समाज की सोच को बदलने की पहल, 3,000+ दिव्यांगों को बनाया आत्म-निर्भर!

गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन दिव्यांगों और उनके अधिकारों के प्रति समाज में संवेदनशीलता और जागरूकता लाने के लिए भी वर्कशॉप आयोजित करती रहती है।

“अगर मैं आपसे पूछूं कि आपका कोई दोस्त है, जो देख नहीं सकता या फिर सुन-बोल नहीं सकता, तो उसके जन्मदिन पर आप उसे क्या गिफ्ट करेंगी?”

प्रतीक ने जब मुझसे यह सवाल किया तो कुछ पलों के लिए मैं सोच में पड़ गयी कि क्या गिफ्ट करना चाहिए? क्योंकि सबसे पहले मेरा ध्यान उनकी दिव्यांगता पर गया। मैंने सोचा ही नहीं कि उनके लिए भी कोई सामान्य गिफ्ट लिया जा सकता है, जैसा कि हम बाकी किसी दोस्त के लिए लेते।

हमारे देश में 2 करोड़ से भी ज़्यादा दिव्यांग नागरिक हैं, लेकिन फिर भी जब हम किसी दिव्यांग से मिलते हैं, तो अक्सर असहज हो जाते हैं। उनके साथ सामान्य व्यवहार करने की बजाय हम जाने-अनजाने में उन्हें भी असहज महसूस करवा देते हैं। क्योंकि हमारी परवरिश ही इस तरह के समाज और माहौल में हुई है, जहाँ दिव्यांगों को उनकी शारीरिक या मानसिक अक्षमता से आगे बढ़कर देखा ही नहीं जाता है।

दिव्यांगो के प्रति समाज के इस नज़रिए को बदलने की पहल शुरू की है, बंगलुरु के एक दंपत्ति ने- प्रार्थना कौल और प्रतीक कौल

कई सालों तक टेक्निकल इंडस्ट्री में काम करने के बाद साल 2013 में प्रतीक और प्रार्थना ने ‘गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन’ की शुरुआत की। इस फाउंडेशन के ज़रिए उनका उद्देश्य न सिर्फ़ दिव्यांगों को उनके हिसाब से ज़रूरी ट्रेनिंग देकर आत्म-निर्भर बनाना है, बल्कि वे अन्य लोगों की भी सोच में परिवर्तन लाना चाहते हैं।

प्रतीक कौल और प्रार्थना कौल

“मैं अपनी कंपनी की तरफ से सीएसआर गतिविधियों से जुड़ा हुआ था। हम अक्सर ‘नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड्स’ संगठन के साथ इवेंट्स आदि करते थे। प्रार्थना भी लगभग 6 -7 साल से सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई ही थी। इस संगठन के साथ काम करते हुए मुझे अहसास हुआ कि हमारे देश में दिव्यांगता को लेकर बहुत से मिथक हैं और साथ ही, सही जानकारी और जागरूकता की भारी कमी है,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए प्रतीक कौल ने कहा।

प्रतीक और प्रार्थना, हमेशा से ही समाज सुधार के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे और यहाँ से उन्हें एक दिशा मिली। उन्होंने भारत में दिव्यांगता और दिव्यांगों की स्थिति पर गहनता से शोध किया और उनके सामने जो तस्वीर आई, वह आपको सोचने पर मजबूर कर देगी। जहाँ एक तरफ भारत वैश्विक मंच पर अपनी एक सशक्त पहचान का दावा करता है, तो वहीं अपने देश के इन नागरिकों के लिए मुलभुत सुविधाएँ तक नहीं हैं।

आज भी हमारे यहाँ दिव्यांग बच्चों को बोझ समझा जाता है। शारीरिक अक्षमता किसी भी तरह की हो, लोग अपने मन में धारणा बना लेते हैं कि वह इंसान कुछ नहीं कर सकता। बहुत-से परिवारों में तो दिव्यांग बच्चों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता है, कितनी बार सही इलाज से भी ये लोग वंचित रह जाते हैं। प्रतीक कहते हैं कि मेट्रो शहरों में भी न के बराबर दिव्यांगों के अनुकूल सार्वजनिक जगह मिलेंगी। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में हालातों का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता। लगभग 70% दिव्यांग ग्रामीण भारत में रहते हैं।

गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन के शुरुआती दो सालों में भी उन्होंने ज़मीनी स्तर पर ही काम किया। सबसे पहले तो उन्होंने खुद से ही शुरुआत की और सांकेतिक भाषा सीखी। साथ ही, उन्होंने ऐसे एनजीओ और संस्थाओं से जुड़ना शुरू किया जो कि दिव्यांगों के लिए काम कर रही हैं।

सिर्फ़ दिव्यांगों को ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों की सोच बदलना भी है नज़रिया

“अक्सर लोग हमसे आकर पूछते थे कि क्या हम दिव्यांग हैं या फिर हमारे परिवार में कोई दिव्यांग है, जो हम इस तरह की अलग भाषा सीख रहे हैं।” लोगों के लिए यह हैरत वाली बात थी कि प्रतीक और प्रार्थना आख़िर क्यों सांकेतिक भाषा सीख रहे हैं और साथ ही, और भी लोगों को सिखा रहे हैं।

प्रतीक ने आगे बताया कि उनका उद्देश्य दिव्यांगों के लिए कोई चैरिटी करना नहीं है। वे अपनी फाउंडेशन के ज़रिए दिव्यांगों को सक्षम और आत्म-निर्भर बनाने पर काम कर रहे हैं। अलग-अलग एनजीओ, संस्थाओं से जुड़कर वे दिव्यांगों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से ट्रेनिंग देते हैं। साथ ही, इन दिव्यांगों को स्किल बेस्ड ट्रेनिंग भी दी जाती है, ताकि इनका हुनर इनके लिए आजीविका का साधन बने।

फाउंडेशन के ट्रेनर अलग-अलग जगह जाकर हेंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स जैसे कि डायरी बनाना, घर की सजावट की चीज़ें, बैग बनाना, कपड़ों पर ब्लॉक प्रिंटिंग आदि की स्किल ट्रेनिंग देते हैं। इसके बाद इन आर्टिसन/कारीगरों के साथ मिलकर प्रोडक्ट डिजाइनिंग की जाती है। प्रोडक्ट की लागत, कीमत आदि निश्चित करने से लेकर उसकी मार्केटिंग तक की ज़िम्मेदारी गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन की होती है।

इन दिव्यांग आर्टिसन के बनाये हुए प्रोडक्ट्स की बिक्री से जो भी मुनाफ़ा होता है, उसके हिसाब से इन सभी की महीने की सैलरी तय की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 6 महीने से लेकर 1 साल तक लग जाता है। पर इस फाउंडेशन की लगातार कोशिशें दिव्यांगों को उनकी कमाई का ज़रिया देकर समाज में सम्मानजनक स्थान दिला रही है।

ब्रेल लिपि सिखाते हुए
सांकेतिक भाषा पर वर्कशॉप

गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन दिव्यांगों और उनके अधिकारों के प्रति समाज में संवेदनशीलता और जागरूकता लाने के लिए भी वर्कशॉप आयोजित करती रहती है। इन वर्कशॉप में वे लोगों को दिव्यांगों द्वारा झेली जा रही परेशानियों के बारे में बताते हैं और साथ ही, ब्रेल और सांकेतिक भाषा सीखने के लिए भी प्रेरित करते हैं।

अलह-अलग जगहों पर होने वाले गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन के इवेंट्स और वर्कशॉप आदि में अब तक 9,000 से भी ज़्यादा लोग भाग ले चुके हैं। शुरूआत में जहाँ अपने साथ काम करने के लिए इंटर्न, वॉलंटीयर्स ढूँढना प्रतीक और प्रार्थना के लिए बहुत मुश्किल था तो वहीं आज 1100 से भी ज़्यादा वॉलंटीयर्स उनसे जुड़े हुए हैं।

पहले अक्सर लोग उनसे पूछते थे कि जब उनका कोई भी जान-पहचान वाला दिव्यांग नहीं है, तो वे सांकेतिक भाषा क्यों सीख रहे हैं। पर आज तस्वीर इतनी बदल चुकी है कि बंगलुरु में अगर कोई बोलने और सुनने की क्षमता वाला व्यक्ति किसी बहरे या फिर गूंगे इंसान से मिलता और उनसे उन्हीं की सांकेतिक भाषा में बात करता है तो वे समझ जाते हैं कि वह ज़रूर गिफ्ट-एबल्ड का वॉलंटीयर है।

“वॉल ऑफ़ होप”

इस बारे में आगे बात करते हुए प्रतीक ने बताया,

“एक दिन हमारी एक वॉलंटीयर अलेख्या एमजी रोड पर स्थित एक मिट्टी के बर्तनों की दूकान में गयी। इस दुकान के मालिक सुन नहीं सकते हैं, तो अलेख्या ने उनसे बहुत ही सहजता से सांकेतिक भाषा में बात की। यह देखकर उस दूकानदार ने तुरंत अलेख्या से पूछा कि क्या वो ‘गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन’ से है। यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है कि हम धीरे-धीरे अपनी एक पहचान बनाने में सफल हो रहे हैं।”

प्रतीक और प्रार्थना ने जो ज़िम्मेदारी उठाई है, उसे निभाने के लिए वे अनगिनत चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं। फाउंडेशन के लिए फंडिंग तो एक बड़ी समस्या है ही क्योंकि उन्हें अभी तक कोई बहुत बड़ी स्पॉन्सरशिप नहीं मिली है। दूसरा, उनके फाउंडेशन में सिर्फ़ 5 ही लोगों का स्टाफ है। मानव संसाधन की यहाँ बहुत कमी है। प्रतीक बताते हैं कि देश के अहर एक कोने से उन्हें मेल और मेसेज आते हैं कि वे उनके यहाँ जाकर दिव्यांगों के लिए वर्कशॉप करें। लेकिन उनके पास सिर्फ़ दो ही ट्रेनर हैं तो ऐसे में वे बहुत सारी जगहों पर नहीं जा पाते हैं।

फिर भी अब तक गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन ने अब तक 3, 000 से ज़्यादा दिव्यांगों की ज़िंदगी को प्रभावित किया है।

“फ़िलहाल हम 40 एनजीओ के साथ काम कर रहे हैं। अगर हमारे पास और भी लोग हों तो हम और भी ज़्यादा दिव्यांगों की मदद के लिए पहुँच पायेंगें।”

प्रतीक और प्रार्थना हर बीतते दिन के साथ आगे बढ़ रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि वे पूरे देश में दिव्यांगों के लिए उनके अनुकूल माहौल बनाएं। अंत में वे सिर्फ़ इतना कहते हैं कि कोई भी गिफ्ट-एबल्ड के प्रोडक्ट्स इसलिए ख़रीदे कि वे उन्हें बहुत पसंद आये। न कि सिर्फ़ इसलिए कि इन प्रोडक्ट्स को दिव्यांग आर्टिसन ने बनाया है। वे दिव्यांगों के लिए इज्ज़त और सम्मान चाहते हैं न कि कोई चैरिटी।

गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन अपने प्रयासों से यह साबित कर रही है कि कोई भी व्यक्ति अपने शरीर से नहीं बल्कि अपनी सोच से दिव्यांग होता है। यदि आप सोच लेंगें कि कोई अक्षमता अपनों सक्षम बनने से नहीं रोक सकती तो फिर आपको किसी पर निर्भर होने की ज़रूरत नहीं है। इसके लिए हम सभी को साथ में मिलकर अपनी और दूसरों की सोच को बदलना होगा।

गिफ्ट-एबल्ड फाउंडेशन‘ के आर्टिसन द्वारा बनाये गये प्रोडक्ट्स आप द बेटर इंडिया- शॉप पर देख और खरीद सकते हैं। यहाँ क्लिक करें!


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X