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महाराष्ट्र के पुणे के पास पाटस गाँव के रहने वाले संदीप विश्राम घोले एक इनोवेटिव किसान हैं, जिन्होंने प्याज की एक ख़ास तरह की किस्म इजाद की है। हल्के लाल रंग की प्याज की इस वैरायटी में पर्पल ब्लोटच यानी कि बैंगनी धब्बों के रोग की प्रतिरोधक क्षमता है और साथ ही, इसकी सेल्फ लाइफ भी बाकी किस्मों से ज़्यादा है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए 34 वर्षीय संदीप ने बताया कि ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने अपने बुजुर्ग पिता का हाथ बंटाने के लिए लगभग 10-12 साल पहले खेती शुरू की थी। उनके यहाँ ज़्यादातर गन्ने और प्याज की खेती होती है। जब संदीप ने किसानी शुरू की तो उन्होंने अपने पिता और अन्य किसानों की तरह पारम्परिक तरीकों से ही फसल उगाई।
"उस वक़्त कोई ख़ास बचत नहीं होती थी। लगातार कई सालों से प्याज की पैदावार बिल्कुल भी अच्छी नहीं हो रही थी। ऐसे में, मैंने साल 2008 में महाराष्ट्र के ही एक सफल किसान दत्ता राव वने के बारे में पढ़ा। उनसे मिलकर मैंने उनसे नवाचारी खेती के बहुत से गुर सीखे। उन्होंने मुझे बताया कि हमें किसानी में भी ऑडिट के कॉन्सेप्ट के बारे में सोचना होगा। हमें अपने खेतों की मिट्टी, खाद, उर्वरक, बीज, सिंचाई आदि सभी कृषि संबंधित चीज़ों पर गौर करना होगा,"संदीप ने कहा।
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वने से मिलने के बाद, संदीप ने उनके सिखाए हुए सभी गुरों को अपनी 12 एकड़ ज़मीन पर इस्तेमाल करना शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले अपने खेतों की मिट्टी को उपजाऊ करने के लिए धीरे-धीरे उर्वरकों की जगह जैविक खाद डालना शुरू किया। इसके अलावा, उन्होंने अपने खेतों में अदल-बदल कर खेती की, जैसे कि जिस एक एकड़ में इस सीजन में गन्ने की खेती की है, उसमें अगले सीजन में मूंगफली की खेती करेंगे।
साथ ही, उन्होंने अपने खुद के देसी बीज बनाना शुरू किया। काफ़ी समय तक उन्होंने अपने प्याज की फसल पर फोकस किया। उन्होंने महाराष्ट्र के कई इलाकों में उगाई जाने वाली स्थानीय प्याज की वैरायटी फुरसुंगी में लगातार संशोधन किए। उन्होंने फसल में से उन पौधों को छांटा, जो आकार में बड़े थे, जिसमें कई परतें थी और जिसमें पत्तियों का एक ही गुच्छा था। पूरे दस साल तक उन्होंने प्याज के इन बीजों को इकट्ठा किया और फिर आखिरकार, साल 2016 में उन्होंने इस वैरायटी को स्टेबल कर लिया।
उन्होंने आगे बताया कि प्याज की इस किस्म से उन्हें फसल उत्पादन में अच्छे परिणाम मिले। इसके बाद उन्होंने अपनी इस वैरायटी को नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) में भेजा। यहाँ पर विशेषज्ञों ने उनकी वैरायटी की जाँच के लिए बीजों को डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ, दापोली, महाराष्ट्र भेजा। साथ ही, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश और कर्णाटक आदि राज्यों के किसानों को भी ये बीज दिए।
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पूरे तीन साल की जाँच के बाद, NIF ने संदीप के प्याज की वैरायटी को संशोधित वैरायटी प्रमाणित किया। यहाँ पर उन्हें अपने इस नवाचार के लिए सम्मानित किया गया और साथ ही, इस वैरायटी को 'संदीप प्याज' का नाम दिया गया।
'संदीप प्याज' की ख़ासियत है कि ये प्याज बहुत जल्दी खराब नहीं होती और आप इन्हें लगभग 8-9 महीने तक स्टोर कर सकते हैं। साथ ही, हर एक प्याज का वजन, आकार और रिंग्स की संख्या भी सामान्य प्याज की किस्मों से ज़्यादा होती है। एक एकड़ में, सामान्य तौर पर 42-45 टन प्याज की फसल आप ले सकते हैं।
हालांकि, संदीप के नवाचार सिर्फ़ यहीं तक सीमित नहीं हैं। वे अपनी पूरी खेती इनोवेटिव तरीकों से करते हैं। संदीप बताते हैं,
"मैंने अपने खेतों में ड्रिप और स्प्रिन्क्ल इरिगेशन सिस्टम लगाया हुआ है। इससे हम खेतों को सिर्फ़ उतना ही पानी देते हैं जितनी फसल को आवश्यकता है। इसके अलावा, पिछले कई सालों के लगातार प्रयासों से, मैंने अपनी ज़मीन को 80% तक जैविक बना दिया है। ज़रूरत के हिसाब से अब मैं सिर्फ़ 20% तक ही रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करता हूँ।"
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संदीप की सफलता देखकर, उनके आसपास के किसान भी उनसे प्रेरित हो रहे हैं। आज संदीप व्हाट्सअप के ज़रिए लगभग 500 किसानों से जुड़े हुए हैं, जो उनसे खेती से संबंधित राय लेते रहते हैं। संदीप कहते हैं कि वे हमेशा कृषि से संबंधित कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि यदि आज हम खेती में नवाचार करेंगे तभी आगे बढ़ पाएंगे।
सिर्फ़ खेती से ही आज संदीप विश्राम घोले का सालाना टर्नओवर लगभग 10 लाख रुपए है। 'संदीप प्याज' वैरायटी के बीज खरीदने के लिए दूर-दूर से किसान उनके पास आते हैं। सामान्य वैरायटी के लिए जहाँ किसानों को प्रति किलो बीज पर 1500 रुपए देने होते हैं तो वहीं 'संदीप प्याज' के एक किलो बीज का मूल्य 2000 रुपए तक जाता है।
संदीप कहते हैं कि उन्हें अपनी प्याज की अलग से मार्केटिंग करने की भी ज़रुरत नहीं पड़ती है। क्योंकि जो भी किसान उनसे जुड़े हुए हैं और जिनके खेतों में उनकी सलाह के चलते आज पहले से ज़्यादा उत्पादन हो रहा है, वे खुद अन्य किसानों को संदीप से जोड़ते हैं।
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अंत में संदीप सिर्फ़ यही कहते हैं,
"सबसे पहले तो किसानों को अपनी मिट्टी को स्वस्थ बनाना होगा। जिस तरह से किसान बिना किसी नाप-तोल के रासायनिक उर्वरक खेतों में डाल रहे हैं, उससे उनकी लागत ज़्यादा आती है और पैदावार कम। इसलिए सबसे पहले तो धीरे-धीरे करके हमें अपने खेतों को रसायन की जगह जैविक खाद पर लाना होगा। इसके बाद, सिंचाई के तरीकों में फसल की ज़रुरत के हिसाब से बदलाव करना होगा और साथ ही, बीजों की वैरायटी पर भी बात करनी होगी। अगर सभी किसान पारम्परिक खेती की जगह इनोवेटिव तरीके अपनाएं, तो बेशक हम किसानी से कम लागत में ज़्यादा कमा सकते हैं।"
संदीप विश्राम घोले, हर संभव तरीके से किसानों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं। इसलिए किसी भी तरह के सुझाव और सलाह के लिए आप उन्हें 8390773654 पर कॉल कर सकते हैं!
संपादन - भगवती लाल तेली