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अपनी आगामी फिल्म 'फादर्स डे' में अभिनेता इमरान हाशमी एक रियल लाइफ जासूस का किरदार निभाने जा रहे हैं। यह जासूस और कोई नहीं बल्कि भारत के टॉप डिटेक्टिव में से एक सूर्यकांत भांडे पाटिल हैं।
सूर्यकांत ने अब तक लगभग 120 से भी ज्यादा अपहरण हुए बच्चों के केस सुलझाए हैं और वो भी बिना किसी फीस के।
पर ऐसा क्या हुआ कि सूर्यकांत बिना फीस के जासूसी करने लगे? आईये जानते हैं असल ज़िन्दगी के सूर्यकांत की कहानी!
सूर्यकांत के परिवार के लिए वह एक नियमित दिन था। वे महाराष्ट्र के सातारा जिले के शिरवल गाँव में अपने नए घर में शिफ्ट हुए थे और घर में काम अभी चल ही रहा था। उनका तीन साल का बेटा संकेत स्कूल गया हुआ था। सूर्यकांत अपनी सिविल इंजीनियरिंग बिजनेस साइट में व्यस्त थे। उनकी पत्नी प्रतिभा, जो ज़िला परिषद स्कूल में टीचर थी, घर की देख-रेख में लगी हुई थी।
उनके लिए वो बहुत प्यारा समय था - एक छोटे से गांव में खूबसूरत सा घर, जहां वे शहर की भाग-दौड़ की ज़िन्दगी से दूर शांति में रह सकते थे। और उनके बेटे संकेत के खलने के लिए भी यहाँ भरपूर जगह थी।
दिन के 12 बज रहे थे और संकेत इस वक़्त तक घर आ जाता था, लेकिन उस दिन वक़्त ज्यादा हो गया था।
इसलिए सूर्यकांत ने प्रतिभा को फ़ोन किया और पूछा कि क्या वो संकेत को स्कूल से ले आई है। पर जबाव 'ना; में आया। क्योंकि प्रतिभा को लगा कि सूर्यकांत संकेत को ले आये हैं।
दोपहर दो बजे, उन्हें लैंडलाइन पर एक अजनबी का फोन आया। संकेत का अपहरण कर लिया गया था, और अपहरणकर्ता ने 1 लाख रूपये की फिरौती मांगी थी।
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सूर्यकांत और प्रतिभा दोनों यह सुनकर चौंक गये। उनके तो जैसे पाँव के निचे से ज़मीन निकल गयी थी। उनकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे छोटे, सुरक्षित गांव में यह कैसे हो सकता है?
लेकिन यह सच था। स्कूल के बाद तीन वर्षीय संकेत का अपहरण कर लिया गया था, और उसे छुड़ाने के लिए अपहरणकर्ताओं की मांगों को पूरा करना ही एकमात्र तरीका था।
सूर्यकांत कुछ भी करने के लिए तैयार थे। "मैं अपने बच्चे को वापस चाहता था। और केवल यही मुझे पता था," उन्होंने कहा।
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लेकिन यह मामला एक मांग से खत्म नहीं होने वाला था। अगले छह महीनों में सूर्यकांत ने हर संभव प्रयास किया -रिश्तेदारों से बात की, पुलिस की मदद ली और हर तरिके से पैसा भी लगाया अपहरणकर्ताओं का पता लगाने के लिए। क्योंकि संकेत अभी भी उनके पास था। इस बार उन्होंने पूरी तैयारी के साथ अपहरणकर्ता के फ़ोन का इंतज़ार किया। जैसे ही फ़ोन आया, उसे टैप किया गया और जानकर बातचीत लम्बी करने की कोशिश की ताकी उनकी जगह का पता लगाया जा सके।
सूर्यकांत ने बताया, "मैं सादे कपड़े पहने हुए एक पुलिस वाले के साथ बाइक पर गया। अपहरणकर्ता ने हमें एक जगह 1 लाख 15 हज़ार रूपये का बैग छोड़कर जाने के लिए कहा। वह जगह मुख्य सड़क से कुछ मिनटों की दुरी पर थी। "मैंने वहां बैग छोड़ा, और हम मुख्य सड़क के पास एक छोटी-सी पहाड़ी की तरफ चले गए। जब हम 3-4 मिनट के बाद उस जगह पर लौट आए, तो बैग वहां नहीं था।"
अपराधी को पकड़ने की पूरी योजना के बावजूद दूसरी फिरौती के पैसे लेकर अपहरणकर्ता फरार हो गया।
अपहरणकर्ता की दूसरी फिरौती की मांग के लगभग एक महीने बाद पुणे के पुरंदर में एक और अपहरण हुआ। सूर्यकांत और पुलिस के पास अपहरणकर्ता को पकड़ने का ये एक और मौका था, जब वह पकड़ा भी गया। दरअसल, अपहरणकर्ता एक बढ़ई था, जो पुरंदर में एक कार्यालय में काम करता था। उसने एक महीने में दो बच्चों का अपहरण किया था। सबसे बुरी बात यह थी कि इसी बढ़ई ने सूर्यकांत के ऑफिस में काम किया था।
हैंडराइटिंग मिलाकर, पड़ोसियों से पूछताछ कर और देर रात उसके घर में घुसकर छानबीन करने के बाद, पुलिस ने उसे हिरासत में लेकर कड़ी पूछताछ की। जिसके बाद उसने कुबूल किया कि उसी ने संकेत का भी अपहरण किया था। आखिरकार सूर्यकांत ने उस शैतान को पकड़ ही लिया जो उनके नन्हें बेटे को उनसे दूर ले गया था।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी - संकेत तब तक मर चूका था।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई अन्य माता-पिता इसी तरह के दर्द से ना गुजरे, सूर्यकांत ने लाइसेंस के साथ एक निजी जासूसी एजेंसी 'स्पाई संकेत' की शुरुआत की। और इस काम के लिए वे किसी से भी एक पैसा नहीं लेते।
उनके पास पेशेवर जासूसों की एक पूर्ण टीम नहीं है लेकिन पीड़ित परिवार के सदस्यों के दृढ़ संकल्प पर वे निर्भर करते है। उनका मानना ​​है कि पीड़ित परिवार के सदस्य अपराधियों को पकड़ने में मदद कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने किया था जब उन्होंने अपने बेटे को खो दिया था।
सूर्यकांत कहते हैं, "जब भी मैं संकेत की तरह किसी मामले के बारे में पढ़ता हूं, तो मैं उस परिवार से संपर्क करता हूं। कभी-कभी, वे मेरी मदद से खुश होते हैं, तो कभी-कभी बहुत सावधान या संदिग्ध। जब मैं जांच शुरू करता हूं, तो मैं उनसे बच्चों के बारे में बहुत सारे प्रश्न पूछता हूँ - बच्चा कौन से कपड़े पहने हुए था, पारिवारिक संबंध इत्यादि। हर केस में लगभग 3-4 लोग होते हैं, जो बहुत जानकारी देते हैं। आम तौर पर इन्हीं लोगों की वजह से जांच सही से हो पाती है।"
पिछले नौ वर्षों में लगभग 150 मामलों में काम करते हुए, सूर्यकांत ने भी बहुत सारे दोस्त बनाए हैं, जो इस प्रक्रिया में उनकी मदद करते हैं। उनके पास पुलिस और मीडिया में लोगों के संपर्क हैं। उन्हें अपने शुभचिंतकों और एक बड़े सोशल नेटवर्क से भी मदद मिलती है।
यदि आवश्यक हो, सूर्यकांत परिवारों को न्याय दिलाने के लिए अदालतों में साक्ष्य भी देते हैं।
सूर्यकांत कहते हैं, "अगर मैं घर पर बैठकर रोता रहता तो क्या कर लेता? इसलिए मैंने अपने मन में ठानकर उनकी मदद करने की सोची जो मेरे जैसी परिस्थिति में हैं।
'स्पाई संकेत' यह सुनिश्चित करता है कि 18 साल पहले हम जिस दर्द से गुजरे कोई और माता-पिता वह महसूस न करे।"
सूर्यकांत उस हर एक व्यक्ति को धन्यवाद कहना चाहते हैं जिन्होंने संकेत के केस में मदद की। "लेकिन सिर्फ एक शुक्रिया काफी नहीं होता। इसलिए मैं कुछ करना चाहता था। मैं हमेशा से जोखिम भरे काम करता आया था। इसलिए मैंने अपने इस गुण का इस तरह से इस्तेमाल किया," उन्होंने कहा।
सूर्यकांत और उनके बड़े बेटे सौरभ, रिकॉर्ड होल्डिंग तैराक हैं। उन्होंने हाल ही में 36 किमी, 57 किमी, 71 किमी और 81 किलोमीटर दूरी की समुद्र तैराकी के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में प्रवेश किया है। वे पहले पिता-पुत्र की जोड़ी हैं जिन्होंने ऐसा किया है।
हाल ही में, उन्होंन संक रॉक लाइटहाउस से मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया तक तीन सदस्यी (पिता, मां और बेटे) परिवार के रूप में तैरने के लिए विश्व रिकॉर्ड में प्रवेश किया है।
सूर्यकांत और उनका परिवार ऐसे बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा है, जो ज़िन्दगी में आई मुसीबतों से हार मानकर निराश हो जाते हैं! सलाम है इनके जज्बे को!
संपादन - मानबी कटोच
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