कुछ साल पहले तक, चेन्नई के वंडलूर चिड़ियाघर की ओट्टेरी झील पर सर्दियों के मौसम में हज़ारों पक्षी आते थे। आर्कटिक सर्किल की ठंडी जगहों से आनेवाले इन विदेशी पक्षियों के लिए यह झील सर्दी के मौसम में उनका घर हुआ करती थी।
लेकिन पिछले कुछ समय से, सर्दियों में यहां आने वाले इन पक्षियों की संख्या कम होती गयी क्योंकि यह झील मरने की कगार पर थी। साल 2016 में आये वरदा सायक्लोन और फिर हर साल गर्मियों में लगातार पड़ने वाले सूखे से प्रभावित झील मानों बिल्कुल सूख गयी थी।
पिछले साल के सूखे ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। इससे न सिर्फ झील बल्कि चिड़ियाघर की हालत भी बिल्कुल खराब हो गयी और अधिकारियों को यहाँ के जीव-जन्तुओं को बचाने के लिए बाहर से पानी मंगवाना पड़ा। पिछले साल तक यहाँ इन पक्षियों ने भी आना बंद कर दिया था।
झील को बचाने की पहल
बारिश के पानी से रिचार्ज होने वाली यह झील 18 एकड़ में फैली हुई है और चंद जगहों को छोड़कर यह पूरी तरह से सूख गयी थी। वंडलूर पहाड़ियों की तलहटी में स्थित इस झील को लगातार रिचार्ज की ज़रूरत होती है। पर पिछले कई सालों से पड़ रहे सूखे की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पा रहा है।
पर कहते हैं न, 'जहां चाह, वहां राह' - इस बात पर विश्वास रखने वाली IFS अफसर सुधा रमन ने इस स्थिति से लड़ने की ठानी। सुधा, वंडलूर चिड़ियाघर की डिप्टी डायरेक्टर हैं। उन्होंने डायरेक्टर योगेश सिंह के मार्गदर्शन में ओट्टेरी झील को एक नई ज़िन्दगी दी।
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उन्होंने अपना काम फरवरी 2019 से शुरू किया और आठ महीने बाद, अक्टूबर 2019 में यह झील पानी से भरी हुई थी।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए सुधा ने इस बारे में बताया, "सबसे पहला काम प्राकृतिक ड्रेनेज चैनल को साफ़ करना था और इसके बाद गाद निकाली गयी। इस मिट्टी का प्रयोग झील में टीले बनाने के लिए किया और फिर यहाँ पर हमने ऐसे पेड़-पौधे लगाये जो कि पक्षियों को अपनी तरफ आकर्षित करें।"
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इन टीलों पर मैंग्रोव, अर्जुन, जामुन, गुलर जैसे पेड़ लगाये गये, जिन्हें बारिश के पानी से पोषण मिला।
"हम खुद हैरान थे कि इस बार ये सभी टीले बरसात के मौसम में पानी में डूब गये थे और सभी पेड़ हरे-भरे हो गये।"
टीम ने हर चुनौती का सामना किया
सबसे बड़ी चुनौती थी कि झील के एक हिस्से में खरपतवार बहुत ज्यादा थी। इसे निकालना आसान काम नहीं रहा। सुधा अपनी टीम के प्रयासों की सराहना करती हैं, जिन्होंने बिना रुके, बिना थके इस काम को अंजाम दिया। उन्होंने रेंज अफसर उमा, फोरेस्टर कुमार और चिड़ियाघर के ऑफिशियल स्टाफ की खास तौर पर सराहना की।
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अब झील की स्टोरेज कैपेसिटी भी बढ़ गयी है। झील को फिर से सूखने से बचाने के लिए इसके चारों ओर मेढ़ों को ऊँचा उठाया गया है। चिड़ियाघर में कई तालाब और वर्षा-जल संचयन यूनिट भी खोदी गयी हैं ताकि भूजल स्तर को ठीक रखा जा सके। इस तरह इन तालाबों के ज़रिये जानवरों के लिए पानी की समस्या भी खत्म हो गयी है।
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"जब पक्षी यहाँ आते थे तो झील के किनारे भी रास्ता था ताकि लोग यहाँ की सैर कर सकें। पर सायक्लोन वरदा ने इसे बिल्कुल ही तबाह कर दिया था। पर अब हमने फिर से यह रास्ता बना दिया है और हम प्रकृति का आनंद उठाने के लिए लोगों का स्वागत करते हैं," उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
साथ ही, यहाँ एक वाटर डायवर्शन चैनल भी बनाया गया है ताकि भारी बारिश की वजह से कभी भी पानी ओवरफ्लो न करे।
पेश की एक मिसाल
दिसंबर की शुरुआत से ही ओट्टेरी झील पर पक्षियों की चहचाहट शुरू हो गयी है। "अभी से 300 प्रवासी पक्षियों ने इस झील के आस-पास अपने घोंसले बना लिए हैं और यह मौसम की सिर्फ शुरुआत है। हमें उम्मीद है कि इस मौसम में और भी 'विदेशी' मेहमान यहाँ आयेंगे," उन्होंने बताया।
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उनकी टीम ने यहाँ पेड़ों पर बर्ड-हाउस भी लगाये हैं, जिनमें आपको चिड़िया और अन्य स्थानीय पक्षियों का कोलाहल सुनाई देगा। साथ ही, अब यहाँ पर आप सैकड़ों तितलियाँ भी देख सकते हैं।
ओट्टेरी झील जैसी बड़ी झील का एक साल से भी कम समय में पुनर्जीवित होना एक मिसाल है कि यदि दृढ़-संकल्प हो तो कुछ भी किया जा सकता है। इस प्रोजेक्ट की लीडर IFS सुधा रमन सिर्फ यही चाहती हैं कि इस काम को पूरे देश में किया जाये ताकि हम अपने खत्म होते पानी के स्त्रोत जैसे झील, तालाब और नदियों आदि को बचा सकें।
मूल लेख: सायंतनी नाथ
संपादन - मानबी कटोच
Summary: IFS officer Sudha Ramen, the Deputy Director of the Vandalur Zoo, under the guidance of Director Yogesh Singh, Ramen set out with her team to revive the Otteri lake.