एक शख्स ने पूरे गाँव को बना दिया ब्लू पॉटरी कलाकर और विदेशों तक लहराया भारत का परचम

राजस्थान की मशहूर ब्लू पॉटरी कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने में कोट जेवर के रामनारायण प्रजापत का बड़ा योगदान है। आज वह अपने गांव के लोगों के साथ मिलकर अपने प्रोडक्ट्स को विदेश तक पहुंचा रहे हैं।

Traditional Indian Craft Blue Pottery Art

राजस्थान, अपने बड़े-बड़े किलों और महलों के लिए जितना जाना जाता है, उतना ही यहां की सस्कृति के लिए भी। देश से लेकर विदेशों तक के लोग यहां के संगीत, पहनावे और कला के दीवाने हैं। ऐसी ही एक कला 'ब्लू पॉटरी' भी है। मुगलकाल से प्रचलित हुई इस कला को राजस्थान में लाने का श्रेय महाराजा राम सिंह को जाता है। बिना मिट्टी का उपयोग किए हाथ से बनाए गए ये सुंदर बर्तन और सजावटी सामान आज राजस्थान की पहचान बन गए हैं। जयपुर से तक़रीबन 50 किमी दूर बसा एक छोटा सा गांव 'कोट जेवर' ब्लू पॉटरी कलाकारों का हब है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जयपुर या दूसरे किसी शहर में बिकने वाले ये सुंदर नीले रंग के ज्यादातर प्रोडक्ट्स इसी गांव से बनकर आते हैं। 

इसी गांव में तक़रीबन 40 साल पहले रामनारायण प्रजापत ने, गांववालों के साथ मिलकर ब्लू पॉटरी का बिज़नेस शुरू किया था। आज,  राजस्थान की इस शिल्प कला को आगे ले जाने में, उनके बेटे उनका साथ दे रहे हैं।

द बेटर इंडिया ने रामनारायण के बेटे विमल प्रजापत (22) से बात की और जाना कि कैसे उनके पिता ने, इस लुप्त होती कला को एक बार फिर से जीवित किया और इसे इतना लोकप्रिय बनाया?

साल 2019 में, 'रामनारायण ब्लू आर्ट पॉटरी' को भारत के बेस्ट MSME  ब्रांड  का अवॉर्ड भी मिल चुका है। 

Traditional Indian Craft Blue Pottery Art by ramanarayan prajapat
रामनारायण प्रजापत

किसान से बने कलाकार 

विमल बताते हैं, "तक़रीबन 40 साल पहले मेरे पिता खेती से जुड़े थे। चूँकि, खेती से घर का खर्च चलाना बेहद मुश्किल था, इसलिए उन्होंने मात्र 15 साल की उम्र में जयपुर जाकर ब्लू पॉटरी कला सीखी। बाद में, उन्होंने गांववालों को भी घर-घर जाकर इसकी ट्रेनिंग दी।" साल 1980 में रामनारायण ने खेती के साथ-साथ, ब्लू पॉटरी के प्रोडक्ट्स भी बनाना शुरू किया। उनके साथ 300 अन्य लोग, यानी की पूरा गांव ही इस काम से जुड़ गया। 

उस समय गांव में कोई बुनियादी सुविधा न होने के कारण,  उन्हें कई तकलीफों का सामना भी करना पड़ा था। विमल कहते हैं, "उन दिनों गांव में  बिजली, स्वास्थ्य और यातायात की सुविधा नहीं थी। बिज़नेस के लिए सारा जरूरी सामान मेरे पिता पैदल चलकर जयपुर से लाया करते थे।"

उन्हें, अपने द्वारा बनाए गए सामान को बेचने के लिए शहर तक जाना पड़ता था। वहीं, खरीददारों को भी ब्लू पॉटरी प्रोडक्टस के लिए कोट जेवर तक आना पड़ता था। सही मार्केटिंग और सुविधा के आभाव में, उन्हें नुकसान होने लगा। जिसकी वजह से उन्हें यह काम बंद करना पड़ा। 

हालांकि, रामनारायण इस कला को कभी छोड़ना नहीं चाहते थे। साल 1995 में, उन्होंने एक बार फिर इसकी शुरुआत की और इस दौरान उन्हें कई बड़ी-बड़ी कंपनियों से ऑर्डर मिलने लगे। धीरे-धीरे गांव के और लोग भी इससे जुड़ गए। 

आज वह 'ग्रामीण ब्लू आर्ट पॉटरी समिति" के प्रमुख भी हैं।  जिसके तहत लोगों को यह कला सिखाई जाती है।  

Traditional Indian Craft

100% हैंडमेड 

आमतौर पर पॉटरी का मतलब, हम मिट्टी के बर्तन ही समझते हैं। जबकि इसे बनाने में सामान्य मिट्टी नहीं, बल्कि मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। नीले रंग के सूंदर नक्काशी वाले इन प्रोडक्ट्स को हाथों से तैयार किया जाता है। ये दिखने में बिल्कुल चीनी मिट्टी के बर्तन के समान होते हैं। इसमें ग्लास पाउडर, मुल्तानी मिट्टी, कतीरा गम आदि के मिश्रण को अलग-अलग बर्तन या पॉट के सांचे में डाला जाता है। जिसके बाद, इसमें राख भरकर सूखने के लिए रखा जाता है। बाद में, इसमें रंग आदि से फिनिशिंग दी जाती है। यह पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली और हैंडमेड प्रोडक्ट हैं। हर एक प्रोडक्ट बनने में 15 दिन का समय लगता है। 

विमल बताते हैं, "शुरुआती दिनों में मेरे पिता अपनी खेती से पैसे बचाकर इसे बनाया करते थे। जबकि उन्हें पॉटरी को बनाने में की गई मेहनत की कीमत भी नहीं मिल पाती थी। लेकिन समय के साथ, लोग इस कला को समझने लगे और हमें भी इसका फायदा मिला।"

Blue pots

गांव की कला पहुंची विदेश तक 

'रामनारायण ब्लू आर्ट पॉटरी' ने साल 2000 में Hannover expo (Germany), 2019 में vibrant Gujarat summit सहित कई देशी और विदेशी प्रदर्शनियों में भाग लिया है। फिलहाल रामनारायण के दोनों बेटे, विमल और नंदकिशोर भी बिज़नेस में जुड़कर, इसे नई ऊचाइयों तक ले जाने के प्रयास में लगे हैं। विमल ने बताया कि उन्हें देश की अलग-अलग कम्पनियों के अलावा UK और US से भी ऑर्डर्स मिले हैं। इस साल उन्हें 50 लाख के टर्नओवर की उम्मीद है।  

A craftsman making pot
विमल प्रजापत

वह बताते हैं, “हमारे ज़रिये आज गांव के कई लोगों को रोजगार मिल रहा है। इसलिए मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा काम मिलता रहे। 

कोट जेवर का हर घर, आज इस कला को जीवित रखने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है। तो अगली बार आप जब भी राजस्थान घूमने जाएं, तो इस गांव में ज़रूर जाएं।  

आप इनके ब्लू पॉटरी प्रोडक्ट्स की ज्यादा जानकारी या इसे खरीदने के लिए इनके इंस्टाग्राम पेज और वेबसाइट भी देख सकते हैं।

संपादन – अर्चना दुबे

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