दीदीज़ ग्रुप- एक टीचर के प्रयासों से आज सैकड़ों महिलाओं को मिला काम के साथ पहचान भी

साल 2008 से लखनऊ की वीणा आनंद Didi's नाम से एक अनोखा ग्रुप चला रही हैं, जिसके तहत वह ऐसी महिलाओं को काम दे रही हैं, जो जीवन में किसी मुसीबत में फंसी हुई हैं।

didi's group

घरेलू हिंसा, यह एक ऐसी बीमारी है, जो सदियों से चली आ रही है, लेकिन इसे समाज से अब तक पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) ने भारतीय घरों में बड़े पैमाने पर और कई लेवल्स पर सर्वे किए और उनकी रिपोर्ट के अनुसार,  “18-49 वर्ष की आयु के बीच 29.3% विवाहित भारतीय महिलाओं ने घरेलू हिंसा या फिर यौन हिंसा का सामना किया। 18-49 साल की 3.1% गर्भवती महिलाओं ने, गर्भावस्था के दौरान शारीरिक हिंसा का सामना किया।" 

यह तो वे आंकड़ें हैं, जो महिलाओं ने दर्ज़ करवाए, लेकिन हमेशा सर्वेज़ में मिलने वाले आंकड़ों से इतर, एक बड़ी संख्या में ऐसे मामले होते हैं, जो पुलिस तक कभी पहुंचते ही नहीं और इसका सबसे बड़ा कारण है आत्मनिर्भर न होना। लेकिन कई ऐसी संस्थाएं हैं, जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम रही हैं और ऐसा ही एक समूह है, दीदीज़ ग्रुप। 

इस ग्रुप से जुड़ी लखनऊ की रहनेवाली 55 साल की शशि मिश्रा, साल 2010 में अपने पति से परेशान होकर, अपने माता-पिता के घर वापस आ गई थीं। उनके पति ने दूसरी शादी कर ली थी, जिसके बाद वह शशि और बेटी का बिल्कुल ख्याल नहीं रखते थे। रोज़ की घरेलू हिंसा से तंग आकर, एक दिन शशि ने अपनी बेटी को लेकर एक नई जिंदगी शुरू करने का फैसला किया। 

आत्मनिर्भरता से आता है आत्मविश्वास

शशि के भाई ने उन्हें लखनऊ में एक सोशल एंटरप्राइज़ 'दीदीज़ ग्रुप' चलानेवाली वीणा आनंद से मिलाया। साल 2008 से, लखनऊ के इस अनोखे ग्रुप के तहत, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम चल रहा है, जिसके ज़रिए एक नहीं, बल्कि कई महिलाओं को जीवन में आगे बढ़ने में मदद मिल रही है। 

एक हफ्ते की ट्रेनिंग के बाद, शशि को भी वहीं काम मिल गया और जीवन में आगे बढ़ने की नई राह भी। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए शशि कहती हैं, “साल 2013 में मैंने दीदीज़ ग्रुप में काम करना शुरू किया था। उन्होनें मुझे आत्मनिर्भर तो बनाया ही, साथ ही मेरा आत्मविश्वास बढ़ाने में भी काफी मदद की। आज मैं यहां केटरिंग का काम संभालती हूँ और इसी की बदौलत अपनी बेटी को पढ़ा भी रही हूँ।" शशि की 24 वर्षीया बेटी अभी पत्रकारिकता की पढ़ाई कर रही हैं। 

Women Of Didis Group
Women Of Didi's Group

ऐसी ही कहानी कुंती की भी है। हालांकि उनके घर में घरेलू हिंसा तो नहीं हो रही थी, लेकिन उनके पिता के लिए बिना स्थायी नौकरी के सात भाई-बहनों को अच्छी परवरिश देना काफी मुश्किल काम था। घर के ख़राब हालात सुधारने के लिए कुंती ने दीदीज़ ग्रुप ज्वाइन किया था। कुंती आज ग्रुप की सबसे सफल महिलाओं में से एक हैं और अच्छे पैसे कमाकर वह परिवार को आर्थिक रूप से सबल बना रही हैं।  

किसकी पहल से शुरू हुआ दीदीज़ ग्रुप ?

आशा, सफलता और कामयाबी के नए मायने सिखा रहे दीदीज़ ग्रुप से जुड़ी एक या दो नहीं, तक़रीबन हर एक महिला की कहानी ऐसी ही है और यह बेहतरीन प्रयास है, लखनऊ में 'स्टडी हॉल स्कूल' की फाउंडर डॉ. उर्वशी साहनी का। 

अपने स्कूल में शिक्षा के ज़रिए वह पहले ही गरीब परिवार की लड़कियों को आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं। लेकिन शिक्षा से एक कदम आगे बढ़कर, उन्होंने इन महिलाओं को रोज]गार देने के बारे में भी सोचा।  

डॉ. उर्वशी ने अपने इस मिशन या यूं कहें कि सपने को पूरा करने का काम अपने स्कूल की एक टीचर वीणा आनंद को सौंपा, जिसके बाद 2008 से यह वीणा आनंद के जीवन का एक अटूट हिस्सा बन गया।  

द बेटर इंडिया से बात करते हुए दीदीज़ की सह-संस्थापक वीणा आनंद बताती हैं, “मैं डॉ. उर्वशी साहनी को अपनी मेंटर मानती हूँ। उन्होंने देखा कि कई लड़कियां पढ़ी-लिखी और काबिल होने के बाद भी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हैं और यही कारण है कि जीवन में मुश्किलें आने पर वह हार जाती हैं। इसलिए वह चाहती थीं स्किल्स के ज़रिए इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाए।"

Dr. Urvashi and Veena Aanad With Didis women
Dr. Urvashi and Veena Aanad With Didi's women

चूँकि वीणा को कुकिंग, आर्ट और क्राफ्ट से विशेष लगाव था, इसलिए जब उन्हें यह काम सौंपा गया, तो उन्होंने बिना देर किए दीदीज़ से जुड़ने का फैसला किया और सारी जिम्मेदारीयां उठा लीं। 

कैसे शुरू हुआ काम?

वीणा ने ‘सिस्टर्स इन सॉलिडैरिटी’ नाम की एक NGO के तहत, शुरुआती फंड इकट्ठा किया। उन्होंने बताया, “इस NGO से जुड़े ज़्यादातर लोगों ने दीदीज़ के लिए पांच-पांच हज़ार रुपये जमा किए थे, जिसके बाद हमने रसोई का सामान और बाकी ज़रूरत की चीज़ें लाकर लड़कियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया।"

…और इस तरह सिस्टर्स इन सॉलिडैरिटी NGO के तरत ही दीदीज़ की शुरुआत हो गई। उन्होंने शुरुआत में लड़कियों को चॉकलेट बनाना सिखाया था। समय के साथ ज़्यादा महिलाएं आने लगीं और ज़्यादातर महिलाएं किसी न किसी मुसीबत में फंसी होती थीं और काम की तलाश में यहां आती थीं।  

ऐसे में वीणा ने महिलाओं को काम देने के लिए स्टडी हॉल स्कूल में एक कैंटीन शुरू किया और दीदीज़ की यह कैंटीन अच्छी चलने लगी। वीणा खुद यहां आने वाली महिलाओं को अलग-अलग स्नैक्स बनाना सिखातीं और इन्हें काम पर रख लेतीं। इस तरह जरूतमंद महिलाएं आती रहीं और काम बढ़ता गया। उन्होंने कॉपरेट ऑफिस की कैंटिंग में भी खाना बनाने का काम शुरू किया। 

महिलाओं ने आचार, लड्डू, सिलाई, बुनाई, ज्वेलरी, राखी, दिये जैसी कई चीज़ें दीदीज़ के तहत बनाना शुरू किया, जो महिला जिस काम में माहिर होती, उसे उस काम में लगा दिया जाता।

women are Happy working In Didi's
Happy working In Didis

कोरोना में भी दीदीज़ के प्रयास से मिली कइयों को मदद

वीणा कहती हैं, “हमारे पास अनन्स्किल्ड महिलाएं ही आती हैं। बाद में उनकी रुचि के अनुसार, उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है और काम पर रखा जाता है।" फिलहाल, दीदीज़ ग्रुप को वीणा ने दो भागों में बाँट दिया है, दीदीज़ क्रिएशन और दीदीज़ फ़ूड। 

वह बड़े गर्व के साथ कहती हैं कि आज हम सभी महिलाएं मिलकर एक केटरिंग बिज़नेस भी चला रहे हैं और शहर भर से केटरिंग सेवाएं दे रहे हैं। हालांकि कोरोना के समय, बाकि सभी के साथ-साथ दीदीज़ ग्रुप का काम भी बंद हो गया था। लेकिन वीणा ने महिलाओं की आमदनी जारी रखने के लिए कोरोना मरीजों के लिए टिफ़िन सेवा शुरू की। 

दीदीज़ ग्रुप शहर भर में शुद्ध और हेल्दी खाना पहुंचाने लगे। उस समय घर के खाने की मांग इतनी ज़्यादा थी कि दीदीज़ को काम मिलता गया। इस तरह कोरोना में भी सभी महिलाओं को आधी सैलरी देने का इंतजाम आराम से हो गया। 

वहीं दूसरी और दीदीज़ क्रिएशन में काम करनेवाली महिलाएं हेंडीक्राफ्ट, पर्स, नैपकिन, राखियां  जैसी ढेरों चीज़ें बनाने का काम करती हैं। लखनऊ के एक मॉल में दीदीज़ का एक छोटा स्टोर भी है, जहां इन महिलाओं की बनाई चीज़ें बिकती हैं। 

अब प्री बुकिंग पर बिकते हैं प्रोडक्ट्स

जिस तरह के हालातों से ये महिलाएं आती हैं, उनके लिए बाहर जाकर बात करना या काम करना आसान नहीं होता। ऐसे में, शुरुआत में केटरिंग और प्रोडक्ट्स बेचने जैसा काम करने से वे काफी डरती हैं। लेकिन वीणा समय-समय पर इन महिलाओं के लिए मोटिवेशनल वर्कशॉप आयोजित करती रहती हैं और आज आलम यह है कि ये लड़कियां खुद ही एचआर से लेकर सेल्स और अकॉउंटिंग जैसे सारे काम संभाल रही हैं।  

Team Didi's
Team Didi's

हाल में 60 से ज़्यादा महिलाएं और लड़कियां, दीदीज़ ग्रुप के अलग-अलग विभाग में काम कर रही हैं। इन सभी महिलाओं को हर महीने तनख्वाह दी जाती है। दीदीज़ के प्रोडक्ट्स और सेवाओं के ज़रिए ही यह सारा काम सुचारु रूप से चल रहा है। 

वीणा ने बताया, “हाल में दीदीज़ के लड्डू प्री बुकिंग में ही बिकते हैं। वहीं हमारे दूसरे हैण्डीक्राफ्ट और होममेड प्रोडक्ट्स भी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं। यही कारण है कि आज दीदीज़ ग्रुप बिना किसी की मदद के सेल्फ सस्टेनेबल मॉडल के तहत काम कर रहा है।"

आप दीदीज़ ग्रुप के बारे में ज़्यादा जानने के लिए यहां क्लिक करें।  

संपादनः अर्चना दुबे

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