Placeholder canvas

उत्तर- प्रदेश: गन्ना-किसान ने खेत पर ही लगा ली प्रोसेसिंग यूनिट, 45 लोगों को रोज़गार

हर साल योगेश लगभग 5000 क्विंटल गुड़ बनाते हैं, जिसे वह सीधा कंपनियों को बेचते हैं और इसके साथ वह 2000 लीटर गन्ने का सिरका भी बना रहे हैं, जिसे वह मुफ्त में लोगों को बांटते हैं!

“सबसे ज्यादा ज़रूरी है कि किसान भाई हमेशा कुछ न कुछ नया सीखते रहें। अगर एक तरीके से खेती में कुछ नहीं बच रहा है तो हमें कुछ नया ट्राई करना चाहिए। हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए,” यह कहना है उत्तर-प्रदेश के किसान योगेश शिवाच का। साल 1990 से खेती कर रहे योगेश अपनी ज़मीन पर प्राकृतिक तरीकों से गन्ना उगाते हैं और गन्ने की प्रोसेसिंग करके गुड़ और सिरका बना रहे हैं।

मुज़फ्फरनगर जिला स्थित गढ़वाढ़ा गाँव के 46 वर्षीय योगेश ने आठवीं कक्षा तक पढाई की है। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया कि उनके पास पुश्तैनी ज़मीन 70 बीघा है। उनके बड़े भाई ने कपड़े का अपना काम सेट-अप कर लिया और छोटा भाई पुलिस में भर्ती हो गया। ऐसे में, पिता की खेती की ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने ऊपर ले ली और खेती को आपना पेशा बना लिया।

“जब मैं पिताजी के साथ खेतों पर जाता था तब हमारे यहाँ गन्ना ही होता था और ज़्यादातर किसान बैल और कोल्हू से खुद अपने यहाँ गुड़ बनाकर बेचते थे। फिर धीरे-धीरे यह परम्परा खत्म हो गई। गन्ने की जगह दूसरी फसलें भी किसान उगाने लगे और हम भी वैसा ही करने लगे,” उन्होंने कहा।

योगेश ने तरह-तरह की फसलें उगाई, किसी में मुनाफा होता और किसी में नुकसान। कुछ साल पहले उन्होंने अलग-अलग जगह होने वाली किसान गोष्ठियों में जाना शुरू किया, जहाँ उन्हें प्रगतिशील खेती करने के तरीकों के बारे में पता चला। उन्होंने सीखा कि कैसे किसानों को खेती के साथ-साथ प्रोसेसिंग से भी जुड़ना होगा तभी उनका भला हो पाएगा। इस काम में उन्हें भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत से काफी मदद मिली। वह बताते हैं कि उनके इलाके में किसानों के मार्गदर्शन के लिए टिकैत कोई न कोई वर्कशॉप या गोष्ठी कराते हैं।

Yogesh Siwach

उनकी मदद से किसानों को सीधा ग्राहकों और कंपनियों से जुड़ने में मदद मिलती है। योगेश को भी एक गुड़ बेचने वाली कंपनी से जुड़ने में मदद मिली। गन्ने की प्राकृतिक खेती तो उन्होंने बहुत पहले ही शुरू कर दी थी, इसके बाद उन्होंने खुद गन्ने की प्रोसेसिंग करने की ठानी।

“राकेश जी ने हमेशा यही कहा कि किसानों को आत्मनिर्भर होना चाहिए। उन्हें खुद अपने कृषि उत्पादों का दाम तय करना होगा। उनसे मिलने के बाद अहसास हुआ कि हम पहले की तरह अपने गन्ने से गुड़ जैसे उत्पाद बना सकते हैं,” उन्होंने कहा।

योगेश ने अपने खेतों पर ही प्रोसेसिंग यूनिट सेट-अप की। गन्ने से रस निकालने की मशीन, फिर इस रस को उबालने के लिए बड़े-बड़े कड़ाहों का सेट-अप किया। इसके बाद, गुड़ को सेट करने के लिए ट्रे आदि और शक्कर को छानने के लिए छलनी आदि का सेट-अप किया। वह बताते हैं कि सबसे पहले वह गन्ने का रस निकालते हैं और फिर इसे गर्म किया जाता है। अच्छे से गाढ़ा होने के बाद इसे सेट किया जाता है। वह गुड़ के बड़े-बड़े भेलों की जगह छोटे-छोटे बर्फी के आकार में बनाते हैं।

His Unit

हालांकि, वह अपने गुड़ की पैकेजिंग और मार्केटिंग खुद नहीं करते। इसके लिए, उन्होंने एक कंपनी से टाई-अप किया हुआ है। यह कंपनी उनके यहाँ से गुड़ मंगवाती है। कंपनी की एक टीम उनके यहाँ से गुड़ उठाकर इन्हें छोटे-छोटे पैकेट्स और डिब्बों में पैक करके बाज़ार में बेचती है।

“सबसे अच्छा यही है कि हमें हमारी मेहनत के पूरे पैसे मिलते हैं और साथ ही, हमारी यूनिट से गाँव के लिए रोज़गार उत्पन्न हो रहा है। अब इससे ज्यादा क्या चाहिए,” योगेश ने आगे बताया।

पहले साल में, उन्होंने लगभग 42 क्विंटल गुड़ और शक्कर बेचा। योगेश कहते हैं कि उन्होंने धीरे-धीरे अपना सेट-अप बढ़ाया। अपने गन्ने से शुरू करके उन्होंने दूसरे किसानों से भी गन्ना खरीदना शुरू कर दिया। आज वह एक साल में लगभग 50 हज़ार क्विंटल गन्ने की प्रोसेसिंग करते हैं और 5000 क्विंटल गुड़ और शक्कर का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही, वह 2000 लीटर सिरका भी बनाते हैं। गन्ने का सिरका बहुत-सी औषधियों में इस्तेमाल होता है।

“गुड़ और शक्कर को तो हम कंपनियों को बेचते हैं। लेकिन सिरका हम मुफ्त में बांटते हैं। यह बहुत-सी बिमारियों के देसी इलाज में काम आता है और गाँव में लोग इसका सेवन करते हैं तो हम इसलिए बनाकर रखते हैं ताकि ज़रूरत पड़ने पर किसी को भी दे सकें,” उन्होंने बताया।

योगेश एक दिन में लगभग 18 क्विंटल से ज़्यादा गुड़ तैयार करते हैं। उन्होंने 45 लोगों को रोजगार मुहैया करवाया है। ये सभी उनके मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में काम करते हैं।

Along with his workers

“हमारे यहाँ गुड़ में किसी भी तरह की मिलावट नहीं की जाती। हम प्राकृतिक तरीके से ही गुड़ बनाते हैं, कोई रसायन या फिर प्रिजर्वेटिव नहीं डालते। एकदम जैविक गुड़ हमारे यहाँ से तैयार होकर जाता है और आगे भी अच्छी पैकेजिंग के बाद ही ग्राहकों तक पहुँचता है। हमारा उद्देश्य लोगों को अच्छा खिलाना है,” उन्होंने कहा।

एक खास बात यह है कि उनके यहाँ फ्लेवर्ड गुड़ भी बनता है, जिसमें चॉकलेट, इलायची, सोंठ फ्लेवर शामिल है। इसके अलावा वह शक्कर, देसी खांड भी बेचते हैं।

अक्सर देखा जाता है कि बरसात के मौसम में स्टोर किए गए गुड़ और शक्कर में खराबी आ जाती है, ऐसे में योगेश किसानों को दो बेहद आसान तरकीब आजमाने की सलाह देते हैं-

  • सबसे पहले गुड़ और शक्कर को स्टोर करने से पहले 2-3 दिन धूप में सुखाना चाहिए और फिर एक दिन छांव में।
  • इसके बाद, इसे किसी पॉलिथीन में रखकर एक एयर टाइट जार में बंद रखना चाहिए। अगर इस तरह से गुड और शक्कर को रखा जाए तो यह एक साल था बिल्कुल खराब नहीं होता है।

प्रोसेसिंग यूनिट से होने वाली कमाई के बारे में योगेश कहते हैं कि अब तक उन्होंने जो भी कमाया, वह अपने व्यवसाय में लगाया। कई चुनौतियों का उन्होंने सामना किया। कई एक्सपेरिमेंट उन्होंने किए और तब जाकर सफलता मिली है। इसलिए अब तक उनकी प्रोसेसिंग यूनिट ‘नॉ लोस नॉ प्रॉफिट’ पर चल रही थी। लेकिन इस साल वह लगभग 10 लाख रुपये तक की बचत करने में सफल रहे हैं। वह कहते हैं कि किसान अगर मेहनत करे तो इस व्यवसाय में काफी अच्छा कमा सकता है।

“एकदम से आपको लाखों में कमाई हो जाए यह तो किसी भी क्षेत्र में संभव नहीं। आपको कम से कम दो-तीन साल तक अपने व्यवसाय को वक़्त देना होगा। लेकिन एक बार अच्छा काम चलने के बाद आपको फिर कहीं देखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आप कोई भी काम करें मेहनत तो करनी ही पड़ेगी तो क्यों न यह मेहनत खेती में ही करके इसे उन्नत और प्रगतिशील बनाया जाए,” उन्होंने अंत में कहा।

योगेश सिवाच से संपर्क करने के लिए उन्हें bittushivach500@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं!

यह भी पढ़ें: मात्र 1000 रुपये और एक मैंगो जैम के ऑर्डर से की शुरुआत, आज लाखों का है बिज़नेस


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X