/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2020/05/06122514/अखिल-शर्मा-.jpg)
कोरोना संक्रमण के इस दौर में ऐसे लोग भी हैं, जो जरूरतमंदों की सेवा के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। राजस्थान के झुंझनू इलाके के रहने वाले युवा किसान अखिल शर्मा ऐसे ही लोगों में हैं। लॉकडाउन के दौरान वह अपने मित्रों और रिश्तेदारों के सहयोग से गांव के 500 परिवारों के भोजन का इंतजाम कर रहे हैं। इस कठिन घड़ी में जरूरतमंदों के लिए अखिल राशन के करीब ढाई सौ पैकेट बांट चुके हैं। इस राशन पैकेट में आटा, मसाला, तेल,दाल होता है और एक पैकेट दस किलोग्राम का होता है। इसके अलावा उन्होंने झुंझनू जिला कलेक्टर को राहत कार्य के लिए एक लाख ग्यारह हजार रुपये का चेक भी सौंपा है।
इस बार का फसल जरूरमंदों के नाम
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/05/06113538/akhil-1.jpg)
झुंझनू जिले के चूड़ी अजीतगढ़ गांव के रहने वाले अखिल शर्मा ने द बेटर इंडिया को बताया, “झुंझनू कपड़े और तांबे के उत्पादन में अग्रणी जगह है। लेकिन हमारा पुश्तैनी कार्य कृषि है। अपने 400 बीघा के खेत में हम गेहूं, बाजरा, सरसों और मूंग की खेती करते हैं। सरसों की फसल काटने के बाद तोड़ी निकलती है, जो 1000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिकती है। लेकिन मेरे पिता शंकर लाल शर्मा तोड़ी को बेचते नहीं हैं। यह फसल वह हमेशा पशुओं के चारे के लिए एक खुली चारागाह में छोड़ आते हैं। इसके अलावा गेहूं और बाज़ड़ा की फसल कटने के बाद भूसी को भी वह पशुओं के चारे के लिए देते हैं।“
अखिल बताते हैं कि जरूरमंद लोगों की सेवा करना हमारा धर्म है। लॉकडाउन में पशुओं का चारा की सबसे अधिक दिक्कत हो रही है। गांव में पशुओं को परेशानी न हो इसके लिए वह गेंहू की फसल का भूसा आदि बांट रहे हैं। इस काम में उनका अबतक करीब ढाई लाख रुपया खर्च हो चुका है।
पिता का अकेला पुत्र होने की वजह से गांव नहीं छोड़ा
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/05/06120007/Akhil2.jpg)
33 वर्षीय अखिल ने राजस्थान के मुकुंदगढ़ स्थित कॉलेज से बीकॉम की डिग्री हासिल कर कुछ रोजगारपरक डिप्लोमा कोर्स किया। अखिल शर्मा कहते हैं कि वह गांव से बाहर देश भर में किसी भी जगह जाकर नौकरी कर सकते थे, अपने किए कोर्स की बदौलत अच्छा सा पैकेज हासिल कर सकते थे। लेकिन पिता का अकेला पुत्र होने की वजह से उन्होंने गांव में ही रहकर कुछ करने की सोची। अखिल कहते हैं कि ज्यादातर युवा गांव में रहने से बचते हैं लेकिन वह अपने गांव में ही काम करने की वजह से वह खुलकर गांववालों की सेवा कर पा रहे हैं। उनके परिवार का एक ट्रस्ट भी है।
गांव में पड़े सूखे ने किया सहायता को प्रेरित
अखिल बताते हैं कि कई साल पहले उनके गांव में सूखा पड़ा था। ज्यादातर जल स्रोत सूख गए थे। ऐसे में आम आदमी तो परेशान था ही, पशुओं के सामने तो जीवन-मरण का संकट खड़ा हो गया था। उस वक्त उनके परिवार ने पशुओं के लिए चारे और पानी का इंतजाम किया। वह बताते हैं कि गांव में क्योंकि ज्यादा बारिश नहीं होती, ऐसे में उनका यह कार्य फिर बंद नहीं हुआ। वह लगातार पशुओं के लिए चारे और पानी का इंतजाम करते रहे। उनके मुताबिक उनकी शादी हुई तो उन्होंने पत्नी को भी इसके लिए प्रेरित किया। इस वक्त उनका एक साल का बच्चा है। हालांकि अभी वह बहुत छोटा है, लेकिन अखिल चाहते हैं कि जिस तरह वह अपने परिवार की दिखाई राह पर चल रहे हैं, उसी तरह वह भी परिवार की तरह दूसरों की मदद करने की राह पर चले।
पर्यावरण के लिए वृक्षारोपण
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/05/06115726/akhil3.jpg)
अखिल अपने परिवार के साथ मिलकर पर्यावरण की रक्षा का भी काम कर रहे हैं। वह पौधारोपण भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि पर्यावरण बचाकर ही इंसानी जिंदगी को बचाया जा सकता है। स्थिर कुछ भी नहीं, न पैसा और न जीवन। ऐसे में लोगों की जितनी भी मदद अपने संसाधनों से की जा सके, वही उत्तम है। उससे बेहतर कुछ भी नहीं। अखिल बहुत सादगी से कहते हैं, “ मैं जो भी करता हूं, वह किसी तरह की पब्लिसिटी के लिए नहीं करता। मेरी चाहत है कि जमीनी स्तर पर काम हो,ताकि जिसके लिए काम किया जा रहा है, उस तक उसी रूप में पहुंच सके। यही वजह है कि लॉकडाउन के दौरान जरूरमंद लोगों के लिए मैंने अपने ट्रस्ट की ओर से प्रशासन को एक लाख, 11 हजार रुपये का चेक सौंपा था।“
अखिल इसे इंसानियत की बहुत छोटी सेवा करार देते हैं। उनका कहना है कि जहां लोग इस वक्त तन-मन-धन से कोरोना संक्रमण प्रभावितों की सेवा में जुटे हैं,उसे देखते हुए इस काल में यह कार्य नगण्य है।
आगे भी जारी रखेंगे पशुओं की सेवा का कार्य
अखिल कहते हैं कि कोरोना तो आज है, कल चला जाएगा। लेकिन वह पशुओं की सेवा का कार्य जारी रखेंगे। गांव में जनवरी से जुलाई तक मौसम के जिस तरह के हालात रहते हैं, उस स्थिति में पशुओं को किसी और के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता। इंसान अपनी बात अपनी जुबां से कह सकता है,लेकिन एक पशु नहीं। इंसान का फर्ज है कि वह इस धरती पर रहने वाले जीवों, पशुओं को बेसहारा न छोड़े।
सरकार से अपील
अखिल कहते हैं कि सरकार को एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिसके तहत गांव में उपजने वाली फसल मंडी नहीं जाए और किसान को आमदनी भी हो जाए। उन्होंने कहा, “यदि अन्न, सब्जी, फल आदि हमें गांव में ही मिल जाए तो फिर हमारे किसान मंडी क्यों जाएंगे बेचने के लिए। हां, ऐसी व्यवस्था हो कि किसान को उसके अन्न की किमत सरकार उसके बैंक खाते में ट्रांसफर कर दे। लॉकडाउन के दौरान यदि हम सब मिलकर हर घर तक अन्न पहुंचा दें, इस नेक काम में सहयोग करें तो कोई भूखा नहीं रहेगा।“
अखिल शर्मा से उनके मोबाइल नंबर 7023500524 पर संपर्क किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें -हिमाचल: केवल रु.1300 लागत और 1 लाख 93 हजार कमाई, जानिए कैसे किया इस किसान ने यह कमाल