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तेलंगाना के हैदराबाद में रहने वाली सुधा रानी मुल्लपुड़ी का राज्य के हैंडलूम सेक्टर में अच्छा-ख़ासा नाम है। साल 2015 में उन्होंने अपनी सोशल एंटरप्राइज, 'अभिहारा फाउंडेशन' की शुरूआत की। इस फाउंडेशन के ज़रिए सुधा का उद्देश्य आंध्र-प्रदेश और तेलंगाना के हस्तशिल्प कारीगरों और कपास उगाने वाले किसानों की मदद करना है। साथ ही, वह साड़ी बुनने की प्रक्रिया को इको-फ्रेंडली बना रही हैं।
सुधा ने द बेटर इंडिया को बताया कि उन्होंने कृषि विषय में अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर सोशल सेक्टर से जुड़ गईं। अपनी एंटरप्राइज शुरू करने से पहले उन्होंने नंदी फाउंडेशन, ऑक्सफाम इंडिया जैसे कई सामाजिक संगठनों के साथ काम किया। ऑक्सफाम इंडिया के साथ काम करते हुए उन्हें कपास उगाने वाले किसानों के साथ काम करने का मौका मिला। किसानों के साथ-साथ वह बुनकरों के साथ भी काम कर रहीं थीं।
"वैसे तो हमेशा से ही हमारे घर में कोचमपल्ली, इकत की साड़ियाँ पहनी जाती रहीं तो थोड़ी दिलचस्पी भी थी इन हाथ की कारीगरियों में। लेकिन उस प्रोजेक्ट के दौरान इन कलाओं और हैंडलूम सेक्टर को अच्छे से समझने का मौका मिला," उन्होंने आगे कहा।
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सुधा ने देखा कि किस तरह से कपास के किसानों और कपास को कात कर उससे धागा और फिर कपड़ा बुनने वाले कारीगरों के बीच कोई सीधा संपर्क नहीं है। हर जगह पूंजीपतियों का बोलबाला है। न तो किसानों को अपनी उपज का सही दाम मिलता है और न ही बुनकरों को। कई सालों तक ऑक्सफाम इंडिया के साथ काम करने के बाद सुधा ने फैसला किया कि वह किसानों और इन कारीगरों के लिए ही काम करेंगी।
साल 2015 में उन्होंने अपनी बहन के साथ मिलकर 'अभिहारा फाउंडेशन' की नींव रखी। वह बतातीं हैं, "हमारी एक ज़मीन है, जहां हमने जैविक कपास की खेती शुरू की और वहीं पर एक प्राकृतिक डाई की एक छोटी-सी यूनिट सेट अप की। सबसे पहले हमें इन कारीगरों को आधुनिक ट्रेंड के बारे में ट्रेनिंग दी। साथ ही, उन्होंने तेलांगना में कुछ और महिला जैविक किसानों को अपने साथ जोड़ा, जो कपास की खेती करती हैं।"
अभिहारा फाउंडेशन इन किसानों से सीधा कपास खरीदती है और इस कपास को प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाता है। प्रोसेसिंग के बाद, धागों को प्राकृतिक डाई के बाद बुनकरों को दिया जाता है। सुधा बतातीं हैं कि उन्होंने तीन अलग-अलग क्लस्टर बनाए हुए हैं- इकत, नारायणपेट और पेदना।
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इकत की साड़ियाँ पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। अब तो लोग इकत के स्टॉल, कुर्ते आदि भी बनाने लगे हैं। इकत क्लस्टर में अभिहारा 6 गांवों के बुनकरों के साथ काम कर रही है।
पेदना क्लस्टर में कलमकारी की कारीगरी होती है। इसमें हाथ से प्रिंटिंग होती है या फिर ब्लॉक प्रिंटिंग। प्राकृतिक डाई के साथ इस कारीगरी में 17 स्टेप्स होते हैं, जिनके बाद एक कलमकारी साड़ी तैयार होती है।
नारायणपेट क्लस्टर की साड़ियाँ सादा और आरामदायक होती हैं। इनके बॉर्डर पर मंदिर जैसी आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
सुधा आगे कहतीं हैं कि फ़िलहाल अभिहारा फाउंडेशन तेलांगना और आंध्र-प्रदेश में 10 किसानों, 80 बुनकरों, 5 दर्जियों और 10 कढ़ाई करने वाले कारीगरों के साथ काम कर रही है। इस तरह से वह लगभग 105 लोगों को रोज़गार दे रही हैं और अच्छी बात यह है कि इनमें ज्यादा संख्या महिलाओं की है।
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"रोज़गार के साथ-साथ हमने इस प्रक्रिया को डेमोक्रेटिक भी रखा है, मतलब कि बुनकरों की ट्रेनिंग कराकर उन्हें खुद अपने डिजाईन बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अन्य जगह सिर्फ एक मास्टर बुनकर होता है और वही अपने डिज़ाइन बताता है। लेकिन हम अपने बुनकरों को उनके डिज़ाइन बनाने के लिए कहते हैं। इसके अलावा, जब भी हमारे डिज़ाइन्स को पहनकर मॉडल रैंप वाक करतीं हैं तो हम अपने बुनकरों को उनके साथ भेजते हैं ताकि लोगों को वह चेहरा पता चले जिसकी यह कारीगरी है," उन्होंने आगे बताया।
अपने यहाँ बनने वाले सभी उत्पादों को अभिहारा फाउंडेशन आर्ट एंड क्राफ्ट्स मेलों, एक्जीबिशन, हाट आदि में स्टॉल लगाकर बेचती है। इसके अलावा, कुछ हैंडलूम शोरूम में भी उनके उत्पाद जाते हैं और पिछले कुछ समय से उन्होंने ऑनलाइन भी अपनी पहचान बनाई है। सुधा के मुताबिक, उनके उत्पादों की बाज़ार में अच्छी मांग है।
उनके उत्पादों की सबसे अच्छी बात यह है कि वह इन्हें प्रकृति के अनुकूल रखने की कोशिश करतीं हैं। उन्होंने अपने कारीगरों को प्राकृतिक डाई के साथ-साथ बचे-कुचे धागों को भी ज्वेलरी बनाने में इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी है।
सुधा बताती हैं, "हमारे यहाँ हर चीज़ स्थानीय लोगों द्वारा ही की जाती है। कपास उगाना, बुनना, ब्लाक प्रिंटिंग, डाई और फिर उससे कपड़ा बनाना भी, सब कुछ स्थानीय कारीगर ही करते हैं। इसीलिए हमारे उत्पादों की बाज़ार में अच्छी मांग है।"
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हालांकि, इस साल कोविड-19 और लॉकडाउन के चलते स्थिति बिल्कुल ही बदल गई। लेकिन अच्छी बात यह है कि अभिहारा फाउंडेशन से जुड़े एक भी किसान या कारीगर को परेशानी नहीं हुई। क्योंकि सुधा और उनकी टीम ने यह सुनिश्चित किया की सभी तक ज़रूरी सुविधाएं पहुंचे।
"इस साल का हमारा सभी माल स्टॉक में है। हम कहीं भी उसे नहीं बेच पाए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमारे कारीगर परेशान हैं। हमने उनकी मदद के लिए ऑनलाइन अभियान चलाया और अपने जानने वाले लोगों से मदद मांगी। अभिहारा ने इस मुश्किल घड़ी में अपने ही लोगों की नहीं बल्कि दूसरे हैंडलूम कमर्चारियों की भी मदद की," सुधा ने कहा।
अब तक उन्होंने लगभग 2000 हैंडलूम कर्मचारियों की मदद की है।
फ़िलहाल, सुधा की कोशिश है कि जो भी उत्पाद स्टॉक में हैं, उन्हें ऑनलाइन बेचा जाए। इससे वह अपने बुनकरों को आगे काम दे पाएंगी। हालांकि, कुछ जगह उन्होंने फिर से काम शुरू कराया है लेकिन उन्हें अपने सभी बुनकरों को काम देना है। इसके लिए वह सोशल मीडिया के ज़रिए अपने उत्पादों की मार्केटिंग करने में जुटी हैं।
"अगर स्थिति सामान्य होती तो हमारा एक साल का टर्नओवर लगभग डेढ़ करोड़ रुपये हो जाता है। लेकिन इस साल बहुत कुछ बदला है। हालांकि, हम कोशिश में जुटें हैं कि हम फिर से अपने सभी बुनकरों को रोज़गार दे पाएं। फ़िलहाल, हमने यूएनडीपी के साथ पार्टनरशिप में एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। जिसका उद्देश्य इन बुनकरों, कसीदाकारों और दर्जी आदि को उद्यमी गुर सिखा, उन्हें आत्म-निर्भर बनाना है," उन्होंने अंत में कहा।
अभिहारा फाउंडेशन के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप सुधा रानी को 9848106027 पर कॉल कर सकते हैं!
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