भले ही झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले में अभी तक कोविड -19 का एक भी पॉजीटिव केस नहीं पाया गया है लेकिन जिले के उप विकास आयुक्त (डीडीसी) आदित्य रंजन यहां कोरोना के जोखिम को कम करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
आदित्य ने द बेटर इंडिया को बताया, “इस इलाके में नक्सलवाद और गरीबी मूल समस्या है इसलिए हमें इस महामारी से काफी सावधानी से निपटना होगा और इलाज से बेहतर बचाव जैसे आदर्श वाक्य का बेहतर पालन करना चाहिए। हमने ऐसे उपकरण तैयार किए हैं जो संदिग्ध मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों दोनों को संक्रमण से बचाने में मदद करेगा।”
द बेटर इंडिया के “बेटर टूगेदर” पहल ने देश भर के सिविल सेवा अधिकारियों को एकजुट किया है क्योंकि वे प्रवासी मजदूरों, दिहाड़ी मजदूरों, फ्रंटलाइन वर्कर्स और उन सभी की मदद कर रहे हैं जिन्हें इन कठिन समय में हमारी मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। आप हमसे जुड़ सकते हैं और कोविड-19 के खिलाफ इस लड़ाई में उनका सहयोग कर सकते हैं।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के इस अधिकारी ने अपनी इंजीनियरिंग स्किल का प्रयोग करते हुए कम लागत वाले डिसइंफेक्टेंट चैंबर से लेकर प्रोटेक्टिव शील्ड जैसे पांच उपकरण तैयार किए हैं। आइये इनके बारे में जानें:
1. डिसइंफेक्टेंट चैंबर
आदित्य ने एक पोर्टेबल चैंबर डिजाइन किया है जिसमें एक मिस्ट स्प्रेयर लगा है जो पूरे शरीर पर स्किन-फ्रेंडली सैनिटाइजर को स्प्रे करेगा। स्प्रेयर एक व्यक्ति को डिसइंफेक्ट करने के लिए केवल 30 सेकंड लेता है।
इस चैंबर को चक्रधरपु में दक्षिण पूर्वी रेलवे अस्पताल में रखा गया है।
आदित्य बताते हैं कि “इस चैंबर की खास बात यह है कि इसमें हाइपोक्लोराइट, सल्फर या आयनीकृत पानी का उपयोग नहीं किया गया है जो सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। सैनिटाइजर से आंखों में जलन हो सकती है इसलिए चैम्बर से गुजरने वाले हर व्यक्ति को अपनी आंखों को ढंकना पड़ता है।”
इस चैंबर की इंस्टॉलेशन लागत 25,000 रुपये और रनिंग कॉस्ट 1,400 रुपये प्रति घंटा है क्योंकि यह प्रति घंटे सात लीटर सैनिटाइजर का उपयोग करता है। यह चैंबर पर्सन प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट की ड्रेसिंग प्रक्रिया को भी सुरक्षित बनाता है।
उन्होंने कहा कि “पीपीई पहनने वाले व्यक्ति को यह ध्यान रखना होता है कि वह संक्रमण से बचने के लिए किट की बाहरी सतह को न छुए। इस चैंबर से गुजरने के ठीक बाद डिसइंफेक्टेंट हेल्थ वर्कर किट पहन सकता है।”
2. को-बोट

जब आदित्य ने कोरोना पॉजीटिव पाये गए डॉक्टरों के बारे में पढ़ा तब उन्होंने को-बोट (कोलैबोरेटिव रोबोट) बनाया जो मरीजों को दवा और भोजन पहुंचाएगा और इस तरह मानवीय हस्तक्षेप को कम किया जा सकता है।
को-बोट को चक्रधरपुर रेलवे हॉस्पिटल के आइसोलेशन फैसिटिली में रखा गया है।
इस मशीन की विशेषताओं के बारे में बताते हुए आदित्य कहते हैं, “रिमोट कंट्रोल से चलने वाला यह रोबोट 30 किलो वजन उठा सकता है और 300 फीट की दूरी तक चल सकता है। इसमें एक कैमरा और स्पीकर लगा हुआ है और को-बोट को धोया भी जा सकता है।”
Co-Bot
Deliver food water medicine etc to covid positive patients reduce human touch n threat of infection n save us crores by reducing use of PPE kits.
WiFi camera
2 way speaker
Completely washable (sanitizable)
200-300 feet range
30 kg carrying capacity
25000 rupees it costs pic.twitter.com/cAHyZBe6EY— aditya ranjan (@aditya_twitts) April 14, 2020
3. फोन बूथ कलेक्शन सेंटर
आदित्य ने दो फोन बूथ (स्टैटिक और पोर्टेबल) बनाए हैं जो कोरोनोवायरस टेस्ट के लिए संदिग्ध मरीज का सैंपल इकट्ठा करेगा जिससे वर्कफोर्स को कम किया जा सकता है।
एयर-टाइट बूथ को चलाने के लिए केवल दो स्वास्थ्यकर्मियों की आवश्यकता होती है-एक बूथ के अंदर से नाक और गले के स्वैब को इकट्ठा करता है और दूसरा हर बार सैंपल इकट्ठा करने के बाद बूथ को सैनिटाइज करता है।
“This model costs around Rs 20,000 and is made indigenously using local products. It should save the government crores in purchasing PPEs which costs between Rs 600-Rs 3,000 at the moment,” says IAS Officer Aditya Ranjan. @aditya_twitts @IASassociation pic.twitter.com/TASAFGETRf
— The Better India (@thebetterindia) April 7, 2020
आदित्य बताते हैं कि “आमतौर पर स्वैब इकट्ठा करने के लिए तीन लोगों की जरुरत होती है और हर बार पीपीई किट को बदलना पड़ता है। चैंबर के अंदर केवल एक व्यक्ति होता है जो संदिग्ध मरीज को माइक्रोफोन से निर्देश देता है। व्यक्ति द्वारा बॉक्स में स्वैब जमा करने के बाद, हेल्थ वर्कर उस व्यक्ति के संपर्क में आए बिना हैंगिंग ग्लव्स के माध्यम से इसे बाहर निकाल लेते हैं। कीओस्क में सैंपल इकट्ठा करने में तीन मिनट का समय लगता है और हर दिन हम 100 सैंपल इकट्ठा कर सकते हैं। इसके लिए पीपीई किट बदलने की जरुरत नहीं है और हजारों रुपये की बचत भी होती है।”
स्टैटिक स्ट्रक्चर को चाईबासा सदर अस्पताल में रखा गया है सैंपल एकत्र करने के लिए इसे किसी वाहन पर रखकर कोविड-19 हॉटस्पॉट वाले क्षेत्रों में ले जाया जा सकता है।
4. फेस शील्ड
देश भर में 4 मई तक लॉकडाउन बढ़ाए जाने से पहले पुलिस फोर्स और रेलवे सहित विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों ने दूसरों के संपर्क में आने के बारे में चिंता जताई। उनकी मदद करने के लिए आदित्य ने एक सस्ते फेस शील्ड को डिजाइन किया जो शरीर के फ्लुइड को पहनने वाले तक पहुंचने से रोकता है और कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए इस मास्क को पहना जाना चाहिए।
110 रुपये की कीमत वाली यह शील्ड पारदर्शी पीवीसी शीट से बनाई गई है और इसमें फोरहेड स्ट्रैप और सिलिकॉन स्ट्रैप लगे हैं।
महिला स्वयं सहायता समूहों और झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन सोसाइटी (JSLPS) के सदस्यों की मदद से जिले में अब तक कुल 3,000 शील्ड बनाए जा चुके हैं और इसे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, पुलिस और रेलवे पुलिस बल के बीच इसे बांटा गया है।
आदित्य ने बताया कि “हम नहीं चाहते कि कोई भी फ्रंटलाइन वर्कर वायरस से संक्रमित हो। यह शील्ड जिसे पांच मिनट के भीतर इकट्ठा किया जा सकता है आंखों, नाक और मुंह को फ्लुइड से बचाता है।”
5. आई-बेड
आई-बेड (आइसोलेशन बेड) एक हॉस्पिटल बेड है जिसे वॉशेबल प्लास्टिक कवर से लैमिनेट किया गया है जो एक मरीज को दूसरे से आइसोलेट करता है और संक्रमण फैलने के जोखिम को कम करता है।
“इस बेड की कीमत 15,000 रुपये है और हमने 50 ऐसे बेडों का निर्माण किया है जिन्हें दो अस्पतालों में रखा गया है। यह कमरे को वायरस से बचाने में मदद करेगा और मरीजों को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद प्लास्टिक कवर को बदल दिया जाएगा। आदित्य कहते हैं कि यह बेड डॉक्टरों और नर्सों को जानलेवा संक्रमण से बचाने में मदद करेगा।”
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अगर आदित्य की सभी क्षेत्रों से जुड़ी तैयारी और फ्रंटलाइन वर्कर्स की सेहत और सुरक्षा को प्राथमिकता देने की प्रभावी रणनीति देश के अन्य हिस्सों में अपनायी जाती है तो हम कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की दर को काफी कम कर सकते हैं।
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