अगर हम स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह द्वारा जेल में लिखी गयी उनकी डायरी पढ़ें, तो हमें अहसास होगा कि भगत सिंह न केवल एक पाठक, विचारक बल्कि एक बेहतरीन कवी और लेखक भी थे।
मात्र 19 साल की उम्र में देश सेवा के लिए घर छोड़कर निकलते हुए, भगत सिंह ने एक चिट्ठी में लिखा था –
“मेरा जीवन एक महान उद्देश्य के लिए समर्पित है और वह है देश की स्वतंत्रता। इसलिए कोई भी आराम या सांसारिक सुख मुझे नहीं लुभाता।”
जी हाँ, अपने देश के लिए खुद को कुर्बान कर देने की कसम खा चुके भगत सिंह ने बहुत ही कम उम्र में शादी से बचने के लिए घर छोड़ दिया था।
28 सितम्बर 1907 को पंजाब के लायलपुर गाँव (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए भगत सिंह को अन्य स्वतंत्रता सेनानियों जैसे राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर साजिश के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सौंडर्स की हत्या कर दी थी। क्योंकि जॉन के कहने पर ही वरिष्ठ क्रन्तिकारी राय पर लाठी चार्ज किये गया था। इसके बाद भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारी, बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधान सभा के अंदर दो बम फेंके। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इन्हीं सब घटनाओं को लाहौर साजिश का नाम दिया जाता है।

जेल के दौरान अपने अंतिम दो वर्षों में भगत सिंह और उनके साथियों ने भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में सबसे ज्यादा प्रसिद्द अदालती केस लड़ा। उन्होंने न केवल अपने क्रन्तिकारी संदेशों को फैलाने के लिए अदालत का प्रयोग किया, बल्कि ब्रिटिश जेलों में क्रांतिकारियों के साथ होने वाले अमानवीय सलूक के खिलाफ भी आवाज उठायी।
हालांकि मात्र 24 वर्ष की आयु में उन्हें फांसी में हो गयी थी लेकिन फिर भी अपने अविश्वसनीय संकल्प और विश्वास की वजह से वे आज आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का प्रतीक हैं।
उनके बारे में ऐसी और ऐसी कई बातें हम सभी जानते ही हैं। पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि भगत सिंह ने जेल में रहते हुए चार किताबे लिखी थी। हालांकि, उनके द्वारा लिखी गयी सभी किताबें नष्ट हो गयी थी, पर जो उनकी याद के तौर पर बच गयी वह है उनकी डायरी। वह डायरी, जिसमें उन्होंने कविताएं लिखी, नोट्स बनाये और साथ ही कुछ बेहतरीन लेखकों की कुछ अच्छी पंक्तियाँ भी लिखीं।
यह डायरी सितम्बर 1929 से मार्च 1931 के बीच लिखी गयी और उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार को सौंप दी गयी थी।

कुछ समय पहले आई किताब, ‘द जेल नोटबुक एंड अदर राइटिंग्स’ में भगत सिंह द्वारा लिखी गयी कविताओं और बातों के बारे में लिखा गया है। एक बंदूकधारी क्रन्तिकारी की उनकी छवि के विपरीत उनकी डायरी उनके भीतर के कवी और लेखक को उजागर करती है।
भगत सिंह को हमेशा से पढ़ने का शौक था। उन्होंने अपने कारावास की अवधि में भी किताब पढ़ने का सिलसिला जारी रखा। वे अक्सर किताबें पढ़ते और डायरी में नोट्स बनाते। इसके अलावा वे कविता और शायरी लिखते थे। उनके पसंदीदा विषयों में राजनितिक और गैर-राजनितिक, दोनों ही मुद्दे शामिल थे। उनके पसंदीदा लेखकों में बर्नार्ड शॉ, बर्ट्रेंड रसेल, चार्ल्स डिकेंस, रूसो, मार्क्स, रवींद्रनाथ टैगोर, लाला लाजपत राय, विलियम वर्ड्सवर्थ, उमर खय्याम, मिर्जा गालिब और रामानंद चटर्जी शामिल थे।
भगत सिंह की 404 पेज की जेल-डायरी विभिन्न प्रकार के विषयों पर लिखे गये अंश, नोट्स और उदाहरणों से भरी है, जो न केवल उनके गंभीर अध्ययन और बौद्धिक अंतर्दृष्टि को दर्शाती है, बल्कि उनकी सामाजिक और राजनीतिक चिंताओं को भी सामने लाती है।

पूंजीवाद और समाजवाद जैसे विषयों से लेकर अपराध और क़ानूनी न्यायशास्त्र तक, उनकी डायरी में उनके लिखे गये अंश ये दर्शाते हैं कि युवा भगत सिंह ने कितना गहन अध्ययन किया था और वे अपनी उम्र से ज्यादा समझदार थे। उनकी यह छवि ब्रिटिश सरकार द्वारा दर्शाई गयी उनकी ‘आंतकवादी’ छवि से बिल्कुल विपरीत थी।
जेल में बिताये अपने समय के दौरान उनके द्वारा लिखे गये कुछ मूल विचार और कविताओं का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है –
“मैं एक आदमी हूँ और इसलिए जो भी बात मानवजाति को प्रभावित करे, वह मुझे चिंतित करती है।”
“…………. मैं इतना पागल हूँ कि जेल में भी आजाद हूँ।”
“प्रेमी, पागल और कवि एक ही तरह से बने होते हैं।”
“……. व्यक्ति को कुचलने से वे विचारों को नहीं कुचला जा सकता।”
“कानून की पवित्रता सिर्फ तब तक बरकरार है जब तक यह लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति है।”
“अगर बहरों को सुनाना है, तो धमाका करना ज़रूरी है। जब हमने बम फेंका तो हमारा इरादा किसी को मारना नही था। हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेंका था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ेगा और हमें आज़ाद करना पड़ेगा।”
“सामाजिक प्रगति कुछ लोगों के विद्रोह पर नहीं बल्कि समृद्ध लोकतंत्र पर निर्भर करती है। पुरे विश्व में भाईचारा केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब अवसरों में समानता हो – सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में अवसर।”
“मुझे मुक्ति दो या मौत – क्या ज़िन्दगी इतनी प्रिय है, या फिर शांति इतनी प्यारी कि इसे बेड़ियों और दासता की कीमत पर खरीदा जाए?”
“ज़िन्दगी अपने सहारे जी जाती है…. दूसरों के कन्धों पर तो जनाजे उठते हैं।”

फांसी से पहले उन्होंने अपने भाई कुलतार को भेजे एक पत्र में लिखा था –
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इंतिहा क्या है?दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ… मुक़ाबला करें।।
अपनी डायरी के 33वें पन्ने पर उन्होंने शार्लोट पर्किन्स गिलमैन की कविता ‘चाइल्ड लेबर’ का एक अंश लिखा था, प्रस्तुत है उसका अनुवाद –
“कोई भी नन्ही चिड़िया अपनी माँ को नहीं खिलाती,
कोई चूजा, मुर्गी को नही खिलाता
बिल्ली का बच्चा भी अपनी माँ के लिए चूहे पकड़कर नही ला सकता
यह सौभाग्य तो सिर्फ मनुष्यों को प्राप्त है ….
हम सबसे ज्यादा ताकतवर व बुद्धिमान प्रजाति हैं
न जाने कितनी ही देर तक हमारी प्रशंसा की जा सकती है
वह एकमात्र जीवित प्रजाति
जो अपने खाने के लिए अपने बच्चों पर निर्भर कर सकता है….
यह डायरी शायद अब एकमात्र रास्ता है, उस महान क्रांतिकारी की सोच और विचारों को जानने का, जो अपने समय से बहुत आगे की सोचता था।
नमन है इस महान देशभक्त को!
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संपादन – मानबी कटोच