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भारत सरकार का मानना है कि साल 2030 तक, 450 गीगावॉट के अपने रिन्युएबल एनर्जी के लक्ष्य में सोलर एनर्जी करीब 300 गीगावाट (जीडब्ल्यू) का योगदान देगी। यह देखते हुए कि कैसे दुनिया भर में सोलर एनर्जी से सस्ती बिजली मिल सकती है, भारत का झुकाव भी सोलर एनर्जी की ओर हो रहा है। हालाँकि, भारत के पास अभी तक इस्तेमाल किए गए सोलर पैनलों या निर्माण प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाले कचरे (solar panel waste) को रिसायकल करने और प्रबंधित करने के लिए एक सुसंगत नीति नहीं है।
भारत में मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्युएबल एनर्जी द्वारा जारी केवल एक खाका उपलब्ध है। इस साल की शुरुआत में, राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में मंत्री आरके सिंह ने सोलर पावर उत्पादन से जुड़े कचरे की जांच के लिए एक केंद्रीय समिति गठित करने की बात कही थी। इसके साथ ही उन्होंने उत्पन्न कचरे को रीयूज और रिसायकल के माध्यम से सोलर पैनलों में "सरकुलर अर्थव्यवस्था" विकसित करने के लिए एक एक्शन प्लान बनाने की बात भी की थी।
वर्तमान में भारत, सोलर कचरे को एक तरह का इलेक्ट्रॉनिक कचरा ही मानता है और काम न कर रहे सोलर पैनल या तो इधर-उधर बिखरे रह जाते हैं या आखिर में घरेलू ठोस कचरे के साथ मिल जाते हैं और लैंडफिल में चले जाते हैं।
सोलर पैनलों को निर्माण सामग्री के रूप में रिसायकल किया जा सकता है?
कुछ अनुमान बताते हैं कि 2030 तक भारत में 2,00,000 टन से ज्यादा सोलर अपशिष्ट (solar panel waste) होगा। इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, "साल 2030 के दशक की शुरुआत तक बड़ी मात्रा में वार्षिक (सोलर पैनल) कचरा निकलने का अनुमान है और 2050 तक यह आंकड़ा 78 मिलियन टन तक पहुंच सकता है।"
हर साल विश्व स्तर पर लगभग 6 मिलियन मीट्रिक टन नया सोलर ई-कचरा उत्पन्न होने जा रहा है। सोलर एनर्जी के लिए भारत की महत्वाकांक्षा और दिलचस्पी को देखते हुए, यह आंकड़ा निश्चित रूप से अच्छा नहीं है।
ज्यादातर बेकार सोलर पैनल कचरे के ढेर तक अपना रास्ता खोज लेते हैं और इसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इन सोलर सेल्स में सीसा, कैडमियम और अन्य विषैले पदार्थ होते हैं, जिनसे कैंसर जैसी बीमारी का खतरा बढ़ता है।
कई अध्ययनों से पता चला है कि, जब बेकार पड़े सोलर पैनल को प्रॉसेस किए बगैर कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है, तो वे मिट्टी में मिल जाते हैं, मिट्टी के क्षरण का कारण बनते हैं, भूजल में प्रवेश करते हैं, इसके आसपास के जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। साथ ही ये स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी पैदा करते हैं।
हालांकि, डॉ मोंटो मणि के नेतृत्व और बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) से संचालन में सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजीज (सीएसटी) में रिसर्चर की एक टीम है, जो इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या पुराने छोड़े गए सोलर पैनलों को बिल्डिंग बनाने की सामग्री के रूप में रिसायकल किया जा सकता है?
कैसा होता है एक सोलर पैनल का स्ट्रक्चर?
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दुनिया भर में सोलर पैनल मुख्य रूप से तीन रूपों में आते हैं- मोनोक्रिस्टलाइन, पॉलीक्रिस्टलाइन और थिन फिल्म। रूप चाहे जो भी हो, किसी भी सोलर पैनल का प्रमुख घटक उनके सोलर सेल होते हैं, जिन्हें फोटोवोल्टिक (PV) सेल भी कहा जाता है। एक सोलर पैनल का निर्माण कई सोलर सेल्स का उपयोग करके किया जाता है। जब सूरज की रोशनी इन पीवी सेल्स से टकराती है, तो प्रकाश बिजली में बदल जाती है।
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ एनर्जी एफिशिएंसी एंड रिन्यूएबल एनर्जी के एक व्याख्याकार के अनुसार, "अधिकांश सोलर पैनल क्रिस्टलीय सिलिकॉन सोलर सेल्स को नियोजित करते हैं। एक क्रिस्टल जाली बनाने के लिए, एक दूसरे से जुड़े सिलिकॉन, एटम से बने होते हैं। यह जाली एक संगठित संरचना प्रदान करती है, जो प्रकाश को बिजली में बदलने के लिए इसे और ज्यादा कुशल बनाती है।"
ये क्रिस्टलीय सिलिकॉन सेल्स आमतौर पर सिलिकॉन, फास्फोरस और बोरॉन परतों से बनी होती हैं, हालांकि इसके अलावा भी कई प्रकार की पीवी सेल्स होती हैं। लेकिन किसी भी सोलर पैनल में आवश्यक पीवी सेल्स की संख्या बाद के आकार पर निर्भर करती है।
एक बार जब सेल्स को सेट कर दिया जाता है, तो पैनल को सील कर दिया जाता है और पीवी सेल्स की रक्षा के लिए एक सख्त एंटी-रिफ्लेक्टिव ग्लास के साथ कोट किया जाता है। यह ग्लास आने वाली धूप का लगभग 2% रिफलेक्ट करते हैं। फिर पैनल को सील कर दिया जाता है और एक मजबूत एल्यूमीनियम फ्रेम में फिट किया जाता है।
सोलर पैनल वेस्ट (solar panel waste) के सही तरीके ढूंढ रहीं टीमें
द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. मणि बताते हैं, "हमने अगस्त-सितंबर 2018 में एक प्रोजेक्ट लिया, जिसमें हमने जानने की कोशिश की कि बेकार पड़े हुए सोलर पैनलों को बिल्डिंग निर्माण सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं। अगर आप हमारे पहले के काम को देखगें, तो पता चलेगा कि हमने यह समझने के मामले में कई योगदान दिए हैं कि सौर फोटोवोल्टिक पैनल विभिन्न परिस्थितियों में कैसे काम करते हैं?"
उन्होंने आगे कहा, "एक पहलू जिसकी हमने बारीकी से जांच की, वह यह था कि धूल, सोलर सेल्स के प्रदर्शन को कैसे प्रभावित करती है? हमने यह भी जांचा कि कैसे फोटोवोल्टिक को इमारतों में एकीकृत किया जा सकता है (बिल्डिंग इंटीग्रेटेड फोटोवोल्टिक / बीआईपीवी)। यहां चुनौती यह थी कि ज्यादा उत्पादन के लिए सूर्य के लिए पैनलों के संपर्क को अधिकतम कैसे किया जाए, साथ ही यह भी देखा कि इमारत में आने वाली गर्मी को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? आखिरकार, ट्रॉपिकल देशों में यह एक समस्या हो सकती है।"
इसके अलावा, रिसर्च के हिस्से के रूप में, डॉ. मणि और उनके छात्रों की टीम यह जांच कर रही है कि विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में इमारतें थर्मल रूप से कैसे प्रदर्शन करती हैं। इसके अलावा, कम ऊर्जा वाली निर्माण सामग्री का पता भी लगा रही है।"
ईंट, सीमेंट आदि पर पैसे खर्च करने की क्या है ज़रूरत?
डॉ. मणि बताते हैं, "एक आर्किटेक्चर और डिजाइन बैकग्राउंड से आते हुए, हमने सोचा कि क्या हमें वास्तव में ईंट, सीमेंट आदि जैसी नई सामग्री खरीदने के लिए पैसे खर्च करने की ज़रूरत है। इसके बजाय, हम बेकार सोलर पैनलों (solar panel waste) का उपयोग क्यों नहीं कर सकते हैं? हमने यह पता लगाने की भी कोशिश की कि बेकार सोलर पैनलों को डिस्ट्रॉय कैसे किया जा सकता है? हमारे लैब ने इस संरचना का ढांचा तैयार किया और सहायता के लिए कुछ वेल्डर लगाए।”
सीएसटी के शोधकर्ताओं के लिए निष्क्रिय सौलर पैनलों की निर्माण सामग्री के रुप में जांच करने की पीछे की प्रेरणाओं में से एक यह है थी कि उनमें ऐसी सामग्री शामिल होती है, जो स्वाभाविक रूप से बहुत टिकाऊ होती हैं और यहीं से इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई।
सोलर पैनल वेस्ट (solar panel waste) मैनेजमेंट सिस्टम की है ज़रूरत
सोलर पैनलों में, ग्लास होते हैं, ईवीए जिसके दोनों तरफ सोलर सेल्स लगे होते हैं और साथ ही एक टेडलर बैकशीट होती है। एक बार जब वे एक साथ जुड़ जाते हैं, तो प्रत्येक तत्व को अलग करना बहुत कठिन होता है। जर्मनी जैसे देशों में, अकेले सिलिकॉन को ठीक निकालने के लिए थर्मस-रासायनिक प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है।
भारत में ऐसी कोई आर्थिक रूप से व्यवहार्य सुविधा नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे पास एक स्ट्रक्चर्ड तंत्र भी नहीं है, जिससे बेकार हुए पीवी पैनलों को प्रॉसेस कर फिर से इस्तेमाल किया जा सके। इसके बजाय, यहां क्या होता है कि कांच बिखर जाता है और छोटे टुकड़ों में टूट जाता है, एल्यूमीनियम फ्रेम को बचाया जाता है और सिलिकॉन को निम्न श्रेणी के सेमीकंडक्टर एप्लिकेशन के लिए केमिकली निकाला जाता है।
कठिनाई इन पैनलों को एक केंद्रीकृत सुविधा में लाने में है, जहां इन्हें प्रॉसेस किया जाता है। एक बार जब इन पैनलों का उत्पादन कम हो जाता है, तो लोग जहां कहीं भी इनका उपयोग करते हैं, उन्हें छोड़ देते हैं। किसी विशेष स्थान पर बेकार सोलर पैनलों को रखने, ठीक करने और जमा करने के लिए कोई तंत्र नहीं है। इसका नतीजा यह है कि इनमें से कई पैनल, ठोस कचरे के साथ मिल जाते हैं और लैंडफिल तक रास्ता बना लेते हैं।
एक सोलर पैनल की लाइफ कितनी होती है?
डॉ. मणि कहते हैं, "कचरे के ढेर में जाने पर, पैनल क्रश किए जाते हैं और फिर वे मिट्टी, भूजल आदि के अन्य घटकों के संपर्क में आते हैं। इन छोड़े गए पैनलों में मौजूद केमिकल बहकर बाहर निकलते हैं, जिनका इस्तेमाल निर्माता, सिलिकन को कोट करने के लिए करते हैं।” इन सोलर पैनलों की सर्विस लाइफ करीब 25 वर्ष होती है।
डॉ. मणि बताते हैं, "हालांकि, ये टिकाऊ होते हैं, लेकिन उन्हें 10-12 वर्षों में, विशेष रूप से बड़े इंस्टॉलेशन में, बंद कर दिया जाता है। आखिर ऐसा क्यों होता है? IISc में, हमने 10 वर्षों के बाद सोलर पैनलों के अपने सेट को बंद कर दिया, क्योंकि उनकी उत्पादकता उनके मूल उत्पादन के लगभग 50% तक गिर गई थी। इसके अलावा, सोलर सेल्स में दरार आ गई थी और अंदर नमी चली गई है। एक शोध सुविधा के रूप में, हमने कुछ नए पैनल लाने का फैसला किया और उनकी जांच भी शुरू कर दी।”
जब आप घर पर सोलर पैनल लगा रहे होते हैं, तो स्थिति अलग होती है। घरों में उन्हें 20 साल या उससे अधिक समय तक चालू रख सकते हैं, क्योंकि शायद वहां यह चिंता नहीं होती (या वे नहीं जानते हैं) कि उत्पादन कितना कम हो रहा है। जब तक वे काम करते हैं, उन्हें उपयोग में रखा जाता है।
लेकिन बड़े पैमाने पर सोलर पैनलों को देखा जाए, तो अगर कुछ पैनलों का उत्पादन कम होना शुरू हो जाता है और प्लांट पहले ही अपने निवेश में खर्च की गई लागत को वसूल चुका है, तो ऑपरेटर इसे बंद कर देते हैं और नए सोलर पीवी में निवेश करना पसंद करते हैं। भविष्य में, इन बंद किए गए पैनलों का एक महत्वपूर्ण स्रोत मेगा सोलर एनर्जी प्लांट होंगे।
सोलर पैनल का भविष्य
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डॉ. मणि बताते हैं, “पैनल बैटरी की तरह होते हैं। एक पुरानी बैटरी और एक नई बैटरी को एक साथ एक श्रृंखला में नहीं रखा जा सकता है। सोलर एनर्जी प्लांटों में, अगर आपके पास 24 सोलर पैनल हैं और उनमें से चार खराब हैं, तो वे पूरी श्रृंखला को अलग कर देंगे और उन्हें नए सिरे से बदल देंगे। इस प्रकार, छोड़े गए पैनलों की संख्या में काफी ज्यादा वृद्धि होगी। जब उनकी आर्थिक व्यवहार्यता कम हो जाती है, तब पैनल को उनके सर्विस लाइफ से पहले बंद किए जाने की संभावना होती है।”
वह आगे कहते हैं, “अभी तक, प्रमुख बिजली प्लांट बस इसके साथ लगे पैनलों को त्याग देते हैं, क्योंकि उन्हें रिसायकल करने और प्रॉसेस करने के लिए कोई तंत्र नहीं है। बेकार और काम न आने वाले सोलर पैनलों को इकट्ठा करने के लिए कोई संगठित या केंद्रीकृत प्रणाली नहीं है और वे जहां कहीं भी उपयोग किए जा रहे हैं, उन्हें वहीं छोड़ दिया जाता है। स्थानीय कचरा संग्रहकर्ता या कचरा बीनने वाला, फेंके गए पैनलों को उठाकर कहीं और फेंक देगें और वह लैंडफिल में चला जाएगा।"
किन-किन रूपों में दुबारा इस्तेमाल किए जा सकते हैं ये पैनल?
डॉ. मणि ने बताया कि फोटोवोल्टिक्स का इस्तेमाल बिल्डिंग बनाने की सामग्री में किया जा सकता है या नहीं इसका जवाब एक केंद्रीकृत स्थान होने पर निर्भर करता है, जहां बेकार और बंद किए गए पैनलों को फिर से इस्तेमाल या एकत्र किया जा सके। इसके साथ ही यह भी देखना पड़ेगा कि हर पैनल अभी भी कितना आउटपुट उत्पन्न कर सकता है।"
इससे डिजाइनरों, बिल्डरों और आर्किटेक्चरों को यह पता करने में आसानी होगी कि वे किन पैनलों को इमारत बनाने क लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका एक निर्माण सामग्री के रूप में उपयोग किया जा सकता है और अगर एक काम न आने वाला पैनल अभी भी अपने मूल आउटपुट का 40% दे रहा है, तो लोग अन्य एप्लिकेशन के बीच अपने वाई-फाई पॉइंट को पावर देने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
डॉ. मणि के अनुसार, पहले इन सौर पैनलों में एक तरफ कड़े कांच का उपयोग होता था। नए पैनल में पिछले हिस्से पर भी कड़े कांच का इस्तेमाल किया गया है। ये हवा के भार और ओले का सामना करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं और ये बहुत टिकाऊ होते हैं। एकमात्र बाधा यह है कि आप इन पैनलों को आकार में नहीं काट सकते।”
वेस्ट सोलर पैनलों का इस्तेमाल कई चीजों के लिए किया जा सकता है।
डॉ. मणि की टीम ने सोलर पैनल वेस्त से एक खाने की मेज भी बनाई और छोटे चॉपिंग बोर्ड के रूप में भी इस्तेमाल किया। हालांकि, वह चेतावनी देते हैं कि जितना संभव हो, लोगों को पैनल के पिछले हिस्से से छेड़छाड़ करने, तोड़ने या इसे छीलने की कोशिश करने से बचना चाहिए। वह कहते हैं, "जब तक आप पैनल के कांच के हिस्से के संपर्क में हैं, तब तक आप ठीक रहेंगे।"
सोलर पैनल वेस्ट (solar panel waste) से बनाया टेबल
डॉ. मणि और उनकी टीम अभी भी थर्मल प्रदर्शन के लिए सोलर पैनलों का उपयोग करके बनाई गई सुविधा की जांच कर रही है। यह एक ईंट की दीवार की तुलना में एक पतली सामग्री है। वे यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या पैनल ज्यादा ताप का कारण बनते हैं और वे विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में कैसे काम करते हैं।
डॉ मणि कहते हैं, “हम वायु गुणवत्ता के दृष्टिकोण से भी इसकी जांच करेंगे। हम पॉलिमर साइंस से कोलैबोरेट कर रहे हैं और देखने की कोशिश रहे हैं कि क्या वे इस दिशा में कुछ प्रकाश डाल सकते हैं। हम इन पैनलों पर एजिंग टेस्ट करेंगे, ताकि यह देखा जा सके कि किस तरह के केमिकल बाहर निकल रहे हैं। हम इस बात का आकलन कर रहे हैं कि क्या बैकशीट के टूटने या पाउडर बनने का खतरा है और क्या वह पाउडर इनडोर वातावरण में फैल सकता है।”
मूल लेखः रिनचेन नॉर्बू वांगचुक
संपादनः अर्चना दुबे
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