Powered by

Home अनमोल इंडियंस राजस्थान: किसान के बेटे ने IAS बनकर बदली लाखों लोगों की ज़िंदगी!

राजस्थान: किसान के बेटे ने IAS बनकर बदली लाखों लोगों की ज़िंदगी!

जालोर में बाढ़ के दौरान इस अफसर ने अपनी जान पर खेलकर 8 लोगों की जान बचाई थीं, जिसके लिए उन्हें 'उत्तम जीवन रक्षा पदक' से नवाज़ा गया है!

New Update
राजस्थान: किसान के बेटे ने IAS बनकर बदली लाखों लोगों की ज़िंदगी!

"लाल बत्ती वाली गाड़ी, देखो कलेक्टर बाबू आया।"

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के धनासर गाँव में जब भी किसी कलेक्टर की गाड़ी गुजरती तो बच्चे यही चिल्लाते हुए उस गाड़ी के पीछे भागते। बच्चों को यूँ चिल्लाते देख, अक्सर एक किसान, मोहन लाल सोनी अपने बेटे, जितेंद्र को कहते, "देख बेटा, एक दिन तू भी बनेगा, कलेक्टर।"

उस समय तक, उनके घर में किसी ने स्कूल तक की भी पढ़ाई कभी पूरी नहीं की थी। ऐसे में, बेटे के कलेक्टर बनने का सपना सिर्फ सपना ही लगता था। पर जितेंद्र ने अपने पिता के इस सपने को अपनी मेहनत के बल पर हक़ीकत में बदला।

"मुझे अभी भी याद है जब मैं पढ़ने बैठता था तो मेरी माँ, रेशमा जो कभी स्कूल नहीं गयीं, उन्हें अक्सर लगता था कि कहीं मैंने किताब उल्टी तो नहीं पकड़ी है। उनके लिए शिक्षा के दरवाजे कभी नहीं खुले थे पर उन्हें भरोसा था कि मेरी ज़िन्दगी ज़रूर बदल सकती है और बदली भी," जितेंद्र ने कहा।

publive-image
IAS Jitendra Soni

आईएएस अफसर बनने की राह में उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। उन्होंने आर्थिक परेशानियाँ तो झेली हीं, पर सबसे ज्यादा मुश्किल वक़्त था जब उनकी बड़ी और इकलौती बहन की मृत्यु हुई। पर उन्होंने इससे उबरकर भी अपना संघर्ष जारी रखा।

जितनी उनकी अपनी ज़िन्दगी की कहानी प्रेरणादायक है, उतने ही उनके द्वारा लोगों के लिए किये गए काम हैं। उन्होंने अब तक जितने भी प्रोजेक्ट हैंडल किये हैं, सभी आम लोगों के लिए काफी प्रभावशाली रहे हैं।

विद्याप्रवाहिनी:

साल 2011 में उन्हें प्रोबेशनरी अफसर के तौर पर राजस्थान के पाली में पोस्टिंग मिली और यहां पर उन्होंने अपना पहला सोशल वेलफेयर प्रोजेक्ट- स्कूल-ऑन-व्हील्स शुरू किया। इसे उन्होंने 'विद्याप्रवाहिनी' नाम दिया- इसके अंतर्गत बसों में प्रोजेक्टर्स लगाये गए, जिन पर एजुकेशनल ऑडियो और वीडियो कंटेंट चलाया जाता है।

यह भी पढ़ें: इन 10 प्रशासनिक अधिकारीयों ने अपने क्षेत्रों में किये कुछ ऐसे पहल, जिनसे मिली विकास की राह!

जिला अधिकारी और उनके वॉलंटियर्स शाम को झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर बच्चों को दो घंटे तक पढ़ाते। "इस पहल का पूरे दिल से स्वागत हुआ और इसकी पूरी फंडिंग कुछ अच्छे और नेक लोगों ने डोनेशन के ज़रिए की," उन्होंने बताया।

बाद में, उनकी पोस्टिंग माउंट आबू के सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट के रूप में हुई और यहां पर उन्होंने टूरिज़्म प्रमोशन और नक्की झील के रख-रखाव के काम पर फोकस किया।

चरण पादुका अभियान:

publive-image

इस आईएएस अफसर को जालोर के कलेक्टर के तौर पर काफी प्रशंसा मिली। यहां पर उनका सबसे सफल अभियान था, चरण पादुका अभियान।

इस बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, "वह दिसंबर का महीना था और मैं एक सरकारी स्कूल का दौरा कर रहा था। यहाँ पर मैंने देखा कि बहुत से बच्चों ने एकदम फटे हुए जूते-चप्पल पहने हुए थे और ठंड से उनका कोई बचाव नहीं हो रहा था। मेरी आंखों में यह देखकर आंसू आ गए और मैंने उसी दिन बच्चों में जूते खरीदकर बांटे।"

यह भी पढ़ें: बिना किसी फीस के छात्रों के हक की कानूनी लड़ाई लड़ रहा है यह संगठन!

बाद में, जब ग्राम पंचायत ने अपना सर्वे किया तो पता चला कि लगभग 25 हज़ार से ज़्यादा बच्चे बिना ढंग के जूते-चप्पलों के स्कूल जा रहे थे।

"तब हमने एक स्कीम, चरण पादुका अभियान के तहत उन्हें मुफ्त जूते-चप्पल देने का तय किया। हमने इसके बारे में अपने फेसबुक पेज पर भी पोस्ट किया। 15 दिन से भी कम समय में हमारे पास लोगों की ओर से मदद मिलनी शुरू हो गई और सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि न्यूयॉर्क और चीन से भी हमें मदद मिली। हमने 30 हज़ार से भी ज़्यादा छात्रों को जूते-चप्पल दिए। सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद राज्य सरकार ने भी इस पहल की सराहना की और मुख्यमंत्री ने पूरे राज्य में चरण पादुका अभियान चलाने के आदेश दिए," जितेंद्र ने बताया।

अब तक, इस पहल से 1 लाख 76 हज़ार छात्रों को मदद मिली।

बचायी लोगों की जान:

publive-image
A snapshot of him saving the kids

इस आईएएस अफसर ने सिर्फ स्कूल के बच्चों की ही ज़िंदगी में बदलाव नहीं किया बल्कि जालोर में बाढ़ के दौरान उन्होंने अपनी जान दांव पर लगाकर 8 लोगों की जान बचाई थी। इसके लिए उन्हें उत्तम जीवन रक्षा पदक से नवाज़ा गया है।

27 जुलाई 2016 को जब जालोर का एक इलाका बाढ़ की चपेट में आया तो जितेंद्र और उनकी टीम को आठ लोगों के फंसे होने की सूचना मिली। उन लोगों को बचाने का उनका पहला प्रयास असफल रहा क्योंकि खतरा बहुत अधिक था। दूसरी बार उन्होंने एयरक्राफ्ट की मदद ली। वहां सब जगह पानी भरा था और फंसे हुए लोगों के परिवार का एक सदस्य उन्हें बचाने के लिए कूदना चाहता था। जितेंद्र उन्हें मरने नहीं दे सकते थे और इसलिए वह खुद उन लोगों को बचाने के लिए कूद गए।

जितेंद्र ने इस बारे में कहीं किसी को नहीं बताया फिर भी उनकी एक तस्वीर वायरल हो गयी और उन्हें बाद में पता चला कि एयरक्राफ्ट के पायलट ने उनकी तस्वीर ली थी।

भलाई के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल: 

publive-image
Launching Rakhtakosh

फ़िलहाल, वह राजस्थान अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के डायरेक्टर हैं और उन्हें अच्छे से पता है कि तकनीक का इस्तेमाल अच्छे प्रशासन के लिए कैसे किया जाता है।

उन्होंने नरेगा प्रोजेक्ट्स के काम को रियल टाइम में ट्रैक करने के लिए मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम शुरू किया। इसके लिए उन्हें स्टेट ई-गवर्नेंस और सीएसई-ई-गवर्नेंस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

उन्होंने दिन-प्रतिदिन की प्रशासनिक गतिविधियों में भी टेक्नोलॉजिकल प्रोग्राम शुरू किये जैसे पोल डे एसएमएस मॉनिटरिंग सिस्टम, सरकारी स्कूलों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम, और शिकायतों व समाधानों के लिए एक व्हाट्सअप बेस्ड सिस्टम आदि।

यह भी पढ़ें: जंगल मॉडल खेती: केवल 5 एकड़ पर उगाए 187 किस्म के पेड़-पौधे, है न कमाल?

झालावाड़ में भी जब वह कलेक्टर के पद पर कार्यरत थे तो उन्होंने दुर्लभ ब्लड ग्रुप O निगेटिव के लोगों को एक प्लेटफार्म पर लाने के लिए भी पहल की। ताकि वे समय रहते ज़रूरतमंद लोगों की मदद कर पायें। उनकी यह पहल कभी सिर्फ व्हाट्सअप पर शुरू हुई थी लेकिन आज यह 'रक्तकोष' नामक एप्लीकेशन बन चुकी है। इस एप्लीकेशन के ज़रिए 24x7 लोगों की मदद की जा रही है।

अब तक इस पहल से 8 हज़ार लोगों की जान बचाई गयी है।

ई-ज्ञानकेंद्र:

publive-image
Winning the World Education Summit award

जितेंद्र की इस पहल को प्रधानमंत्री की खास 66 पहल की लिस्ट में जगह मिली है। इसके अंतर्गत, उन्होंने जिले के एक शहर में फ्री वाई-फाई फैसिलिटी शुरू की। लेकिन युवा बच्चे इस सुविधा का गलत इस्तेमाल न करें इसलिए उन्होंने ई-ज्ञानकेंद्र के नाम से एक वाई-फाई हॉटस्पॉट बनाया। क्लिक कीजिये और पासवर्ड डालिए (जो सभी के लिए उपलब्ध है), आप कक्षा 6 से लेकर कक्षा 10 तक का एजुकेशनल कंटेंट वीडियो फॉर्म में डाउनलोड कर सकते हैं। ये कंटेंट टेक्स्टबुक और अन्य ऑनलाइन एजुकेशनल वेबसाइट से मदद लेकर तैयार किया गया है ताकि बेहतर तरीके से बच्चों की मदद हो। यह कंटेंट सभी बच्चे मुफ्त में डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं।

"पहले महीने में ही, लगभग 9000 जीबी डाटा डाउनलोड किया गया," उन्होंने बताया।

दूसरे राज्यों में भी इस प्रोजेक्ट को किया गया और इसके अलावा, उन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए 2018 में वर्ल्ड एजुकेशन अवॉर्ड से नवाज़ा गया।

अवॉर्ड्स:

आईएएस जितेंद्र को उनके प्रोजेक्ट्स के लिए बहुत से सम्मानों से नवाज़ा गया है। उन्होंने राज्य स्तर पर सर्वश्रेष्ठ कलेक्टर के साथ साथ नरेगा प्रशासन अधिकारी का भी पुरस्कार जीता । उन्हें चरण पादुका और अन्य पहलों के लिए गवर्नेंस में प्रतिष्ठित कलाम इनोवेशन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

हाल ही में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर जी-फाइल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया, जो प्रशासन में असाधारण उपलब्धियों के लिए सिविल अफसरों को दिया जाता है।

सुशासन के ज़रूरी बिन्दुओं के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "चार मुख्य बाते हैं, एक संवेदनशील प्रशासन, सबसे अलग समाधान, क्रियाताम्क सोच और नव-लोक प्रशासन। हमारी पहल सिर्फ प्रशासनिक ढांचे तक ही सीमित नहीं रह सकती, बल्कि हमें हर एक आम आदमी की सेवा के लिए कोशिश करनी होगी। मैं महिलाओं, बुजुर्गों, बच्चों और दिव्यांगों को सशक्त करना चाहता हूँ," उन्होंने कहा।

यह भी पढ़ें: टिकट कलेक्टर से जिला कलेक्टर बनने तक का सफ़र!

साथ ही, वह इस बात पर भी जोर देते हैं कि अपनी पर्सनल लाइफ और अपने काम के बीच बैलेंस बनाना ज़रूरी है। अपने थकान भरे दिन के बाद जब वह घर जाते हैं तो 'आईएएस' शब्द को बाहर छोड़कर जाते हैं। क्योंकि अपने घर की चारदीवारी में वह सिर्फ जितेंद्र हैं, एक अच्छे पति और ज़िम्मेदार पिता।

"इस बैलेंस को बनाए रखने एक लिए मैं किताबें, कविताएं लिखता हूँ और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी भी करता हूँ। मैं लोगों को यही कहता हूँ, "मैं व्यस्त हूँ अतव्यस्त नहीं हूँ।' कभी-कभी कदम पीछे लेकर शांति में भी समय बिताना चाहिए।"

उन्होंने कई बेस्ट-सेलिंग किताबें लिखी हैं और दो कॉफ़ी टेबल बुक के लिए तस्वीरें खिंची हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ और भी कई साहित्यिक सम्मानों से नवाज़ा गया है।

publive-image

और अंत में वह सभी यूपीएससी प्रतिभागियों के लिए एक सन्देश देते हैं, "मुझे ऐसे बहुत से प्रतिभागी मिलते हैं जो साधनों की कमी के बारे में शिकायतें करते हैं। मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ कि कोई फर्क नहीं पड़ता अगर आप किसी साधारण स्कूल में पढ़ रहे हैं या फिर आप एक पिता हैं जो यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। अगर आपने तय कर लिया है कि आप ये करना चाहते हैं तो खूब मेहनत करें और अपना बेस्ट दें। अगर मैं लाखों चीजें करते हुए यह कर सकता हूँ तो आप भी कर सकते हैं। मोटिवेशन तलाशें, बहाने नहीं।"

यदि इस कहानी ने आपको प्रभावित किया है तो आईएएस जितेंद्र कुमार सोनी से फेसबुक, ट्विटर और इन्स्टाग्राम के माध्यम से जुड़ सकते हैं!

संपादन- अर्चना गुप्ता

मूल लेख: जोविटा अरान्हा


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें [email protected] पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।