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कहते है बच्चे भगवान का रूप होते हैं और बच्चों का मन एकदम साफ़ होता है। इस कहावत को सच कर दिखाया है छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के बच्चों ने। इन बच्चों ने समाज में कुछ बेहतर करने का बीड़ा उठाया है। करीब 18 महीने पहले इन बच्चों ने मूक पशु-पक्षियों की मदद एवं रक्तदान के लिए एक संस्था बनाई, जिसका नाम जैनम वेलफेयर फाउंडेशन रखा।
इस संस्था की विशेष बात यह है कि इस ग्रुप में अधिकांश सदस्यों की उम्र 20 वर्ष से कम है, बच्चों के बीच में ऐसा ताल-मेल है कि जब भी किसी सदस्य की परीक्षा होती है, तो उसके स्थान पर दूसरे सदस्य इन पशुओं की मदद करने पहुंच जाते है। दिन हो या रात सभी सदस्य बस एक फ़ोन कॉल पर उपस्थित हो जाते है।
मूक पशु-पक्षियों की सेवा के लिए हमेशा तैयार
शहर के आवारा जानवरों के खाने की व्यवस्था करना, गर्मी के दिनों में बेजुबान पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करना आदि काम यह बच्चे शुरू से करते थे। इसके साथ-साथ दुर्घटना के दौरान घायल जानवरों को अस्पताल ले जाकर पूरा इलाज करवाना, प्लास्टिक आदि खाकर अधमरी हुई गायों का तुरंत उपचार कराना और देखभाल भी यह बच्चे बखूभी कर रहे हैं।
संस्था के संस्थापक जैनम बैद बताते है, "एक बार शहर के गुड़ाखू लाइन, फल मार्केट में एक जानवर गहरे नाले में गिर गया था। जब यह बात हम लोगों को पता चली, तो कुछ साथियों ने नगर निगम से बात की, एक सुरक्षा वाहन को बुलाया और उस जानवर को सुरक्षित बाहर निकाला, इसके बाद एक हफ्ते तक हमने उसका का पूरा इलाज करवाया।"
इन पशुओं को सड़क दुर्घटना से बचाने के लिए उनके गले में रेडियम की पट्टी भी लगाने का काम सदस्य करते रहते हैं। अब तक 700 जानवरों के गले में रेडियम पट्टी बाँधी जा चुकी है, जिससे हाईवे पर 30% तक दुर्घटनाओं में कमी आई है।
रक्तदान महादान अभियान
जिस उम्र में बच्चे खेल-कूद में उलझे रहते हैं, उसी उम्र में जैनम वेलफेयर समूह के ये बच्चे, लोगों की जान बचाने के लिए 'रक्तदान महादान अभियान' चला रहे हैंI इस मुहीम के तहत ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित किया जाता है, इतना ही नहीं संस्था के सभी स्वस्थ सदस्य हर 3 महीने में ब्लड डोनेट करते हैं और अब तक 1350 युनिट रक्त जरुरतमंद मरीजों तक पहुंचाया जा चुका हैI विशेष बात यही है कि आप ग्रुप के सदस्यों को रक्त के लिए रात-बेरात किसी भी वक़्त कॉल कर सकते हैंI
जैनम कहते है, "मुझे आज भी वह दिन याद है, जब एक अजनबी व्यक्ति मेरे दरवाज़े पर आया और कहने लगा कि उसकी माँ गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है, जिसे खून की सख्त जरूरत है और हमारी संस्था के प्रयास से उसे खून मिल गया, ऐसा लगा उस दिन हमारी जीत हो गईI"
रविवार को करते है यह अनूठी पहल
प्रायः बच्चे रविवार छुट्टी की तरह बिताते हैं, इसका मतलब मूवी देखना, देर तक सोना या फिर पिकनिक पर जानाI पर जैनम वेलफेयर ग्रुप के बच्चे रविवार को सुबह-सुबह उठकर, शहर में नियमित रूप से आयोजित जीव दया कार्यक्रम में भाग लेते हैं, इसके तहत पशुओं के लिए रोटी एवं दाने की व्यवथा करना ,उनके पीने के लिए साफ़ पानी की व्यवस्था करना और वृद्धाश्रम में जाकर बुजुर्गो की सेवा करना होता है I इसके साथ-साथ गर्मी के मौसम में ज़्यादा से ज़्यादा घरो के छत में चिड़ियों के लिए दाना एवं पानी की व्यवस्था भी ये बच्चे कर रहे है I
मदद की उस पुकार ने रखी संस्था की नींव
संस्था के संस्थापक जैनम कहते है कि पिछले दो साल से वे रक्तदान कर रहे है, लेकिन एक बार की बात है, जब वे शहर से बाहर गए हुए थे और उन्हें किसी मरीज़ के रिश्तेदार का कॉल आया कि ब्लड चाहिएI उस मरीज़ की मदद के लिए जैनम ने हर-संभव प्रयास किया किन्तु बात नहीं बनीI बस उस मदद की पुकार ने जैनम और उसके दोस्तों को अंदर तक झकझोर कर रख दिया और 2 सितम्बर, 2017 को कुछ दोस्तों ने मिलकर इस संस्था की शुरुआत कीI उस समय संस्था में सिर्फ 4 ही लोग थे किन्तु अच्छे और सच्चे कार्य के दम पर आज यह 37 लोगों का समूह लोगों की सेवा के लिए हर संभव कार्य कर रहा है
पढ़ाई के साथ- साथ समाज के लिए कुछ करना है
शुरुआत में सब कहते थे कि यह सब बड़े लोगों का काम है, तुम लोग अभी अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, यह सब करने से कुछ नहीं मिलताI लेकिन इन बच्चों के ज़िद की बदौलत आज शहर के युवा एक सकारात्मक पहल से जुड़ रहे हैंI यह बच्चे उम्र में भले ही छोटे हो सकते हैं, किन्तु इनके कार्य बेहद ही सकारत्मक एवं बड़े हैI
संस्था के सदस्य जल्द ही एक मोबाइल एम्बुलेंस खरीदना चाहते है ताकि मूक पशुओं का इलाज जल्द से जल्द किया जा सके I
पॉकेट मनी मतलब दूसरों की मदद
संस्था के सभी सदस्य अपने पॉकेट मनी का एक हिस्सा जीव दया, गरीब बच्चों की पढ़ाई और आर्थिक रूप से कमज़ोर मरीजों के इलाज में लगाते हैI
संस्था के सदस्य यश पारख का कहना है, "पहले अपने जेब खर्च के पैसे देने का मन नहीं करता था, लेकिन जब मैंने देखा कि एक छोटी सी राशि से कितना कुछ बेहतर हो सकता है, तब से हम सब ख़ुशी-ख़ुशी इस नेक काम में अपनी पॉकेट मनी देते हैंI"
संस्था के सदस्य आशीष गिडिया कहते है, "पहले मैं रोज़ घंटो वीडियो गेम खेलने में अपना समय गंवाता था, लेकिन अब हर रोज़ जरुरतमंदो की मदद करता हूँI पहले जानवरों से बहुत डर लगता था, लेकिन अब उन मूक पशुओं के लिए हर संभव मदद करने की कोशिश करता हूँI हम सभी को हर रोज़ एक अच्छा काम करने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि इससे बहुत ख़ुशी मिलती हैI"
संस्था के सदस्य आयुष के पिता कहते है कि शुरुआत में वे सोचते थे कि ये बच्चे यह सब काम कैसे करेंगे, पर आज उन्हें गर्व होता है कि ये बच्चे जीव-दया, शिक्षा और वृद्धजनों की सेवा कर रहे है I
इन बच्चों से सीखा जा सकता है कि इंसानियत और मानवता की कोई उम्र नहीं होतीI इनसे सीखा जा सकता है कि सेवा कार्य के लिए ज़रुरत है तो सिर्फ एक जूनून और प्रयास की, इन सभी बच्चों की पहल को सलाम।
जैनम वेलफेयर के बच्चों से जुड़ने के लिए इनके फेसबुक पेज पर जाए!
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