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हैदराबाद के ओसमानिया विश्वविद्यालय की नींव, शहर के सातवें निज़ाम, नवाब ओसमान अली खान ने रखी थी। साल 1918 से अस्तित्व में आए इस विश्वविद्यालय का नाम देश के मशहूर शिक्षण संस्थानों में शामिल होता है। हर साल यहाँ के छात्र अपनी उपलब्धियों से देश का नाम ऊँचा करते हैं। लेकिन आज हम यहाँ के किसी छात्र या फिर शिक्षक के बारे में बात नहीं करेंगे। आज हम आपको इस यूनिवर्सिटी में बतौर प्लम्बर काम कर रहे 47 वर्षीय सैयद जहाँगीर के बारे में बताएंगे। कहने के लिए सैयद एक साधारण से प्लम्बर हैं, लेकिन आज वह सिर्फ यूनिवर्सिटी में ही नहीं बल्कि बाहर भी काफी मशहूर हैं।
यूनिवर्सिटी में जन्मे और पले-बढ़े जहाँगीर कैंपस में ही अपने परिवार के साथ रहते हैं। यहाँ पर लोग उन्हें प्यार से 'बाबा जहाँगीर' बुलाते हैं। सबसे खास बात यह है कि वह सिर्फ यूनिवर्सिटी के छात्रों और अन्य लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि कैंपस के जंगल में रहने वाले बेज़ुबान जीवों के लिए भी उनके बाबा हैं। पिछले छह सालों से बिना एक दिन भी ब्रेक लिए, जहाँगीर जंगल में जाकर इन पशु-पक्षियों के लिए पानी भरते हैं।
"हैदराबाद में मानसून आने से पहले बहुत गर्मी पड़ती है। इन तीन-चार महीनों में इंसान गर्मी में बेहाल हो जाता है, तो आप बेजुबानों के बारे में सोचिए। अगर उन्हें पानी न मिले तो वे बेचारे कहाँ जाएंगे। इसलिए मैं हर रोज़ सुबह और शाम में जाकर उनके लिए पानी रख कर आता हूँ," उन्होंने बताया।
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इस नेक काम के पीछे उनका अपना एक निजी अनुभव है। वह कहते हैं कि गर्मी का मौसम था और उन्हें पैदल चलकर कहीं जाना पड़ा और उस समय वह कैंपस के जंगल से ही गुज़र रहे थे। उन्हें चलते हुए आधा घंटा भी नहीं हुआ और उनके हाथ में जो पानी की बोतल थी वह लगभग ख़त्म होने को आई थी। जंगल से गुजरते हुए उन्हें अचानक अहसास हुआ कि अगर हम इंसान गर्मियों में बिना पानी के चंद घंटे नहीं गुज़ार सकते, तो जंगल के पशु-पक्षियों का क्या हाल होगा? क्या उनके लिए कोई पानी की व्यवस्था है?
"उस दिन से ही मैंने सोचा कि मैं इन जीवों के लिए पानी रख कर जाया करूँगा। मैंने दूसरे दिन अपनी बाइक पर दो कैन भरकर रखीं और जंगल में पहुँच गया। यहाँ पर मैंने दो-तीन अलग-अलग जगहों पर टूटे हुए मटके, डिब्बे आदि में पानी भरकर रखा। तीन-चार दिन लगातार ऐसा किया और फिर धीरे-धीरे देखा कि मोर, गिलहरी, और अन्य कुछ जीव यहाँ से पानी पीते हैं। मेरी पहल सफल हो गई और तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है," जहाँगीर ने कहा।
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जहाँगीर के मुताबिक उन्हें यह तो नहीं पता कि यह जंगल कितने एकड़ तक फैला हुआ है और कितने जीव-जंतु यहाँ रहते होंगे। लेकिन वह हर दिन लगभग 4 किमी जंगल में चलते हैं और हर 50 मीटर पर पानी रखकर आते हैं। उन्होंने जंगल में 40 जगह पानी रखने के इंतज़ाम किए हुए हैं, जिन्हें वह 'वाटर हाउस' कहते हैं। कहीं टूटे घड़े या फिर बड़े बर्तन रखे हैं तो कहीं उन्होंने गड्ढे करके सीमेंट से इन्हें पक्का कर दिया है। कई जगहों पर वह प्लास्टिक शीट का उपयोग भी करते हैं। इस सबकी व्यवस्था उन्होंने धीरे-धीरे की है। हर दिन वह लगभग 400 लीटर पानी जगंल के जीवों के लिए पहुंचा रहे हैं।
इतना पानी पहुंचाने के लिए उन्हें बाइक पर कई चक्कर लगाने पड़ते हैं लेकिन उन्हें यह दौड़-भाग भी इन जीवों के आगे छोटी लगती है। वह कहते हैं कि उनके पास बाइक है लेकिन अगर उन्हें पैदल चलकर भी यह करना पड़े तो कोई हर्ज नहीं। मतलब सिर्फ इस बात से है कि ये जीव प्यासे न रहें।
"अब तो जंगल के ये पशु-पक्षी भी मुझे जानते हैं। यहाँ पर बहुत सारे मोर हैं और कुछ गाय-भैंस भी हैं, जो पानी पीने आते हैं। जब मैं पानी भर रहा होता हूँ तब भी ये जानवर आराम से मेरे आस-पास घूमते हैं क्योंकि मैं उनका दोस्त हूँ, शिकारी नहीं," उन्होंने कहा।
जहाँगीर के इस काम में उन्हें अपने परिवार का भी पूरा साथ मिलता है। उनकी पत्नी, बेटे और बेटी को उनपर गर्व है और जिस भी तरह से वे उनके काम में मदद कर पाते हैं, करते हैं।
केवल उनका अपना परिवार ही नहीं, बल्कि जहाँगीर की सराहना पूरी यूनिवर्सिटी करता है।
यूनिवर्सिटी में जब भी किसी को उनकी मदद करने का मौका मिलता है तो वे करते हैं। कई बार बहुत से प्रोफेसर उन्हें अपनी जेब से कुछ न कुछ देते हैं और कहते हैं कि इस काम के लिए वह अपनी बाइक में पेट्रोल डलवा लें। हालांकि, जहाँगीर कभी किसी से कुछ नहीं मांगते और यदि कोई उन्हें कुछ देता है तो भी वह मना करते हैं। उनका कहना है कि वह यह काम अपनी ख़ुशी और आत्म-संतुष्टि के लिए कर रहे हैं।
"लेकिन वे लोग कहते हैं कि हम तुम्हारी तरह पानी तो नहीं भर सकते, लेकिन इस काम में अगर तुम्हारी थोड़ी भी मदद कर पाएंगे तो लगेगा हमने भी अपने हिस्से की नेकी कर ली। इसलिए मैं उनकी मदद को मना नहीं करता,” उन्होंने बताया।
कई बार गर्मियों में जब जहाँगीर के घर में पानी की किल्लत हो जाती है, तब उन्हें यूनिवर्सिटी के हॉस्टल से उन्हें बिना पानी ले जाने की इजाज़त होती है, क्योंकि हॉस्टल कार्यकर्ता से लेकर यहाँ रहने वाले बच्चों तक को पता है, कि जहाँगीर ये पानी कहाँ ले जा रहे हैं।
अगर आप जहाँगीर से पूछेंगे कि आप इस काम को कब तक करते रहेंगे? तो वह मुस्कुराकर कहते हैं, "जब तक मैं जीवित हूँ।"
द बेटर इंडिया सैयद जहाँगीर की इस सोच को सलाम करता है।
सैयद जहाँगीर से बात करने के लिए आप उन्हें 6302673915 पर संपर्क कर सकते हैं!
संपादन: मानबी कटोच
तस्वीर साभार: समीर और सायंतन घोष
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