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महाराष्ट्र में लातूर जिले के रहने वाले धनंजय राउत हमेशा से ही खेती में कुछ अलग करना चाहते थे। उनके पिता और आस-पास के किसान सामान्य खेती कर रहे थे लेकिन धनंजय की ख्वाहिश थी कि खेती में कुछ अलग किया जाए। इसके लिए उन्होंने एग्रीकल्चरल डिपार्टमेंट से पॉलीहाउस लगाने की ट्रेनिंग भी ली। वह बताते हैं, "पारंपरिक खेती में ज्यादा नहीं बचता था। ऐसे में एक ऐसे रास्ते की तलाश थी, जिसमें कम पानी में अच्छा नतीजा मिले। सबको पता है कि लातूर में पानी की समस्या कितनी रहती है। इसलिए मैं हाई टेक खेती करना चाहता था।"
जब वह पॉलीहाउस की ट्रेनिंग कर रहे थे तो वहाँ उनकी अलग-अलग क्षेत्रों से आए लोगों से मुलाक़ात हुई। उन्होंने वहाँ केरल से आए एक लड़के के साथ कमरा शेयर किया। धनंजय की उससे काफी अच्छी दोस्ती हो गई और वह लगातार उससे कोई न कोई खेती के विषय पर विचार-विमर्श करते। उनके दोस्त ने बातों ही बातों में उनसे चंदन की खेती करने के लिए कहा। हालांकि, उस वक़्त उन्होंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन इसके बाद, धनंजय एक और ट्रेनिंग के लिए लखनऊ गए और वहाँ उन्होंने एक्सपर्ट्स से पूछा की सूखा प्रभावित क्षेत्र में क्या उगाया जा सकता है?
"मुझे वहाँ भी चंदन ही जवाब मिला। मैं सोच में पड़ गया कि भला चंदन की खेती कैसे हो सकती है? यह तो जंगल आदि में यूँ ही हो जाता है और भी कई सवाल थे। इसके बाद, मैंने अपने केरल वाले दोस्त के यहाँ जाने का विचार बनाया और उसके घर त्रिशुर पहुँचा। वहाँ पता चला की उसके पिता डिस्ट्रिक्ट फारेस्ट ऑफिसर हैं और उन्होंने मुझे अपने डिपार्टमेंट में चंदन के अलग-अलग पेड़ दिखाए," उन्होंने आगे कहा।
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धनंजय ने उनके ऑफिस के बाहर एक चंदन का पेड़ देखा और पूछ लिया कि इस पेड़ की कीमत क्या होगी? उन्हें जवाब मिला एक-डेढ़ करोड़ रुपये। धनंजय कहते हैं कि उन्हें बिल्कुल भी विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना महंगा कैसे बिक सकता है चंदन लेकिन उनके दोस्त के ऑफिसर पिता ने उन्हें बहुत कुछ समझाया और बताया कि कैसे चंदन को कमर्शियल तौर पर किसान उगा सकते हैं।
लातूर लौटकर धनंजय ने अपने एक एकड़ ज़मीन पर लगभग 200 चंदन के पेड़ लगाए। चंदन की कमर्शियल वैल्यू बहुत ज्यादा है इसलिए वह इसकी खेती के लिए कृषि विभाग से भी मार्गदर्शन लेते रहे। वह बताते हैं कि जब एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट को पता चला कि कोई किसान ऐसा कुछ ट्राई कर रहा है तो उन्होंने दूसरे किसानों को भी बताया और फिर उनके यहाँ लगातार किसानों का, कृषि से जुड़े एक्सपर्ट्स का और मीडिया का भी आना शुरू हो गया। दूसरे किसान भी उनसे चंदन के पौधों की मांग करने लगे।
शुरू की अपनी नर्सरी
"इसकी बढ़ती मांग से मुझे ख्याल आया कि क्यों न हम लोगों को पौधे तैयार करके दें। चंदन की पौध बहुत आसानी से मिलती भी नहीं थी और वहाँ से हमारा कारवां शुरू हुआ। एक एकड़ से अब हम धीरे-धीरे करते हुए 10 एकड़ तक आ गए हैं। हमने अपने खेत में अब 3000 चंदन के पेड़ लगाए हुए हैं और बाकी में हमारा नर्सरी का काम होता है," उन्होंने आगे बताया।
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धनंजय कहते हैं कि शुरुआत में उन्होंने कम से ही शुरुआत की लेकिन फिलहाल वह हर साल लगभग 6 लाख चंदन के पौधे तैयार करते हैं। उनके पौधों का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितना बड़ा है। अगर सैप्लिंग एक-दो साल का है तो यह 10 रुपये का बिकता है। लेकिन अगर 4-5 साल का है तो 40 से 50 रुपये में जाता है। इसके साथ-साथ, वह दूसरे पौधे भी तैयार करते हैं।
धनंजय के मुताबिक, चंदन की फसल किसानों को इन्वेस्टमेंट के तौर पर लगानी चाहिए। आप शुरुआत में 8 से 10 पेड़ लगा लीजिये अपने खेत में और साथ में, सामान्य तरीकों से अपनी खेती करते रहिए। चंदन के पेड़ में बीमारी लगने का खतरा रहता है लेकिन यह ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसे कंट्रोल न किया जा सके।
"आप समय-समय पर नीम, हल्दी, अदरक, गौमूत्र आदि से पेस्टिसाइड बनाकर पेड़ों पर छिड़कते रहें। फिर कोई बीमारी नहीं लगेगी। इसके अलावा, खाद के लिए आप जीवामृत, या फिर वेस्ट डीकंपोजर का इस्तेमाल कर सकते हैं," उन्होंने कहा।
नर्सरी के साथ सहफसली भी
धनंजय ने नर्सरी का काम तो शुरू किया ही साथ ही, जिस ज़मीन पर उन्होंने चंदन लगाये उसी में दूसरी फसलें भी वह उगा रहे हैं। वह बताते हैं कि उनका काम सफेद चंदन का है और यह अर्ध-परजीवी पेड़ है। "परजीवी का मतलब है कि यह किसी दूसरे पेड़ से अपना खाना-पीना लेता है। चंदन के पेड़ के साथ आप दूसरी फसलें जैसे सीता फल, चीकू, और हल्दी आदि उगा सकते हैं। जैसा की वह खुद उगा रहे हैं।”
सफेद चंदन से आपको लगभग 20 साल बाद लकड़ी मिलती है और इसलिए किसान सिर्फ इस पर आधारित नहीं हो सकता है। सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप एक एकड़ में चंदन के पेड़ लगाएं और उसी खेत में नीचे दूसरी फसलें आप लेते रहें जैसे धनंजय ने कुछ क्षेत्र में सीताफल, कुछ चीकू आदि लगाये हुए हैं। इसके अलावा, एक एकड़ में वह काली हल्दी की खेती कर रहे हैं।
काली हल्दी की सफल खेती
हिमाचल प्रदेश में एक दौरे के दौरान उन्होंने काली हल्दी की फसल देखी और खुद ट्राई करने के उद्देश्य से ले आए। उन्होंने अपने खेत में कोई 8-10 पौधे लगा लिए। उसी दौरान उनके यहाँ बाहर से किसी आयुर्वेदिक जानकार का आना हुआ। "उन्होंने उस हल्दी को देखकर मुझसे कहा कि आपको यह कहाँ से मिली? इसके बाद चर्चा करते हुए मुझे पता चला कि काली हल्दी का बहुत ज्यादा मेडिसिनल इस्तेमाल होता है। इसके बाद, मुझे जो भी उपज मिली उन 8-10 पौधों से उसे मैंने फिर से काली हल्दी उगाने के लिए इस्तेमाल किया और इस तरह से करते-करते, एक एकड़ में फसल लगाने लायक हल्दी हो गई," उन्होंने बताया।
काली हल्दी के लिए उन्हें कहीं भी बाजार ढूंढने की ज़रूरत नहीं पड़ी। बल्कि उनके पास काली हल्दी की मांग इतनी है कि उन्होंने बहुत ज्यादा मूल्य पर भी इसे बेचा है। वह कहते हैं कि उनसे आयुर्वेदिक कंपनियों और किसानों ने भी काली हल्दी के लिए संपर्क किया। शुरुआत में उन्होंने इसका मूल्य हज़ार रुपये किलो रखा था लेकिन फिर जब मांग बढ़ी तो उन्होंने इसे 1500 रुपये कर दिया।
"आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन फिलहाल इस साल में मैंने 5 हज़ार रुपये किलो के हिसाब से भी बेची है। खैर ये तो मांग और आपूर्ति के हिसाब से है। लेकिन सामान्य स्थिति में भी किसान इसे 300 से 400 रुपये किलो तक के हिसाब से बेच सकता है," वह आगे कहते हैं।
धनंजय के मुताबिक, हर उस क्षेत्र में काली हल्दी हो सकती है जहाँ सामान्य हल्दी की फसल हो रही है। इसकी खेती जैविक तरीकों से अच्छा उत्पादन देती है और सबसे अच्छी बात है कि काली हल्दी को कोई पॉलिश नहीं करना पड़ता बल्कि इसकी गाँठ के रूप में ही काफी अधिक मांग है।
किसान कैसे कर सकते हैं शुरुआत
धनंजय कहते हैं कि काली हल्दी लगाने के लिए एक साथ बीज खरीदना छोटे किसानों के लिए मुश्किल रहेगा। लेकिन अगर किसान बहुत कम से शुरुआत करे तो वह खुद ही अपना बीज बना सकते हैं। आप 10-15 पौधों से शुरुआत कर सकते हैं। इसमें ज्यादा जगह भी नहीं जाएगी। बस याद रहे कि हल्दी एक कंद है इसलिए जहाँ भी इसे लगाएं, ध्यान रखें कि वहाँ ज़मीन में पानी न ठहरता हो। अगर पानी इसमें ठहरा तो यह फसल खराब हो जाएगी। काली हल्दी उगाएं और फिर इससे जो उपज मिले, उसी से बीज बनाकर फिर से बो दें।
दो-तीन बार की फसल में ही आपको एक एकड़ में उगाने के लिए फसल मिल जाएगी। तब किसानों को बड़े स्केल पर इसे लगाना चाहिए और मार्किट करना चाहिए।
चंदन से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें
धनंजय बताते हैं कि लोगों को लगता है कि चंदन के खेतों में साँप बहुत ज्यादा हो जाएंगे। लेकिन यह सिर्फ एक मिथक है, ऐसा नहीं होता है। इसके अलावा, लोगों को यह भी लगता है कि अगर चंदन चोरी हो गया तो किसान को जेल हो जाती है और भी कई भ्रम हैं।
"आपको चंदन की लकड़ी काटने के लिए वन-विभाग या फिर अपने इलाके के कलेक्टर, तहसीलदार से एक एनओसी चाहिए होती है, जो आसानी से आपको मिल जाएगी। क्योंकि आप अपने खेत की लकड़ी काट रहे हैं, जिसे आपने खुद उगाया है। बाकी चोरी की बात ऐसी है कि अगर कभी ऐसा कुछ हो तो आप तुरंत एफआईआर कराएं। कहीं भी कोई ऐसा कानून नहीं है कि किसान चंदन की खेती नहीं कर सकता है। इसमें आपको 20-25 साल इंतज़ार करना पड़ता है इसलिए किसान नहीं लगाते," उन्होंने आगे कहा।
किसानों के लिए धनंजय ने 6 से 7 चंदन के साथ सहफसली करने लगाने वाले मॉडल तैयार किए हैं। इनके बारे में वह किसानों को बताते भी हैं और प्रेरित भी करते हैं। उनका मानना है कि चंदन और काली हल्दी दो ऐसी फसलें हैं जो अगर सही तरीकों से की जाए तो किसान की आय यक़ीनन दुगुनी हो जाएगी।
धनंजय को अपने नर्सरी और सहफसली के मॉडल से सालाना एक करोड़ रुपये तक की कमाई हो रही है। वह कहते हैं कि इस सीजन में उन्हें लगभग 10 लाख रुपये की कमाई सिर्फ काली हल्दी से हुई है। लगभग 14 राज्यों में उनके चंदन के पेड़ की पौध जाती है और इसके अलावा, वह फल और सब्जियां भी उगाकर बेचते हैं।
बेशक, धनंजय का मॉडल किसानों के लिए कारगर साबित हो सकता है, ज़रूरत है तो बस सही मार्गदर्शन की!
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