सुनिए डॉ. इयन वूल्फोर्ड की आवाज़ में अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी "पंचलाईट"

सुनिए डॉ. इयन वूल्फोर्ड की आवाज़ में अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी "पंचलाईट"

हिन्दी कथा साहित्य के महत्त्वपूर्ण रचनाकार फणीश्वरनाथ 'रेणु' (Fanishwar Nath Renu) का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया ज़िला के 'औराही हिंगना' गांव में हुआ था। पिता के कांग्रेस में होने के कारण भारत की आज़ादी की लड़ाई को बचपन से ही उन्होंने जिया और किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते इसका हिस्सा भी बन गए। 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्होंने सक्रिय रूप से योगदान दिया। 1952-53 के दौरान वे बहुत लम्बे समय तक बीमार रहे। फलस्वरूप वे सक्रिय राजनीति से हट गए और उनका झुकाव साहित्य सृजन की ओर हुआ। 1954 में उनका पहला उपन्यास 'मैला आंचल' प्रकाशित हुआ, जिसे इतनी ख्याति मिली कि रातों-रात रेणु (Fanishwar Nath Renu) को शीर्षस्थ हिन्दी लेखकों में गिना जाने लगा।

इसके बाद 1966 में आई उनकी कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम' पर आधारित फ़िल्म 'तीसरी क़सम' ने भी उन्हें काफ़ी प्रसिद्धि दिलवाई। इसके पुरे 51 साल बाद याने कि 2017 में उनके कहानी संग्रह ठुमरी की सबसे मज़ेदार कहानी 'पंचलैट' (पंचलाईट) पर भी फ़िल्म बनायीं गयी!

आज इसी कहानी को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है अमरीकी मूल के डॉ. इयन वूल्फोर्ड!

डॉ. इयन वूल्फोर्ड का शोध प्रबंध फणीश्वरनाथ रेणु और उनके लोकगीतों के बारे में है। डॉ. वूल्फोर्ड ने कोर्नेल विश्वविद्यालय, टेक्सस से हिंदी भाषा और साहित्य में एम.ए. और पी.एचडी (सन 2012 में ) की है। साथ ही वे वहाँ हिंदी भी पढ़ाते रहे। वे सायराक्यूज विश्वविद्यालय, अमेरिका में भी हिंदी के प्राध्यापक रहे। 2014 में वे ऑस्ट्रेलिया चले आये और ऑस्ट्रेलिया के लट्रोब विश्वविद्यालय ( La Trobe University ), मेल्बर्न में हिंदी भाषा और साहित्य के प्राध्यापक नियुक्त हुए।

शोध प्रबंध के सिलसिले में स्वयं वे फणीश्वरनाथ रेणु के गांव पूर्निया (बिहार) में रेणु जी के परिवारवालों के साथ रहे तथा ग्रामीण अंचल की देशज भाषा को सीखा। 

हिंदी में रूचि रखने वाले वूल्फोर्ड का हिंदी की ताकत पर अगाथ विश्वास है। वे इस कथन को झुठलाना चाहते हैं, जो ये समझते हैं कि अकेली अंग्रेजी से भारतवर्ष का काम चल सकता है।

इन दिनों इयन वूल्फोर्ड फणीश्वरनाथ रेणु के गांव से सम्बंधित एक पुस्तक लिख रहे हैं जो हिंदी साहित्य और उत्तर भारतीय लोकभाषा की परम्परा पर है।

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