हर कोई चाहता है कि घर के आसपास हमेशा हरियाली बनी रहे। इसके लिए कुछ लोग घर के आसपास खाली जगह या फिर छत पर बागवानी (Gardening) करते हैं। लेकिन ऐसे भी कई लोग हैं, जिन्हें लगता है कि कम जगह में बागवानी नहीं हो सकती। ऐसे लोगों को द बेटर इंडिया की यह स्टोरी जरूर पढ़नी चाहिए।
दरअसल आज हम आपको सूरत में रहने वाली 62 वर्षीया डॉ. रेखा मिस्त्री के गार्डन के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां कम जगह में भी सुंदर व्यवस्था करके ढेर सारे पौधे उगाए गए हैं।
पेशे से यूनिवर्सिटी प्रोफेसर डॉ. रेखा मिस्त्री तमाम व्यस्तताओं के बीच भी, गार्डनिंग (Gardening) के लिए समय निकाल लेती हैं। केवल 410 स्क्वायर फ़ीट की छत पर वह 13 औषधीय पौधे, 10 सजावटी पौधे, 10 फलदार पौधे और 12 तरह की सब्जियां उगा रही हैं।
आज से पांच साल पहले तक, उन्हें बागवानी (Gardening) के बारे में कुछ भी खास पता नहीं था। लेकिन पौधों के प्रति अपने लगाव के कारण साल 2016 में उन्होंने टेरेस गार्डनिंग (Gardening) से संबंधित एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया। जिसके बाद तो उन्होंने अपने छत का रूप ही बदल दिया।
डॉ. रेखा ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरी शादी 1989 में हुई। जिसके बाद मैं सूरत रहने आ गई। उस वक्त हमने घर पर गिनती के ही कुछ गमले रखे थे, जिसमें केवल फूल के पौधे हुआ करते थे। मुझे हरी सब्जी और फलदार पौधों के बारे में जानकारी नहीं थी। कई साल बाद मुझे कृषि विज्ञान केंद्र पर आयोजित होने वाले टेरेस गार्डनिंग वर्कशॉप के बारे में पता चला। वहां जाकर मुझे लगा कि यह काम ज्यादा मुश्किल नहीं है। और इस तरह 2016 से मैंने टेरेस गार्डनिंग (Gardening) की शुरुआत कर दी।”
सब्जी से लेकर फल तक, सबकुछ छत पर
उन्होंने टेरेस गार्डनिंग की शुरुआत, हरी सब्जी और फल के कुछ पौधों से की। आज उनकी छत पर लौकी, रतालू , भिंडी, अरबी, मिर्च, बैंगन, पालक, चौलाई, ककड़ी, कुंदरू, हल्दी और निम्बू जैसी सब्जियां उगती हैं। वहीं फलों में अंजीर, जामुन, आम, शहतूत, अनार, पपीता, सीताफल सहित बटरनट्स (थाईलैंड का फल) के पौधे हैं।
डॉ. रेखा को फूलों से खास लगाव है। आपको उनकी छत पर गुलाब, गुड़हल, चमेली, पारिजात, अपराजिता और अडेनियम सहित, वॉटर लिली के कई पौधे दिख जाएंगे।
डॉ. रेखा के पति भी गार्डनिंग (Gardening) में उनका साथ देते हैं। वह कहती हैं, “हम बागवानी को फैमिली प्रोजेक्ट की तरह देखते हैं। मेरे पति पानी देने का काम करते हैं और मैं छुट्टी वाले दिन पौधों में खाद और कीटनाशक आदि देती हूं।”
सालों से उन्होंने अरबी और पालक साग, बाजार से खरीदे ही नहीं है। इसके बारे में डॉ. रेखा कहती हैं, “हफ्ते में एक दिन हरी सब्जी, हमें गार्डन से ही मिल जाती है। साग तो अब हम बाजार से खरीदते ही नहीं हैं।
गार्डनिंग (Gardening) के बारे में उनका मानना है कि यह काम हर किसी को करना चाहिए, क्योंकि यह एक थेरिपी के समान है।
डॉ. रेखा अपने घर के गीले कचरे से पौधों के लिए खाद भी बनाती हैं। उन्होंने बताया कि 2016 से उनके घर का गिला कचरा बाहर नहीं गया है। कम्पोस्ट बनाने के लिए, उन्होंने दो अलग-अलग गमले रखे हैं, जिनमें वह घर का गीला कचरा डालकर रखती हैं। पौधों की देखभाल के लिए, वह घर पर ही जैविक कीटनाशक बनाती हैं, जिसके लिए वह लहसुन, मिर्ची, तम्बाकू और नीम का तेल उबालकर रखती हैं।
गार्डनिंग (Gardening) में उनकी रूचि इतनी है कि दिनभर व्यस्त होने के बावजूद भी, पौधों के लिए समय निकाल ही लेती हैं। कोरोना के समय भी, वह ऑनलाइन काम करते हुए गार्डनिंग कर रही थीं।
डॉ. रेखा यूनिवर्सिटी से कुछ ही महीनों में रिटायर होने वाली हैं, जिसके बाद वह हाइड्रोपोनिक तरीके से गार्डनिंग (Hydroponic Gardening) करेंगी। इसके लिए वह अलग-अलग वर्कशॉप के जरिए हाइड्रोपोनिक गार्डनिंग सीख रही हैं। उनका मानना है कि यह, सब्जियां उगाने का एक सस्टेनेबल तरीका है।
आशा है आपको भी डॉ. रेखा की गार्डनिंग की यह कहानी पढ़कर प्रेरणा मिली होगी।
हैप्पी गार्डनिंग !
संपादन- जी एन झा
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