वह कहते हैं न, हम माता-पिता से ही जीवन में अपने सारे गुण लेते हैं। उनकी आदतें, उनके काम करने के तरीक़े, हम सभी अपने जीवन में अपनाते हैं। उनकी सीख हमें आगे बढ़ने में मदद करती है, तो कई बार यही हमारी पहचान बन जाती है। अहमदाबाद के नारणपुरा इलाके में चलने वाले एक छोटे से रेस्टोरेंट ‘सिस्टर्स किचन’ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। सिर्फ़ दो महीने पहले खुले इस रेस्टोरेंट में आस-पास ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से लोग खाना खाने आते हैं। यहां केवल 90 रुपये में अनलिमिटेड थाली परोसी जाती है।
सिस्टर्स किचन की शुरुआत की है, अहमदाबाद की एक रिटायर्ड टीचर मंजुला पटेल ने। वह अपनी दो बहनों और बहु के साथ मिलकर इस स्टार्टअप को चला रही हैं।
दरअसल, खाना बनाने का हुनर उन्हें अपने पिता से मिला है। उनके पिता पोपटभाई पटेल बहुत अच्छे कुक थे। नवसारी (गुजरात) में वह सालों पहले एक लॉज चलाया करते थे। मंजुला और उनकी बहनों ने अपने पिता को बचपन से ही लोगों के लिए खाना बनाते देखा है, इसलिए वे सालों से फ़ूड से जुड़ा कोई बिज़नेस करना चाहती थीं। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए मंजुला ने नौकरी से जल्दी रिटायरमेंट लिया और इसी साल अपनी बहनों के साथ ‘सिस्टर्स किचन’ की शुरुआत की।
55 वर्षीया मंजुला बेन कहती हैं, “1985 तक मेरे पिता 400 से 500 लोगों के लिए हर दिन खाना बनाते थे। किसी के पास पैसे न हों तो उसे फ्री में ही खाना दे देते थे। नवसारी में लोग उन्हें ‘नरसिंह मेहता’ कहकर बुलाते थे। हम सभी भाई-बहनों ने उनसे ही अच्छा खाना बनाना सीखा है।”
पिता के स्वाद को लोगों तक पहुंचाने के लिए शुरू किया काम
मंजुला बेन एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं और कई NGOs से भी जुड़ी हुई हैं। उन्हीं की तरह उनकी बहने, फाल्गुनी और ज्योत्सना भी खाना बनाने की शौक़ीन हैं। जॉइंट फैमिली में रहते हुए, ज़्यादा लोगों के लिए खाना पकाने की उनको आदत है।
इन तीनों बहनों को हमेशा उनकी कुकिंग के लिए काफ़ी तारीफ़ें मिलती थीं। लेकिन वे अपने पिता की तरह कुछ ऐसा करना चाहती थीं कि हर किसी को घर का स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना आराम से कम दाम में मिल सके।
फाल्गुनी और ज्योत्सना दोनों ही हाउस वाइव्स हैं। मंजुला कहती हैं, “आज के दौर में जब सभी अपने हुनर को अपनी पहचान बना रहे हैं, ऐसे में हमने सोचा कि हम क्यों पीछे रहें? मैंने अपनी दोनों बहनों को भी शामिल किया और मेरी बहु मोना भी हमारे साथ इस काम में जुड़ी।”
उन्होंने किराये पर जगह ली और क़रीब सात लाख के शुरुआती इन्वेस्टमेंट के साथ काम शुरू कर दिया। उन्होंने अपने ‘सिस्टर्स किचन’ में अपने पिता की तस्वीर भी लगाई है।
मंजुला ने बताया कि दिवाली के बाद उनकी बड़ी बहन भी उनके साथ जुड़ने वाली हैं। फ़िलहाल, वह भी सूरत में एक लॉज चला रही हैं। यानी पिता से मिले गुणों को सभी बहनों ने अपनी पहचान बनाया है।
200 से ज़्यादा ग्राहकों के लिए रोज़ खाना बना रहीं ये बहनें
यूं तो अहमदाबाद यह एक आम रेस्टोरेंट ही है लेकिन जो चीज़ इसे ख़ास बनाती है, वह यह है कि यहां कोई प्रोफेशनल शेफ नहीं है। बल्कि वे सभी खुद मिलकर खाना पकाती हैं और बड़े प्यार से लोगों को परोसती हैं।
बाज़ार से सब्ज़ी और राशन लाना हो, खाना पकाना हो, या फिर ग्राहकों को खाना परोसना, ये सभी बहनें मिल-जुलकर सारा काम संभालती हैं। इसके अलावा, उन्होंने तीन और फीमेल वर्कर्स को काम पर रखा है। मंजुला का कहना है कि वह खुश हैं कि अपने इस काम से वह दूसरी महिलाओं की भी मदद कर पा रही हैं।
वह कहती हैं, “पैसा कमाना कभी भी हमारे इस स्टार्टअप का उद्देश्य नहीं था। हम बस चाहते थे कि जिस तरह हमारे पिता लोगों को कम दाम में भर पेट खाना खिलाते थे, वैसा ही कुछ काम हम भी करें। हमारे यहां नाश्ता, दोपहर और रात का खाना, सब बिल्कुल सही दाम में मिलता है। हमारी अनलिमिटेड थाली भी सिर्फ़ 90 रुपये की है।”
इस उम्र में भी खाना पकाने और लोगों को खिलाने में उन्हें इतनी ख़ुशी मिलती है कि वह इस काम को और आगे बढ़ाने की प्लानिंग भी कर रही हैं। सिर्फ़ दो महीनों में ही उनके 200 से ज़्यादा नियमित ग्राहक हो गए हैं। लोगों से मिले इस प्यार से ये सभी बहने काफ़ी खुश हैं और आने वाले समय में ‘सिस्टर्स किचन’ के और भी आउटलेट्स खोलने के बारे में सोच रही हैं।
अगर आप अहमदाबाद में रहते हैं तो ज़रूर इन बहनों के हाथों से बने खाने का स्वाद चखें।
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