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गांव और शहर के माहौल का अंतर वही बता सकता है जो इन दोनों जगहों में रहा हो। बेशक शहर की ज़िंदगी मॉडर्न, संसाधनों और आराम भरी होती है, लेकिन शहर में रहता कोई इंसान शायद ही अपने पड़ोसियों से बातचीत भी करता हो। वहीं दूसरी ओर गांव में सभी एक दूसरे को चाचा, मामा, भैया, दादा-दादी जैसे रिश्तों से बुलाते हैं। सालों से गांव में ऐसे अपनेपन के साथ रहे, मेरठ के मनीष भारती को सिर्फ़ दो सालों में ही समझ में आ गया कि वह शहरी जीवन के लिए नहीं बने हैं। इसके बाद उन्होंने शहर में अच्छी खासी नौकरी छोड़कर, मेरठ से क़रीब 15 कि.मी. दूर अपने गांव वापस आने का फैसला किया। साल 1997 से वह गांव में रहकर काम कर रहे हैं। उन्होंने अपनी मार्केटिंग की डिग्री का बखूबी इस्तेमाल करके, खेती को एक अच्छा बिज़नेस ब्रांड बना दिया है। आज मेरठ में हर दिन उनकी डेयरी बिज़नेस से सैकड़ों लीटर दूध बिकता है और उनका ब्रांड, ‘भारती मिल्क स्पलैश' शहर में जाना-माना नाम है। इसके अलावा वह अपने खेतों में उगने वाले सभी प्रोडक्ट्स भी अपने खुद के ब्रांड से ही बेचते हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, “जिस दौर में मैंने पढ़ाई पूरी की थी, उस समय सभी गांव में रहने के नुक़सान के बारे में बातें करते थे। लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह नुक़सान से ज़्यादा मुझे गांव में रहने के फ़ायदे दिखे। यहाँ एकता और सुकून है।"
गांव से है अनोखा लगाव
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मनीष का परिवार सालों से खेती से जुड़ा हुआ है। लेकिन उनके घर में शिक्षा का भी काफ़ी महत्व रहा है, इसलिए उन्होंने मेरठ के अच्छे स्कूल और कॉलेज से पढ़ाई की। उन्होंने MBA भी मेरठ से ही किया है। 1995 में अपना MBA पूरा करने तक वह गांव में ही रहते थे।
वह बताते हैं, “क्योंकि हमारा घर शहर से सिर्फ़ 15 कि.मी. ही दूर था इसलिए मैं हमेशा यहीं रहकर पढ़ा हूँ। उनके बाद नौकरी के लिए मैं दिल्ली गया था।"
मार्केटिंग की पढ़ाई करने के बाद वह दिल्ली में एक अच्छी इंटरनैशनल कंपनी में काम कर रहे थे। लेकिन उन्हें गांव का अपनापन और जीवन में एक कमी सी महसूस होती थी। वहाँ सिर्फ़ दो साल रहने के बाद, उन्होंने मेरठ में ही काम ढूंढा और वापस आ गए।
मेरठ आकर उन्होंने आगे खुद का कुछ काम करने का फैसला किया और खेती में पिता का साथ देने से इसकी शुरुआत की।
मार्केटिंग स्किल्स से पिता की खेती को डेयरी बिज़नेस में बदला
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जब मनीष ने पिता के साथ काम करना शुरू किया, उस दौरान उनके पिता फूलों की खेती किया करते थे। अपने खेतों में उगाए फूल वह दिल्ली मंडी में बेचते थे। मनीष ने देखा कि जिन फूलों को उनके पिता सिर्फ़ दो रुपये दर्जन में बेच रहे थे, वही फूल बाज़ार में 30 रुपये से ज़्यादा भाव में बिक रहे हैं। वह सालों पुराना पारम्परिक तरीक़ा ही अपना रहे थे।
मनीष बताते हैं, “मैंने इस बीच के अंतर को भरने का फैसला किया और पिता से कहा कि हम खुद अपने फूलों की मार्केटिंग करेंगे। इसके बाद हमने फूलों की होम डिलीवरी करने के सिंपल आईडिया से शुरुआत की।"
इस तरह उनके पहले बिज़नेस ‘भारती फ़्लोरा' की शुरुआत हुई; जिसमें वह शहर भर में अपने ग्राहकों को हफ्ते में दो दिन फूलों की फ्री डिलीवरी किया करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने कॉर्पोरेट हाउस, शादी, फंक्शन्स जैसी जगहों में भी फूलों का काम शुरू कर दिया। मनीष बताते हैं कि उन्होंने देशभर के फ्लोरिस्ट्स से सम्पर्क करके, 1998 में देश ही नहीं दुनिया भर में फूलों की डिलीवरी करने का बिज़नेस शुरू कर दिया था।
साल 2014 तक यह काम अच्छा चला, लेकिन इसमें कुछ चुनौतियाँ भी थी। उस समय नील गाय और स्थानीय जानवरों की वजह से उनकी फसलें बर्बाद हो रही थीं। फिर उन्होंने फूलों के बजाय, दूसरी फसलों की ऑर्गेनिक खेती करने का फैसला किया।
मात्र 10 गायों के साथ शुरू किया डेयरी बिज़नस
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मनीष ने फसलों के साथ-साथ डेयरी बिज़नेस को भी अपनाया और एक बेहतरीन ऑर्गेनिक मॉडल तैयार किया। साल 2014 में उन्होंने सिर्फ़ 10 गायों के साथ डेयरी बिज़नेस की शुरुआत की। उन्हें पता था कि वह इस काम को बड़े स्तर पर करने वाले हैं, इसलिए शुरुआत से ही उन्होंने अपने फार्म के दूध को अच्छी पैकजिंग और ब्रांड नाम के साथ बेचा।
उन्होंने इसके लिए एक बढ़ियां सेटअप भी तैयार किया। ‘भारती मिल्क स्पलैश' नाम से उनके फार्म में दूध को ऑटोमैटिक मशीनों से फ़िल्टर और पैकिंग के साथ तैयार किया जाता था।
वह बताते हैं, “पहले से ही हमने अपने डेयरी बिज़नेस के दूध को एक प्रीमियम ब्रांड बनाया है। जब हमारे पास सिर्फ़ 10 गायें थीं, तब 25 लीटर दूध के लिए भी हम यही तकनीक अपनाते थे।"
उस समय वह 54 रुपये लीटर के रेट में दूध बेचा करते थे। लेकिन ग्राहकों ने उनके इस रॉ मिल्क को इतना पसंद किया कि जल्द ही दूध की डिमांड भी बढ़ने लगी। आज उनके फार्म पर 80 गायें हैं और वह हर दिन तक़रीबन 300 लीटर दूध, 60 रुपये प्रति लीटर के रेट पर पूरे मेरठ में बेच रहे हैं।
इसके अलावा, अपने 20 एकड़ के ऑर्गेनिक फार्म पर वह जो भी उगाते हैं, उसे भी 'फार्मर्स नेस्ट' ब्रांड के नाम से बेचते हैं। मनीष ने अपने डेयरी बिज़नेस के सभी प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए मेरठ में एक छोटा काउंटर भी शुरू किया था। वह बताते हैं, “फ़िलहाल हमने अपने उस काउंटर को एक कैफ़े में बदल दिया है, जहां हमारे फार्म के प्रोडक्ट्स से ही बने हेल्दी स्नैक्स बेचें जाते हैं। यह मेरे बेटे का आईडिया था, उसने हाल ही में अपनी बी.टेक की पढ़ाई पूरी की है। मेरे बच्चों को भी मेरी ही तरह गांव से काफ़ी लगाव है।"
मनीष की कहानी साबित करती है कि गांव में एक सुकून भरा जीवन जीने के साथ ही सफलता भी हासिल की जा सकती है।
आप उनके प्रोडक्ट्स और उनके बारे में ज़्यादा जानने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं।
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