आर्सेनिक से होती हैं खतरनाक बीमारियां, ये सेंसर खाने व पानी में लगाएगा इसकी मौजूदगी का पता

Scientists made sensor, now it will be easy to test arsenic in food items

वैज्ञानिकों ने आर्सेनिक अशुद्धियों का पता लगाने के लिए एक ऐसा सेंसर विकसित किया है, जो केवल 15 मिनट में पानी और फूड सैंपल्स में आर्सेनिक का पता लगाने में सक्षम है।

Content Partner: India Science Wire

वैज्ञानिकों ने आर्सेनिक अशुद्धियों का पता लगाने के लिए एक सेंसर विकसित किया है। यह संवेदनशील सेंसर केवल 15 मिनट में पानी और फूड सैंपल्स में आर्सेनिक का पता लगाने में सक्षम है। यह बेहद संवेदनशील, चयनात्मक और एक ही चरण की प्रक्रिया वाला सेंसर है। यह अलग-अलग तरह के पानी और खाद्य नमूनों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। सेंसर की सतह पर किसी भी फूड या लिक्विड को रखकर उसके रंग में परिवर्तन के आधार पर आर्सेनिक की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है। इस सेंसर को कोई भी आसानी से इस्तेमाल कर सकता है।

आर्सेनिक, धातु के समान एक प्राकृतिक तत्व है, जिसे देखा, चखा या सूँघा नहीं जा सकता। आर्सेनिक के संपर्क में आने से त्वचा पर घाव, त्वचा का कैंसर, मूत्राशय, फेफड़े एवं हृदय संबंधी रोग, गर्भपात, शिशु मृत्यु और बच्चों के बौद्धिक विकास जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

तीन तरीकों से हो सकती है जांच

इस सेंसर द्वारा तीन तरीकों से परीक्षण किया जा सकता है- स्पेक्ट्रोस्कोपिक मापन, कलरमीटर या मोबाइल एप्लिकेशन की सहायता से रंग तीव्रता मापन (Color Intensity Measurement) और खुली आंखों से इसकी जांच की जा सकती है। यह सेंसर आर्सेनिक की एक विस्तृत श्रृंखला – 0.05 पीपीबी (पार्ट्स प्रति बिलियन) से 1000 पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) तक का पता लगा सकता है।

कागज और कलरमीट्रिक सेंसर के मामले में आर्सेनिक के संपर्क में आने के बाद मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (एमओएफ) का रंग बैंगनी से नीले रंग का हो जाता है। इसमें नीला रंग, आर्सेनिक के कंसन्ट्रेशन में वृद्धि के साथ और गाढ़ा होता जाता है।

Arsenic causes dangerous diseases, this sensor will detect its presence in food and water
How it works

सेंसर को विकसित करने वाले डॉ वनीश कुमार ने बताया कि आर्सेनिक आयनों के लिए संवेदनशील जांच पद्धति की अनुपलब्धता एक चिंताजनक विषय है। डॉ कुमार बताते हैं, “खाने-पीने की चीज़ों में आर्सेनिक की जांच को एक चुनौती मानते हुए, हमने एक संवेदनशील और जल्द से जल्द इसकी पहचान कर सकने वाले मेथड के विकास पर काम करना शुरू किया। हमें मोलिब्डेनम और आर्सेनिक के बीच पारस्परिक प्रभाव की जानकारी थी। इसलिए, हमने मोलिब्डेनम और एक उत्प्रेरक से युक्त सामग्री बनाई, जो मोलिब्डेनम और आर्सेनिक की परस्पर क्रिया से उत्पन्न संकेत दे सकती है। कई प्रयासों के बाद हमने आर्सेनिक आयनों की विशिष्ट, एक-चरणीय और संवेदनशील पहचान के लिए मिश्रित धातु मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (एमओएफ) विकसित किया।”

किया जा चुका है सफल परिक्षण

इस सेंसर का भू-जल, चावल के अर्क और आलू बुखारा के रस में आर्सेनिक के परीक्षण के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपिक के साथ-साथ कागज आधारित परीक्षण किया गया, जो सफल रहा।

यह सेंसर आर्सेनिक अशुद्धता की जांच के लिए उपयोग में लाए जाने वाले पारंपरिक परीक्षण मोलिब्डेनम-ब्लू टेस्ट के उन्नत संस्करण की तुलना में 500 गुना अधिक संवेदनशील है। यह एटॉमिक अब्सॉर्प्शन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एएएस) और इंडक्टिवली-कपल्ड प्लाज़्मा मास स्पेक्ट्रोमेट्री (आईसीपीएमएस) जैसी अन्य आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली उन विश्लेषणात्मक तकनीकों की तुलना में किफायती और सरल है। अन्य मौजूद परीक्षणों के लिए कुशल ऑपरेटरों की आवश्यकता भी होती है।

इसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फैकल्टी फेलोशिप प्राप्तकर्ता और वर्तमान में राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई), मोहाली में कार्यरत डॉ वनीश कुमार द्वारा विकसित किया गया है। यह शोध ‘केमिकल इंजीनियरिंग जर्नल’ नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

Featured Image Source: AICHE & Global Bihari)

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