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दिवाली को रौशन करने के बाद रीसायकल भी हो जाएंगी, केले के रेशे से बनी ये लाइट्स

eco friendly lights by Urja

जब जेनी पिंटो ने 90 के दशक में फ़िल्म इंडस्ट्री छोड़ने का फैसला किया, तो यह कई मायनों में एक साहस भरा कदम था। जेनी के लिए इस दुनिया से निकलने का मतलब था, एक तेज भागती-दौड़ती व संभावनाओं से भरी जिंदगी को पीछे छोड़, एक बिल्कुल नई तरह की जिंदगी जीना। उन्होंने फैसला किया कि वह कुछ नया काम करेंगी, लेकिन एक ऐसे व्यवसाय की तरफ कदम बढ़ाना, जिसके बारे में उन्हें खुद भी कुछ जानकारी नहीं थी, इतना आसान नहीं था। 

पिंटो ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं मुंबई में पली बढ़ी हूं और मैंने अपने काम की शुरुआत भी इसी शहर से की थी। उदारीकरण से ठीक पहले, विज्ञापन की दुनिया में काम करने का काफी सही समय था।” 

माँ बनने के बाद बदला मन

जीवन जब तक एक ढर्रे पर चल रहा था, तब तक सब ठीक था। लेकिन जब जेनी, माँ बनीं तो उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होने लगा। उपभोक्तावाद और पर्यावरण को लेकर उनके मन में सवाल उठने शुरू हो गए थे। वह कहती हैं, “मैंने यह सोचना शुरू कर दिया था कि मैं अपने बच्चे को कैसे और किस तरह की दुनिया में बड़ा करना चाहती हूँ।” पर्यावरण से लगाव रखनेवाली जेनी के लिए यह समय प्रदूषण से दूर स्वच्छ दुनिया की ओर कदम बढ़ाने का था, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इसके लिए वह करेंगी क्या।

जेनी द्वारा शुरू की गई यह नई राह, उन्हें इतनी ऊंचाइयों तक ले जाएगी, इसका एहसास शायद जेनी को भी नहीं था। आज वह भारत के सस्टेनेबल पेपर और लाइटिंग इंडस्ट्री में एक अग्रणी नाम बन चुकी हैं। उनका घरेलू ब्रांड ‘ऊर्जा’, सोफिस्टिकेटेड लाइटिंग से लेकर क्राफ्ट होम एक्सेसरीज तक, सबकुछ बना रहा है और ये सभी प्रोडक्ट्स कचरे को रीसाइकिल कर बनाए जाते हैं।

जब सवाल पर्यावरण को बचाने का था 

Jenny Pinto

जेनी, केले से कागज़ भी बनाती हैं। उनके अनुसार केले से कागज बनाने की उनकी इस कोशिश की शुरुआत संयोगवश हुई थी। वह बताती हैं, “लगभग तीस की उम्र में मैने मुंबई छोड़ दिया और बेंगलुरु चली आई। मन में सवाल उठा कि पर्यावरण को बचाने के लिए मैं क्या कर सकती हूं? मैंने वहां बर्तन बनाना सीखना शुरु किया। उसी दौरान मुझे हाथ से बने कागज के लिए लेक-डेम (lecture-demonstration) में जाने का मौका मिला।”

उस एक मौके के कारण उनकी दिलचस्पी ईको फ्रेंडली कागज तैयार करने में बढ़ने लगी थी। 1998 में उन्होंने अपना एक छोटा सा स्टूडियो खोला। यह भारत में अपनी तरह का पहला स्टूडियो था। जेनी पेपरमेकिंग कला में परफेक्ट हो चुकी थीं। इस दौरान उन्होंने अपनी गलतियों और अनुभव से बहुत कुछ सीखा था।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पर्यावरण के अनुकूल पेपर बनाने में सिर्फ 27 प्रतिशत बेकार कागज और 22 प्रतिशत कृषि कचरे का ही इस्तेमाल हो पाता है। एक दशक पहले तक तो स्थिति और भी गंभीर थी। उन्होंने बताया, “मैंने केले के रेशे से कागज बनाना सीखा, जो पूरी तरह से केमिकल फ्री और पारदर्शी हैं। उस समय भारत में कोई भी, इस तरह से छोटे पैमाने पर कागज नहीं बना रहा था, लेकिन अमेरिका में ऐसे कई उद्यम थे, जो इस पर काम कर रहे थे।”

पोर्टलैंड में सीखी कागज से सस्टेनेबल लाइटिंग बनाने की कला 

साल 2000 में जेनी ने, पोर्टलैंड में कुछ महीने बिताए। वहां हेलन हेबर्ट के साथ प्राकृतिक फाइबर से कागज बनाना और उसे लाइटिंग के लिए इस्तेमाल करना सीखा। जेनी का मानना है कि पेपर बनाना मुश्किल काम नहीं है, लेकिन यह पर्यावरण के कितने नजदीक है, इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

वह कहती हैं, “कागज को प्लांट सेल्युलोज से बनाया जाता है। इसकी सामग्री तो प्राकृतिक है, लेकिन हम जिस तरह से पेपर बनाते हैं, उसकी सामग्री का स्रोत, उसे निकालने और उत्पादन की प्रक्रिया बिल्कुल अलग है।” वह आगे बताती हैं, “इस पूरी प्रक्रिया में फाइबर को पानी और एडिटिव्स में पकाया जाता है और फिर लुगदी को सांचे में डालकर पेपर बनाया जाता है।”

वह जानती थीं कि इससे पानी की खपत ज्यादा होगी। उन्होंने इसका भी उपाय ढूंढ निकाला। उन्होंने बारिश के पानी को संरक्षित और रीसाइकल करने के लिए अलग से एक यूनिट लगाई थी। वह, कागज बनाने में इस्तेमाल पानी को रीसाइकिल करती हैं और फिर उस पानी से अपने गार्डन में लगे पौधों की सिंचाई करती हैं।

चुनौतियां अभी बाकी…

Banana Fibre Lights

जेनी ने बताया, “मैं कागज बनाने में हमेशा कम से कम टॉक्सिक एडिटिव का इस्तेमाल करती हूं। मसलन रेशे को कॉस्टिक सोडा की बजाय वाशिंग सोडा में पकाया जाता है। इस तरीके से बने कागज को रीसाइकल किया जा सकता है और इस्तेमाल के बाद ये सुरक्षित तरीके से कम्पोस्ट यानी खाद में भी बदले जा सकता हैं।

जेनी ने कागज बनाने की इस मुश्किल प्रक्रिया में महारत हासिल कर ली थी, लेकिन इस काम को आगे बढ़ाने के लिए और भी कई ऐसी चुनौतियां थीं, जिनका उन्हें सामना करना पड़ा। छोटी शुरूआत करने के लिए जेनी को मशीन निर्माताओं को छोटे आकार के उपकरण देने के लिए राजी करना पड़ा। एक नई तकनीक का मतलब, नए काम करने के लिए कुशल कारीगरों की कमी से जूझना भी था। उन्हें केले के रेशे जैसे कृषि कचरे के सप्लायर भी ढूंढने थे।

वह कहती हैं, “कुछ समय बाद, मुझे कुछ ऐसे मैन्युफैक्चरर्स मिल गए, जिन्हें मैंने छोटा बीटर और प्रेस बनाने के लिए राजी कर लिया था। कागज बनाने के लिए मुख्य कच्चे माल यानी केले के रेशे को खोजने में भी काफी समय लगा, लेकिन आखिरकार वह भी मुझे मिल ही गया। इसका इस्तेमाल शिल्प उद्योग के लिए किया जा रहा था।”

LinkedIn, Google और रिलायंस ने भी जताया भरोसा

लोगों को यह भरोसा दिलाना भी एक मुश्किल काम था कि घरों की आंतरिक साज-सज्जा के लिए कागज भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इस परेशानी से निपटने के लिए, उन्होंने प्रदर्शनियों का सहारा लिया। वहां उन्होंने दर्शकों से अपने कॉन्सेप्ट के बारे में बात की और इस बारे में उनकी राय भी ली। 

वह बताती हैं, “इसामु नोगुची और इंगो मौरर जैसे अंतरराष्ट्रीय डिजाइनर्स के संपर्क में आने वाले आर्किटेक्ट्स का एक ग्रुप, पहले से ही शानदार ढंग से लाइटिंग में कागज का इस्तेमाल कर रहा था। इससे मेरा काम थोड़ा आसान हो गया था।” समय के साथ ऊर्जा, लाइटनिंग और डेकोरेशन इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम बन गया। ब्रांड ने हास्पिटैलिटी और कॉर्पोरेट क्षेत्र में कई बड़ी कंपनियों मसलन फैटी बाओ, याज़ू, गोनेटिव, लिंक्डइन, गूगल और रिलायंस के साथ भी काम किया है।

इसके उत्पादन के लिए जेनी ने घर के पास ही कुछ कारीगरों को खोजा। बेंगलुरु में बसे ग्रामीण कारीगरों को हस्तशिल्प के साथ-साथ, उनकी समझ के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने बताया, “वे जल्दी सीखने वाले कारीगर थे और उन्हें प्राकृतिक सामग्री के साथ काम करने में मज़ा आता है। ये लोग काम की खोज में हमारे पास आए थे और कई सालों तक हमारे साथ जुड़े रहे।” जेनी ने इन कारीगरों को खुद से ट्रेनिंग दी थी। आज उनके साथ लगभग 50 पुरुष और महिलाएं काम कर रही हैं। 

‘ऊर्जा’ कैसे बना एक घरेलू ब्रांड

Dandelion Pendant Light, Cork Overlay Light, Oyster Mushroom Pendant Light

साल 2018 में, जेनी ने अपने उत्पादों को ऊर्जा नामक एक पूर्ण घरेलू ब्रांड में बदल दिया। सस्टेनेबल मटेरियल से डिजाइनर लाइट बनाने वाले उनके इस ब्रांड को रादेश शेट्टी जैसे कुशल आन्त्रप्रेन्योर का साथ मिला। उन्होंने इस बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए पैसा लगाया। जेनी कहती हैं, “हम नकली सीमेंट के लिए खदान से निकलने वाले कचरे और उद्योगों से निकलने वाले कॉर्क कचरे का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमारी नई सामग्री लैंटाना कैमरा है, जिसे अब मध्य और दक्षिण भारत में जंगलों और वन्यजीवों के लिए एक बड़ा खतरा माना जाता है।”

क्या है उद्देश्य?

उनका उद्देश्य किसी भी ऐसी चीज को, जो रिपर्पज्ड और रीसाइकिल की जा सकती है, उसे उसकी अपनी इस खूबी के साथ बनाए रखना है। वह बताती हैं, “हम फॉक्स सीमेंट से लैंप, दरवाजे के हैंडल, और सजावटी सामान बनाते हैं। कागज बनाते हुए जितना संभव हो सकता है, पानी को रीसाइकल किया जाता है। वोवन पेपर से कई तरह के लैंप बनाए जाते हैं। बचे हुए कॉर्क को कोस्टर और अन्य प्रोडक्ट बनाने के लिए फिर से तैयार किया जाता है।”

जब से इस बिजनेस की शुरूआत की है, जेनी ने देखा कि लोग यह जानने के इच्छुक रहते हैं कि क्या बनाया जा रहा है और कैसे बनाया जा रहा है। वह कहती हैं, “अब लोगों का ध्यान इस बात पर रहता है कि वह अपने उत्पाद कहां से ले रहे हैं। अक्सर ये प्रोजेक्ट के टेंडर का हिस्सा भी होता है। वे स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों को वरीयता देते हैं।”

अगर आप भी अपने घर के लिए सस्टेनेबल लाइट ढूंढ रहे हैं, तो यहां (https://www.oorjaa.in/) ऊर्जा के प्रोडक्ट्स देखें। 

मूल लेखः रिया गुप्ता

संपादनः अर्चना दुबे

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