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उत्तर प्रदेश का सबसे पिछड़े ज़िलों में से एक सिद्धार्थ नगर का एक छोटा-सा गाँव हसुड़ी औसानपुर, देश का शायद एकमात्र गाँव है जिसकी जानकारी जीआईएस (जियोग्राफिकल इनफार्मेशन सिस्टम) सॉफ्टवेयर पर उपलब्ध है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि यह गाँव आज भारत के 'डिजिटल गांव' के नाम से भी जाना जा रहा है।
इन सभी सुविधाओं का गाँव में उपलब्ध होने का श्रेय जाता है, गांव के प्रधान दिलीप त्रिपाठी को। दिलीप के परिवार में उनके दादा जी व पिता जी सभी सरकारी सेवाओं में कार्यरत थे। इसलिए वे सभी चाहते थे कि दिलीप भी सरकारी नौकरी करें।
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गाँव के ही प्राइमरी स्कूल से पढ़ाई करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिलीप को सिद्धार्थ नगर भेज दिया गया। उन्हें सरकारी नौकरी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इसीलिए उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद सोलर पैनल का बिजनेस शुरू किया। उनका बिजनेस अच्छा चलने लगा तो उनके छोटे भाई भी सिद्धार्थनगर आ गए।
दिलीप के माता-पिता गाँव में ही रहते थे। इसलिए उनका भी गाँव में आना-जाना लगा रहता था। दिलीप को हमेशा से अपने गाँव का पिछड़ा होना चुभता था। क्योंकि तब गाँव में सड़क, बिजली जैसी सुविधाएँ भी नहीं थी।
दिलीप ने बताया, "साल 2006 में बरसात के दिनों में रात को हमारी मम्मी को सांप ने काट लिया। गाँव में अस्पताल और एम्बुलेंस की कोई सुविधा नहीं थी। तो गाँववाले उन्हें शहर ले जाने की बजाय गांव में ही झाड़-फूँक करते रहे। जब तक हम लोग गाँव पहुंचे तो मम्मी का देहांत हो चूका था।"
उन्होंने कहा कि जब लोगों से हमने पूछा कि आप उन्हें अस्पताल क्यों नहीं लेकर गए तो गाँववालों ने कहा कि सांप के काटने का अस्पताल में क्या इलाज होगा। यह सुनकर दिलीप को समझ में आया कि उनके गाँव में न केवल सुविधाओं कि बल्कि जागरूकता की भी कमी है।
"उसी समय हमने और हमारे भाई ने निश्चय किया कि यदि कभी हमारे पास साधन हुआ तो हम अवश्य अपने गाँव के लिए कुछ करेंगे," दिलीप ने बताया।
कुछ समय बाद जब उनका बिजनेस बढ़िया चलने लगा और उनकी जानकारी बड़े अधिकारियों व नेताओं से होने लगी तो उन्होंने एक विधायक से कहकर अपने गाँव की मुख्य सड़क को सुधरवा दिया। जिससे गाँव वालों का उनपर विश्वास बनने लगा।
जब गाँव में सरपंच का चुनाव होना था तो गाँव के युवा वर्ग ने जोर दिया कि दिलीप भी चुनाव लड़ें। दिलीप बताते हैं, "जब चुनाव का समय था तभी गुजरात के पुंसरी गाँव के ऊपर एक डॉक्यूमेंट्री आयी थी। जिसे देखकर हमें बहुत प्रेरणा मिली और हमने निश्चय किया कि अगर मैं सरपंच बना तो ये सब सुविधाएँ अपने गाँव में दूंगा।"
गाँववालों के सहयोग से दिलीप चुनाव जीत गए। लेकिन उनके गाँव की आबादी केवल 1124 है, जिस वजह से उनके यहां छोटी पंचायत के हिसाब से एक साल का बजट 5 लाख रूपये आता है। फिर भी दिलीप ने अपने गाँव को हर सम्भव सुविधा प्रदान करने के लिए रास्ता खोज निकाला।
उन्होंने सरपंच होने के बावजूद सांसद आदर्श गाँव योजना के अंतर्गत अपने गाँव को गोद लिया।
"हम अपने गाँव के कुछ लोगों के साथ गुजरात के हाईटेक गांवों के दौरे पर गये। वहां देखा कि कैसे वहां की पंचायत काम कर रही है। अपने लोगों को भी दिखाया कि गाँव भी मॉड्रन और हाईटेक हो सकते हैं। बहुत लोगों से विचार-विमर्श करने के बाद अपने गाँव के लिए एक रूपरेखा तैयार की," दिलीप ने कहा।
अपने काम के दौरान दिलीप ने बहुत सी समस्यायों का सामना किया। सबसे बड़ी समस्या उनके सामने फंड की थी। इसलिए उन्होंने अपने परिवार के साथ मिलकर तय किया कि अगर उन्हें गाँव के विकास में अपनी जेब से भी पैसा लगाना पड़े तो भी वे पीछे नहीं हटेंगें।
दूसरी समस्या थी, कुछ लोगों का विरोध। दिलीप ने बताया कि हमारे कामों का बहुत से लोगों ने विरोध किया। जब वाई-फाई का प्रस्ताव हमने दिया तो लोगों ने कहा कि इससे बच्चे बिगड़ेंगें। लेकिन धीरे-धीरे जागरूकता फैलाकर वे गाँववालों को समझाने में सफल रहे।
"सबसे पहले हमने गाँव में शिक्षा पर ध्यान दिया। गाँव के सरकारी स्कूल को सुधरवाया। इसी प्राइमरी स्कूल से हमने भी पढ़ाई की थी। उसकी पूरी मरम्मत कराकर, शौचालय, लाइब्रेरी आदि बनवायी। साथ ही सीसीटीवी भी लगवाए, जिससे सरकारी शिक्षक भी समय के पाबंद हो गए। बच्चों को अब समय-समय पर बाहर घुमाने भी ले जाया जाता है," दिलीप कहते हैं।
उन्होंने बच्चों को ही अपना संदेश वाहक बनाया। उन्होंने साफ़-सफाई अभियान के लिए बच्चों द्वारा परिवारों को जागरूक करवाया। आज हर दूसरे घर के बाहर एक कूड़ादान रखा गया है। पूरे गाँव में 23 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। साथ ही, बिजली की समस्या को खत्म करने के लिए हर गली-मोहल्ले में सोलर लाइट लगवाई गयीं हैं।
गाँव की जानकारी जीआईएस सिस्टम पर उपलब्ध करवाने से लोगों को पता चला कि गाँव में कहाँ-कहाँ सरकारी ज़मीन है। जिसके चलते सभी अवैध कब्जे हटवाकर उस ज़मीन का उपयोग गाँव की भलाई के लिए किया जा रहा है।
गाँव के चौराहों पर लाउडस्पीकर भी लगें हैं, ताकि सार्वजनिक रूप से गाँववालों को किसी भी चीज़ की जानकारी दी जा सके। इसके अलावा सुबह-शाम भजन संध्या के प्रोग्राम भी इस पर चलाये जाते हैं। दिलीप ने कहा कि हमारे गाँव के हर घर में आज शौचालय है।
औसानपुर गाँव के दौरे पर अब तक कैबिनेट मंत्री जय प्रताप सिंह समेत कई अधिकारी आ चुके हैं। सभी लोग इस गाँव की तरक्की देख दंग रह गए।
दिलीप के सपनों के इस गाँव को आज देश में 'पिंक विलेज' के नाम से भी जाना जाता है। वे कहते हैं,
"अक्सर पिंक कलर महिलाओं का पसंदीदा होता है, इसलिए हमने हमारे गाँव को पिंक कलर दिया। यह हमारा सम्मान है हमारे गाँव की प्रत्येक महिला के प्रति। आज गाँव की हर गली व घर गुलाबी रंग में रंगा हुआ है।"
साथ ही गाँव में आज एक कंप्यूटर सेंटर व एक सिलाई सेंटर भी है। दिलीप का कहना है कि वे तकनीक के सहारे विकास की रोशनी अपने गाँव में फैला रहे हैं। उनके काम को न केवल उनके गाँववालों द्वारा बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है।
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नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना द्वारा भी दिलीप को सम्मानित किया गया है। हाल ही में, पंचायती राज दिवस पर दिलीप को उनके कामों के लिए प्रधानमंत्री ने नाना जी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम पुरस्कार और दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरुस्कार से सम्मानित किया है। हसुड़ी औसानपुर पंचायत पहली और इकलौती ग्राम पंचायत है जिसे ये दोनों पुरुस्कार साथ में मिले हैं।
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दिलीप ने बताया, "कुछ समय पहले मुख्यमंत्री ने भी हमें चाय पर बुलाया था। उन्होंने हमें कहा कि वे जल्द ही हमारे गाँव के दौरे पर आएंगें। हम शायद पूरी ज़िन्दगी पैसा कमाते रह जाते लेकिन कोई हमें नहीं जान पाता। पर आज जब हमने अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि के लिए कुछ किया है तो लगता है कि सबकुछ पा लिया।"
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अपने गाँव के लिए उनकी आगे की योजना के बारे में पूछने पर दिलीप ने बताया, "अभी भी हमारे गाँव में पलायन की समस्या है। लोग यहां से शहर तो जाते हैं पर शहर से लौटकर गाँव कोई नहीं आता। इसलिए हमारा ध्यान अब गाँव में ही रोजगार के क्षेत्र उत्पन्न करना है।"
हालाँकि, अभी भी दिलीप को सरकार की तरफ से कोई अतिरिक्त आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है। लेकिन फिर भी उनके हौंसलों में कोई कमी नहीं आयी है। उन्होंने बारिश के पानी को इकट्ठा कर फिर से इस्तेमाल में लाने का भी सिस्टम गाँव में लगवाया है।
इन सभी कार्यों के साथ-साथ वे निजी तौर पर गाँव की लड़कियों की शादी में 11,000 रूपये भी देते हैं। साथ ही उन्होंने फैसला लिया है कि गाँव के हर घर की नेमप्लेट पर उस घर की बेटी का नाम लिखा जाये। इस फैसले का उद्देश्य बेटियों के अधिकारों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है।
द बेटर इंडिया के माध्यम से दिलीप भारत के अन्य लाखों सरपंच, व्यवसायी और राजनेताओं से अपील करना चाहते हैं। वे कहते हैं,
"आप सभी के पास इच्छाशक्ति है। यदि आप ठान लें कि आपको अपनी जन्मभूमि के लिए कुछ करना है तो यक़ीनन आप अपने गाँव की तस्वीर बदल सकते हैं। अगर आज आप अच्छा कमा रहे हैं तो कोई भी गाँव गोद लेकर उसका विकास करने में कोई हर्ज नहीं है। यदि आप एक सुविधा भी किसी गाँव को दे सकते हैं तो जरूर दें। खासकर कि युवा वर्ग को आगे आना होगा। ऐसे ही बदलाव आएगा।"
आप दिलीप से सम्पर्क करने के लिए उनके फेसबुक पेज पर लिख सकते हैं व 9450566110 पर कॉल कर सकते हैं।
संपादन - मानबी कटोच
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