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इतिहास के पन्नों से

History Pages | Motivational History | Inspirational History \ इतिहास के वे भुला दिए गए नायक, जिनकी कहानियां हर भारतवासी को ज़ुबानी याद होनी चाहिए!

दुर्गा भाभी की सहेली और भगत सिंह की क्रांतिकारी 'दीदी', सुशीला की अनसुनी कहानी!

By निशा डागर

अंग्रेजी सेना में नौकरी करने वाले सुशीला दीदी के पिता ने उन्हें रोकना चाहा था लेकिन उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि घर छूटे तो छूटे लेकिन देश को आज़ादी दिलाए बिना उनके कदम नहीं रुकेंगे!

अंग्रेजों को मात देने के लिए इस सेनानी ने काट दिया था अपना ही हाथ!

By निशा डागर

हाथ काटने के बाद भी 80 वर्षीय वीर कुंवर का संग्राम नहीं रुका। उन्हें आराम करने की हिदायत मिली लेकिन फिर भी उन्होंने अंग्रेजों से अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध किया!

आधुनिक भारत की नींव बने 9 अलग देशों के संविधान!

"उधार लेने में कोई शर्म की बात नहीं है। इसे चोरी नहीं कहा जा सकता। संविधान के मूल विचारों पर किसी का पेटेंट अधिकार नहीं है।"

भारत के इस वैज्ञानिक की खोज से संभव हुआ था हैजे का इलाज!

By निशा डागर

साल 1817 से अस्तित्व में आया कॉलेरा (हैजा) उस समय किसी महामारी से कम नहीं था। इस एक महामारी ने उस वक़्त लगभग 180 लाख लोगों की जान ले ली थी!

जानिए कैसे एक 'कुक' बना भारत की पहली फीचर फिल्म की नायिका!

By निशा डागर

शुरूआती फिल्मों में महिला किरदार निभाने के अलावा, एक और उपलब्धि है, जो अन्ना सालुंके के नाम जाती है और वह है हिंदी सिनेमा का पहला 'डबल रोल।'

जब सावित्रीबाई फुले व उनके बेटे ने प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए अपनी जान गंवाई!

भारत में स्त्रियों की शिक्षा के दरवाजे सावित्रीबाई ने रखी थी। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने और उनके बेटे ने 1896-97 में बंबई और पूना में बुबोनिक प्लेग महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी!

घूंघट छोड़कर आज़ादी की लड़ाई से जुड़ने के लिए प्रेरित करने वाली राधाबाई की कहानी!

By निशा डागर

रायपुर में स्वाधीनता की क्रांति को घर-घर पहुंचाने का काम डॉ. राधाबाई ने ही किया था। उनकी प्रेरणा से ही यहाँ की महिलाएं स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़ीं!

इस महिला गुप्तचर ने बीमार हालत में काटी कारावास की सजा, ताकि देश को मिले आज़ादी!

By निशा डागर

सांस की बीमारी के बावजूद लड़तीं रहीं ब्रिटिश शासन के खिलाफ, सज़ा होने पर भी पीछे नहीं हटाए कदम!

एक महिला सेनानी का विरोध-प्रदर्शन बन गया था ब्रिटिश सरकार का सिरदर्द!

By निशा डागर

अंग्रेजों द्वारा शराब की दुकान खोलने और अफीम उगाने के विरोध में बसंतलता और उनकी महिला साथियों ने मोर्चा खोला था। ये 'स्वदेशी आंदोलन' इस कदर बढ़ा कि अंग्रेजों को इसे रोकने के लिए सर्कुलर निकालना पड़ा!

मंगल पांडेय से 33 साल पहले इस सेनानी ने शुरू की थी अज़ादी की जंग!

By निशा डागर

बिंदी तिवारी की शहादत के बाद अंग्रेजी हुकूमत की न सिर्फ भारत में बल्कि इंग्लैंड में भी निंदा हुई, और तो और बहुत से भारतीय अफसरों और सैनिकों ने ब्रिटिश सेना छोड़ दी!