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विपेश गर्ग पेशे से बागवानी विकास अधिकारी और दिल से एक बागबान हैं। जब विपेश गर्ग बड़े हो रहे थे, वह अक्सर पड़ोसी घरों से पौधे चोरी करते और मुसीबत में पड़ जाते थे। एक बार तो उनके पड़ोसी ने अपने घर से इनडोर पौधों को चुराने के आरोप में उन्हें पुलिस को सौंप दिया था।
एक बेहद दिलचस्प बात यह है कि 13 साल बाद, उसी पड़ोसी ने हरियाणा के फतेहाबाद जिले में रतिया में विपेश द्वारा आयोजित एक गार्डन वर्कशॉप में भाग लिया। तो आइए आज हम विपेश की दिलचस्प कहानी सुनते हैं।
विपेश को बचपन से ही बागवानी से खास लगाव था। कुछ वर्षों में इस लगाव ने एक ठोस आकार ले लिया। आगे चलकर उन्होंने कृषि विज्ञान में पढ़ाई पूरी की और वेजिटेबल ब्रीडिंग में मास्टर्स भी किया।
2014 से, वह पंजाब राज्य सरकार के साथ काम कर रहे हैं।
अपने पेशेवर जीवन में प्रगति करने के साथ, विपेश ने अपना एक निजी बगीचा भी बनाया है। 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला यह बगीचा अब एक मिनी फूड फॉरेस्ट यानी जंगल बन गया है। विपेश द्वारा बनाए गए इस जंगल में फल, सब्जियां, फूल और औषधीय पौधों सहित 100 से भी ज्यादा खाद्य और गैर-खाद्य पौधे हैं जो बिना किसी केमिकल के उगाए जाते हैं।
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वर्तमान में बुधलाडा बागवानी विभाग में तैनात विपेश ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरी माँ एक गार्डनर थी और उन्होंने हमेशा मुझे मिट्टी से अपने हाथ गंदे करने के लिए प्रेरित किया। मुझे यात्राएं करना और वर्कशॉप के माध्यम से लोगों के लिए बगीचे की स्थापना करना पसंद है। मैं पर्माकल्चर और इकोसिस्टम डिजाइन जैसे प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करता हूं। इसके अलावा मल्चिंग (गीली घास), कम्पोस्टिंग (खाद बनाना), मिट्टी-पुनर्जनन, सीड सेविंग और कम्पैन्यनप्लांटिंग को लेकर भी जानकारी इकट्ठा करता हूं। फसलों पर स्प्रे करने के लिए, मैं खुद का बायो एंज़ाइम तैयार करता हूं।“
'बायोमिमिक्री' कही जाने वाली, विपेश की बागवानी डिजाइन एक प्राकृतिक जंगल को दर्शाता है। इस जगंल में वह पानी इकट्ठा करते हैं साथ ही जंगल की जो भी जरूरत है उसका ख्याल रखते हैं।
आइए हम जानते हैं कि विपेश किस तरह काम करते हैं
प्राकृतिक मल्चिंग
मल्चिंग समाग्री के रूप में, विपेश खेत के कचरे, जैसे खरपतवार, सूखी पत्तियां, अंडे के छिलके, गन्ना खोई, पुआल, केले के पत्ते और खेत के कूड़े का इस्तेमाल करते हैं।
मल्च मिट्टी के ऊपर की एक सुरक्षात्मक परत है जो मिट्टी में नमी को बनाए रखने में मदद करती है, खरपतवार उगने से रोकती है।
विपेश बीन्स, जैसी की खाने वाली फलियां और मेथी लगाने की भी सिफारिश करते हैं, जो बायो मल्च की तरह काम करती हैं। वह मिट्टी में नाइट्रोजन को ठीक करते हैं जिससे अन्य पौधों को भी लाभ होता है। माइक्रोग्रीन, मेथी, पालक, नास्टर्टियम, धनिया कुछ अन्य विकल्प जो उगाए जा सकते हैं।
इन-सिटू (यथावत्) खाद
विपेश इन-सिटू खाद पर विश्वास करते हैं क्योंकि यह प्रकृति की नकल करता है और इसमें हरा कचरा प्राकृतिक रूप से मिट्टी की सतह के भीतर जाता है और अपघटित होता है।
विपेश बताते हैं, “इन-सीटू कंपोस्टिंग उन लोगों के लिए है, जिनके पास बगीचे का खाद बनाने के लिए खाद भण्डार या डब्बा नहीं है। इसके लिए बस बगीचे में एक फीट गहरी खाई खोदनी पड़ती है और इसे रसोई के कचरे जैसे फलों के छिलकों और सब्जियों के कचरे से भरा जाता है। कचरे को सूखी पत्तियों की एक परत के साथ कवर करना होता है।”
जैविक कचरे का विघटन होता है और रोगाणुओं और कीड़े को पोषक तत्वों से भरपूर भोजन मिलता है। यह बदले में, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करता है।
कम्पैनियन प्लांटिंग
कम्पैनियन प्लांटिंग में, जगह का अधिकतम इस्तेमाल करने और फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए विभिन्न फसलों को पास-पास बोया जाता है। यह कीट नियंत्रण में भी मदद करता है और साथ ही परागण और लाभकारी कीड़ों के प्राकृतिक प्रसार को बढ़ावा देता है।
“कम्पैनियन यानी साथी एक दूसरे को बढ़ने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, मैं साथी यानी कम्पैनियन पौधों के रूप में केला, पुदीना और हल्दी उगाता हूं। केले का पेड़ छाया प्रदान करता है और हल्दी कीट को दूर रखता है। अन्य संयोजन मक्का, लोबिया और लौकी हैं; साथ ही मोरिंगा, नस्टाशयम, अरबी जैसे पौधे भी उगाए जाते हैं।”
बायो मिमिक्ड ऊपर उठाए हुए सतह
यहां पौधों को ऐसी मिट्टी में उगाया जाता है जो जमीन से ऊपर होता है। इसके लिए, विपेश ने बजरी और छोटे पत्थरों / कंकड़ की एक परत का उपयोग किया है। यह उचित जल निकासी में मदद करता है और मानसून के दौरान अधिक सिंचाई के मामले में जड़ों को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है।
विपेश बताते हैं, “उठाए गए बगीचे के सतह, जो सब्जियों और फूलों के छोटे भूखंड, के लिए सही होते हैं, वह मिट्टी को बिखरने से रोकते हैं और कीटों को भी दूर रखते हैं। इस प्रक्रिया में ज़्यादा लागत, सिंचाई और रखरखाव की ज़रूरत नहीं होती है।”
विस्तृत प्रक्रिया जानने के लिए यहां क्लिक करें।
सीड सेविंग और बायो एंजाइम
बागवानी अधिकारी होने के नाते, विपेश को अक्सर राज्य भर के खेतों में जाने का अवसर मिलता है। वह किसानों या खेतों से यात्रा करते समय बीज एकत्र करते हैं। वह खुले परागण और स्व-बीज वाले पौधों का चयन करना पसंद करते हैं।
जैसा कि ये बीज पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और कुछ दुर्लभ किस्मों के भी होते हैं, विपेश हर चक्र के बाद अपने बगीचे से बचे हुए बीज और प्रजनन सामग्री रखते हैं। बागवानी के क्षेत्र में इसे सीड सेविंग कहा जाता है।
विपेश आगे बताते हैं,"सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले पौधों के बीज की बचत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे पहले से ही मेरे बगीचे के पारिस्थितिकी तंत्र, मिट्टी, जलवायु और बढ़ती परिस्थितियों में समायोजित कर चुके हैं। बचे हुए बीज को वापस बोने से वे अगले चक्र में बेहतर प्रदर्शन करेगा और अधिक उपज देगा। ”
विपेश फल और सब्जी के कचरे से बायो एंजाइम भी तैयार करते है। वह बताते हैं “मैं किचन के फलों के छिलकों को 60-90 दिनों से अधिक समय तक फर्मेंट करता हूं और फिर उसमें गुड़ औऱ पानी मिलाता हूं। हर महीने मैं लगभग 10 लीटर बायो एंजाइम तैयार करता हूं, जिसे हर 15 दिनों में मेरे बगीचे में छिड़का जाता है।”
श्रम का फल
इन प्राकृतिक प्रथाओं की मदद से, विपेश ने अपने फूड गार्डन में अब केले, नींबू, कीनू, फालसा, अमरूद, अंगूर, पपीता, क्रैनबेरी, शहतूत जैसे कई फल उगाए हैं।
बगीचे में मेथी, पालक, सरसों, रॉकेट लीव्स, , वाइल्ड ऑक्सालिस, धनिया, रोज़ेला, व्हीटग्रास भी हैं। कई औषधीय पौधे भी हैं, जैसे कि पुदीना, तुलसी, थाई बेसिल, कपूर तुलसी, अजवाइन, सौंफ, कैमोमाइल, अश्वगंधा आदि।
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विपेश का मानना है कि बागवानी जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है जिसने उन्हें कई तरह से आगे बढ़ने में मदद की है। वह कहते हैं “हर बार जब मैं बगीचे में कदम रखता हूं, मैं प्रकृति से जुड़ा हुआ महसूस करता हूं। मुझे बहुत शांति मिलती है। बागवानी ने मुझे धैर्य रखना और जब तक लक्ष्य हासिल ना हो कोशिश करते रहना सिखाया है।”
(सभी तस्वीर साभार - विपेश गर्ग )
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