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महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव मिटा 19 साल के इस युवा ने कायम की मिसाल, जानिए कैसे!

Breakthrough India Against Domestic Violence

(यह कहानी ब्रेकथ्रू इंडिया के साथ भागीदारी में प्रकाशित की गई है।)

भारत में घरेलू हिंसा की समस्या काफी गंभीर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा की दर 19 फीसदी से भी अधिक है। यह हमारे लिए बेहद शर्मिंदगी की बात है कि आज भारत की गिनती, महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों में होती है।

ऐसे में, महिलाओं और लड़कियों को एक सुरक्षा और सम्मान का भाव देते हुए, समाज में लैंगिक भेदभाव को दूर करने में पुरुषों की भागीदारी जरूरी है। कुछ ऐसी ही मिसाल पेश की है, उत्तर प्रदेश के रहने वाले दीपक ने।

19 वर्षीय दीपक, मूल रूप से लखनऊ जिले के हेमी गांव के रहने वाले हैं और फिलहाल इंटरमीडिएट में पढ़ते हैं। इतनी कम उम्र में ही, वह कुछ ऐसा काम कर रहे हैं, जो वाकई में काबिल-ए-तारीफ है। 

दीपक अपने गांव में 15 युवाओं की टीम की अगुवाई करते हैं। उनकी टीम में लड़कों के साथ-साथ, कई लड़कियां भी हैं। उनका मकसद समाज में महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा को मजबूती देना है। अपनी इसी सोच के तहत, उन्होंने कई महिलाओं को घरेलू हिंसा और लैंगिक भेदभाव से उबारा है।

इस कड़ी में उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे एक रिश्तेदार, रोज शराब पीकर घर आते थे और अपनी पत्नी के साथ काफी गालीगलौच करते और कई बार उनके साथ हाथापाई भी करते थे। पिछले साल एक शाम को, मैं उनके घर पर टीवी देख रहा था। इसी बीच वह आए और फिर वही कहानी दोहराई।”

दीपक

वह आगे कहते हैं, “यह देख, मैंने दोनों के बीच दख़ल दिया और रिश्तेदार को रोकने की  कोशिश की। मैंने उनसे कहा कि किसी भी महिला के ऊपर हाथ उठाना सही नहीं है। आपकी इन हरकतों का, बच्चों पर क्या असर होगा? लेकिन वह मेरी बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने कहा – तुम कौन होते हो हमारे बीच बोलने वाले? फिर मैंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और हिंसा का मुद्दा कभी निजी नहीं होता है। यह पूरे समाज का विषय है।”

फिर, दीपक को अंदाजा हो गया कि वह उनकी बात ऐसे नहीं समझेंगे और उन्होंने अपनी टीम को इसके बारे में जानकारी दे दी।

वह बताते हैं, “सुबह मैं अपनी टीम के साथ उन रिश्तेदार के पास पहुंचा। हमने उन्हें समझाया कि वह जो कर रहे हैं, वह गलत है और इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। यदि आप फिर से इस तरह का व्यवहार करेंगे, तो हम कानून की मदद लेंगे। कानून के डर से, उन्होंने फिर अपनी पत्नी के साथ कभी मारपीट नहीं की।”

दीपक एक और घटना के बारे में बताते हैं, “हमारे गांव में एक आठ-नौ साल की बच्ची थी। परिवार वाले उस बच्ची और उसकी माँ को ठीक से खाना नहीं देते थे। मुझे पता चला कि वे लोग, बेटा चाहते थे और बेटी होने के कारण उनके साथ यह बुरा व्यवहार किया जा रहा था।”

वह आगे बताते हैं, “गांव में महिलाएं, लैंगिक भेदभाव को लेकर बात करने से घबराती हैं। इसलिए मैंने अपनी टीम की लड़कियों को उनसे बात करने के लिए आगे भेजा। फिर, हमने उन्हें समझाना शुरू किया कि महिलाओं का अधिकार क्या है और इस विषय में घरवालों से भी बातचीत की। नतीजन, अब घर में दोनों के साथ कोई भेदभाव नहीं होता है।”

कैसे मिली यह सीख

दीपक चार साल पहले प्रतिष्ठित संस्था, ब्रेकथ्रू इंडिया से जुड़े थे। शुरुआत में, वह संस्था के ‘तारों की टोली’ अभियान का हिस्सा थे, लेकिन अब वह एक ‘टीम चेंज लीडर’ के तौर पर, समाज में महिला-अधिकारों को बढ़ावा देने की दिशा में मजबूती से काम कर रहे हैं।

वह कहते हैं, “ब्रेकथ्रू संस्था के साथ मेरी एक लंबी यात्रा रही है। यहां मेरा सफर, ‘तारों की टोली अभियान’ से शुरू हुआ था। फिर, ‘रौशन तारा’ और ‘उज्जवल तारा’ अभियानों में काम करने के बाद, मैं पिछले साल ‘टीम चेंज लीडर’ बना था।”

वह कहते हैं, “इस यात्रा से मुझे समाज में महिलाओं की अहमियत का अंदाजा हुआ और कई ट्रेनिंग सेशंस में हिस्सा लेने के बाद, मुझमें काफी बदलाव आए। जैसे कि, पहले मुझे घर का काम करने में शर्मिंदगी महसूस होती थी, लेकिन अब मैं घर के कामों में अपनी बहन और माँ का हाथ बंटाता हूँ।”

दीपक के मुताबिक, उन्हें पहले लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों के लेकर बात करने में हिचकिचाहट महसूस होती थी। लेकिन अब उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है और अब वह महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव, हिंसा जैसे मुद्दे पर लोगों से खुलकर बात कर सकते हैं।

कैसे करते हैं काम

दीपक बताते हैं, “यदि किसी घर में महिला के साथ हिंसा हो रही है, उसे परेशान किया जा रहा है या किसी लड़की को पढ़ने नहीं दिया जा रहा है, तो हम अपनी टीम के साथ उनके घर जाते हैं और उनसे बात करते हैं। इससे उन्हें हौसला मिलता है। हम अभी बच्चे हैं, इसलिए कई बार लोग हमें गंभीरता से नहीं लेते। इसलिए इन कार्यों में हम ग्राम प्रधान और स्थानीय स्तर पर प्रभावी लोगों की मदद लेते हैं और एक संवाद स्थापित करते हैं।”

लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों को लेकर गांव में खुल कर अपनी बात रखते हैं दीपक

वह कहते हैं कि महिलाओं के अधिकारों के विषय में बात करने के कारण, कई लोग उन्हें चिढ़ाते भी हैं, लेकिन दीपक को इन बातों से फर्क नहीं पड़ता है।

वह कहते हैं, “एक टीम चेंज लीडर होने के नाते, मजाक उड़ाने वाले लोगों से नाराज होने के बजाय, मैं उन्हें बैठाकर समझाता हूँ कि लड़का हो या लड़की, सभी समान होते हैं। आज कोई ऐसा काम नहीं, जो लड़कियां नहीं कर सकती हैं। अगर लड़का-लड़की बात कर रहे हैं, तो इसका गलत मतलब नहीं निकालना चाहिए।”

कैसे बनते हैं ‘टीम चेंज लीडर’?

ब्रेकथ्रू संस्था ने इस पहल की शुरुआत पिछले साल की थी। यह पहल फिलहाल दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे पांच राज्यों में जारी है।

इस कड़ी में ब्रेकथ्रू संस्था की सीईओ सोहिनी भट्टाचार्य कहती हैं, “हमारा उद्देश्य युवाओं को समय के साथ बदलाव के लिए प्रेरित करना है। हम उनके साथ काम करते हैं, ताकि उन्हें लैंगिक समानता को लेकर एक बेहतर दृष्टिकोण बनाने में मदद मिले और उनसे शुरू हुई बदलाव की प्रक्रिया पूरे समाज तक पहुंचे। हमारे टीम चेंज लीडर्स और किशोर-किशोरी सशक्तिकरण कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों को सकारात्मक सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए ही शुरू किया गया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।”

सोहिनी भट्टाचार्य

वहीं, ब्रेकथ्रू संस्था की ट्रेनिंग मैनेजर, अर्चना सिंह कहती हैं, “कोई भी संस्था, किसी खास जगह पर एक निश्चित समय के लिए काम करती है। अक्सर देखा जाता है कि इलाके में उनके कार्यों का असर तभी तक होता है, जब तक कि वे वहां काम कर रहे हैं। इन्हीं चुनौतियों को दूर करने के लिए, हमने ‘टीम चेंज लीडर अभियान’ की शुरुआत की।”

वह आगे कहती हैं, “इसके तहत हमारा मकसद है कि बदलाव की प्रक्रिया आपसे शुरू होकर, परिवार और उसके बाद उनके गांव तक पहुंचे। इस तरह हमारे जाने के बाद भी, हमारा असर स्थायी रूप से बना रहेगा।”

आप कैसे बन सकते हैं ‘टीम चेंज लीडर’?

अर्चना के मुताबिक उनका मकसद समाज में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए बच्चों को शिक्षित करना है। यदि आप एक ‘टीम चेंज लीडर’ बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए दो रास्ते हैं –

ब्रेकथ्रू का एक अभियान है – तारों की टोली। इस अभियान में 11 से 14 और 15 से 18 साल के किशोर-किशोरी शामिल होते हैं। इसमें उन्हें ‘रौशन तारा’ और ‘उज्जवल तारा’ अभियानों से गुजरना पड़ता है। इस तरह वे 19 साल की उम्र में, ‘टीम चेंज लीडर’ बनने योग्य हो जाते हैं।

सांकेतिक तस्वीर

लेकिन यदि कोई किशोर-किशोरी इस प्रक्रिया से नहीं गुजरा है, तो भी वह चेंज लीडर बन सकता है।

अर्चना बताती हैं, “इसके लिए यह जरूरी है कि वह किसी न किसी तरह से हमारे किसी भी अभियान से जुड़ा रहा हो, जैसे कि उन्होंने किशोर-किशोरी मेला में सहयोग किया हो या किसी मीटिंग को अंजाम देने में अपनी भूमिका निभाई हो और हमारे मकसद को आगे ले जाने में मदद की हो।”

कैसे होती है ट्रेनिंग?

अर्चना बताती हैं कि भूमिकाओं के आधार पर चुने गए किशोर-किशोरियों को अपने राज्यों में ही ट्रेनिंग दी जाती है। शुरुआती ट्रेनिंग तीन-चार दिनों की होती है। इस दौरान उन्हें लैंगिक भेदभाव के प्रति जागरुक किया जाता है और इसे लेकर परिवार और समाज में एक संवाद स्थापित करने की सीख दी जाती है। 

अर्चना सिंह

बदलाव की इस प्रक्रिया में कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखा जाता है। टीम चेंज लीडर्स के लिए यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है और इस दौरान उनपर अपनी पढ़ाई के साथ-साथ जॉब की चिन्ता भी बढ़ने लगती है। वहीं, लड़कियों पर शादी का दबाव होता है। इसलिए यह तय किया जाता है कि वे कितना समय इन प्रयासों के लिए दे सकते हैं।

ट्रेनिंग के अलावा, उन्हें अपनी रुचि के हिसाब से भी आगे बढ़ने का मौका दिया जाता है। जैसे – यदि किसी किशोर-किशोरियों को थिएटर पसंद है, तो उन्हें इसमें खुद को निखारने का मौका दिया जाता है।

ट्रेनिंग देती अर्चना

इसे लेकर सोहिनी कहती हैं, “ब्रेकथ्रू के जरिए हम युवाओं को लैंगिक भेदभाव के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक पक्षों पर नकारात्मक असर को लेकर शिक्षित करते हैं। इसे लेकर कई तरह के ट्रेनिंग सेशन और वर्कशॉप आयोजित किए जाते हैं। हम युवाओं की आवाज और लीडरशिप को सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ावा देते हैं कि वे सिर्फ अपने जीवन को लेकर बेहतर फैसले ले सकें, बल्कि इसलिए भी बढ़ावा देते हैं कि वे लैंगिक समानता, जलवायु परिवर्तन जैसे कई गंभीर मुद्दों को लेकर सजग हो सकें और एक समान और हिंसा मुक्त दुनिया का निर्माण कर सकें।”

लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ अभियान

लिंग आधारित हिंसा, लैंगिक असमानता से गहराई से जुड़ी हुई है। एक महिला को माँ के गर्भ से लेकर पूरे जीवन के दौरान इससे गुजरना पड़ता है। समाज में महिलाओं के खिलाफ इस नजरिए को बदलने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा भी कई प्रयास किये जा रहे हैं। 

ऐसी ही एक कोशिश है – ‘लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिनों का एक्टिविज्म’। इस अभियान को हर साल 25 नवंबर से लेकर 10 दिसंबर तक मनाया जाता है। हाल ही में संपन्न हुए इस अभियान को लेकर दुनियाभर के कई संस्थाओं ने अलग-अलग तरीके से लैंगिक भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज उठायी।

इसे लेकर अर्चना कहती हैं, “हमारे टीम चेंज लीडर्स ने भी इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और समाज में लैंगिक भेदभाव खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर अपनी इच्छा से कई गतिविधियों को अंजाम दिया। अपनी योजनाओं को लेकर उन्होंने हमसे जो भी सहयोग मांगा, हमने उन्हें दिया।”

वह कहती हैं, “हमारे चेंज लीडर्स स्थानीय स्तर पर मुद्दों को पहचानकर, उसे हल करने की कोशिश करने के साथ ही, ब्रेकथ्रू के शिक्षा, स्कूल-कॉलेज आने-जाने के साधनों, सड़क, सुरक्षित रास्तों, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों से जुड़े कई हाइपर लोकल अभियानों की भी अगुवाई करते हैं।”
आज भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। यहां 15 से 24 साल के युवाओं की संख्या करीब 22.9 करोड़ है। यदि उन्हें इसी तरीके से लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए प्रेरित किया जाए, तो देश में आने वाले कुछ वर्षों में ही, इस गंभीर समस्या को निश्चित रूप से जड़ से मिटाया जा सकता है।

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