके अपनी नौकरी पर ध्यान दिया।

पुणे से अपनी ग्रेजुएशन करने के बाद सौम्या मास्टर्स के लिए जर्मनी गयीं और पढ़ाई के दौरान उनका फोकस एरिया ‘सस्टेनेबिलिटी’ था। जर्मनी में एक साल तक काम करने के बाद वे भारत लौटीं और यहां आकर गोदरेज के इनोवेशन एंड डिज़ाइन सेंटर को ज्वाइन किया। गोदरेज में उनका काम इंडस्ट्रियल वेस्ट के मटेरियल का विश्लेषण करना था।

सौम्या बताती हैं कि जर्मनी में रहते हुए उन्हें हमेशा यही लगता था कि जो कुछ भी वेस्ट मटेरियल होता है, उसको सस्टेनेबल तरीके से प्रोसेस किया जाता होगा। पर उन्हें लैंडफिल आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ख़ासकर कि भारत आने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि भले ही रीसाइक्लिंग का कॉन्सेप्ट हमारे यहां पुराना है, पर फिर भी इसका व्यापक स्तर पर उपयोग नहीं हो रहा है। और इसीलिए सौम्या ने इस बारे में कुछ करने की ठानी।

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सौम्या बताती हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य उपयोगी उत्पाद बनाना था और इसलिए दूसरे कपड़ों की तुलना में उनका ध्यान डेनिम पर शिफ्ट हो गया क्योंकि डेनिम बहुत ही टिकाऊ कपड़ा है।

साभार: द्विज प्रोडक्ट्स फेसबुक

“बहुत से लोग अपसाइकिल करके बनाये गए कपड़ों को लेकर उलझन में रहते हैं क्योंकि उन्हें पहले एक बार इस्तेमाल किया जा चूका है। इसलिए हमने पहनने के कपड़ों की बजाय बैग जैसे उत्पाद बनाये, जिन्हें आप कहीं भी, कैसे भी ले जा सकते हैं और ये फैशनेबल होने के साथ-साथ उपयोगी भी हैं,” उन्होंने आगे कहा।

इसके अलावा, हमारे यहाँ कपड़ों को रीसायकल करना काफ़ी मुश्किल है। क्योंकि कोई भी कंपनी ड्रेस के टैग पर मटेरियल तो लिखती है कि यह कॉटन से बना है या फिर पॉलिस्टर है। पर कितना प्रतिशत किस मटेरियल का इस्तेमाल हुआ है, यह कहीं भी नहीं लिखा होता। और रीसाइक्लिंग प्रक्रिया सफलता से हो, इसके लिए यह मात्रा जानना ज़रूरी होता है।

इसलिए सौम्या ने पुराने कपड़ों को ही काट-छांटकर नया रूप देने का फ़ैसला किया। जिससे कि एक नया प्रोडक्ट भी बने और पुराना कपड़ा किसी लैंडफिल में जाने की बजाय पूरी तरह से इस्तेमाल हो।

6 लाख रुपये के शुरुआती निवेश और अपने परिवार के साथ से, सौम्या ने सफलतापूर्वक ‘द्विज’ की स्थापना की है और उन्हें उम्मीद है कि उन्हें भविष्य में और भी इन्वेस्टर मिल जायेंगें।

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प्रक्रिया

द्विज की पाँच सदस्यी टीम, (जिसमें कपड़ा काटने वाले और दर्जी शामिल हैं) तीन चरणों में इन डेनिम से प्रोडक्ट्स बनाती है।

पहले चरण में, डेनिम के कलेक्शन (संग्रह) को गुणवत्ता के आधार पर अलग करने के लिए पानीपत भेजा जाता है। फर्स्ट ग्रेड से थर्ड ग्रेड तक का जीन्स मटेरियल (जो आमतौर पर लैंडफिल में जाती है) का उपयोग किया जाता है।

“उन्हें बर्बाद होने से बचाने के लिए हम मुंबई के डेनिम ट्रेडर्स से 20 रूपये प्रति किलो के हिसाब से जीन्स खरीदते है। और फिर उन्हें अपसाइकिल करते हैं,” सौम्या ने बताया।

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एक बार सारा कलेक्शन होने के बाद, डेनिम को अच्छी तरह से धोया जाता है। ताकि उनकी स्वच्छता सुनिश्चित की जा सके।

इसके बाद तीसरे चरण में, प्रोडक्ट के डिज़ाइन के मुताबिक मटेरियल की कटिंग और सिलाई की जाती है।

सौम्या कहती हैं कि उनके प्रोडक्ट्स की विशेषता है कि उनका हर एक प्रोडक्ट दूसरे प्रोडक्ट से अलग होता है। कही डिज़ाइन हो, रंग हो या फिर पैटर्न। क्योंकि सभी डिज़ाइन इस बात पर निर्भर करते हैं कि उनके पास रॉ मैटेरियल क्या आया है। इसलिए हर एक प्रोडक्ट बिल्कुल अलग बनता है। इसके साथ ही, छोटे से छोटे टुकड़े को भी ज्वैलरी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है ताकि एकदम ज़ीरो-वेस्टेज हो।

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एक उत्पाद को बनाने के लिए उन्हें लगभग एक हफ्ते का समय लगता है।

इतनी सख़्त प्रक्रिया के बावजूद, पिछले एक साल में द्विज ने 3, 000 प्रोडक्ट्स बेचे हैं। फ़िलहाल वे अलग-अलग तरह के बैग बना रहे हैं और आगे उनकी कोशिश है कि वे योगा मैट और स्कूल में इस्तेमाल होने वाले उत्पाद भी बनायें।

सौम्या का यह स्टार्टअप पर्यावरण के लिए तो वरदान है ही। पर साथ ही, अपने इस स्टार्टअप के माध्यम से वे उन जिंदगियों को छूने की कोशिश भी कर रही हैं जो बिना किसी नाम और शोहरत के पर्यावरण के लिए अपनी भूमिका निभा रहे हैं। और बदले में दो वक़्त की रोटी भी मुश्किल से कमा पाते हैं।

सौम्या बताती हैं कि यदि कोई भी उन्हें अपनी पुरानी जीन्स डोनेशन के तौर पर भेजता है, तो इन जीन्स के प्रोडक्ट्स बनने से उन्हें जो भी फायदा मिलता है, वह पैसा वे उन लोगों के लिए भेजती हैं जो अलग-अलग संस्थाओं के लिए जगह-जगह से कपड़े इकट्ठा करके लाते हैं।

साभार: सौम्या/फेसबुक

“एक छोटा-सा संगठन है ‘उर्जा फाउंडेशन,’ ये लोग बहुत सी जगहों से पुराने कपड़े इकट्ठा करते हैं। इन सभी कपड़ों में से जो भी डेनिम मटेरियल होता है, वह अलग करके वो हम लोगों को भेज देते हैं। इसलिए जब भी हमें डोनेशन की वजह से थोड़ा भी पैसा आता है तो वह पैसा हम उर्जा फाउंडेशन के साथ जुड़े हुए उन ज़रुरतमंद लोगों को भेज देते हैं, जिन्होंने उर्जा फाउंडेशन के लिए घर-घर जाकर कपड़े इकट्ठे किये,” सौम्या ने बताया।

तो इस तरह से जब आप अपनी पुरानी जीन्स इकट्ठा करके, द्विज प्रोडक्ट्स को भेजते हैं तो आप न सिर्फ़ पर्यावरण के लिए, बल्कि बहुत से अनगिनत ग़रीब लोगों के लिए भी अच्छा कदम उठाते हैं। इसलिए अपनी पुरानी, वेस्ट डेनिम जीन्स यूँ ही फेंकने की बजाय आप द्विज प्रोडक्ट्स को इस पते पर भेज सकते हैं,

UG-60, Dreams The Mall, Bhandup (W), Mumbai-400078

अंत में सौम्या द बेटर इंडिया के पाठकों को सिर्फ़ यही संदेश देती हैं कि एक ज़िम्मेदार ग्राहक बनें। कोई भी कपड़ा खरीदने से पहले कई बार सोचें कि क्या वाकई आपको उसकी ज़रूरत है। और यदि आपको खरीदना भी है तो आप यह ज़रूर चेक करें कि कपड़ा या तो 100% कॉटन हो या फिर 100% पॉलिस्टर ताकि आगे चलकर उनकी रीसाइक्लिंग आसानी से हो सके। साथ ही, कोशिश करें कि आप अपने कपड़े को किसी डस्टबिन या फिर लैंडफिल में फेंकने की बजाय, उन्हें ऐसे किसी संगठन के पास पहुंचा दें, जो कि अपसाइकिलिंग या फिर रीसाइक्लिंग करता हो।

हमें उम्मीद है कि द्विज जैसे स्टार्टअप सेकंड हैंड मटेरियल और वेस्ट से बने प्रोडक्ट्स के बारे में लोगों की सोच और नज़रिया बदल सकते हैं। द्विज से संपर्क करने के लिए contact@dwijproducts.com पर मेल करें।

मूल लेख: अनन्या बरुआ

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