द बेटर इंडिया की कहानी का असर, सत्यप्रकाश के बिज़नेस से जुड़ना चाह रहे देशभर से दिव्यांगजन

बनारस के रहनेवाले 25 वर्षीय सत्यप्रकाश मालवीय नेत्रहीन होते हुए भी अपने घर से मसालों का बिज़नेस चलाते हैं। द बेटर इंडिया हिंदी पर उनकी कहानी पढ़ने के बाद, उन्हें देश भर से दिव्यांगजनों ने सम्पर्क किया और कई लोग उनसे जुड़कर काम भी करना चाहते हैं।

Masala business of Satyaprakash Malviya, Varanasi

बनारस के सत्यप्रकाश मालवीय सिर्फ 25 साल के हैं। उन्होंने बचपन में ही अपनी आँखों की रोशनी खो दी थी, लेकिन उनका जज़्बा ऐसा है कि आज वह अपने मसालों के बिज़नेस (Masala Business) से अपने साथ-साथ 10 और महिलाओं व दिव्यांगजनों को रोज़गार देने में सक्षम हैं। द बेटर इंडिया-हिंदी पर उनके जज्बे की बेहतरीन कहानी पर पढ़ने के बाद उनके जैसे कई दिव्यांगजनों को भी प्रेरणा मिली है। 

सत्यप्रकाश बड़ी ख़ुशी के साथ बताते हैं, “मध्यप्रदेश के कई शहरों समेत लखनऊ और देशभर से कई लोगों ने मुझसे सम्पर्क किया और इनमें से तक़रीबन 12 से 15 लोग मेरी ही तरह दिव्यांग थे। उन सभी को मेरी कहानी इतनी अच्छी लगी कि कइयों ने मेरे बिज़नेस के साथ जुड़ने का प्रस्ताव रखा। कई मुझसे काम भी मांग रहे थे। लेकिन अभी मेरा काम इतना बड़ा नहीं है कि मैं इन सभी को काम दे सकूँ। हालांकि, उनके अंदर काम करने की चेतना जगाने का जो काम मैं करना चाहता था, वह द बेटर इंडिया के लेख ने कर दिया।"

उन्होंने बताया कि उन्हें ज्यादा ऑर्डर्स तो नहीं मिल रहे हैं, लेकिन उनके काम (Masala Business) को आज कई लोग जानने लगे हैं। सत्यप्रकाश ने अपने घर में जिस काम को शुरू किया था, उसे देशभर के लोगों के बीच ले जाना उनके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी। लेकिन उन्होंने कहा कि द बेटर इंडिया के लेख ने इस काम को उनके लिए आसान बना दिया। देश भर से मिल रहे इस प्यार ने उनका आत्मविश्वास काफी बड़ा दिया है। 

Masala business : Satyaprakash Malviya With His Team
Satyaprakash Malviya With His Team

खुद नेत्रहीन होते हुए भी देखा दूसरों को आत्मनिर्भर बनाने का सपना 

सत्यप्रकाश मालवीय, बचपन से ही देख नहीं सकते, लेकिन वह जीवन में बड़े-बड़े काम करने और अपने साथ-साथ दूसरे दिव्यांगजनों और महिलाओं को रोज़गार से जोड़ने का सपना देखते हैं। बचपन से ही बड़े-बड़े महापुरुषों की जीवनी और कहानी पढ़कर ही, उन्हें जीवन में दूसरों के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिली।  

वह कहते हैं, “मैं हमेशा अपने साथ-साथ मेरे जैसे दूसरे दिव्यांगजनों को आगे बढ़ाने और भीख मांगने जैसी प्रथा को हमेशा के लिए खत्म करने के बारे में सोचता था। इसके लिए जरूरी है कि हम खुद काम करें।"

उन्होंने साल 2020 में तक़रीबन ढाई लाख रुपये लगाकर, ‘काशी मसाले’ नाम से अपने मसाला बिज़नेस (Masala Business) की शुरुआत की थी। इसके लिए उन्होंने अपनी स्कॉलरशिप से मिले पैसे और कुछ सामाजिक सेवकों से मिली पूंजी लगाई। आज वह इस बिज़नेस से महीने के 30 हजार रुपये कमा रहे हैं और 10 महिलाओं को रोज़गार भी दिया है।

बिज़नेस (Masala Business) से जुड़ी हर परेशानी का करते हैं डंटकर सामना

सत्यप्रकाश अपने बिज़नेस की मार्केटिंग के लिए खुद ही कई शहरों की प्रदर्शनियों में भाग लेने जाते हैं। चूँकि, वह देख नहीं सकते, इसलिए इन कामों में उन्हें कई मश्किलें भी उठानी पड़ती हैं, लेकिन वह कभी घबराते नहीं।  

Satyaprakash Malviya distributing masala to people<br />
While Distributing Masala

सत्यप्रकाश मानते है कि उनके जैसे कई दिव्यांग काम न मिलने के कारण दूसरों पर निर्भर रहते हैं। कई लोग रोड पर भीख मांगने पर भी मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में वह बेहद खुश हैं कि उनकी कहानी पढ़ने के बाद लोग प्रेरित हो रहे हैं और आत्मनिर्भर होने के बारे में सोच रहे हैं। 

हम और आप सत्यप्रकाश की मदद करके उनके बिज़नेस (Masala Business) को आगे बढ़ाने और उनके जैसे कई दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकते हैं।

आप सत्यप्रकाश के काशी मसाले खरीदने के लिए उन्हें 9454686069 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

संपादन- अर्चना दुबे

 यह भी पढ़ेंः नेत्रहीन होते हुए भी बखूबी चलाते हैं मसालों का बिज़नेस, औरों को भी दिया रोज़गार

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