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Home प्रेरक महिलाएं एक गृहिणी के प्रयास से गांव की 27 महिलाओं को मिला काम, कचरे से रोज कमा रहीं रु. 500

एक गृहिणी के प्रयास से गांव की 27 महिलाओं को मिला काम, कचरे से रोज कमा रहीं रु. 500

'माँ सरस्वती सेल्फ हेल्प ग्रुप' के तहत, लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) के समैसा गांव की 27 महिलाएं केले के तने से रेशे बना रही हैं। ग्रुप की अध्यक्षा पूनम देवी ने अपने साथ इन महिलाओं को भी रोज़गार की नई राह दिखाई है।

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Banana fiber

लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) के समैसा गांव में रहनेवाले प्रमोद राजपूत, पिछले 12 सालों से केले की खेती कर रहे हैं। उनके साथ-साथ इलाके में 1000 एकड़ ज़मीन पर अन्य किसान भी केला ही उगाते हैं। एक ही इलाके में इतनी ज़्यादा मात्रा में केले की खेती होना, समय के साथ किसानों के लिए बड़ी समस्या बन गई थी। क्योंकि एक पेड़ से दो से तीन बार फसल की कटाई के बाद,  इसके तने किसी काम के नहीं रहते और किसान इन्हें फेंक देते हैं। 

लेकिन, आज इलाके की यह समस्या ही यहां की महिलाओं के लिए रोज़गार का अवसर बन गई है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए, प्रमोद राजपूत कहते हैं, “हमारे यहां हर सड़क के किनारे केले के तने ही पड़े मिलते थे। इसे सड़क से हटाने के लिए हमें मजदूरों को बुलाना पड़ता था। हमें एक एकड़ खेत में पांच हज़ार रुपये सफाई के लिए खर्च करने पड़ते थे, जो हमारी खेती का खर्च बढ़ा रहा था। हम समझ नहीं पा रहे रहे थे कि इस मुसीबत से कैसे निकला जाए।"

इलाके की इस समस्या को ध्यान में रखकर,  ईसानगर (लखीमपुर खीरी) के तत्कालीन ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफ़िसर (BDO) अरुण सिंह ने केले के तने से रेशा बनाने की बात गांववालों के सामने रखी। इससे पहले मात्र कुशीनगर में ही बनाना फाइबर बनाया जाता था। 

Banana Fiber Unit In Village
Banana Fiber Unit In Village

समैसा गांव में महिलाओं ने शुरू किया काम 

प्रमोद बताते हैं कि BDO ने बाकायदा उनके लिए एक मीटिंग आयोजित की और केले के तने से रेशा बनाने का प्रस्ताव रखा। इस एक आईडिया से किसानों के जो पैसे सफाई पर खर्च हो रहे थे, वे तो बचते ही, साथ ही उन्हें एक्स्ट्रा कमाई का बेहतरीन ज़रिया भी मिलता। चुंकि प्रमोद खेती से जुड़े थे और उन्हें इस समस्या के समाधान की अहमियत पता थी, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी पूनम को बनाना फाइबर के काम से जुड़ने को कहा। 

25 वर्षीया पूनम, सात सालों से एक गृहिणी ही रही हैं, शुरुआत में वह इस काम के लिए तैयार भी नहीं थीं। लेकिन जब उन्हें मशीन से रेशा बनाने का वीडियो दिखाया गया, तो उन्हें यह काम बड़ा आसान लगा। 

पूनम कहती हैं, “मैं तो तैयार हो गई, लेकिन मुझे गांव की और महिलाओं को भी तैयार करना था, जो मेरे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी।" पूनम ने उन सभी महिलाओं को अपने साथ जोड़ने का फ़ैसला किया, जिनके घर में आर्थिक समस्याएं थीं। आख़िरकार, गांव की 27 महिलाओं को मिलाकर उन्होंने ‘माँ सरस्वती सेल्फ हेल्प ग्रुप' बनाया।  

Poonam and her Women team
Poonam and her Women team

लोन पर मशीन लेकर हुई काम की शुरुआत

BDO की मदद से उन्होंने गुजरात की एक टेक्सटाइल कंपनी से केले के तने से रेशा बनाने की मशीन मंगवाई, जिसके लिए उन्होंने बैंक से लोन लिया। दिसंबर-2019 में गुजरात की कंपनी के साथ, इस सेल्फ हेल्प ग्रुप का एक MOU भी बना, जिसके तहत ये महिलाएं रेशा बनाकर गुजरात भेजने लगीं।  प्रमोद ने बताया कि रेशा बेचने के बाद, मिले पैसों से ही वे मशीन का लोन चूका रहे हैं।

यह एक ऑटोमैटिक मशीन है, जिसमें काम करना बेहद आसान है। पूनम बताती हैं, “हर एक तने से करीबन 100 ग्राम बनाना फाइबर तैयार होता है। यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल मटेरियल है, इसलिए हमें ख़ुशी है कि हमारे काम से प्लास्टिक का उपयोग कम करने में भी मदद मिल रही है।"

उनके इस ग्रुप की तारीफ़ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं। उन्होंने अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात' में लखीमपुर खीरी की इस सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाओं के प्रयासों के बारे में बात की थी, जिसके बाद इन महिलाओं का आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ गया। 

Women of Self Help Group
Women of Self Help Group

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनकर ये महिलाएं बनीं प्रेरणा

समैसा गांव की इन महिलाओं की सफलता के बाद, आस-पास के कुछ और गांवों में इस तरह के प्रयास शुरू किए गए हैं। पूनम बड़े गर्व के साथ बताती हैं कि पहले उनका जिला सिर्फ केले की खेती के लिए मशहूर था, लेकिन जल्द ही यह बनाना फाइबर का भी हब बन जाएगा।

उनका सेल्फ हेल्प ग्रुप, पूनम के घर से ही काम करता है, क्योंकि बनाना फाइबर मशीन पूनम के घर पर ही लगी है,  जिसमें शिफ्ट के अनुसार महिलाओं को काम पर बुलाया जाता है। इन महिलाओं को प्रतिदिन के 400 से 500 रुपये दिए जाते हैं।  

समैसा गांव की राधा देवी के पति, साल 2019 तक दिहाड़ी मज़दूरी से रोज़ सिर्फ 400 रुपये कमाते थे। लेकिन अब राधा इस सेल्फ हेल्प ग्रुप का हिस्सा बनकर खुद भी दिन के 400 रुपये आराम से कमा लेती हैं।

यहां हर दिन 35 से 40 किलो फाइबर तैयार होता है। 

Products From Banana Fiber
Products From Banana Fiber

राधा की तरह ही सभी महिलाओं की आर्थिक स्थिति में बदलाव आए हैं। पूनम कहती हैं, “फ़िलहाल हम यह रेशा, 180 से 200 रुपये किलो के भाव से बेच रहे हैं। लेकिन जल्द ही हम इससे प्रोडक्ट्स बनाने का काम भी शुरू करने वाले हैं, जिसके बाद हम इसे 2000 रु. प्रति किलो के हिसाब से बेच पाएंगे।"

पूनम जैसी महिलाएं ग्राम उद्योग से जुड़कर रोज़गार का नया रास्ता निकाल रही हैं और इसके ज़रिए वह कइयों के लिए मिसाल भी बन रही हैं।  

संपादन- अर्चना दुबे

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