भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत में मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। उनके पिता उस समय भारतीय सेना में सेवारत थे। पढ़ाई में रूचि रखने वाले आम्बेडकर ने समाज में फैली कुरुतियाँ जैसे बाल-विवाह, छुआछूत आदि का विरोध किया।
मुंबई निवासी एक महिला ने ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे को बताया कि कैसे उसने अपने पति की नजरंदाजी के चलते घुटन भरे घर को छोड़ अपनी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू की है। वे अब एक छोटा सा स्टॉल चलाती हैं और एक छोटे से कमरे में किराये पर रहती हैं। पर वे अब खुश हैं।
पटना के चिरायतंद इलाके में रेडीमेड कपड़ों की दुकान के मालिक गुरमीत सिंह पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) के गरीब और अपने परिवार द्वारा छोड़े हुए बेसहारा मरीजों के लिए रोज रात को खाना लाते हैं। गुरमीत पिछले तीन दशकों से ऐसा कर रहे हैं।
गोल्डी सिंह की टैक्सी में सवारी करने पर आपको 'गुरु का लंगर' मिलता है। इस लंगर में आपको मिनरल पानी की बोतल, जूस, चिप्स, चाय, कॉफ़ी, वेफर्स आदि मुफ्त में मिलता है। साथ ही मोबाइल चार्जिंग पॉइंट भी। गोल्डी सिंह सिखों के दसवंद धर्म का पालन करते हैं यानी कमाई का दसवां हिस्सा लोगों की सेवा के लिए देना।
2-3 दिसंबर 1984 को भोपाल में हुए हादसों को हम 'भोपाल गैस त्रासदी' के नाम से जानते हैं। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड पेस्टिसाइड प्लांट में से लगभग 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस निकली और पूरे शहर में फ़ैल गयी। इस दौरान एक स्टेशन मास्टर ग़ुलाम दस्तगीर की सूझ-बुझ ने अनगिनत लोगों की जान बचायी थी।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद न केवल देश के पहले राष्ट्रपति थे बल्कि उन्हें जन-साधारण का राष्ट्रपति कहा जाता है। 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सीवान जिले के एक गाँव में जन्में राजेन्द्र बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे। स्वतंत्रता के बाद वे पहले राष्ट्रपति बने। उनकी बौद्धिक क्षमता का कोई सानी नहीं था।
हरियाणा के सिरसा में वकील भुवन भास्कर खेमका ने साल 2010 में 'श्री राम भोजन बचाओ संस्था' की शुरुआत की। जिसका उद्देश्य शादी-विवाह और अन्य किसी कार्यक्रम में बचे हुए खाने को बर्बाद न होने देकर जरुरतमंदों तक पहुंचना है। वे सभी लोगों को इस के प्रति जागरूक करना चाहते हैं।
दिल्ली में अपने हितों के लिए आंदोलन कर रहे किसानों के लिए दिल्ली के पांच बड़े गुरुद्वारों ने अपने दरवाजे खोल दिए हैं। जहाँ ये रह सकते हैं व लंगर में खा सकते है। बंगला साहिब गुरुद्वारा, शीशगंज गुरुद्वारा, रकाबगंज गुरुद्वारा, बापसाहिब और मजनू का टीला गुरुद्वारा इस पहल में आगे आये हैं।
अपने पिता की मौत के बाद घर की सभी जिम्मेदारियां वरुण पर आ गयीं। पर उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। बहुत से लोगों ने उनकी मदद की। आज वे आईएएस वरुण कुमार बरनवाल हैं। वे गुजरात कैडर के साल 2014 बैच के आईएएस अफ़सर हैं।
पश्चिम बंगाल के तीन युवक अजय नस्कर, जलाल अली मोल्लाह और शाबेद अली मोल्लाह ने एक 28 वर्षीय लड़की को एक ऑटो ड्राइवर के चुंगल से निकाल कर उसकी जान बचाई। इन तीनों ने सूझ-बुझ दिखाते हुए न सिर्फ इस लड़की को बचाया बल्कि आरोपी को पुलिस के हवाले भी किया।