केरल की 40 वर्षीया आयुर्वेदिक डॉक्टर मित्रा सतीश की शख्सियत अपने आप में काफी अनोखी है। वह भारत के गांवों में बसे आर्ट और क्राफ्ट में गहरी रुचि रखती हैं। यात्रा की शौक़ीन, मित्रा ने कई छोटे-छोटे सोलो ट्रिप्स किये हैं। लेकिन पिछले साल लॉकडाउन के खुलते ही, उन्होंने एक लम्बी यात्रा (India Road Trip) की योजना बनाई। अपने देश के गांव, वहां की संस्कृति, भोजन पद्धति और हैंडीक्राफ्ट को करीब से समझने और उनका प्रचार-प्रसार करने के लिए, उन्होंने अपनी कार से 100 दिनों के भारत दर्शन की योजना बनाई। उनकी इस यात्रा में उनके 10 साल के बेटे, नारायण ने भी साथ चलने की इच्छा जताई।
किताबों से अलग, असल दुनिया को करीब से समझने के लिए माँ-बेटे ने इस यात्रा (India Road Trip) की शुरुआत 17 मार्च 2021 में की थी। उन्होंने इस यात्रा का नाम ‘Oru desi drive’ रखा। मलयालम में ‘Oru’ का मतलब ‘एक’ होता है। साथ ही, मित्रा अपनी इस कार ट्रिप से यह भी संदेश देना चाहती थी कि कोई भी महिला, किसी लंबी यात्रा पर अकेली भी जा सकती है। मित्रा ने करीबन 18 हजार किलोमीटर की इस यात्रा (India Road Trip) को, 100 दिन में पूरा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण, उन्हें अपनी यात्रा के समय को कम करना पड़ा।
उन्होंने 16,804 किलोमीटर की यात्रा के दौरान, 28 राज्य, छह केंद्र शासित प्रदेश और तीन अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर देखे। इस सफर को उन्होंने 51 दिनों में पूरा किया।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए, मित्रा ने बताया कि उन्होंने सभी राज्यों से जुड़ी हस्तकला को ध्यान में रखकर, सारी योजनाएं बनाई थी। उन्होंने अपनी यात्रा का ज्यादातर समय उन गांवों में बिताया, जो अपनी हस्तकला और क्राफ्ट के लिए जाने जाते हैं।
देखो अपना देश
उन्होंने इस यात्रा (India Road Trip) के लिए ‘देखो अपना देश’ नाम से 50 सुवेनियर या स्मृति चिन्ह भी बनवाए थे। जिस भी गांव में वे जाते, वहां के विशेष कलाकारों, किसी ख़ास व्यंजन या किसी स्मारक से संबंधित विशेष लोगों को, ये स्मृति चिन्ह भेट में देते। वे केरल, तमिलनाडु, पांडिचेरी, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल से होते हुए पूर्वोत्तर भारत पहुंचे। उन्होंने पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों की यात्रा की, साथ ही भूटान बॉर्डर भी देखा।
मित्रा बताती हैं, “हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में एक से बढ़कर एक कलाकार हैं, लेकिन इन कलाकारों को ज्यादा पहचान नहीं मिली है। मेरा मकसद, भारत के इन्हीं कलाकारों से मिलना था।”
इस माँ-बेटे की जोड़ी ने अपनी इस यात्रा (India Road Trip) के दौरान, असम के मशहूर माजुली द्वीप की भी यात्रा की। जहां वे माजुली मुखौटा बनाने वाले कलाकारों से मिले। वे असम के ही सलमोरा गांव की महिला कुम्हारों से भी मिले, जो बिना चाक के मिट्टी के बर्तन बनाते हैं।
मित्रा कहती हैं, “मेरे बेटे ने भी बिना चाक के मिट्टी के बर्तन बनाना सीख लिया।” इसके अलावा, उन्होंने बंगाल के पंचमुरा और मालदा जैसे गांवों में टेराकोटा मूर्ति कलाकरों, ओडिशा में पैडी क्राफ्ट कलाकारों और अपने मुखौटों के लिए, तेलंगाना के मशहूर चेरियाल गांव के लोगों के साथ भी समय बिताया। उन्होंने छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावी इलाके, बस्तर के गांवों का भी दौरा किया।
मित्रा बताती हैं, “मेरे कई रिश्तेदारों ने मुझे बस्तर नहीं जाने की सलाह दी थी। लेकिन, वहां के गोंड आदिवासियों की संस्कृति और कला के बारे में पढ़कर, मैंने वहां जाने का निश्चय किया।” उन्होंने देशभर के आदिवासी और ग्रामीण हस्तकला से जुड़े 25 गांवों का दौरा किया है।
वह बताती हैं, “मेरा उद्देश्य मात्र वहां घूमना नहीं था, मैं सोशल मिडिया और अपने ब्लॉग की मदद से, इन कलाओं की जानकारी देशभर के लोगों तक पहुंचाना चाहती हूँ।”
ग्रामीण जीवन का अनुभव
गांवों के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “हम कोशिश करते थे कि यात्रा के दौरान, गांव में ही बने होमस्टे में रहें, जिससे हम ज्यादा से ज्यादा समय, गांव वालों के साथ बीता सके। जिस गांव में ठहरने की सुविधा नहीं होती थी, वहां हम गांव के पास किसी होटल में ठहरते थे। हम दिन भर गांव वालों के साथ रहने के बाद, आराम करने के लिए होटल चले जाते थे।”
मित्रा ने बताया कि कई गांवों में लोग, उन्हें अपने साथ ठहरने का प्रस्ताव भी देते थे। मेघायलय में वे ऐसे ही एक परिवार के साथ, फ्रामेर (Phramer) गांव में ठहरे थे। इसके अलावा, वे असम और मणिपुर में भी एक-एक दिन गांव वालों के साथ ही ठहरे थे। मित्रा कहती हैं, “कई बार मेरा बेटा भी गांव में ठहरने की जिद करता था। कुछ गांवों में तो बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थी। इसके बावजूद, उसे गांव में बने मिट्टी के घरों में रहने का अनुभव काफी पसंद आया।”
यात्रा से जुड़ी यादें
उन्हें अपनी इस शानदार यात्रा के कारण, भारत के विभिन्न हिस्सों की खासियत जानने का मौका मिला। उन्होंने आंध्र प्रदेश के एक गांव आत्रेयपुरम में, वहां की मशहूर मिठाई पुतरेकुलु (Putharekulu) का स्वाद चखा। असम में बोडो गांव में पारंपरिक शाकाहारी खाना और ओडिशा का छेना पोंडा का स्वाद, मित्रा और नारायण कभी नहीं भूल पाएंगे।
यात्रा में हुई परेशानियों के बारे में पूछने पर मित्रा कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि मुझे अपनी इस यात्रा (India Road Trip) के दौरान कही कोई परेशानी हुई। लेकिन हाँ, कभी-कभी हम रास्ता भूलकर कई किलोमीटर आगे निकल जाते थे, तो कभी हमें गांव के पास ठहरने की जगह ढूंढने में काफी समय लगता था। लेकिन, ये सब मेरे लिए इस सफर के सुखद पलों में शुमार रहेंगे।”
उन्होंने बताया की एक बार त्रिपुरा में उनकी गाड़ी ख़राब हो गयी थी, तभी पास से गुजरते हुए एक गाड़ी वाले ने उनकी मदद की थी, जो असम से त्रिपुरा घूमने आये थे। मित्रा अपने बेटे के साथ, पूरे दिन में तक़रीबन 800 किलोमीटर तक की यात्रा करती थीं।
हालाँकि वह कहती हैं, “कोरोना की वजह से जब हमें जल्दी घर पहुंचना था, तब हमने जम्मू से कोचीन तक का सफर मात्र चार दिनों में पूरा किया था।”
मित्रा ने बताया कि लॉकडाउन और कोरोना की वजह से, ग्रामीण हस्तकला को काफी नुकसान पहुंचा है। वह मानती हैं कि गांवों में छिपी इन प्रतिभाओं को, पर्यटन के द्वारा आगे लाया जा सकता है। अपने बेटे के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “मेरे बेटे को सुख-सुविधा वाले शहरी जीवन में रहने की आदत थी, लेकिन इस यात्रा से उसने हर परिस्थिति में ख़ुशी के साथ जीना सीखा है।”
आशा है, आने वाले दिनों में जब सब सामान्य हो जाएगा, तब आप भी मित्रा की इस यात्रा से प्रेरणा लेकर, किसी गांव की यात्रा कर, देश की कला-संस्कृति को अन्य लोगों तक पहुंचाने का कार्य जरूर करेंगे।
संपादन – प्रीति महावर
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