एक गांव, जहां तेल के खाली डिब्बों से बना है 500 कबूतरों का आशियाना

राजस्थान के बूंदी जिले के छोटे से गांव सांकड़दा के निवासी राजेश, पशु-पक्षी प्रेमी हैं। उन्होंने गांववालों के साथ मिलकर 500 कबतूरों की एक ऐसी कॉलोनी बनाई है, जिसे देखकर हर कोई दंग रह जाता है।

pigeon house

"शहर हो या गां,व हर तरफ विकास की दौड़ मची हुई है और उसी विकास के लिए पेड़ों की कटाई कर कंक्रीट का जाल बिछाया जा रहा है। लोग तो अपने लिए घर बना लेते हैं, लेकिन पशु और पक्षियों की तो दुनिया ही उजड़ जाती है। जिन पेड़ों पर उनका घोंसला होता है, उसे पल भर में उजाड़ कर बेघर कर दिया जाता है। ऐसे में पक्षी जब लोगों के घरों में जगह ढुंढते हैं, तो वहां भी कबूतर जाली लगाकर उनका रास्ता बंद कर दिया जाता है। यह सब देखकर दिल बड़ा दुखी होता था, इसीलिए उन बेसहारा पक्षियों के बारे में हमने सोचा और उनके लिए घर (Pigeon house) बनाने की योजना बनाई," यह कहना है राजस्थान के 35 वर्षीय राजेश गुर्जर का। 

राजस्थान के बूंदी जिले के छोटे से गांव सांकड़दा के निवासी राजेश, पशु-पक्षी प्रेमी हैं। उन्होंने गांववालों के साथ मिलकर 500 कबतूरों की एक ऐसी कॉलोनी बनाई है, जिसे देखकर हर कोई दंग रह जाता है।

कहां से मिला पीपों के इस्तेमाल से Pigeon house का आइडिया?

राजेश और गांववालों की इस अनोखी पहल की वजह से लगभग 2000 की आबादी वाला सांकड़दा गांव अब ‘कबूतरों की कॉलोनी’ के नाम से जाना जाने लगा है। इस गांव के अधिकांश लोग पक्षी प्रेमी हैं और यही वजह है कि सभी लोगों ने एकजुट होकर विलुप्त होते कबूतरों को एक बार फिर से बसाने का काम किया है।

Rajesh Gurjar made pigeon colony with the help of villagers in Bundi, Rajasthan
Rajesh Gurjar, Rajasthan, Bundi

इस अनोखी पहल के बारे में राजेश बताते हैं, “गांव में सैंकड़ो वर्ष पुरानी एक बावड़ी थी, जिसमें कबूतरों का बसेरा (Pigeon house) था, लेकिन उसे रिनोवेट करते समय सीमेंटेड प्लास्टर करने से सभी कबूतर बेघर हो गए और आस-पास के पेड़ों व घरों पर दोबारा बसने लगे। लेकिन पेड़ों की कटाई से उनका घर फिर से उजड़ गया। गांव में धीरे-धीरे कबूतरों की संख्या कम होने लगी।"

एक दिन राजेश के चाचा दयाराम और रामस्वरूप गुर्जर पास के किसी गांव में किसानी के काम से गए, तो उन्होंने वहां एक घर के पास तेल के टिन का खाली पीपा देखा, जिसमें घास-फूस रखा थी और उसमें कबूतरों के अंडे थे। जब वे दोनों अपने गांव लौटे, तो चौपाल में यह बात बताई और गांव में कबूतरों को बसाने का विकल्प रखा।

पीपों से कैसे बनाया आशियाना?

इसके बाद राजेश के चाचा की तो मृत्यु हो गई, लेकिन राजेश ने उनके इस विचार को आगे ले जाने का फैसला किया और फिर सभी गांववाले के साथ मिलकर घरों से तेल के खाली पीपे इकट्ठे किए और उनको आर-पार कटवा दिया। इसके बाद, एक रस्सी में लगभग 35 पीपों को पिरो कर बावड़ी के पास ही टांग दिया। 10-15 दिनों तक तो उसमें कोई पक्षी आकर नहीं बैठा, लेकिन धीरे-धीरे कबूतर उन पीपों में घास-फूस लेकर आशियाना (Pigeon house) बनाने लगे।

अब बावड़ी के आस-पास इस तरह से लगभग 200-300 पीपे हैं, जिनमें 500 के लगभग कबूतर रहते हैं। वह दिन भर दाना चुगते हैं और रात में यहां आ जाते हैं। अब प्रजनन काल में उनके अंडों को जानवरों से कोई परेशानी नहीं होती और बारिश में भी वे सुरक्षित रहते हैं।

राजेश बताते हैं कि कबूतरों के दाना-पानी के लिए गांववालों ने एक चबूतरा बना दिया है और उस पर 4-5 फ़ीट ऊंची जाली लगा दी है ताकि दाना चुगते समय कुत्ते-बिल्ली या अन्य जानवर उनका शिकार न करें। अब गांव के सभी पशु-पक्षी प्रेमी सुबह- शाम कबूतरों को दाना डाल जाते हैं।

सरकार से चाहते हैं मदद

teen casks pigeon house colony in Bundi, Rajsthan<br />
Pigeon Colony

गांववालों का कहना है कि पूरे गांव में जिसके भी घर टिन का डब्बा खाली होता है, वह उसे बेचने के बजाय कबूतरों की कॉलोनी में लगाने के लिए दे जाते हैं। महीने के अंत में गांववालों की मदद से इन घोंसलों की सफाई की जाती है।

बाहर से कई लोग कबूतरों की इस कॉलोनी को देखने भी आते हैं। राजेश का कहना है कि इस कॉलोनी का लक्ष्य अब 1000 कबूतरों को आशियाना (Pigeon house) देना है। इस काम में सभी लोग साथ दे रहे हैं। 

गांववालों ने सांकड़दा के ग्राम प्रधान के माध्यम से सरकार से अपील की है कि इस नेक काम में राज्य सरकार भी सहायता करे, ताकि हर जगह पक्षियों के लिए सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ घोंसला बनाया जा सके।    

लेखक - सुजीत स्वामी

संपादनः अर्चना दुबे

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