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कैंसर को हराया, नौकरी छोड़ी और महज़ पांच एकड़ में खिलाये गुलाब, गोभी और ड्रैगन फ्रूट भी!

ज जब देश में महामारी फैली है, लाखों मजदूर और युवा अपने गांव-कस्बों की ओर लौट गए हैं। ये लोग अब गांव के सीमित संसाधनों में अपने लिए रोजगार के अवसर तलाश रहे हैं। क्योंकि ये अब देख रहे हैं कि जो लोग कुछ साल पहले शहर की तरफ नहीं भागे, गांवों में रहकर अपनी थोड़ी सी जमीन में समझबूझ से खेती की वे अब सफल हैं। अपने आसपास देखेंगे तो ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के गया प्रसाद मौर्य ऐसे ही लोगों में से एक हैं। उन्होंने शहर की नौकरी की जगह गांव में अपनी खेती को तवज्जो दी। मुश्किलें आईं लेकिन वह लड़ते रहे। 2011 में कैंसर हुआ, और दवाई में अच्छा खासा कर्ज़ भी हो गया। लेकिन इस बीमारी से बाहर निकल उन्होंने अपने ही गांव, अपनी मिट्टी में अवसर ढूंढे और आज धीरे धीरे उनके जीवन की रेल खुद की बनाई पटरी पर सरपट दौड़ रही है।

गया प्रसाद मौर्य

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव के किसान गया प्रसाद मौर्या ने कोई रिकॉर्ड नहीं बनाया है। उनके पास सैकड़ों एकड़ जमीन भी नहीं है और न ही उनकी कमाई करोड़ों में है। लेकिन उनकी कहानी रोचक है, क्योंकि उनकी कहानी भारत के करोड़ों दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन सकती है, जो कम खेत होने की वजह से खेती छोड़कर नौकरी के लिए शहर आ जाते हैं, और उनके लिए भी जिन्हें नहीं पता की खेती से पैसा कैसे कमाया जाना चाहिए।

अर्ली क्रॉप और इनोवेटिव खेती है सफलता का राज़ 

गया प्रसाद मौर्या इनोवेटिव (उन्नत) और प्रयोगधर्मी खेती करते हैं, अपने खेतों में प्रयोग करते हैं। वह खेत के एक टुकड़े में ब्रोकली (गोभी की विशेष प्रजाति) लगाते हैं, तो दूसरे में गुलाब लगाते हैं। सब्जियों की खेती वो समय से पहले (अर्ली क्रॉप) करते हैं, जब बाकी किसान गोभी की नर्सरी लगाने की तैयारी करते हैं तो गया प्रसाद के खेतों में गोभी के फूल आना शुरु हो जाते हैं।

गया प्रसाद के खेतों में गोभी के फूल

गुलाब की खेती भी और सूखे फूलों से गुलाब जल भी

गया प्रसाद मौर्या, उत्तर प्रदेश में लखनऊ के करीब बाराबंकी जिले के मोहम्मदपुर गांव में रहते हैं। उनके गांव से कुछ दूरी पर धार्मिक स्थल देवा शरीफ है, जहां सूफी संत हाजी वारिश अली शाह की दरगाह है। देवा में वारिश अली शाह की मजार पर जो गुलाब के फूल चढ़ाए जाते हैं उसका बड़ा हिस्सा पिछले कई वर्षों से गया प्रसाद मौर्या के खेतों से आता है। इतना ही नहीं जब फूल ज्यादा हो जाते हैं तो वो उनकी पत्तियों को सुखाकर अर्क निकालते हैं और गुलाब जल बनाकर बेचते हैं।

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उत्तर प्रदेश में ले आये डैगन फ्रूट भी 

डेढ़ साल पहले उन्होंने डैगन फ्रूट का बाग भी लगाया है। ड्रैगन फ्रूट अभी यूपी तो क्या भारत में भी बहुत कम पैदा होता है। गया प्रसाद ये पौधे गुजरात से लाए थे।

उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “एक बार मैं लखनऊ के सीमैप किसान मेले (केन्द्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान) में गया था वहां एक किसान इसका फल लेकर आया था, पता चला कि एक बार इसकी बाग लगाने पर 20-25 साल तक फल आते हैं। जब इसके बारे में पता लगाया तो जाना कि ये फल बहुत महंगा बिकता है और इसकी मांग बढ़ रही है। इसलिए मैंने इसकी खेती की शुरूआत की।”


गया प्रसाद अपने गांव में खेती करके ही सुखमय जीवन बिता रहे हैं, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। कुछ साल पहले उनको भी अपना भविष्य शहर में नजर आ रहा था, उन्होंने लखनऊ में एक जूता बनाने वाली फैक्ट्री में काम भी किया। गया प्रसाद बताते हैं कि नौकरी में जो पैसे मिल रहे थे उससे काम तो चल जाता था लेकिन उन्हें संतोष नहीं मिलता था, इसीलिए उन्होंने वापस गांव लौटकर खेती करने का फैसला किया, क्योंकि खेती तो उनके घर में पिता-दादा के जमाने से होती ही आ रही थी।

लेकिन एक घटना ने खेती को लेकर भी उनका नजरिया बदल दिया।

गया प्रसाद बताते हैं, “11 साल हो गए होंगे, जब मुझे कैंसर हो गया था, पीजीआई के डॉक्टरों ने आधा गाल काटकर निकाल दिया, जान तो बच गई, पैसे भी बहुत खर्च हुए लेकिन उसके बाद संभलना बहुत मुश्किल हो गया था। आपरेशन के बाद जब मैं ठीक हुआ तो सबसे पहले ये काम किया कि ऐसी खेती करनी है जिसमें नुकसान न हो। तो मैंने अपने खेतों में हानिकारक कीटनाशक डालने बंद कर दिए। दूसरा काम ये किया कि मैंने खेतों में प्रयोग किए क्योंकि धान-गेहूं की खेती में खर्च नहीं चल सकता था।”

ऐसा नही है कि गया प्रसाद की राह बहुत आसान थी, बीमारी में लिया हुआ कर्ज़, घर में 7 बच्चे और कमाई का सिर्फ एक साधन, खेती।


50 वर्षीय गया प्रसाद अपने मुश्किल हालातों का ज़िक्र करते हुए बताते हैं, “बीमारी के दौरान और उसके बाद भी पत्नी और बेटियों ने बहुत साथ दिया।“

खेती की देख-रेख में उनकी पत्नी आज भी आगे रहती हैं। खेतों में लगे फूल, तड़के सुबह मंडी में पहुंच जाए और बचे हुए फूलो से गुलाब जल बनने का काम उन्हीं की देखरेख में होता है।

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महज़ पांच एकड़ में इतने सारे उत्पाद 

गया प्रसाद के पास 5 एकड़ जमीन है, लेकिन खेती में इंटरक्रॉपिंग और कृषि विविधीकरण की तकनीक अपनाकर वो साल में 4 से ज़्यादा फसल लेते हैं, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा भी होता है। उन्होंने अपनी जमीन को कई भागों में बांट रखा है, जिसमें 3 महीने वाली फसल, 4 महीने वाले फसल, दो साल वाली औषधीय फसलें (शतावरी) है। इसी तरफ जमीन के एक भाग में उन्होंने लंबे समय की फसल के रुप में बाग (फिलहाल ड्रैगन फ्रूट) लगाई।

कैंसर की बीमारी झेल चुके शुद्ध और केमिकल मुक्त खाने का महत्व भी समझ गए हैं। वह धीरे-धीरे अपनी खेती को जैविक की तरफ ले जा रहे हैं। इस बार उन्होंने काले गेहूं की खेती पूरी तरह जैविक विधि से की है।

गया प्रसाद हर उस किसान के लिए मिसाल है जो कम ज़मीन में भी अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं।

गया प्रसाद से बात करने के लिए आप उन्हें 9919257513 पर कॉल कर सकते हैं। 

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