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दो लोग मिले और ‘कारवां’ बन गया! कम सुविधा और ज़्यादा रोमांच, पहियों पर है इस कपल का घर

Caravan traveler Deepak & Richa
घुमने का शौक था, तो VAN में ही बसा लिया घर! | Van Life | Caravan | The Better India

दीपक और रुचि पांडे पहली बार देहरादून में मिले थे। तब दोनों कॉलेज में पढ़ रहे थे। दोनों को ही घूमने का काफी शौक़ था और इसी शौक़ की वजह से आगे चलकर दोनों के रास्ते भी एक हो गए। जब वे कॉलेज में थे, तो अक्सर क्लास बंक कर शहर के अलग-अलग हिस्सों को देखने निकल जाते थे। अपने इसी जुनून और एक आरामदायाक यात्रा के लिए उन्होंने खुद एक ‘कारवां’ डिज़ाइन किया।

आज बीस साल बाद, शादी और बच्चों के साथ उनकी ज़िंदगी भले ही थोड़ी बदल गई है, लेकिन एक साथ देश घूमने की उनकी उत्सुकता में कमी बिल्कुल भी नहीं आई है। दीपक और रुचि की यात्रा, टाटा इंडिका से शुरू हुई थी और धीरे-धीरे सफारी तक बढ़ी। लेकिन फिर उनका परिवार बढ़ता गया। परिवार में दो बेटे और तीन कुत्ते जुड़ने के बाद, उन्हें एक बड़ी गाड़ी की ज़रूरत थी। 

जब वे इस बात पर विचार कर रहे थे कि आगे कौन सी गाड़ी खरीदनी है, तो पूरी दुनिया कोरोनो महामारी की चपेट में आ गई और उनकी यात्राओं पर भी ब्रेक लग गया।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए दीपक बताते हैं कि वे 20 सालों से ज्यादा समय से यात्राएं करते आ रहे हैं। वह कहते हैं, “जब लॉकडाउन की घोषणा की गई, तो पहले तो हमारी यात्राओं पर रोक लगा। बाद में जब सब कुछ खुलने लगा, तो हमने बाहर का खाना खाने या होटलों में रुकने से परहेज़ किया। तभी हमें कारवां के बारे में पता चला। हालांकि, कारवां का कॉन्सेप्ट विदेशों में करीब 50 वर्षों से है, लेकिन हमारे यहां इसकी अभी शुरुआत ही हुई है।”

क्या अपना ‘कारवां’ सड़क तक लाने की राह है मुश्किल?

Deepak and Ruchi

दीपक के पास एक ट्रांस्फरेबल जॉब है, यानी हर दो साल में उन्हे एक शहर छोड़कर, दूसरी जगह जाना पड़ता है। वह अपनी छुट्टियों का इस्तेमाल सोच-समझकर करते हैं और हर तीन महीने में एक यात्रा पर निकलते हैं। अब तक, इन दोनों ने अपनी वैन में चार यात्राएं की हैं – लेह-लद्दाख, राजस्थान, उत्तराखंड और गुजरात। दीपक और रुचि ने हमें अपने पहियों वाले घर को अंदर से अच्छी तरह दिखाया।

अपना कारवां बनाने के बारे में सोचना काफी दिलचस्प लगता है, लेकिन इसे बनाने के रास्ते में कई चुनौतियां आती हैं। दीपक बताते हैं कि सबसे पहले आरटीओ से व्हाइट-बोर्ड वाहन के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। दीपक के लिए भी पहला कदम यही था। अनुमति के लिए उन्होंने देश भर के अलग-अलग आरटीओ में करीब चार महीने बिताए।

वह बताते हैं, “मैं उत्तराखंड से हूं, लेकिन वहां मुझे अनुमति नहीं मिली। समस्या निजी उपयोग के लिए एक बड़े वाहन का रजिस्ट्रेशन कराने में है। अधिकारियों को यह विश्वास दिलाना कठिन था कि मैं इसका इस्तेमाल अपने परिवार के लिए करने जा रहा हूं, न कि किसी कमर्शिअल काम के लिए। आखिरकार, राजस्थान, उत्तराखंड और एनसीआर के चक्कर लगाने के बाद, मुझे अहमदाबाद में सफलता मिली।”

खुद डिज़ाइन किया अपने सपनों का ‘कारवां’

दीपक का अगला कदम एक गाड़ी खरीदना था, जिसे एक बड़े परिवार के लिए कैंपरवैन में बदला जा सके। अप्रैल 2021 में, दीपक और रुचि ने एक Force Traveler 3350 खरीदी। इसके बाद की चुनौती, गाड़ी के पुरजे अलग करना और गाड़ी में एक आरामदायक यात्रा के लिए, ज़रूरी चीज़ों को जोड़ना था।

दीपक बताते हैं कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि एक गाड़ी को टूरिस्ट वैन में बदलने के लिए ज़रूरी सारी चीज़ें भारत में नहीं मिलतीं। वह बताते हैं, “हमें अमेरिका से कई प्रोडक्ट इंपोर्ट करने पड़े, जिससे आपकी लागत चार गुना बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, हमने एसी के लिए 2 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान किया, क्योंकि हमें इसे इंपोर्ट करना था। हमें एक टॉयलेट भी इंपोर्ट करना पड़ा, जिसमें कम पानी का उपयोग होता है।” 

उन्होंने ऐसा पहले कभी नहीं किया था, इसलिए उन्हें दूसरे देशों के लोगों के वीडियोज़ पर निर्भर रहना पड़ा। वह कहते हैं, “हमने वाहन को खुद डिज़ाइन किया और कुछ एक्सपर्ट लोगों को काम पर रखा। चूंकि यह उनके लिए भी नया था, इसलिए हमें उन्हें यह समझाने के लिए वीडियो दिखाना पड़ा कि हम फिटिंग कैसे करना चाहते हैं। जल्द ही, उन्होंने भी दिलचस्पी ली और हमारे सपनों का वाहन बनाने में हमारी मदद की।”

फोर्स ट्रैवलर एक छोटी वैन होती है, जिसमें लगभग 100 वर्ग फुट जगह होती है। इस कैंपरवैन को डिज़ाइन करते समय, गाड़ी के अंदर की जगह का सोच-समझकर इस्तेमाल करना बेहद ज़रूरी था। 

कैंपरवैन में क्या-क्या हैं सुविधाएं और कितना आया खर्च?

Deepak and Ruchi Pandey in their caravan

तीन महीने तक बिना रुके काम करने के बाद 26 जुलाई 2021 को उनका ‘कारवां (Caravan)’ बनकर तैयार हो गया। इसकी कीमत करीब 18 लाख रुपये थी और ज़रूरत के अनुसार इसे बदलने की लागत 12 लाख रुपये। दीपक का कहना है कि अगर कोई सेकेंड हैंड वैन खरीदता है, तो उसकी कुल कीमत 20-25 लाख रुपये होगी।

रुचि और दीपक के इस कैंपरवैन में आरामदायक बैठने की जगह, एक किचन, एक बाथरूम, चार लोगों के बैठने के लिए दो बड़े बिस्तर, एक एसी और स्टोरेज क्षमता है। दीपक ने बिजली के लिए ऊपर सोलर पैनल और साथ ही 150 लीटर पानी की टंकी भी लगाई है।

दीपक बताते हैं, “सोलर पैनलों के ज़रिए हमें पर्याप्त बिजली मिल जाती है। मेरे पास बरसात के मौसम के लिए बिजली बैकअप के लिए जनरेटर भी है। सोच-समझकर इस्तेमाल करने के लिए 4-5 दिनों के लिए पर्याप्त पानी भी है। हमारे पास इस वैन में वे सारी चीज़ें हैं, जो हमारे पास घर में हैं, जैसे- माइक्रोवेव, गैस आदि।”

न सुरक्षा की चिंता, न आराम से समझौता

दीपक की पहली यात्रा अपने बच्चों और माता-पिता के साथ लेह लद्दाख की थी। उन्होंने बताया, “हमें बहुत ही मज़ा आया। मेरे माता-पिता को भी काफी मज़ा आया, क्योंकि आप जहां चाहें वहां वैन रोक सकते हैं, जब मन करे लेट सकते हैं और अपने हिसाब से आगे बढ़ते हैं। आपकी योजनाएं लचीली होती हैं। आप वैन को रोक सकते हैं और भोजन करते समय खूबसूरत नज़ारों का आनंद ले सकते हैं। हमें आज भी पैंगोंग झील की एक शाम याद है, जब हम वहां अकेले थे। वह सचमूच बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देने वाला एहसास था।”

रुचि कहती हैं कि वैन में खाना पकाने से खर्च बचता है। उनका कहना है, “कार में लंबी दूरी तय करना आरामदायक नहीं होता। आपको हाथ-पैर सीधा करने, खाने और सोने के लिए बाहर निकलना पड़ता है। लेकिन इस वैन में हमारे बच्चे और माता-पिता भी इसका लुत्फ उठा रहे हैं। इसे ड्राइव करना भी काफी मज़ेदार और आरामदायक है। हम दोनों खाना बनाते हैं, सफाई करते हैं और ये काफी सुविधाजनक है।”

पहियों पर घर लेकर चलने वाले इस दंपति का कहना है कि वे एक दिन में औसतन 200 किमी की यात्रा करते हैं और शाम तक पार्किंग के लिए जगह ढूंढनी शुरू कर देते हैं। दीपक बताते हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों में, पार्किंग की जगह ढूंढना, शहरों के मुकाबले आसान है। शहरों में हम 24 घंटे पार्किंग स्पेस या होटल पार्किंग का उपयोग करते हैं।”

रुचि कहती हैं, “लोग अलग-अलग जगहों पर रात में पार्किंग की चिंता करते हैं। अपनी अब तक की यात्राओं में हमें केवल दोस्ताना रिश्ते ही मिले हैं। लोगों ने हर जगह हमारी मदद की है। इसके अलावा, चूंकि हमारी वैन आत्मनिर्भर है, इसलिए हमें बाहर निकलने और कैंप लगाने की ज़रूरत नहीं है। हमारे पास वैन में कैमरे भी हैं।”

अब तक की सबसे बेहतरीन यात्रा कौन सी रही?

कारवां में चार यात्राओं में से उनकी पसंदीदा यात्रा गुजरात की थी। 25 दिनों की इस यात्रा पर केवल दीपक और रुचि ही गए थे, जहां उन्होंने 5,000 किमी से अधिक की दूरी तय की और सही मायनों में वैन जीवन का आनंद लिया।

गुजरात की यात्रा के बारे में विस्तार से बात करते हुए रुचि कहती हैं, “हम रण ऑफ कच्छ गए थे, जो कि बहुत ही सुंदर था। इस यात्रा में हमें वास्तव में वैन लाइफ का अनुभव हुआ, क्योंकि हम होटलों में नहीं रुके थे। हमने रोरो फेरी का भी इस्तेमाल किया। हम अपनी हर यात्रा में कुछ नया सीखते हैं और गुजरात ने निश्चित रूप से निराश नहीं किया।”

दीपक कहते हैं कि उन्होंने गुजरात यात्रा पर केवल 60,000- 70,000 रुपये खर्च किए, लेकिन अगर होटल में ठहरते, ट्रेनों आदि का किराया लगता तो यह काफी ज्यादा महंगा हो सकता था। 

दीपक और रुचि का मानना है कि उनकी लगातार यात्रा का सकारात्मक प्रभाव उनके बच्चों पर भी पड़ा है। इससे उनके बेटों ने स्वतंत्र रहना और अपना ख्याल रखना सीखा है। दीपक कहते हैं, “मेरे बड़े बेटे ने 12वीं पास कर ली है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। छोटा वाला 9वीं कक्षा में है। दोनों हमारे साथ सभी यात्राओं पर नहीं जाते हैं। हमारे पास घर पर हेल्पर है और बच्चे अपनी पढ़ाई का ध्यान खुद रखते हैं।”

“कारवां जीवन बहुत कुछ सिखाता है”

दीपक कहते हैं, “वैन लाइफ को अपनाकर आप कम चीज़ों और कम सुविधाओं में आराम से जीना सीखते हैं। आप सही मायनों में मिनिमल और किफायती होने के फायदे समझते हैं। आपको लग्ज़री होटल जैसी सुविधाएं नहीं मिलेंगी। हम जगह बचाने के लिए बहुत कम कपड़े, और पेंट्री आइटम पैक करते हैं। वैन में हमारे पास सिर्फ चार प्लेट, चम्मच और कप हैं। यह एक कमाल का अनुभव है।”

आने वाले समय में इस कपल की योजना अपने कारवां से 40 देशों का दौरा करने की है। दीपक कहते हैं, “सबसे पहले, हम भारत देखना चाहते हैं। एक बार जब हम भारत अच्छी तरह से देख लेंगे, तो हम दक्षिण पूर्व एशिया, रूस, यूरोप को कवर करना चाहते हैं। हमारे कुछ दोस्त हैं, जो इस यात्रा में हमारे साथ शामिल होना चाहते हैं। हेमं उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में हम ऐसा कर पाएंगे।”

दीपक और रुचि ने अपने यूट्यूब चैनल पर अपनी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया है।

मूल लेखः सौम्या मणि

संपादनः अर्चना दुबे

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