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10 Ways To Save Water: इन छोटे-छोटे बदलावों से बचा सकते हैं ढेर सारा पानी

Ways to Save Water

हम सबके जीवन और  खेती व दूसरे कई कामों के लिए सबसे जरूरी है- पानी। इसके बिना एक दिन भी बिताना मुश्किल है।  

मानसून का मौसम बस ख़त्म होने के कगार पर है और पूरे देश में काफी अच्छी बारिश भी हुई हैं। इसके बावजूद कुछ राज्यों में पीने के पानी की समस्या देखने को मिलती है। गर्मी के दिनों में यह समस्या इतनी अधिक बढ़ जाती है कि कई गांवों में लोगों को पानी लेने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है। वहीं, बारिश के दिनों में देश के कई राज्यों में बाढ़ के कारण भारी बर्बादी होने के समाचार मिलते हैं। ऐसा इसलिए,  क्योंकि हम पानी को सही तरह से संचित या उसे जमीन के अंदर तक पहुंचा नहीं पा रहे हैं। 

इसकी वजह से हम आज भूजल स्तर में गिरावट, पानी की गुणवत्ता में कमी जैसी कई समस्याओं का सामना भी कर रहे हैं।  यदि मानसून के दौरान गिरने वाले बारिश के पानी का सही प्रबंधन किया जाए, तो इन सारी मुसीबतों से बचा जा सकता है। 

अगर अभी भी बारिश के पानी को सही तरिके से जमा करके, भूजल स्तर नहीं बढ़ाया गया, तो आने वाली पीढ़ी के पास पीने के पानी का बहुत बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। 

हम अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग तकनीक अपनाकर बारिश के पानी का सही प्रबंधन (Ways To Save Water) कर सकते हैं। 

रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग तकनीक 

इस तकनीक में घर या किसी ईमारत की छत पर गिरने वाले पानी को पीवीसी पाइप के माध्यम से अलग-अलग जल स्रोतों जैसे कुओं, तालाबों, बड़े भूमिगत टंकी आदि में भेजा जाता है। बारिश का मीठा पानी इन जल स्रोतों में जमा होने से पानी की लवणता भी कम हो जाती है। हालांकि, इस तकनीक से अशुद्ध पानी को सीधे इन जल स्रोतों में नहीं भेज सकते। इसके लिए एक विशेष प्रकार का फिल्टर इस्तेमाल करना होगा, जिसे पाइप के पास लगाकर फ़िल्टर किया हुआ शुद्ध पानी जमा किया जा सके।

इस तरह की तकनीक अपनाने में  शुरू में आपको थोड़ा खर्च करना होता है, लेकिन इसे सालों तक उपयोग करके पानी बचाया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार, यदि आपके घर की छत 1000 वर्ग फुट की है और औसतन 100 सेमी बारिश होती है, तो हर मानसून में 1 लाख लीटर तक पानी बचाया जा सकता है।

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग 

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग 

जिन इलाकों में भूजल खारा है, वहां रेन वॉटर हार्वेस्टिंग करके मीठा पानी जमा किया जा सकता है। इस तकनीक में एक पाइप के माध्यम से छत से निकलने वाले पानी को रेन वॉटर हार्वेस्टिंग फ़िल्टर के माध्यम से सीधे गड्ढे में उतारा जाता है, जिससे जमीन में साफ और मीठे पानी का स्तर बढ़ जाए। इसके लिए एक अलग किस्म के फिल्टर तकनीक का उपयोग किया जाता है। जिसमें ईंटों, पत्थरों, नदी की रेत और एक्टिवेटेड कार्बन का इस्तेमाल होता है। 

इसके लिए दो गड्ढे भी बनाए जा सकते हैं। एक गड्ढे को अंदर की तरफ प्लास्टर करके टंकी की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें बारिश का जमा पानी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।  जबकि बिना प्लास्टर के गड्ढे में एकत्रित पानी जमीन में उतरता रहता है, जिससे भूजल स्तर बढ़ जाता है।

रूफ रिचार्ज

बारिश का पानी जमा करने के लिए छत का होना आवश्यक नहीं है। पानी को खपरे वाले छत से भी स्टोर किया जा सकता है। इसके लिए छत के किनारे पर ऊपर से एक कटी हुई पाइप को लगा दिया जाता है, जिससे छत से बहने वाला पानी आधी कटी, पाइप से होता हुआ पीवीसी पाइप से जुड़ जाता है और पानी को सीधे टैंक में ले जाया जाता है। इससे छत से पानी बेकार बहने के बजाय जमा होगा जिसे आप बागवानी और सफाई आदि कामों के लिए उपयोग में ला सकते हैं। यदि इस पाइप में फिल्टर लगाया जाता है, तो इसे खाना पकाने और पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

उल्टा छाता जल संचय विधि 

इस तकनीक में एक उल्टे छतरी जैसी आकृति बनाकर उपयोग में ली जाती है। जिससे बारिश का पानी उसमें जमा होता है और छाते में लगे एक पाइप के माध्यम से टंकी में जाता है। इस तरह इकट्ठा किए पानी का उपयोग अलग-अलग कामों में हो सकता है। 

उल्टा छाता जल संचय विधि 

खेत में तालाब बनाकर 

कई किसान आजकल अपने खेतों में तालाब बनवा रहे हैं। ताकि मॉनसून के बाद खेती के लिए पानी की कमी न हो। इसके लिए खेत में एक जगह पर एक बड़ा गड्ढा बना दिया जाता है। इस तालाब को बनाने के लिए नीचे और चारों तरफ सीमेंट या मिट्टी से भरे बोरों को रख दिया जाता है ताकि अंदर का पानी बाहर न निकल सके। इसमें एकत्रित पानी का उपयोग किसान मॉनसून के बाद के मौसम में सिंचाई के लिए कर सकते हैं।

कच्चे गड्ढे

यह तकनीक कई गांवों और खेतों में प्रचलित हो रही है, जिसके लिए 5 से 7 फीट गहरे और चौड़े गड्ढे बनाए जाते हैं। फिर मिट्टी की लिपाई के ऊपर एक पॉलिथीन शीट लगाई जाती है। ताकि पानी को इकट्ठा कर इस्तेमाल किया जा सके। 

परकोलेशन टैंक या रिसाव तालाब 

जिन क्षेत्रों में मिट्टी चट्टानी होती है, वहां बहुत कम पानी जमीन में अवशोषित होता है और अधिकांश पानी नदी-खाइयों में बह जाता है।

ऐसे स्थान पर रिसाव तालाबों को बनाया जाता हैं। जहां कि मिट्टी रेतीली हो और उसमें वर्षाजल का रिसाव तेज हो। ऐसी जगह में पानी जमा करने के लिए यह तकनीक बेहद अच्छी है। ऐसे तालाबों की गहराई कम तथा फैलाव ज्यादा रखा जाता है,  जिससे वर्षाजल रिसाव के लिए ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र मिल सके। यहां जल प्रवाह के स्थान या ढलान की जगह पर गड्ढा बना दिया जाता है, जिससे बहता पानी रुक जाता है और धीरे-धीरे जमीन में उतर जाता है।

चेक डैम

चेक डैम

चेक डैम एक ऐसी संरचना है, जिसे किसी भी झरने या नाले या छोटी नदी के जल प्रवाह की उल्टी दिशा में खड़ा किया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य बारिश के अतिरिक्त जल को बांधना होता है, ताकि वह काम आ सके। यह पानी, बरसात के दौरान और उसके बाद भी इस्तेमाल हो सकता है और इससे भूजल का स्तर भी बढ़ता है।

वृक्षारोपण

जहां बारिश के पानी को रोकना या जमा करना संभव नहीं है, वहां पेड़ लगाने से पानी का बहाव धीमा हो जाता है। पेड़-पौधों  के माध्यम से पानी की गति को धीमा किया जा सकता है, जिससे पानी तेजी से नदी नाले में बहने के बजाय, जमीन में रिसने लगता है और भूजल स्तर बढ़ जाता है।

नाली प्रबंधन 

बारिश के पानी को नालों में बहने से रोकने के लिए मानसून से पहले नालियों का सही तरिके से प्रबंधन किया जाता है। बड़ी नालियों को सीधे किसी झील या कुएं से जोड़ दिया जाता है, ताकि पानी का बहाव न हो और वह किसी जलाशय में जाकर मिले। बाद में इसे फ़िल्टर आदि के माध्यम से शुद्ध करके उपयोग में लिया जा सकता है। 

वर्षा जल, मानव जाति के लिए अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है। अगर इसे अच्छे से सहेज कर रखा जाए, तो यह हम सबके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। 

तो आप आज ही सुनिश्चित करें कि आप किस तरह बारिश के पानी को बचाने की कोशिश करेंगे। क्योंकि जल है, तो ही जीवन है।  

मूल लेख-निशा जनसारी

संपादनः अर्चना दुबे

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