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भारत में आज बहुत से ऐसे जीव-जंतुओं की प्रजातियां हैं जो लगभग लुप्त होने की कगार पर हैं। पैंगोलिन भी ऐसा ही एक जंगली जीव है। इसकी पहचान इसके शरीर पर केराटिन के बने शल्कनुमा (स्केल) संरचना से होती है, जिससे यह अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। हालाँकि यह आकार में किसी पालतू बिल्ली के बराबर होता है। इसलिए अगर कोई इसे अपने बैग में पैक करके निकल जाए तब भी किसी को पता नहीं चलेगा। इनके न कोई दांत होते हैं और न ही ये जीव किसी पर हमला करते हैं। अगर कभी इन्हें खतरे का आभास होता है तो यह खुद को एक बॉल की तरह समेट लेते हैं।
शायद यही कारण है कि आज यह दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी किए जाने वाले जीवों में से एक है। तस्करी के कारण ही, आज पैंगोलिन का नाम 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर' (IUCN) की रेड लिस्ट में ‘लुप्त हो सकने वाली' प्रजातियों में शामिल हो चुका है। औषधीय गुणों के कारण पैंगोलिन के मीट, ब्लड और स्केल्स की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अत्यधिक मांग है। भारतीय पैंगोलिन के बारे में लोगों में ज्यादा जागरूकता नहीं है। देश में हिमालयन इलाकों और अधिकांश रूप से ओडिशा के कुछ इलाकों में यह जीव पाया जाता है।
ओडिशा से बड़े पैमाने पर पैंगोलिन की तस्करी होती है। यहां तस्कर छुपकर, अपने नेटवर्क के ज़रिए यह काम करते हैं। लेकिन साल 2019 में, डिवीज़नल फारेस्ट अफसर सस्मिता लेंका ने इस गैर-क़ानूनी काम में शामिल एक रैकेट और एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का खुलासा किया।
इस 47 वर्षीया अफसर ने अपनी जान की परवाह न करते हुए 28 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें आठ तस्कर शामिल थे। इस दौरान, उन्होंने पांच पैंगोलिन का बचाव किया। साथ ही एक मृत पैंगोलिन और पांच किलो पैंगोलिन स्केल बरामद किये। अगस्त 2019 और अप्रैल 2020 के बीच अथागढ़ और खुनपुनि वन रेंज में अपने कार्यकाल के दौरान तस्करों के खिलाफ की गई सभी कानूनी कार्यवाहियों का श्रेय लेंका को जाता है।
कैसे किया यह काम:
उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “इस क्षेत्र में पैंगोलिन की उपस्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अधिकारियों द्वारा अवैध व्यापार के संबंध में कोई कार्यवाही भी नहीं की गई थी। स्थानीय लोगों को भी इसकी जानकारी नहीं थी। बहुतों को लगता था कि यह एक पक्षी है।”
लेकिन, लेंका को विश्वास था कि इस इलाके में तस्कर गिरोह काम कर रहा है। उन्होंने इस तरह की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र में कुछ मुखबिरों/खबरियों को तैनात किया। इसके एक महीने के भीतर ही, वह खरोद गाँव से एक पैंगोलिन को बचाने में सफल रहीं। इसके बाद उन्होंने अन्य तस्कर गिरोहों पर भी कार्यवाही करनी शुरू कर दी। वह कहतीं हैं कि इस मामले के सामने आने से एक सक्रिय नेटवर्क की उपस्थिति का पता चला है, जो शायद कई वर्षों से रडार पर नहीं था। इस बारे में और अधिक गहराई से जाँच करने पर मुझे इन नेटवर्क के काम करने के तरीके के बारे में पता चला।
तस्करों के काम करने के तरीके के बारे में बताते हुए वह कहतीं हैं, “कोई भी एजेंट या बिचौलिया इलाके के आदिवासी लोगों से संपर्क करता है और उन्हें पूछता है कि पैंगोलिन कहाँ मिल सकते हैं। वे कई बार पैंगोलिन के वीडियो व फोटो भी साझा करते हैं। कुछ स्थानीय लोगों को पैंगोलिन के बारे में पता होता है। लेकिन वे यह नहीं जानते कि यह प्रजाति कितने ज्यादा खतरे में है। सभी जानकारी ऑनलाइन साझा की जाती है। ये स्थानीय लोग कुछ चंद हज़ार रुपयों के बदले इन एजेंट को पैंगोलिन लाकर देते हैं। जब विभिन्न राज्यों के एजेंट्स के बीच इन जानवरों का लेन-देन होता है, तो इसकी कीमत लाखों में लगाई जाती है।”
वह कहतीं हैं कि पैंगोलिन समुद्री या ज़मीन के रास्तों के माध्यम से देशभर में यात्रा करते हैं। एक वयस्क पैंगोलिन की कीमत 10 लाख रुपये तक होती है। चार इंच स्केल के पैंगोलिन के 10,000 रुपये मिल सकते हैं। वह कहतीं हैं, “इन स्केल्स को ग्राम में तौला जाता है। अब सोचिए कि जब्त किए गए पांच किलो स्केल्स की कीमत कितनी ज्यादा होगी।”
मिला सम्मान:
सस्मिता लेंका ने जैव विविधता में पैंगोलिन की अहम् भूमिका के बारे में और इस प्रजाति पर मंडरा रहे खतरों के बारे में स्थानीय लोगों को जागरूक करने के लिए कई गतिविधियां की है। वह कहतीं हैं, “पैंगोलिन जंगल के प्राकृतिक कीट नियंत्रक हैं। क्योंकि वे चींटियां, दीमक और लार्वा को खा जाते हैं। वे जमीन में बिल बनाते हैं तथा इस प्रक्रिया में मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने में मदद करते हैं।”
इन गिरोहों पर नकेल कसने के लिए लेंका ने संदिग्ध लोगों की जानकारी देने वालों को 10,000 रुपये के इनाम की पेशकश भी की थी। वह बतातीं हैं, “30 गांवों से लोगों ने उन्हें जानकारी दी। इस अभियान को अच्छी प्रतिक्रिया मिली और हमने इस जानकारी के आधार पर कई अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही की।”
जहां उन्हें अपने प्रयासों के लिए काफी सराहना मिली, वहीं उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिलीं। वह कहतीं हैं, “फ़ोन कॉल पर धमकियां तो लगातार ही मिल रहीं थीं। मेरे घर पर पत्थर भी फेंके गए। कई प्रभावशाली समूहों और लोगों ने दबाव डालने का प्रयास भी किया ताकि यह काम रुक जाए। लेकिन मैं नहीं डरी।”
ग्रामीणों का दावा है कि वे ऐसी किसी भी अवैध गतिविधियों के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन अब संरक्षण के प्रयासों में योगदान करने के लिए तैयार हैं। ओडिशा की एक संरक्षक, सौम्या रंजन बिस्वाल कहती हैं, “अधिकांश स्थानीय लोगों को यह पता नहीं था कि पैंगोलिन आसपास के क्षेत्र में मौजूद हैं। इस जानवर के बारे में जागरूकता और सस्मिता द्वारा की गई सख्त कार्यवाही ने लोगों की मानसिकता को बदलने में और पैंगोलिन के संरक्षण में मदद की है।”
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र ने सस्मिता के प्रयासों को सराहते हुए, ‘जेंडर लीडरशिप' और ‘इम्पैक्ट' केटेगरी के तहत 'एशिया पर्यावरण प्रवर्तन पुरस्कार 2020' से सम्मानित किया है। फ़िलहाल, भुवनेश्वर जिला मुख्यालय में जंगल की उप संरक्षक के रूप में तैनात लेंका कहतीं हैं, “मुझे खुशी है कि मेरे प्रयासों को एक पहचान मिली है। लेकिन यह काम तभी रुकेगा, जब पैंगोलिन पर खतरा कम जायेगा और इस जानवर को लुप्त होने से बचा लिया जायेगा।”
मूल लेख:हिमांशु नित्नावरे
संपादन – प्रीति महावर
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