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बिहार: पशुपालन और खेती के अनोखे मॉडल को विकसित कर करोड़ों कमा रहा यह किसान

बिहार के बेगूसराय जिला के कोरैय गाँव के रहने वाले 30 वर्षीय ब्रजेश कुमार पढ़ाई पूरी करने के बाद, सीबीएसई में सीसीई कंट्रोलर के तौर पर काम कर रहे थे। लेकिन, कुछ अलग करने की चाहत में उन्होंने साल 2013 में अपनी नौकरी छोड़ दी।

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देश में खेती-किसानी का आलम यह है कि आज के दौर में कोई भी पिता अपने बच्चे को किसान नहीं बनाना चाहता और न ही बच्चों का कोई ध्येय होता है कि वह आगे चलकर किसान बनेगा।

लेकिन, बिहार के बेगूसराय जिला के कोरैय गाँव के रहने वाले 30 वर्षीय ब्रजेश कुमार ने इन धारणाओं को तोड़ते हुए, जो मिसाल कायम किया है, उसकी प्रशंसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं।

ब्रजेश, साल 2010 में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेली कम्यूनिकेशन में डिप्लोमा करने के बाद सीबीएसई में नौकरी कर रहे थे, लेकिन कुछ अलग करने की चाहत में उन्होंने नौकरी छोड़ दी।

द बेटर इंडिया से बातचीत में ब्रजेश कहते हैं, “पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैं सीबीएसई के साथ गोपालगंज में सीसीई कंट्रोलर के तौर पर काम कर रहा था। लेकिन, मेरा इरादा खुद का कुछ शुरू करने का था। इसलिए मैंने साल 2013 में अपनी नौकरी छोड़ दी।”

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अपने गौशाला में ब्रजेश

इसके बाद, उनके घर वाले काफी नाराज भी हुए थे, लेकिन उन्होंने तय कर लिया था कि वह स्वरोजगार ही करेंगे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि वह किस क्षेत्र में अपना हाथ आजमाएंगे।

इसे लेकर वह कहते हैं, “सीबीएसई में काम करने के दौरान मैंने देखा कि बच्चे सिर्फ परीक्षा को पास करने के लिए कृषि कार्यों के बारे में पढ़ रहे हैं, उन्हें इससे कोई लगाव नहीं है और न ही उनके अभिभावकों का अपने बच्चों को किसान बनाने का कोई इरादा है। इससे मुझे विचार आया कि क्यों न खेती और पशुपालन का एक ऐसा मॉडल विकसित किया जाए, जिससे मानव जीवन में इसकी उपयोगिता साबित हो।”

इसके बाद, ब्रजेश ने बिहार सरकार के समग्र विकास योजना का लाभ उठाकर करीब 15 लाख रुपए का लोन लिया और बेगूसराय में 4 एकड़ जमीन लीज पर लेने के साथ ही, करीब दो दर्जन फ्रीजियन साहीवाल और जर्सी नस्ल की गायों को भी खरीदा। 

धीरे-धीरे ब्रजेश का दायरा बढ़ने लगा और उन्होंने पशुओं के लिए पौष्टिक आहार और वर्मी कंपोस्ट बनाने के काम भी शुरू कर दिया।

ब्रजेश बताते हैं, “साल 2015 में, मैं राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, आणंद (गुजरात) से जुड़ा। इसके तहत मैंने कई किसानों को प्रशिक्षण दिया। फिर, जरूरतों को समझते हुए मैंने साल 2017 में, पशुपालन के साथ-साथ किसानों के खेती पैदावार को बढ़ाने के लिए वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम भी शुरू कर दिया। क्योंकि, मैंने समझा कि अपने कार्यों को बढ़ावा देने के लिए नए नजरिए को अपनाना अनिवार्य है।”

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वर्मी कम्पोस्ट बनाता किसान

किस विचार के साथ करते हैं पशुपालन

ब्रजेश से पास फिलहाल जर्सी, साहीवाल, बछौड़, गिर, आदि जैसी 26 उन्नत किस्म की गायें हैं, जिससे हर दिन 200 लीटर दूध का उत्पादन होता है। वह अपने दूध को बरौनी डेयरी को बेचते हैं।

ब्रजेश बताते हैं, “बेगूसराय के मौसम को देखते हुए, विदेशी किस्म के गायों को पालने में काफी जोखिम है और देसी किस्म के गायों से ज्यादा दूध होता नहीं है। इसी को देखते हुए मैंने मिश्रित किस्म के गायों को पालना बेहतर समझा।”

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अधिकारियों से मिलते ब्रजेश

ब्रजेश बताते हैं, “गायों को पालने के लिए हमने आधुनिक तकनीकों का भरपूर इस्तेमाल किया। जैसे कि हम गायों के लिए शार्टेट शूट सीमेन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे कि हमेशा बछिया ही होती है। वहीं, हमने अपने गौशाला में अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर सरोगेसी गाय भी पाल रहे हैं, जिससे कि हर दिन कम से कम 50 लीटर दूध होगा।”

बता दें ब्रजेश के सरोगेसी गाय को पुणे के जेके ट्रस्ट के वैज्ञानिकों द्वारा लैब में तैयार किया गया है। जिसमें कि 30 हजार रुपए खर्च हुए।

गौशाला से लेकर गोबर गैस प्लांट तक

आज ब्रजेश के 4 एकड़ जमीन पर गौशाला, गोबर गैस प्लांट, वर्मी कम्पोस्ट बनाने की मशीन से लेकर मिल्किंग मशीन तक है।

वह बताते हैं, “इस जमीन पर मौसम के अनुसार  मक्का, जौ, बाजार जैसी कई चीजों की खेती की जाती है। जिससे पशुओं के लिए हरा चारा बनाया जाता है। हमने अपने गौशाला को दो तरीके से बनाया है - मिल्किंग शेड और मुक्त गौशाला। जहाँ पशु अपनी पूरी स्वतंत्रता के साथ रह सकते हैं।”

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चारा बनाता किसान

इससे जो गोबर निकलता है, ब्रजेश ने उससे वर्मी कम्पोस्ट और गोबर गैस बनाने के लिए यूनिट को भी स्थापित किया है। वह अपने उत्पादों को राज्य के विभिन्न हिस्से के किसानों को भी बेचते हैं।

शुरू की खुद की ट्रेनिंग सेंटर

ब्रजेश ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने सेंटर ‘आदर्श किसान संस्थान’ को भी शुरू किया है। जिसके तहत वह बरौनी दुग्ध संघ की मदद से एक महीने के 10 दिनों में करीब 400 किसानों को उन्नत पशुपालन की ट्रनिंग देते हैं। जिससे उन्हें लागत को कम करके अधिक आय अर्जित करने में मदद मिलती है।

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किसानों को ट्रेनिंग देते ब्रजेश

इसे लेकर बेगूसराय के मटिहानी गाँव के रहने वाले साकेत बताते हैं, “मैं पहले परंपरागत तरीके से पशुपालन करता था। लेकिन, इससे ज्यादा लाभ नहीं होती थी। इसी चिन्ता के साथ, मैं 3 साल पहले ब्रजेश जी से मिला। इसके बाद उन्होंने मुझे पशुपालन की कई बारीकियों को समझाया और उनकी मदद से करनाल और नागपुर में भी प्रशिक्षण प्राप्त करने का मौका मिला। फिलहाल, मैं आधुनिक तरीके से 15 गायों का पालन कर रहा हूँ।”

उन्नत खेती में भी नहीं हैं पीछे

ब्रजेश ने 4 एकड़ के एक अन्य जमीन पर उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करते हुए शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी, गन्ना और टमाटर की भी खेती शुरू की।

वह बताते हैं, “हमारे 2 एकड़ जमीन पर शिमला मिर्च, 1 एकड़ पर टमाटर और 1 एकड़ पर स्ट्रॉबेरी और गन्ना लगा हुआ है। इसके लिए मैंने पूरी जमीन पर पहले प्लास्टिक बिछाया और बेडिंग सिस्टम के तहत उसमें छेद कर पौधा लगाया। सिंचाई के लिए हमने ड्रीप इरिगेशन की व्यवस्था की। हमें उम्मीद है कि प्रति एकड़ 3-4 लाख रुपए की बचत होगी।”

इस तरह, ब्रजेश का वार्षिक टर्नओवर करीब 5 करोड़ रुपए है और उन्होंने अपने कार्यों को संभालने के लिए 20 लोगों को नियमित रूप से रोजगार भी दिया है।

प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं सराहना

खेती कार्यों में उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए प्रधानमंत्री ने ब्रजेश से सितंबर 2020 में, सीधा संवाद कर उनके काम की सराहना कर चुके हैं। 

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प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं ब्रजेश के कार्यों की सराहना

इसके अलावा, उन्हें साल 2016 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा द्वारा अभिनव किसान पुरस्कार, साल 2014 में पशु एवं मत्स्य विभाग बिहार सरकार द्वारा प्रथम प्रगतिशील किसान पुरस्कार के साथ-साथ, 2015 में बिहार सरकार द्वारा पशुपालन का ब्रांड अम्बेसडर भी घोषित किया गया।

किसानों को क्या देते हैं सलाह

ब्रजेश कहते हैं, “आज किसान खुद को किसान कहने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। उन्हें इससे आगे बढ़ना होगा। जब तक किसान अपने काम को लेकर गर्व महसूस नहीं करेंगे, दुनिया की कोई शक्ति उन्हें लाभ की स्थिति में नहीं पहुँचा सकती है। इसलिए किसानों को एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना होगा।”

यदि आप ब्रजेश से संपर्क करना चाहते हैं तो आप उन्हें 9570497296 पर फोन कर सकते हैं।

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