पिछले 20 सालों से अपनी मूल जरूरतों, साफ़ पानी, शुद्ध हवा और जमीन की मांग कर रहे तूतीकोरिन के आम लोगों के सब्र का बाँध टूट चूका है। तूतीकोरिन में जो हुआ उससे साफ़ है कि यदि लोग शांति और अंहिंसा के मार्ग पर चलकर अपने अधिकारों की मांग करें तो उसे नकार दिया जाता है।