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घर-घर माली का काम करने से लेकर होंडा सिविक का मालिक बनने का सफ़र : ये है पुणे के रामभाऊ की कहानी!

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घर-घर माली का काम करने से लेकर होंडा सिविक का मालिक बनने का सफ़र : ये है पुणे के रामभाऊ की कहानी!

हानियां सिर्फ किसी गरीब के अमीर बनने की नहीं होतीं, बल्कि कहानी बनती है उसकी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास से। कहानी बनती है उस सफर से, जो उसने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए तय किया है।

ऐसा ही सफर रहा है पुणे के रामभाऊ का।

"वो होंडा सिविक गाड़ी से आया था ,नीचे उतरकर सीधा अपने कर्मचारियों के साथ काम पर लग गया। मिट्टी खोदते हुए, पुराने पौधों को हटा, नए पौधे लगाता हुआ। वहां खड़े होकर सभी काम अच्छे से करवाता हुआ," ये लिखा है रामभाऊ के बारे में निनाद वेंगरूलेकर ने अपनी फेसबुक पोस्ट में।

रामभाऊ पुणे के एक साधारण से व्यक्ति थे। दिन भर किसी न किसी काम की तलाश में रहते थे। जो भी काम मिल गया, कर लिया ताकि दो पैसे कमा सकें। इसलिए जब निनाद ने उन्हें उनके बगीचे की देखभाल का काम दिया तो बिना किसी हिचकिचाहट के रामभाऊ ने तुरंत हाँ कर दी।

हालांकि, एक माली होना शायद ही किसी का सपना हो, पर मेहनती और उद्यमी रामभाऊ ने इस एक मौके से अपनी किस्मत ही पलट दी ।

अगर आज की बात करें तो उनके पास गाड़ी, अच्छा घर और पुणे में फैला हुआ उनका बागवानी का सफल कारोबार है -जो बहुत से लोगों के लिए वाकई एक सपने जैसा है।

इस मुकाम तक पहुंचने के बाद भी रामभाऊ ने अपनी जड़ों को नहीं भुलाया। वे आज भी बागवानी करते हैं और सिर्फ चार सालों में उन्होंने अपने इस रोजमर्रा के काम को ही अपना बिज़नेस बना लिया है।

पुणे-निवासी निनाद लिखते हैं कि कैसे एक दिन अचानक से वे रामभाऊ से मिले थे। तब रामभाऊ रोजमर्रा के छोटे-मोटे काम करते थे। निनाद ने उन्हें अपने घर के बगीचे का काम दिया और उनका काम देखकर अन्य कई लोगों ने भी रामभाऊ को काम पर रखा।

मात्र दो सालों में रामभाऊ लगभग 20 घरों के बगीचे संभाल रहे थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपना काम फैलाया और उन्हें एक बिल्डर के काम्प्लेक्स में बगीचा लगाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला। इसके बाद रामभाऊ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज वे शहर में आधा एकड़ जमीन के मालिक भी हैं। साथ ही उनके बिजनेस में 15 लोग उनके नीचे काम करते हैं।

निनाद अपनी पोस्ट में ग्रामीण बैंक के फाउंडर मुहम्मद यूनुस की कही हुई बात लिखते हैं, "गरीब लोग बोन्साई के पेड़ की तरह हैं। उनके बीज में कोई खराबी नहीं है। ये तो बस हमारा समाज है जो उन्हें पूरी तरह से पनपने का मौका नहीं देता है।"

लेकिन रामभाऊ उन चंद लोगों में से हैं जो अपना मौका खुद बनाते हैं। अगर आपके पास ढृढ़ इच्छाशक्ति और प्रतिभा है तो आप कुछ भी कर सकते हैं।

हम रामभाऊ की मेहनत व लगन की सराहना करते हैं और साथ ही धन्यवाद करते हैं निनाद वेंगरूलेकर का, जिनकी वजह से आज हम बहुत से लोगों को रामभाऊ की कहानी बता पा रहे हैं।

उम्मीद है बहुत से लोग इनसे प्रेरणा लेंगें।

मूल लेख: तन्वी पटेल


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