स्वाद और सुगंध के साथ संस्कृति से भी जुड़े हैं ये सात तरह के चावल!

स्वाद और सुगंध के साथ संस्कृति से भी जुड़े हैं ये सात तरह के चावल!

चपन में अगर कभी माँ चावल लेने दुकान पर भेजती थी, तो समझ नहीं आता था कि कौन-सा वाला लूँ। अरे, तो वो दुकान वाले भैया भी कम-से-कम 6 तरह के दाम बताते थे चावलों के। अब हर चावल के दाम में फर्क क्यों था, यह तो नहीं समझ आया। समझ आता था तो बस इतना कि भैया बासमती चावल लेने है। बड़े-बुजुर्ग कहते थे कि बासमती चावल की खुशबु ही अलग होती है।

चावल ऐसा खाना है, जो आपको गरीब से गरीब और अमीर से अमीर के घर में मिल जाएगा। आप कहीं भी किसी भी क्षेत्र में चले जाएँ आपको चावल के दीवाने मिल ही जाएंगें। थोड़ा-सा ज्यादा टटोलेंगे चावल के मामले को तो पता चलेगा कि बासमती के अलावा भी चावल की भी कई पारंपरिक प्रजातियां हैं जो भारत में उगाई जाती हैं।

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फोटो: जैस्मिन चावल/विकिपीडिया

बासमती और जैस्मिन चावल के गुणगान तो सबने सुने हैं पर इन दोनों से भी अलग चावल की सात पारम्परिक किस्में होती हैं, जिन्हें बनाने बैठे तो उनकी खुशबु ही मुंह में पानी ला दे। इन अलग-अलग तरह के चावलों को खोजना जरा मुश्किल है, क्योंकि एक केरल में होता है तो दूसरा मणिपुर की पहाड़ियों में मिलेगा।

लेकिन आज हमारे साथ कम-से-कम जान तो लीजिये इन सात तरह के चावलों के बारे में।

अम्बेमोहर चावल

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महाराष्ट्र में उगाया जाने वाला यह चावल आकर में जरा छोटा होता है। इसकी खासियत यह है कि यह बहुत ही जल्दी पक जाता है और इसकी सुगंध मानो ऐसे, जैसे कि आम के फूलों की खुशबू। जीआई टैग से पुरुस्कृत मुलशी अम्बेमोहर चावल को पेशवा शासन के दौरान बहुत पसंद किया जाता था।

मुल्लन कज़हामा

अनूठे स्वाद और सुगंध से भरपूर यह चावल वायनाड में होता है। इसकी पाल पायसम और मालाबार बिरियानी बेहद स्वादिष्ट बनती है। इस चावल का खेत भी एक हल्की सुगंध से महकता है। केरल के वायनाड में बहुत ही कम किसानों द्वारा इसे उगाया जाता है।

गोबिन्दो भोग

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पश्चिम बंगाल में होने वाला छोटा-सा सुगंधित चावल, जिसे पिछले ही साल जन्माष्टमी पर भगवन श्री कृष्ण को चढ़ाने के लिए  'ख़ास धान' के रूप में चुना गया। इसीलिए इसे बहुत अलग नाम दिया गया है। इसका व्यापक रूप से शुभ प्रसाद, पूजा और त्यौहारों के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी बनी पायेश (बंगाली खीर) बहुत ही स्वादिष्ट बनती है।

सीरगा साम्बा

तमिलनाडु का बहुत ही प्यारा चावल। आकार में थोड़ा लम्बा और भीनी-सी खुशबू वाला। विशेष अवसरों के दौरान पुलाव बनाने के लिए बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जाता है। वास्तव में, यह मूल्यवान चावल राज्य की दो सबसे प्रतिष्ठित बिरयानियों - डिंडीगुल बिरयानी और अंबूर बिरयानी में भी प्रयोग होता है। दिलचस्प बात यह है कि तमिलनाडु में उगाए जाने वाले धान की अन्य सभी किस्मों की तुलना में यह चावल थोड़ा महंगा बिकता है!

मुश्क बुदजी

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फोटो: www.kashmirbox.com

बहुत ही तेज सुगंध वाला छोटा-सा चावल। कश्मीर की घाटी में उगाया जाने वाला यह चावल आपको वहां की हर शादी में खाने को मिलेगा। हालाँकि मुनाफा न होने के कारण यह विलुप्त होने लगा था। पर अच्छी खबर यह है कि राज्य के कृषि विभाग ने अद्वितीय चावल की स्थानीय खेती को प्रोत्साहित करने और व्यावसायिक स्थान में फिर से प्रवेश करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं।

रांधुनी पागोल

इस चावल का शब्दिक अर्थ है, "पकाने वाले को पागल कर देने वाला।" पश्चिम बंगाल का यह चावल दूर राज्यों में ज्यादा प्रसिद्द नहीं है। इस चावल से आप चिंगरी मलाई करी और कोशा मांगशो जैसे पकवान पका सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि रांधुनी जंगली अजवाइन का बंगाली नाम भी है, जो कि राज्य के हस्ताक्षर व्यंजन के लिए अद्वितीय मसाला है।

चक हाओ अमूबी

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फोटो: http://indosungod.blogspot.com

मणिपुर की पहाड़ियों में उगाए जाने वाले चिपचिपे काले चावल की एक सुगंधित किस्म। स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बढ़िया, मीठा और भीनी सी खुशबु वाले इस चावल की खीर बहुत ही कमाल की बनती है। जैसे-जैसे दूध उबलता है, यह जामुनी रंग ले लेता है और आपके घर में एक मोहक सी खुशबु फ़ैल जाती है। स्थानीय उत्सव और त्योहारों पर इसे बनाया जाता है।

तो आज आप कौनसे चावल को चखना चाहेंगे?

( संपादन - मानबी कटोच )

मूल लेख: संचारी पाल


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