मल्लिका जगद।
मुंबई, 26 नवंबर 2008, रात के लगभग 9:30 बजे। मल्लिका जगद ने गोलियों की आवाज़ सुनी। उन्होंने और ताज होटल के हेरिटेज विंग में बैठे 60 से अधिक मेहमानों ने सोचा कि यह किसी शादी में आतिशबाजी की आवाज़ होगी, क्योंकि यह शादी का सीज़न था।
लेकिन मल्लिका का पहला अनुमान सही था। उन सभी को गोलियों की आवाजें सुनाई दी थी लेकिन स्थिति की गंभीरता को समझने में उन्हें कुछ समय लगा। उस समय ताज होटल में असिस्टेंट बैंक्वेट मैनेजर मल्लिका बताती हैं कि उनके पास कोई क्लू नहीं था कि यह एक छोटी बंदूक लिए कोई गनमैन है या फिर मशीनगन के साथ आतंकवादी। उन्हें सिर्फ इतना अपडेट मिला कि वह होटल में वीआईपी मेहमानों को निशाना बनाने जा रहा था, जिनमें से ज्यादातर उनके साथ बैंक्वेट हॉल में थे। उन्हें पता था कि उनकी टीम और उन्हें अपनी आखिरी सांस तक उनकी रक्षा करनी थी।
"यह प्री-डिजिटल युग था, जब फोन पर न्यूज़ अपडेट नहीं आते थे। पर कुछ समय बाद, मेहमानों को अपने फोन पर परिवार वालों के कॉल्स और मैसेजेस आने लगे। उस समय तक शहर में यह खबर फैल चुकी थी कि होटल में एक बंदूकधारी घुसा है," मल्लिका ने बताया।
26 नवंबर 2008 भारत के इतिहास में हमेशा एक काला दिन रहेगा। तीन दिनों तक मुंबई को हिला देने वाले कई आतंकवादी हमलों ने 150 से अधिक लोगों की जान ले ली थीं और हज़ारों को खतरे में डाल दिया था। ताज होटल, मुंबई की सबसे अधिक मशहूर इमारतों में से एक होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की पसंदीदा होटल है। साथ ही इसी के चलते उग्रवादियों के निशाने पर भी रहती है।
इसी होटल में उस रात, मल्लिका ने मौत को करीब से देखा था। उस समय 24 साल की मल्लिका यूनिलीवर द्वारा आयोजित एक दावत की इंचार्ज थीं।
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जैसे ही मल्लिका और उनकी टीम ने मेहमानों पर मंडरा रहे इस खतरे को समझा, उसी समय उन्होंने सभी दरवाजे बंद कर दिए और बैंक्वेट हॉल के आस-पास के क्षेत्र को भी बंद कर दिया। लेकिन चाबियां बैंक्वेट इंचार्ज के कमरे में रखी हुई थीं, जोकि बैंक्वेट हॉल से काफी दूर था। ज़रा सी भी आहट आतंकवादियों को उनके ठिकाने का पता दे सकती थी। पर कमरों को लॉक करने के लिए इन चाबियों का होना बेहद ज़रूरी था। ऐसे में अपनी जान की परवाह किये बिना बैंक्वेट इंचार्ज ने मल्लिका की ओर के गलियारे में चाबियों का गुच्छा फेंका।
होटल के कर्मचारियों के साथ, मल्लिका ने दरवाजे बंद कर दिए और सारी लाइटें भी बंद कर दीं। हर एक दरवाजे और खिड़की को बंद करने के बाद, मेहमानों को फर्श पर लेट जाने और शांत रहने के लिए कहा गया।
परिस्थितियों से अंजान, सभी मेहमान सवाल पर सवाल किये जा रहे थे। मल्लिका ने स्थिति को शांत करने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें खुद स्थिति की बहुत कम समझ थी।
“मैं होटल के अधिकारियों को फोन करती रही, लेकिन शायद ही किसी के पास हमारे सवालों का कोई स्पष्ट जवाब था। वास्तव में, पहले कुछ घंटों के लिए, हम यह भी नहीं जानते थे कि वो बंदूकधारी आतंकवादी थे," वह याद करती हैं।
बाद में, मेहमानों को पूरी मुंबई में हमलों के बारे में खबरें मिलनी शुरू हो गईं, क्योंकि उनके चिंतित परिवार और दोस्त फोन करते रहे। अंधेरे कमरे में, सन्नाटा कभी-कभी कुछ फुसफुसाते हुए, बड़बड़ाहट से बाधित हो जाता था। इस सब के बीच, मल्लिका ने खतरे के संकेत के लिए अपनी आँखें और कान खुले रखते हुए, अपने आप को जितना हो सके उतना शांत रखा।
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पर फिर एक समय ऐसा आया, जब लोग बेचैन होने लगे। कुछ ने हॉल से बाहर निकलने और भागने की कोशिश करने का भी सुझाव दिया। मल्लिका को पता था कि अगर भागते हुए एक भी व्यक्ति पकड़ा जाता, तो बाकी सभी की जान खतरे में पड़ जाती। इसलिए हमने कुछ 60-65 लोगों की भीड़ को उसी जगह छुपा कर शांत रखने की कोशिश की।
उस समय तक, मल्लिका तक खबर पहुँच चुकी थी कि आतंकवादी किसी को बंधक नहीं बना रहे थे; वे तो लोगों को देखते ही शूट कर रहे थे, बच्चों व महिलाओं को भी नहीं बख़्श रहे थे। वे दरवाज़ा खटखटाते और दरवाज़ा खोलते ही गोली मार देते।
धमाकों की लगातार आवाजें आ रही थीं, क्योंकि आतंकियों ने जगह-जगह ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिए थे, जिससे आग लग गई। मल्लिका और उनके मेहमान उस विंग में फंस गए जहां वुडवर्क के आर्किटेक्चर रखे हुए थे, जो आसानी से आग पकड़ सकते थे।
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इसी बीच, कुछ मेहमान बेचैन होने लगे, लेकिन उनका एक गलत कदम हॉल में दूसरों के जीवन को खतरे में डाल सकता था। ऐसे में मल्लिका ने हर एक को शान्ति से स्थिति से अवगत कराया और इस बात का ध्यान रखा कि उनमें से कोई हड़बड़ी में कोई गलत कदम न उठा ले।
उसी समय, दरवाजे और खिड़कियों की दरारों से कमरे में धुआं आने लगा। अचानक हुई इस घटना से सभी घबरा गए और चीखने लगे।
"मुझे भारतीय सेना पर हमेशा से बेहद भरोसा रहा है। इसलिए सुबह के आसपास, जब मुझे पता चला कि सेना आ गई है, तो मैंने राहत की सांस ली। मेरा दृढ़ विश्वास था कि हम अंततः सुरक्षित हैं," मल्लिका कहती हैं।
इसके कुछ समय बाद ही सभी खतरें से बाहर आ गए। मल्लिका ने कई लोगों की जान बचाई थी। पर इस घटना ने उनकी आँखे खोल दी।
मल्लिका बताती हैं, “26/11 के अनुभव से पहले, मुझे नहीं पता था कि मैं खतरे के सामने भी स्पष्ट रूप से सोच सकती हूँ। मैं अब सभी को बताती हूँ कि मुझे उस रात एहसास हुआ, कि हमें कभी भी अंत तक उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।"
एक दशक से भी अधिक समय के बाद, मल्लिका जगद, जो अब टाटा ट्रस्ट में अच्छे पद पर कार्यरत हैं, अभी भी ताज में अपने सभी मेहमानों को बचाने के लिए जानी जाती हैं।
संपादन - मानबी कटोच
मूल लेख - सायंतनी नाथ