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कभी चारा बेचा तो कभी ठेले पर सब्जियां, मेहनत से खड़ा किया करोड़ो का कारोबार

Maharashtra Farmer Success story

हर किसी का सपना होता है कि अपनी डिग्री पूरी करने के बाद अच्छी नौकरी करे। लेकिन कई बार उम्मीद के मुताबिक न तो नौकरी मिलती है और न ही सैलरी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप जीवन से ही हार जाएं। दरअसल कई बार शुरुआत में असफलता हाथ आती है लेकिन यदि आप वक्त के साथ कदम बढ़ाते रहते हैं तो एक न एक दिन सफलता आपके पास जरूर पहुंचती है। ऐसी ही कहानी महाराष्ट्र के उमेश देवकर की है।

पुणे के समीप वडगांव आनंद के रहने वाले उमेश ने 1999 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की। लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने बहुत अच्छे नंबर से डिग्री ली थी, तो उम्मीद थी कि अच्छी नौकरी मिलेगी। घर-परिवार की मदद करूंगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वह मंदी का दौर था और मुझे मेरे क्षेत्र में कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी। जब इंजीनियरिंग क्षेत्र में नौकरी नहीं मिली तो दूसरे युवाओं की तरह मैंने भी इधर-उधर हाथ-पांव मारना शुरू किया।” 

उमेश ने मुंबई में मात्र 3500 रुपए की तनख्वाह से सेल्समैन की नौकरी से शुरुआत की। समय का फेर देखिए आज उमेश खुद अपनी कंपनी के मालिक हैं और उनका सालाना टर्नओवर ढाई करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। 

किया है चारा बेचने का काम भी

उमेश ने बताया, “मैंने सेलफ़ोन बेचने से अपनी नौकरी शुरू की थी। कई घंटे काम करने के बाद महीने में 3500 रुपए की तनख्वाह मिलती थी, जिसमें घर की ज़रूरर्तों का पूरा हो पाना बहुत ही मुश्किल था। लेकिन मैं फिर भी लगा रहा। जैसे-जैसे घर में जिम्मेदारी बढ़ने लगी तो सैलरी में गुजारा करना मुश्किल हो गया और मैंने ठान लिया कि मुझे अपना कोई व्यवसाय करना चाहिए।” 

Umesh Deokar

कुछ साल तक नौकरी करने के बाद, उमेश अपने गांव लौट आए और अपनी पारिवारिक खेती करने लगे। 

खेती में घाटा-मुनाफा चलता रहता था। इसलिए सिर्फ गुजारे लायक ही कमाई हो रही थी। अतिरिक्त कमाई के लिए उन्होंने चारा बेचना शुरू किया। वह बताते हैं, “हमारे इलाके में गन्ने की खेती खूब होती है। इससे चारा भी बनाते हैं तो मैं कुछ बड़े गन्ना किसानों से चारा खरीदता था और आसपास के इलाकों में डेयरी फार्म पर जाकर बेचता था। काफी समय तक खेती के साथ यह काम भी चलता रहा। इसके बाद, मैंने कुछ पैसे इकट्ठा करके और कुछ लोन लेकर खुद का एक टैम्पो खरीदा ताकि ट्रांसपोर्ट के काम से जुड़ सकूं,” उन्होंने बताया। 

हालांकि, ट्रांसपपोर्ट के काम में भी उन्हें कई बार नुकसान हुआ। उमेश कहते हैं, “एक समय ऐसा भी था जब बच्चे की फीस भरने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। समझ नहीं आता था कि बच्चे को क्या कहा जाए। लेकिन यह भी सच है कि जीवन में बुरा वक़्त हमेशा नहीं रहता है। इसलिए मैं सिर्फ मेहनत करता रहा और ऊपरवाले की मेहरबानी थी कि मुझे भी मेरे हिस्से का मौका मिला। और मैंने इस मौके को अपने हाथ से जाने नहीं दिया।”

ठेला लगाकर बेची सब्जियां 

उमेश बताते हैं कि 2017 तक उनकी खेती और थोड़ा-बहुत ट्रांसपोर्ट का काम चल रहा था। “हम सब्जियों की खेती करते हैं। अब मंडी में किसान को क्या भाव मिलता है, यह तो सब जानते हैं। इस पर ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी रहता है। लेकिन साल 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने एक बदलाव किया और किसानों को शहरों में अपनी सब्जियां खुद ग्राहकों तक पहुंचाने की अनुमति मिल गयी। उस समय आढ़तियों ने हड़ताल की हुई थी और मुझे पता चला कि भांडुप में सब्जियों की सप्लाई नहीं हो रही है,” उन्होंने कहा। 

Selling Vegetables to customers

उन्होंने इस मौके को समझा और अपनी सब्जियां लेकर भांडुप पहुंच गए। वहां एक सोसाइटी के बाहर अपना ठेला लगा लिया और देखते ही देखते उनकी सब्जियां बिक गयी। वह कहते हैं कि उस समय तो उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं लगाया कि उन्हें कितना मुनाफा हुआ है। लेकिन यह समझ में आ गया था कि उनकी तरक्की की शुरुआत हो चुकी है। उमेश ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने सबसे पहले भांडुप और फिर मुलुंड में इस तरह से सब्जियां बेचना शुरू किया। वह बताते हैं, “मैं एक दिन पहले रात को सभी ताजा सब्जियां तोड़ता और साफ़ करके सुबह-सुबह शहर पहुंच जाता था। फिर जगह-जगह ठेले लगाकर सब्जियां बेचता था। कई-कई घंटे धूप में खड़े रहता था और शाम में गांव पहुंचकर फिर दूसरे दिन की तैयार करता था। ऐसे भी दिन थे जब दो-तीन दिन तक नींद नसीब नहीं होती थी।”

उमेश की मेहनत रंग लाई और ग्राहक उनसे जुड़ने लगे। इसके बाद, उन्होंने भांडुप और मुलुंड के अलग-अलग इलाकों में छोटे-छोटे स्टोर किराए पर लेकर अपना आउटलेट सेटअप किया। फिक्स जगह होने से लोग व्हाट्सएप पर भी उनसे जुड़ने लगे। बहुत से लोग उनसे होम डिलीवरी के लिए भी कहने लगे। 

आज करोड़ों का है कारोबार 

उमेश ने अपनी फर्म ‘फार्म टू होम’ के नाम से रजिस्टर करा ली। देखते ही देखते, उनके ग्राहक बढ़ने लगे और इसके साथ ही उनके उत्पाद भी। उन्होंने बताया कि उनसे नियमित सब्जियां खरीदने वाले ग्राहक उनसे अक्सर पूछने लगे कि क्या वे दाल, तेल आदि भी दे सकते हैं। ऐसे में, अपने ग्राहकों को मना करने की बजाय उमेश ने अपने इलाके के छोटे-बड़े प्रोसेसिंग यूनिट्स से सम्पर्क करके, उनके उत्पादों को ग्राहकों तक पहुंचाना शुरू किया। इससे उमेश का कारोबार भी बढ़ा और उनके ग्राहकों की संख्या भी। 

वह आगे कहते हैं कि साल 2020 में लॉकडाउन ने उनके बिज़नेस को काफी आगे बढ़ाया। जब सभी लोग घरों में बंद थे तो सब्जी, राशन आदि के लिए आसपास के लोग उनसे लगातार संपर्क कर रहे थे। इस दौरान, उन्होंने अपनी ऑनलाइन वेबसाइट ekrushk.com की शुरुआत की। जिससे उन्हें लोग सीधा ऑर्डर करते हैं और वह घरों तक सामान पहुंचाते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी सर्विसेज आज मुंबई और ठाणे में उपलब्ध हैं। लगभग 3000 ग्राहक उनसे जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, वह अपने गांव और आसपास के इलाकों के छोटे-बड़े लगभग 50 किसानों से उनके फल, सब्जी, दाल आदि खरीदकर ग्राहकों तक पहुंचा रहे हैं। 

Farm to Home

“फ़िलहाल, हमारे दो-तीन जगह रिटेल सेंटर भी हैं, जहां हफ्ते में एक बार हम सब्जियों की बिक्री करते हैं। हमारी सब्जियां लगभग एक हफ्ते तक सही रहती हैं क्योंकि मैं खेतों से ताजा सब्जियां तोड़कर सीधा लोगों तक पहुंचाता हूं,” उन्होंने बताया। 

आज उमेश अपने बिज़नेस से 30 लोगों को काम भी दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनका इस साल का टर्नओवर ढाई करोड़ रुपए था और आने वाले साल में उन्हें उम्मीद है कि इससे कहीं ज्यादा होगा। 

वह कहते हैं, “अब मैं अपने परिवार को वह ज़िन्दगी दे पा रहा हूं, जिसके मैं सपने देखा करता था। मेरे परिवार ने कभी जताया नहीं पर हमेशा आर्थिक तंगी देखी है। पिताजी-चाचाजी मुंबई में खोली में रहे ताकि पढ़ाई कर सकें। फिर दिन-रात काम किया ताकि हमें पढ़ा सकें। मेरे हर अच्छे-बुरे समय में मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा रहा है और मैं सबसे यही कहता हूं कि आगे बढ़ो। अगर अपना काम करने की लगन है तो छोटा ही सही अपना बिज़नेस करो। लेकिन बिना ट्राई करे कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।”

यदि आप उमेश से संपर्क करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें। 

संपादन- जी एन झा

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