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शहर की अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़ गाँव में स्मार्ट किसान बन गया यह युवक!

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शहर की अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़ गाँव में स्मार्ट किसान बन गया यह युवक!

देश के अलग-अलग हिस्सों के किसानों की कहानी सुनाना चुनौती भरा काम है और खासकर तब जब देश भर में किसान लगातार संघर्ष कर रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद किसानी के पेशे में हर जगह कुछ न कुछ सकारात्मक भी हो रहा है। कोई शहर की चकमक जिंदगी को छोड़कर गांव में खेती करते हुए नई दुनिया रच रहा है तो कोई हर रोज शहर से गांव किसानी करने जा रहा है। ये सारी कहानियां हमें बताती हैं कि अब पेशेवर किसान बनने का वक्त आ गया है।

खेती-किसानी की इन्हीं सब बातों के तार जोड़ते हुए मेरा परिचय राजस्थान के युवा अखिल शर्मा से होता है। अखिल की एक बात जो मेरे मन में बैठ गई, वो है-  “किसानी करना इस संसार का पोषण करना है।“

तीस साल का युवा, जिसने मुंबई की चकमक दुनिया किसानी के लिए छोड़ी, जिसके पास आर्थिक रुप से सबल होने के लिए ढेर सारे रास्ते खुले थे, लेकिन उसने मन की सुनी और अपने किसान पिता के बताए रास्ते को अपनाया।

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अखिल शर्मा

‘द बेटर इंडिया’ के ‘किसान की आवाज’ श्रृंखला में आज हम आपको राजस्थान के झुन्झुनू जिले के चूड़ी अजीतगढ़ गांव की सैर करा रहे हैं। दरअसल हमारे आज के स्मार्ट किसान अखिल शर्मा का ताल्लुक इसी गांव से है। अखिल से सोशल मीडिया के जरिए जुड़ाव होता है और फिर हम आभासी दुनिया से निकलकर बाहर आते हैं और बातचीत होती है।

अखिल बताते हैं- “ गांव से पढ़ाई पूरी करने के बाद जब मैं शहर गया तो मुझे पूरे दिन में अगर किसी चीज की सबसे अधिक याद आती थी तो वह था मेरा खेत। जानते हैं इसकी वजह क्या थी? इसकी वजह थी कि शहर में भोजन के टेबल पर मुझे जो कुछ मिलता था, वह सब मिलावटी और रासायनिक खाद से जुड़ा था जबकि गांव में सबकुछ कूदरती है, सबकुछ जैविक। “

अखिल बताते हैं कि वाणिज्य से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे नौकरी के लिए मुंबई पहुंचे। वहां दो साल काम किया लेकिन मन गांव में ही लगा था।

उन्होंने कहा- “ मां –बाऊजी ने मुझे खेत से इसलिए दूर रखा था क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि जो कष्ट उन्होंने खेती बाड़ी में सहा है वह मैं भी झेलूं। वे नहीं चाहते थे कि मैं किसानी में जो परेशानी होती है, उसका सामना करुं। इसके लिए उन्होंने मुझे स्नातक के बाद फैशन टेक्नोलॉजी में चंडीगढ़ से डिप्लोमा कोर्स भी करवाया। फिर मैंने भी कंप्यूटर की भी पढ़ाई की। वे चाहते थे कि मैं नौकरी करुं और खेती बाड़ी की झंझट से दूर रहूं लेकिन सच कहूं तो मेर मन खेत से जुड़ा था और मन में विश्वास था कि किसानी करते हुए एक दिन मैं बाऊजी का सहारा बनूंगा।”

मुंबई, चंडीगढ़, जयपुर करते हुए एक दिन अखिल फैसला करते हैं कि वे भी अब खेत को समय देंगे लेकिन पेशेवर के तौर पर। पिता शंकर लाल शर्मा आखिर अपने बेटे की बात मान लेते हैं। और यहीं से अखिल की असली चुनौती भी आरंभ होती है। अखिल ने बताया कि 2014 में उन्होंने एक कार्ययोजना बनाकर खेती-किसानी की दुनिया में कदम रखा। खेती के लिए उपयुक्त जमीन, पानी और तकनीक का ज्ञान हासिल कर अखिल खेत में जुट गए। वे लगातार किसानों से संपर्क में हैं। उनसे बात कर जानकारी हासिल करते हैं।

वे बताते हैं- "कृषि विज्ञान की पढ़ाई करने से अच्छा है कि किसानों से बात की जाए। खेत में क्या अच्छा हो सकता है, यह बात मुझे किसान और बाऊजी से बढियां कोई नहीं बता सकता है।"

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खेती के पेशेवर तरीके की बात जब युवा अखिल करते हैं तो एक किसान के तौर पर मेरा मन खुश हो जाता है। वे बताते हैं कि यदि पांच एकड़ खेत को पांच हिस्से में बांट दिया जाए और एक एकड़ में फूल, फल, टिम्बर लगाए जाएं, वहीं एक एकड़ में सब्जी औऱ मसाला उगाया जाए। इसके बाद बचे तीन एकड़ में क्रमश: अनाज और दलहन, मवेशी के लिए चारा और मधुमक्खी पालन और बचे एक एकड़ में जैविक खेती और ग्रीन हाउस का निर्माण यदि किसान करे तो 12 महीने लागातार एक किसान पैसा कमा सकता है। अखिल का यह व्याकरण काफी ही रोचक है और यदि कोई किसान के जिसके पास कम से कम पांच एकड़ जमीन हो, वह इस विधि  से खेती करे तो एक खुशहाल जीवन बिता सकता है।

अखिल खेत में क्या कर रहे हैं...

अखिल बताते हैं कि वे इन दिनों 12 बीघे में करीब 900 नीम्बू, 250 माल्टा ( संतरा प्रजाति का फल), 250 किन्नू, और 75 चिकू के पौधे लगा चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनका पूरा जोर फलदार पौधे लगाने पर है और वे आगे जाकर औषधीय पौधे की भी खेती करेंगे।

और चलते-चलते अखिल शर्मा से जब हमने पूछा कि आपके लिए किसान क्या है? तो उन्होंने कहा-

“किसान संतोषी और परहितकारी होता है, यह मैंने अपने बाऊजी को देखकर समझा है। ये दोनों सदाचारी प्रवृति इस दुनिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है। मेरे लिए किसानी की दुनिया इन्हीं दो शब्दों में सिमटी है।“

संपादन - मानबी कटोच

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