Site icon The Better India – Hindi

गेंहू से बनी यह मिठाई है जगन्नाथपुरी के भोग से लेकर चाणक्य के अर्थशास्त्र तक का हिस्सा

Khaja Sweet

अगर कुछ ऐसा है, जो एक बंगाली को माछ-भात और मांगशो (मतलब मछली, चावल और मांस) खाने जितनी खुशी दे सकता है, तो वह है सैर-सपाटा। घूमने-फिरने के लिए एक अच्छी जगह मिल जाए और खाने के लिए स्वादिष्ट खाना, बस वे उस तरफ खिंचे चले जाते हैं। दरअसल, बंगालियों को खाने और घूमने का जुनून होता है। 

ओडिशा के समुद्र तटीय शहर पुरी से भी बंगालियों को बड़ा प्यार है। वजह कुछ भी हो सकती है- चाहे वीकेंड बिताना हो, लंबी छुट्टियां, तीर्थ यात्रा या फिर हनीमून। मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार अपने जीवन में एक बार पुरी घूमने जरुर जाता है और यह आज की बात नहीं है। दशकों से बंगाली, यहां छुट्टियां मनाने आते रहे हैं।

पुरी की सबसे खास और पसंदीदा मिठाई 

अगर मैं खुद की बात करुं, तो दस से ज्यादा बार पुरी घूमकर आ चुकी हूं। लेकिन मेरे लिए वहां की यात्रा, अध्यात्म से ज्यादा खाने के स्वाद के लिए होती है। पुरी का स्वादिष्ट खाना मुझे आकर्षित करता है। समुद्र तट के किनारे लगे स्टॉल पर प्रॉन चॉप्स (पकौड़े) खाते हुए समुद्र को निहारना या फिर स्थानीय स्वाद वाली खाजा मिठाई की मिठास में घुल जाना, एक अलग ही अनुभव होता है। मेरे लिए तो पुरी, बेहतरीन स्वाद वाला एक हसीन सफर है। 

बड़ा डंडा या ग्रैंड रोड से लेकर प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्रवेश द्वार तक, इस शहर की सबसे खास और पसंदीदा मिठाई खाजा, आपको हर जगह मिल जाएगी। लेकिन मुझे उस समय बड़ा आश्चर्य हुआ, जब मेरे एक उड़िया दोस्त ने बताया कि दरअसल, खाजा इस राज्य की मिठाई है ही नहीं।

फिर मैंने इसके इतिहास को खंगालना शुरु किया। खाजा के बनने और यहां तक आने के 320 ईसा पूर्व के इतिहास की कई कहानियां मेरे सामने परत दर परत खुलती चली गईं। 

एनर्जी से भरपूर

गेहूं, चीनी या गुड़ से बनी सुनहरे रंग की यह कुरकुरी मिठाई, चाशनी की परत में भीगी होती है। कुछ लोगों को यह फिलो पेस्ट्री या बकवाला जैसी नजर आती है। मैदे को चीनी के पानी के साथ मथ कर इसका आटा तैयार किया जाता है और फिर इससे कई परतों वाली घुमावदार आकार की यह मिठाई तैयार की जाती है। कई बार इसमें स्टफिंग भी की जाती है। फिर इसे मध्यम आंच पर तेल में तला जाता है और तब कहीं जाकर सुनहरे रंग वाली, यह खस्ता मिठाई बन पाती है।

अब इससे पहले कि आप यह कहें कि इतना घी, तेल और मीठा! यह तो कैलोरी से भरपूर है। तो मैं आपको बता दूं कि पुराने समय में भी इसे पोषण से भरपूर खाना या एनर्जी फूड कहा जाता था। ऋग्वेद में तो इसका उल्लेख है ही। साथ ही, अर्थशास्त्र में भी चाणक्य ने खाजा को ‘शक्ति अर्जित करनेवाले आहार’ के रूप में संबोधित किया है।

कहानी, खाजा के सफर की

खाजा के बनने और लोकप्रिय होने की कहानियां, उसकी बनावट और स्वाद जैसी ही दिलचस्प हैं। एक कहानी के अनुसार, खाजा का इतिहास आगरा और अवध के पूर्वी हिस्से से जुड़ा हुआ है, जिसने धीरे-धीरे पूरे उत्तर प्रदेश और बिहार में अपनी जगह बना ली। एक दूसरी कहानी बताती है कि मौर्य साम्राज्य में एक छोटे से गांव सिलाओ में इसे सबसे पहले बनाया गया था। फिलहाल, यह गांव बिहार के प्राचीन शहर मिथिला और नालंदा के बीच स्थित है।

मौर्य काल में गेहूं सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक थी। गेहूं के आटे से बनी यह परतदार मिठाई, उस जमाने में वहां रहनेवालों के सेहत और स्वाद दोनों का ध्यान रखती थी। चीनी यात्री ह्वेनत्सांग प्राचीन शहर मिथिला को खोजते हुए सिलाओ आए थे और यहां उन्होंने पहली बार खाजा के स्वाद को चखा था। तब उन्होंने इसकी तुलना मध्यपूर्वी व्यंजन बकलावा से की थी।

कुछ रिपोर्ट्स तो यह भी कहती हैं कि गौतम बुद्ध अपनी राजगीर की यात्रा के दौरान सिलाओ के पास कहीं रुके थे। वहां कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें मिठाई भेंट की थी और अध्यात्मिक गुरु ने अपने शिष्य को भी इसका स्वाद लेने के लिए कहा था। इस तरह से खाजा लोकप्रिय हो गया।

एक अन्य अंश से पता चलाता है कि 1872-73 में पुरातत्वविद जे.डी बगलर, सिलाओ आए थे। उस समय कुछ लोगों ने खाजा की उत्पत्ति का उल्लेख राजा विक्रम दत्त से जुड़ा हुआ बताया। बगलर के रिसर्च के कारण इस मिठाई को 2018 में जीआई टैग मिलने में मदद मिली थी।

दक्षिण भारत का आकर्षण 

Khaja (Source: BONG Connection)

सिलाओ के अलावा, खाजा की उत्पत्ति से जुड़ा एक और दिलचस्प संदर्भ हमें मिलता है, जो इसे दक्षिण भारत से जोड़ता है। आंध्र प्रदेश के गोट्टमखाजा और मदतखाजा मिठाई की बनावट, स्वाद और नाम इससे काफी मिलता-जुलता है। बस गोट्टम खाजा थोड़े सूखे होते हैं, लेकिन मदतखाजा में अंदर रस भरा होता है।

सिलाओ वाले खाजा के उलट, आंध्रा के गोट्टमखाजा और मदतखाजा की बाहरी परत थोड़ी मोटी व सख्त होती है और खाजा की तरह ही ये दोनों मिठाइयां भी गेंहू के आटे से ही बनी होती हैं। बनावट और इसमें इस्तेमाल होनेवाली सामग्री के आलावा, कुछ ऐतिहासिक संदर्भ भी हैं, जो खाजा मिठाई को दक्षिण भारत से जोड़ते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 12वीं सदी के एक ग्रंथ मानसोलासा (अभिलाषितार्थ चिंतामणि) के नाम से भी जाना जाता है, में इसका जिक्र किया गया है।मानसोलासा के अनुसार, यह एक शाही मिठाई थी, जिसे अक्सर राजघरानों को उपहार में दिया जाता था। बावर्ची, इसमें खुशबू और स्वाद के लिए लौंग और इलायची मिलाते थे। इस तरह से खाजा को आम से खास बनाकर राजघरानों में भेजा जाता था।

पुरी के महाभोग तक का सफर

ओडिशा आने से लेकर जगन्नाथ मंदिर में परोसे जाने वाले छप्पन भोग का एक हिस्सा बनने तक के इस सफर में खाजा में कई बदलाव किए गए। 12वीं सदी के बाद से इसके स्वाद और बनावट से छेड़छाड़ की जाती रही है। पेस्ट्री तैयार करने के लिए इसमें अब गेहूं के आटे के साथ घी और मैदा भी मिलाया जाने लगा है।

फूड एक्सपर्ट मिनती परी, एक लेख में कहती हैं कि मैदा मिलाने से आटे में लोच बढ़ जाती है। इससे आटे को अधिक नमी मिलती है और ये चाशनी को भी अच्छे से और आसानी से सोख सकता है। चाशनी को पहले ताड़ के गुड़ से बनाया जाता था। लीला एंबियंस गुरुग्राम के शेफ अजय साहू कहते हैं, “आटा बनाने की यह पूरी प्रक्रिया जिसे पगा कहा जाता है, हवा को बनाए रखने और चाशनी को अंदर तक सोखने के लिए नमी पैकर का काम करती है। यही प्रक्रिया खाजा को वास्तव में सबसे अलग और खास बना देती है। नमी को बनाए रखने के लिए इसमें लोकल घी डाला जाता है।”

इसे बनाने की एक और खासियत है जिसकी वजह से इसे छप्पनभोग में जगह दी गई है और वह है इसे एक सही तापमान पर फ्राई करने और चाशनी में भिगोकर रखने का समय।

आध्यात्म और स्वाद का मेल

पुरी का खाजा आज अपने बेहतरीन स्वाद के चलते दुनिया भर में लोकप्रिय है। वैसे स्वाद के साथ-साथ, इसकी लोकप्रियता का थोड़ा सा श्रेय तो मीठी चाशनी में डुबोकर, उसे साल के पत्ते पर रखने की पारंपरिक विधि को भी दिया जाना चाहिए, क्योंकि इस पत्ते के कारण खाजा में एक खास अरोमा भर जाता है। 

तो अब आप अगली बार जब भी पुरी की सैर करने के लिए जाएं, तो खाजा का स्वाद जरुर चखें। बेहतरीन दुकान खोजने में आपको मशक्कत न करनी पड़े, इसके लिए हम आपकी थोड़ी मदद कर देते हैं। खाजा की एक प्रतिष्ठित दुकान है काकतुअर दोकान। इसके अलावा, खाजा पट्टी के नजदीक 36 साल पुरानी दुकान ओरिजनल नरसिंहा स्वीट्स भी है। 

इस मिठाई के बनने और बिहार से दक्षिण भारत तक आने की कहानी जो भी रही हो। कुल मिलाकर इसका इतिहास अध्यात्म और स्वाद दोनों से जुड़ा है। घी से भरी चाशनी की चमक में डूबे खाजा का स्वाद आपको बार-बार यहां खींच कर ले आएगा। 

मूल लेखः अनन्या बरुआ 

संपादनः अर्चना दुबे

यह भी पढ़ेंः वह प्रधानमंत्री जिसने लिया था 5000 रूपये का लोन, मृत्यु के बाद पत्नी ने चुकाया कर्ज

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Exit mobile version